रविवार, 12 फ़रवरी 2017

नीलकण्ठ महादेव प्रयोग

नीलकण्ठ महादेव प्रयोग

          महाशिवरात्रि पर्व समीप ही है। यह महापर्व इस बार २४ फरवरी २०१७ को आ रहा है। आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से बहुत सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          तन्त्र के दो मुख्य स्तम्भ शिव और शक्ति हैं। इन्हीं के आधार पर ही शैव तथा शाक्त तन्त्र की रचना हुई है। भगवान शिव के सम्बन्ध में क्या कोई साधक की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति कभी हो सकती है? शिव के विषय में कुछ भी कहना या लिखना अनन्त काल तक भी सम्भव नहीं हो पाएगा, क्योंकि ईर्ष्या रखने वाले देवताओं से हमेशा उपेक्षित रहने पर भी उन्होंने हमेशा सब के कल्याण की भावना रखते हुए पूर्ण देवत्व से युक्त बने रहे। वहीं उनकी अभेद दृष्टि देव वर्ग तथा राक्षस वर्ग दोनों के लिए समान रही। भोलेपन का सब से सर्वोत्तम स्वरुप भोलेनाथ भी यही है तो वहीं दूसरी ओर महाकाल रूप में वे विनाश का पूर्ण स्वरुप। उनकी विविधता अनन्त है और यही विविधता उनकी पूर्णता को भी दर्शाती है। क्योंकि अपने साधकों के कल्याण के लिए वे हमेशा उपस्थित रहते ही हैं। भावप्रधान होने के कारण वे शीघ्र ही प्रसन्न भी हो जाते हैं तथा मनोवांछित वरदान की प्राप्ति भी तो इनके माध्यम से ही सम्पन्न होती है।

          इसीलिए प्रायः पुराणों में उदाहरण प्राप्त होते हैं कि शिव की उपासना से ही विविध देवता तथा विविध दैत्यों ने भोग तथा मोक्ष दोनों ही क्षेत्रों में पूर्णता को प्राप्त किया। तान्त्रिक क्षेत्र में तो इनकी उपासना के विविध मार्गों के सम्बन्ध में विविध तन्त्रचार्यों ने कई-कई बार कहा है। अघोर, कापालिक, कश्मीरी शैव, लिंगायत, कालमुख, लाकुल इत्यादि कई-कई प्रचलित मत शैव साधनाओं के लिए प्रसिद्ध है तथा इन विविध मार्गों में शैव साधनाओं के सम्बन्ध में अद्भुत से अद्भुत विधान शामिल है। इस प्रकार भगवान शिव के विविध स्वरूपों की तान्त्रिक उपासना तथा प्रयोग पद्धति में विविधता अपने आप में समुद्र की तरह ही है, जिसकी हर एक बूँद अमूल्य है। क्योंकि उनकी कृपा प्राप्त होने का अर्थ ही तो पूर्णता की ओर गतिशील होना ही  है।                

          भगवान शिव का ऐसा ही एक दिव्य स्वरुप है नीलकण्ठ इसके पीछे की पौराणिक कथा विश्व विख्यात है, लेकिन कथा का सार भगवान शिव का सामर्थ्य तथा कल्याण की भावना को प्रदर्शित करता है। वस्तुतः यह विशुद्ध चक्र का प्रतीक भी है, जिसके माध्यम से निरन्तर आन्तरिक रूप से शरीर की शुद्धि होती है तथा अनावश्यक तत्व अर्थात विष को शरीर से अलग करने की प्रक्रिया होती है। यह प्रतीक इस बात का भी सूचक है कि भगवान शिव का यह स्वरुप मनुष्य के जीवन के सभी विष को दूर कर जीवन में पूर्ण सुख-भोग की प्राप्ति करा सकते हैं। भगवान शिव के इसी नीलकण्ठ स्वरुप से सम्बन्धित कई प्रयोग है, लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए प्रस्तुत प्रयोग ज्यादा अनुकूल है।

