रविवार, 5 नवंबर 2017

भैरव तन्त्र साधना

भैरव तन्त्र साधना 


      कालभैरव अष्टमी निकट ही है। इस वर्ष यह ११ नवम्बर २०१७ को आ रही है। आप सभी को अग्रिम रूप से कालभैरवाष्टमी की ढेरी सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

      शून्य या ब्रह्माण्ड एक ऐसे साम्राज्य का नाम है, जिसमें असम्भव जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं है, वहाँ हर वो चीज सम्भव है जो सामान्य बातों में सोच के भी परे हो।

          “सम्भवशब्द के सम्भवतः हज़ारों-करोड़ों अर्थ हो सकते हैं, क्योंकि कौन-कैसी मानसिकता के साथ इस शब्द की व्याख्या करता है, यह निर्भर करता है इस बात पर कि हर एक से दूसरे इन्सान के बीच विचारों का मतभेद कितना गहरा है। किन्तु तन्त्र में इस शब्द का एक ही अर्थ है---सक्षम बनो ताकि काल का पहिया भी तुम्हारे हिसाब से चले।

     तन्त्र मूर्खों की अपेक्षाओं पर नहीं चलता और जिसने काल का वरण कर लिया उसके लिए करने को कुछ और शेष नहीं रह जाता। हम सब जानते हैं कि दशानन रावण कालजयी थे क्योंकि उन्होंने काल को अपने पलंग के खूँटे से बाँध रखा था, पर हमने कभी यह जानने की चेष्टा नहीं की कि उन्होंने ऐसा किया कैसे था, वो यह सब इसलिए सम्भव कर पाए थे क्योंकि वो एक श्रेष्ठ तान्त्रिक थे और उन्होंने अपने अन्दर के कालपुरुष पर विजय प्राप्त कर ली थी।

     हम सब के अन्दर एक कालपुरुष होता है, जिससे हम शिव के प्रतिरूप कालभैरव के रूप में परिचित हैं। भैरव कुल ५२ होते हैं, पर इनमें से सबसे श्रेष्ठ कालभैरव हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर भैरव एक विशेष शक्ति के अधिपति हैं, पर काल भैरव को इन सब भैरवों के स्वामित्व का सम्मान प्राप्त है और ज़ाहिर हैयदि यह स्वामी है तो हर परिस्थिति में अपने साधक को अधिक से अधिकतम सुख और फल प्रदान करने वाले होंगे, इसीलिए इनकी साधना को जीवन की श्रेष्टतम साधना कहा गया है। वैसे तो हर साधना का हमारे जीवन में विशेष स्थान हैपर कुबेर साधना, दुर्गा साधना और कालभैरव साधना को जीवन की धरोहर माना गया है।

     अब सबसे बड़ी बात यह है कि भैरव नाम सुनते ही मन में एक अजीब-से भय का संचार होने लगता है, भयंकर से भयंकर आकृति आँखों के सामने उभरने लगती है, गुस्से से भरी लाल सुर्ख आँखें, सियाह काला रंग, लम्बाचौड़ा डील-डौल और ना-जाने क्या-क्याइसके विपरीत एक सच यह भी है, जहाँ भय हो, वहाँ साधना नहीं हो सकती और साक्षत्कार तो दूर की बात है।

     किन्तु जहाँ समस्या हैवहाँ समाधान मौजूद है। काल भैरव की साधना से सम्बन्धित डर से मुक्ति पाने के लिए हमें इनको समझना पड़ेगा। जैसे सिक्के के दो पहलु होते हैं, वैसे ही काल और भैरव एक सिक्के के दो पक्ष हैं। काल का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है वो पुरुष, जिसमें काल पर विजय प्राप्त करने की क्षमता हो। अब यहाँ काल का अर्थ सिर्फ मृत्यु नहीं है अपितु हर उस वस्तु से है जो हमारे मानसिक सुखों को क्षीण करने में सक्षम हो। अब यह समस्या शारीरिक, आन्तरिक, मानसिक और रुपये-पैसे से सम्बन्धित कैसी भी हो सकती है।

     अब जो काल पुरुष होगा, उसे इनमें से किसी समस्या का भय नहीं होगा, क्योंकि समस्या उसके सामने ठहर ही नहीं सकती। देवता और मनुष्यों में सबसे बड़ा अन्तर यही है कि देवताओं की सीमाएँ होती है, जैसे अग्निदेव मात्र अग्नि से सम्बन्धित कार्य कर सकते हैं। उनका वरुणदेव से कोई लेना देना नहीं, इसी प्रकार कामदेव का इन दोनों और अन्य देवताओं से कोई सरोकार नहीं, जबकि इसके विपरीत केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी हैं, जिसके अन्दर पूरा ब्रह्माण्ड समाहित है, जिसकी किसी भी कार्य को करने की कोई सीमा नहीं। बस जरूरत है तो उसे अपने अन्दर के पुरुष को जगाने की और यह तभी सम्भव है जब हमने हमारे ही अन्दर के ब्रह्माण्ड को अर्थात काल को जीत लिया हो।

