शनैश्चरी साधना प्रयोग
शनैश्चरी अमावस्या समीप ही है। यह १८ नवम्बर २०१७ को आ रही है। इस दिन भगवान शनिदेव से सम्बन्धित साधना, प्रयोग और विविध उपाय किए जा सकते हैं।
पौराणिक कथाओं में शनि को सूर्यपुत्र, यम का भाई, अपने भक्तों को अभय देने वाला, समस्त विघ्नों को नष्ट करने वाला एवं
सम्पूर्ण सिद्धियों का दाता कहा गया है। जबकि ज्योतिष की दृष्टि में शनि एक क्रूर
ग्रह है। कहा गया है कि यह क्रूर ग्रह एक ही पल में राजा को रंक बना देता है। अतः
जब बात आती है शनि की, तो
हमारा भयभीत एवं चिन्तित होना स्वाभाविक होता है। जिस पर इनकी दृष्टि पड़ती है, उस पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ता
है।
शनि की उपासना करने
से पूर्व उसके स्वरूप और उसकी कार्य क्षमताओं से परिचित हो जाना आवश्यक हो जाता
है। सात ग्रहों सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि में शनि अलग व्यक्तित्व है, क्योंकि दुःख, हानि, कष्ट आदि का आक्षेप इसी पर अधिक लगाया
जाता है, जबकि
ऐसा है नहीं। वह तो किन्हीं परिस्थितियों में ही सम्भव होता है।
शनि को अंग्रेजी में SATURN (सैटर्न) कहते हैं तो अरबी में जौहल, फारसी में केदवान व संस्कृत में असित, मन्द, शनैश्चर, सूर्यपुत्र कहते हैं। इस ग्रह के बारे
में आज भ्रामक धारणाओं ने मनुष्य के दिलों में घर कर लिया है, जिस कारणवश हर कोई इस ग्रह से भयभीत तथा
आशंकित दिखाई देता है।
भारतीय ज्योतिष में एक भ्रामक धारणा
दिन-ओ-दिन बलवती हो रही है कि शनि सदैव अहित ही करता है। उसका प्रभाव सदैव
अमंगलकारी, अशुभ
एवं विघटनकारी ही होता है। अशान्ति का कारण शनि ही है, दुःख का कारण भी शनि ही है, लड़का भाग गया, स्त्री भाग गई, सन्तान कुमार्गी हो गई, व्यापार में घाटा हो गया आदि सभी शनि
ग्रह के ही कारण बताए जाते हैं।
शनि सर्वाधिक
मैलाफाइड, अकस्मात, कुप्रभाव देने वाला ग्रह माना जाता है, अतः भय तो सहज स्वाभाविक है। यह
असमय-मृत्यु, अकाल-मृत्यु, रोग, भिन्न-भिन्न कष्ट, व्यवसाय हानि, अपमान, धोखा, द्वेष, ईर्ष्या का कारण माना जाता है, पर वास्तविकता यह नहीं है। सूर्यपुत्र
शनि हानिकारक न होकर लाभदायक भी सिद्ध होता है। क्योंकि -----
१. शनि तुरन्त एवं निश्चित फल देता है।
२. शनि सन्तुलन और न्याय प्रिय है।
३. शनि शुभ होकर मनुष्य को अत्यन्त व्यवस्थित, व्यावहारिक, घोर परिश्रमी, गम्भीर एवं स्पष्ट वक्ता बना देता है।
४. मनुष्य की भेद लेने में शनि प्रधान व्यक्ति दक्ष होता है।
५. शनि प्रधान व्यक्ति का अध्यात्मवाद की ओर विशेष झुकाव रहता
है।
६. शनि प्रधान व्यक्ति योगाभ्यासी, गूढ़ रहस्य का पता लगाने में दक्ष, कर्मकाण्ड व धार्मिक शास्त्रों का
अभ्यास, ग्रन्थ
प्रकाश, तत्वज्ञ, लेखन कार्य का यश व सम्मान पाते हैं।
७. शनि प्रधान व्यक्ति सामाजिक व आर्थिक क्रान्ति के
प्रयत्नपूर्ण, त्यागमयी
जीवन व्यतीत करनेवाले, पूर्ण
सामाजिक व मिलनसार, परोपकार
के कार्यों में समय व्यतीत करने वाले, लोक कल्याण के कार्य में सतत् संलग्न, विद्वान, मन्त्री, उदारमना तथा पवित्रता पूर्ण जीवन व्यतीत
करते हैं।
८. शनि प्रधान जातक संकुचित व्यक्तित्व , भरपूर आत्मविश्वासी, प्रबल इच्छा शक्तियुक्त, महत्वाकांक्षी, मितव्ययता पूर्ण आचरण करनेवाला, हर कार्य में सावधान रहने वाला, व्यवसाय में चतुर तथा कार्यपटु होता है।