          इस प्रयोग के माध्यम से साधक को शत्रुओं से रक्षण प्राप्त होता है, अगर साधक के विरुद्ध कोई षड्यन्त्र हो रहा है तो साधक उससे सुरक्षित निकल जाता है तथा किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती। साथ ही साथ आकस्मिक रूप से आने वाली बाधा के समय भी साधक को पूर्ण रक्षण प्राप्त होता है। किसी भी प्रकार की यात्रा आदि में अकस्मात या अकालमृत्यु का भय नहीं रहता। साधक के जीवन में उन्नति प्राप्त होती है, भौतिक दृष्टि से भी सम्पन्नता को प्राप्त करने के लिए यह प्रयोग साधक को विशेष अनुकूलता प्रदान करता है। इस प्रकार प्रयोग से साधक को कई लाभों की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही साथ यह सहज प्रयोग भी है, इसलिए इस प्रयोग को करने में नए साधकों को भी किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती है।

साधना विधान :------------

          यह साधना साधक महाशिवरात्रि के दिन से शुरू करे। इसके अलावा इस साधना को किसी भी सोमवार से शुरू किया जा सकता है। समय दिन या रात्रि का कोई भी रहेलेकिन रोज समय एक ही रहे। यह इक्कीस दिनों की साधना है।

          सबसे पहले साधक स्नान आदि से निवृत होकर सफ़ेद वस्त्रों को धारण करेसफ़ेद आसन पर उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठ जाएं। साधक अपने सामने भगवान नीलकण्ठ का कोई यन्त्र या चित्र स्थापित करे। अगर यह प्रयोग साधक पारदशिवलिंग पर सम्पन्न करे तो श्रेष्ठ रहता है।
          अब सर्वप्रथम आप सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से नीलकण्ठ महादेव साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।
           फिर भगवान गणपतिजी का संक्षिप्त पूजन करें और ॐ गं गणपतये नमः” मन्त्र की एक माला जाप करें। इसके बाद भगवान गणपतिजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
          इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।

          इसके बाद साधक भगवान नीलकण्ठ महादेव का सामान्य पूजन सम्पन्न करे। धूपदीपपुष्पअक्षत आदि से संक्षिप्त पूजन कीजिए। इसके बाद दूध से बने नैवेद्य का भोग अर्पित कीजिए। इसके बाद साधक न्यास करे -------

कर-न्यास :------------

प्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।       (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)

प्रीं तर्जनीभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)

प्रूं मध्यमाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)

प्रैं  अनामिकाभ्यां नमः।       (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)

प्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः।      (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें) 

प्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।  (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

अङ्ग-न्यास :------------

प्रां हृदयाय नमः।               (हृदय को स्पर्श करें)  

प्रीं शिरसे स्वाहा।               (सिर को स्पर्श करें)

प्रूं शिखायै वषट्।               (शिखा को स्पर्श करें)

प्रैं कवचाय हूम्।                (भुजाओं को स्पर्श करें) 

प्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।             (नेत्रों को स्पर्श करें)

प्रः अस्त्राय फट्।               (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

          इसके बाद साधक भगवान नीलकण्ठ का ध्यान करते हुए निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करे -------

ॐ बालार्कयुततेजसं धृतजटाजूटेन्दु खण्डोज्ज्वलं,

   नागेन्द्रैः कृतभूषणं जपवटीं शूलं कपालं करैः।

   खटवांगं दधतं त्रिनेत्रविलसत्पंचाननं सुन्दरं,

   व्याघ्रत्वक् परिधानमब्जनिलयं श्रीनीलकण्ठं भजे॥

         इस प्रकार ध्यान के पश्चात साधक निम्न मन्त्र की ६१ माला मन्त्र जाप करे। यह मन्त्र जाप रुद्राक्ष की माला से होना चाहिए।

मन्त्र :------------

॥ ॐ प्रों न्रीं ठः ॥

OM PROM NREEM THAH.

          मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न श्लोक का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवान नीलकण्ठ महादेव को समर्पित कर दें और सफलता के लिए सदगुरुदेव तथा भगवान शिव से प्रार्थना करे।
ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्रा त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
   सिद्धिर्भवतु मे देव! त्वत् प्रसादान् महेश्वरः
         इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

         साधक को माला का विसर्जन नहीं करना है। यह माला साधक भविष्य में किसी भी शिव साधना में उपयोग कर सकता है।

             आपकी साधना सफल हो और भगवान नीलकण्ठ महादेव का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी आप सबके लिए से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।
         इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।


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