     ऐसा ही एक साधना विधान यहाँ दे रहा हूँ जो करने में बेहद सरल तो है ही, पर इस विधान को करने के बाद के नतीजे आपको आश्चर्यचकित कर देंगे। इस साधना को करने के बाद ना केवल आप में आत्म विश्वास बढ़ेगा, बल्कि जटिल से जटिल साधनाएँ भी आप बिना किसी भय और समस्या के कर पायेंगे। इस साधना को करने के पश्चात काल साधना करना सहज हो जाता है, जो आपको काल ज्ञाता बनाने में सक्षम है अर्थात आप भूत, भविष्य, वर्तमान सब देखने में सामर्थ्यवान हो जाते हैं। आँखों में एक ऐसी तीव्रता आ जाती है कि हठी से हठी मनुष्य भी आपके समक्ष घुटने टेक देता है।  इसके लिए आपको बस यह एक छोटा-सा विधान करना है।

साधना विधान :—–—–—–—–—

       कालभैरव अष्टमी या किसी भी रविवार मध्यरात्रि काल में नहा-धोकर अपने पूजास्थान में लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ जाएं। साधना को करते समय आपकी दिशा पश्चिम होगी और दीपक तिल के तेल का जलाना है।

       अब अपने सामने किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उसपर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र स्थापित कर दें। चित्र के समक्ष एक काले तिलों की ढेरी बनाकर उस पर एक सुपारी को काजल से रँगकर स्थापित कर दें। धूप-अगरबत्ती भी जला लें।

      किसी भी साधना में सफलता हेतु सदगुरुदेव का और विघ्नहर्ता भगवान गणपति का आशीर्वाद अति अनिवार्य है। इसलिए भगवान गणपति की अर्चना करने के पश्चात ही साधना प्रारम्भ करें।

      सर्वप्रथम भगवान गणपतिजी का पंचोपचार पूजन करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें और फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

      तदुपरान्त पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का संक्षिप्त पूजन करें और मूलमन्त्र की माला शुरू करने से पहले कम से कम गुरुमन्त्र की ११ माला का जाप जरूर कर लें। फिर सद्गुरुदेवजी से कालभैरव साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए आशीर्वाद ग्रहण करें।

      इसके बाद साधक को चाहिए कि वह साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य करें। फिर उसे प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं होती।

      तत्पश्चात तिलों की ढेरी पर स्थापित सुपारी को भगवान कालभैरव मानकर सामान्य पूजन करें और भोग में कोई मिष्ठान्न अर्पित करें।

      फिर आपको निम्नलिखित मन्त्र का मात्र २१ (इक्कीस) माला मन्त्र जाप करना है। यदि आपने कोई माला सिद्ध की हो तो आप उसका उपयोग करें अन्यथा काली हकीक माला अथवा रुद्राक्ष माला का प्रयोग कर सकते हैं।

मन्त्र :---––––––––––

।। ॐ क्रीं भ्रं क्लीं भ्रं ऐं भ्रं भैरवाय भ्रं ऐं भ्रं क्लीं भ्रं क्रीं फट ।।

OM KREEM BHRAM KLEEM BHRAM AING BHRAM BHAIRAVAAY BHRAM AING BHRAM KLEEM  BHRAM  KREEM  PHAT.
          
       साधना करते समय आपका वक्षस्थल अनावर्त होना चाहिए और यदि कोई गुरुबहन इस विधान को सम्पन्न कर रही है तो उन पर यह नियम लागू नहीं होता।
       
        २१ माला जाप के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर अपना पूरा मन्त्र जाप सदगुरुदेव को समर्पित कर दें। इस प्रकार यह साधना क्रम नित्य ग्यारह दिनों तक सम्पन्न करना चाहिए।

          एक ज़रूरी बात हो सकती है कि साधना के दौरान आपका शरीर बहुत ज्यादा गर्म हो जाए या ऐसा लगे जैसे गर्मी के कारण मितली आ रही है तो घबराएं नहीं, जब आपके अन्दर ऊर्जा का प्रस्फुटन होता है तो ऐसा होना स्वाभाविक है। अपनी साधना पर केन्द्रित रहें, थोड़ी देर बाद स्थिति अपने आप सामान्य हो जायेगी।

      खुद इस अद्भुत विधान को करके देखें और अपने सामान्य जीवन में बदलाव का आनन्द लें, पर एक बात का ध्यान जरूर रखें। किसी भी साधना में ऐसा कभी नहीं होता है कि आज साधना की और कल नतीजा आपके सामने आ जायेगा। इसके लिए आपको अपने दैनिक जीवन पर बड़ी बारीकी से नज़र रखनी पड़ती है , क्योंकि बड़े बदलाव की शुरुआत छोटे-छोटे परिवर्तनों से होती है।

नोट :-----------

              कृपया साधना करने के पश्चात हर दिन या कुछ दिनों के अन्तराल से की गयी साधना की न्यूनतम एक माला या अधिकतम अपनी क्षमता के अनुसार जितनी चाहें उतनी माला मन्त्र जाप कर लें, जिससे कि यह मन्त्र सदा सर्वदा आपको सिद्ध रहे।

     आपकी साधना सफल हो और भगवान कालभैरव आप पर कृपालु हों। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।

           आज के लिए बस इतना ही

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

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