शनि अशुभ होने पर
व्यक्ति स्वार्थी, धूर्त, कपटी, दुष्ट, आलसी, मन्द बुद्धि, उद्योग से मुँह मोड़ने वाला, नीच कर्म में लिप्त, अविश्वास करने वाला, ईर्ष्यालु, विचित्र मनोवृत्ति युक्त, असन्तोषी, दुराचारी, दूसरों की आलोचना करने वाला, वीभत्स बोलने वाला होता है, अपने को श्रेष्ठ मानना पसन्द करता है, वह दम्भी, झूठा और दरिद्री होता है। ऐसा व्यक्ति
व्यर्थ इधर-उधर घूमना पसन्द करता है, ऐसा व्यक्ति आजीवन विपत्तियों से
घिरा रहता है।
ज्योतिषीय विवेचना के
अनुसार शनि की साढ़े साती जातक के पैरों में पीड़ा पहुँचाती है, मस्तिष्क विकृत एवं सिर दर्द, धन-धान्य, सम्पत्ति का नाश, सन्तान को कष्ट, स्वयं को व्यभिचारी व कुमार्गी बना
अपमानित करती है।
शनि सर्वदा प्रभु
भक्तों को अभय दान देते हैं और उनकी हर प्रकार से रक्षा करते हैं। शनि समस्त
सिद्धियों के दाता हैं। साधना, उपासना द्वारा सहज ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की
समस्त कामनाओं को पूरा करते हैं।
शनि को ज्योतिष में "विच्छेदात्मक
ग्रह" माना गया है। जहाँ एक ओर शनि मृत्यु प्रधान ग्रह माना गया है, वहीं शनि दूसरी ओर शुभ होने पर भौतिक
जीवन में श्रेष्ठता भी देता है। शनि पीड़ादायक हो सकता है, लेकिन यदि शनि को अनुकूल बना लिया जाए
तो यह सर्वोच्चता भी प्रदान कर सकता है। शनि मात्र विध्वंसकारी ग्रह ही नहीं अपितु
साधकों पर कृपा करनेवाले देव भी हैं।
प्रत्येक व्यक्ति को
जो शनि की साढ़े साती या अढ़ैया अथवा जन्म कुण्डली में शनि ग्रह के अशुभ होने के
कारण पीड़ित एवं दुःखी है, उसे
शनि जयन्ती, शनैश्चरी
अमावस्या अथवा किसी भी शनिवार को यह साधना प्रयोग अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिए, क्योंकि इसे सम्पन्न करने पर शनि का उस
पर अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता। यह साधना प्रयोग
नीचे दिया जा रहा है।
जो व्यक्ति शनि की
साधना सम्पन्न करते हैं, उनके
जीवन में आ रही बाधाएँ समाप्त हो जाती है। यह प्रयोग शनि के कुप्रभाव को दूर करने
वाला एक अत्यन्त ही गोपनीय प्रयोग है। इस प्रयोग को सम्पन्न करने पर शनि की समस्त
महादशा और अन्तर्दशाएँ शान्त होने लग जाती है, जिससे उसका कोई अहित नहीं होता।
इस साधना को साधक
द्वारा यदि एक बार भी सम्पन्न कर लिया जाए तो शनि का वरदहस्त साधक पर आजीवन बना
रहता है। हानि के स्थान पर लाभ ही लाभ प्राप्त होता रहता है साधक को।
साधना विधान :----------
यह प्रयोग आप शनि
जयन्ती, शनैश्चरी
अमावस्या या किसी भी शनिवार अथवा रवि-पुष्य योग में आरम्भ करें। साधना प्रातः
ब्रह्म मुहूर्त में अर्थात पाँच बजे से शुरू करें।
स्नान करके काले या
नीले वस्त्र धारण करें। गुरु पीताम्बर ओढ़ लें और पूर्व दिशा की ओर मुख करके काले
अथवा नीले ऊनी आसन पर बैठ जाएं।
सर्वप्रथम साधक परमपूज्य सद्गुरुदेवजी का स्मरण करके चार माला गुरुमन्त्र का जाप करें। फिर उनसे शनैश्चरी अमावस्या के अवसर पर शनि साधना प्रयोग सम्पन्न करने हेतु आज्ञा प्राप्त करें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।
इसके बाद साधक को चाहिए कि वह भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
