रविवार, 12 फ़रवरी 2017

असाध्य रोगनाशक रसेश्वर शिव साधना

असाध्य रोगनाशक रसेश्वर शिव साधना


          महाशिवरात्रि पर्व समीप ही है। यह महापर्व इस बार २४ फरवरी २०१७ को आ रहा है। आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ! 

            हमारी देह ईश्वर की ओर से हमें सबसे बड़ा वरदान है। क्यूँकि अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाए तो हम धन, वैभव, सुख आदि का भोग नहीं कर पाते हैं और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते हैं, कई उपचार किए जाएं, औषधि ली जाएं, किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है।

            परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है। यहाँ के ऋषि-मुनि-ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग की उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है। संसार में सर्वप्रथम कायाकल्प पर अगर किसी ने चर्चा की तो वह हमारे भारत के ऋषि-मुनि आदि ने ही की। आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में और इस क्षेत्र में कई-कई शोध किए हमारे साधकों तथा सन्तों ने। आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है। यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से कायाकल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तन्त्र। यही कारण है कि आज भी उच्चकोटि की औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है, जो कि देह को रोगों से मुक्त करती है।
  
           इसी पारद को जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तब वह देह को रोग मुक्त करता है, साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सींच कर उसे आध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है। रोग-मुक्ति के लिए भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते हैं और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते हैं। उसका मुख्य कारण यह है कि पारद में औषधीय तत्व भी विद्यमान होते हैं अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते हैं तो आपको दो मार्गों से लाभ प्राप्त होने लगता है। प्रथम मन्त्र के माध्यम से उसमें स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते हैं और दूसरा उसके स्पर्श में आई हर वस्तु औषधि में परिवर्तित हो जाती है।

           विशेषकर वीर्य से सम्बन्धित दोषों में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र की तरह कार्य करता  है।

          अतः असाध्य रोगों से भयभीत न होकर उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने। आइए, जानते हैं इस दिव्य विधान को।

साधना विधान :----------

          यह साधना आप महाशिवरात्रि के दिन से आरम्भ करें। इसके अलावा इस साधना को किसी भी सोमवार से शुरू किया जा सकता है। समय रात्रि या दिन का कोई भी समय आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते हैं। आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बन्धन नहीं है। 

          सर्वप्रथम आप स्नान कर उत्तर या पूर्व की ओर मुख कर बैठ जाएं। सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दें और उस पर कोई भी पात्र रख दें।  इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करें। इसके साथ ही पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र भी स्थापित करें। साथ ही धूप-अगरबत्ती एवं घी या तिल के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर दें।

          सर्वप्रथम संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें और चार माला गुरुमन्त्र का जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से असाध्य रोग निवारण  रसेश्वर  शिव  साधना सम्पन्न करने की आज्ञा प्राप्त करें और साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें।

          फिर साधक सामान्य गणपति पूजन सम्पन्न करें। इसके बाद  एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें और साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात साधना के पहिले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। प्रतिदिन संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।

          फिर भगवान रसेश्वर का सामान्य पंचोपचार पूजन करें। शुद्ध घृत या तिल के तेल का दीपक लगाएं। भोग में कोई भी मिठाई अर्पित करें। इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है।

          अब आपको निम्न मन्त्र को पढ़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े-थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है---

                     ।। ॐ रुद्राय फट् ।।

        कुल १०८ बार आपको उपरोक्त मन्त्र को पढ़ते हुए अक्षत अर्पित करना है।  इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की ११ माला जाप करें ----

मूल मन्त्र :------------

॥ ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः ‌॥
          OM  HRAAM  HRAAM  AYIM  JOOM  SAH  MRITYUNJAYAAY  RASESHWARAAY  SARVA  ROG  SHAANTIM  KURU  KURU  NAMAH.

           फिर  ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः शिवलिंग पर निम्न मन्त्र पढ़ते हुए अक्षत अर्पित करना है----

          ।। ॐ हूं सर्व रोगनाशाय रसेश्वराय हूं फट् ।।

           यह क्रिया कुल १०८ बार करनी है।  इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान रसेश्वर से प्रार्थना करें। 

           उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है।  रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे, उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाएं और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मन्दिर में दान कर दें कुछ दक्षिणा के साथ।

           बाद में नित्य मूलमन्त्र जिसका आपने  रुद्राक्ष माला  पर जाप किया है, उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभिमन्त्रित कर ले और ग्रहण कर लें। 

          यह साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते हैं।  जिन लोगों के पास पारद निर्मित  महारोगनाशक गुटिका है, वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दें और ११ दिनों के बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर लें। लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।

          बाकी साधना आप पूर्ण विश्वास से करें, आपको अवश्य लाभ होगा।

          आपकी साधना सफल हो और आप सभी निरोगी हों! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ  

          इसी कामना के साथ!

        ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

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