अपने सामने भूमि पर
काजल से त्रिभुज बनाएं और उस पर एक ताम्र पात्र रखें। ताम्र पात्र में काजल से ही
अष्टदल कमल बनाएं और उस पर शनि यन्त्र स्थापित करें। यदि यन्त्र उपलब्ध न हो तो काजल से निम्नानुसार यन्त्र का अंकन करें लें -----
यन्त्र पर काजल से
रँगे हुए चावल चढ़ाते हुए "ॐ
शं ॐ" मन्त्र का उच्चारण करते रहें। इसके
पश्चात निम्न कर न्यास तथा हृदयादि न्यास सम्पन्न करें ------
कर न्यास :-----------
ॐ शनैश्चराय
अँगुष्ठाभ्याम् नमः।
ॐ मन्दगतये तर्जनीभ्याम्
नमः।
ॐ अधोक्षजाय मध्यमाभ्याम्
नमः।
ॐ कृष्णांगाय
अनामिकाभ्याम् नमः।
ॐ शुष्कोदराय
कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ॐ छायात्मजाय करतलकर
पृष्ठाभ्याम् नमः।
हृदयादि न्यास
:------------
ॐ शनैश्चराय हृदयाय नमः।
ॐ मन्दगतये शिरसे स्वाहा।
ॐ अधोक्षजाय शिखायै वषट्।
ॐ कृष्णांगाय कवचाय हुम्।
ॐ शुष्कोदराय नेत्रत्रयाय
वौषट्।
ॐ छायात्मजाय अस्त्राय
फट्।
फिर भगवान शनिदेव का निम्नानुसार ध्यान करें -----
इसके बाद शनि साफल्य
माला, काली हकीक माला अथवा रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की २४ माला मन्त्र जाप करें -----
ॐ नीलांजन
समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
ॐ शं
शनैश्चराय नमः, ॐ शं
शनैश्चराय नमः, ॐ शं
शनैश्चराय नमः ध्यानम् समर्पयामि।
मन्त्र :----------
।। ॐ शं
शनैश्चराय सशक्तिकाय सूर्यात्मजाय नमः।।
OM SHAM SHANEISHCHARAAY SASHAKTIKAAY SOORYAATMAJAAY NAMAH.
मन्त्र जाप पूर्ण
होने के बाद साधक यन्त्र पर तीन काले अथवा नीले रंग के फूल चढ़ाएं। यदि काले रंग
के फूल न मिल सके तो सफ़ेद फूल (काजल को तिल के तेल में घोलकर) रँग लें।
साधना
के पश्चात शनि की प्रार्थना निम्न दशनाम स्तुति से करनी चाहिए -----
ॐ कोणस्थः पिंगलो वभ्रुः
कृष्णो रौद्रान्तको यमः।
सौरिः शनिश्चरो मन्दः
पिप्पलादेन संस्तुतः।।
एतानि दश नमामि
प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
शनिश्चर कृत पीड़ा न
कदाचित् भविष्यति।।
इसके बाद हाथ जोड़कर
श्रद्धा पूर्वक निम्न वन्दना करें -----
ॐ नीलद्युतिं शूलधरं
किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्द्धरम्।
चतुर्भुजं
सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाअभीष्टकरं वरेण्यं।।
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा
विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
मन्दचार: प्रसन्नात्मा
पीडां हरतु मे शनि।।
साधना
समाप्ति के बाद यन्त्र तथा माला को उसी स्थान पर रहने दें। अगले दिन प्रातः या
सायंकाल यन्त्र के सम्मुख हाथ जोड़कर पुनः उपरोक्त श्लोक का उच्चारण करें तथा "ॐ
शं ॐ" मन्त्र बोलते हुए यन्त्र व माला को किसी
काले वस्त्र में लपेटकर पूजा स्थान में रख दें और एक माला उपरोक्त शनि मन्त्र का जाप करते रहें। अगले शनिवार को वस्त्र सहित यन्त्र
व माला को जल में प्रवाहित कर दें।
आपकी यह शनि साधना सफल हो और भगवान शनिदेव ही कृपा से आपकी समस्याओं और पीड़ाओं का अन्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से ऐसी प्रार्थना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।
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