रविवार, 31 मार्च 2019

दुर्गा रहस्य साधना

दुर्गा रहस्य साधना
  

                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          जीवन में कब किस मोड़ पर शत्रु मिल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह कोई जरूरी नहीं कि आज जो मित्र है, वह कल भी मित्र ही हो, क्योंकि जो आज तुम्हारा गहरा मित्र है, वही कल स्वार्थ के वशीभूत होकर तुम्हारा घोर शत्रु बन सकता है। यह सब तो समय का कुचक्र ही कहा जा सकता है, जहाँ एक पल में सुख है तो दूसरे ही पल दुःख भी है। जीवन पग-पग परिवर्तनशील है, न जाने कब, कौन-सी विकट परिस्थिति से गुजरना पड़ जाए। शत्रु तो हर मोड़ पर तैनात सैनिकों की तरह खड़े रहते हैं हमला करने के लिए, उस अचानक प्रहार से व्यक्ति संकट में फँस जाता है और उस प्रहार को झेल नहीं पाता, और ऐसी स्थिति में व्यक्ति निर्णय नहीं कर पाता कि अब वह क्या करें और क्या नहीं करें?

          मनुष्य के शत्रु एक नहीं हजारों होते हैं, जब तक वह एक को परास्त करता है, तब तक दूसरा उस पर वार कर देता है और इस सामाजिक संग्राम में युद्ध करते-करते उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है, क्योंकि व्यक्ति इस जीवन रूपी संग्राम को अपनी शक्ति के बल पर नहीं जीत सकता। इसके लिए उसके पास दैविक बल होना आवश्यक है, मन्त्रसिद्धि होना आवश्यक है।

          महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने गीता में यही कहा है कि हे, अर्जुन तुम युद्ध को शस्त्रों के माध्यम से नहीं जीत सकते। जब तक कि तुम्हारे पीछे दैविक बल नहीं होगा, जब तक कि तुम्हें मन्त्र सिद्धि नहीं होगी, इसलिए तुमने जो द्रोणाचार्य से मन्त्र सिद्धि प्राप्त की है, उस मन्त्र सिद्धि को स्मरण करते हुए गाण्डीव उठाओ, तभी तुम महाभारत युद्ध को जीत सकोगे। केवल धनुष और तीर चलाने से ही यह दुर्योधन, दुःशासन जैसे पापी समाप्त नहीं हो सकते, उसके लिए द्रोणाचार्य ने तुम्हें तीर चलाना ही नहीं सिखाया, अपितु मन्त्र शक्ति भी दी है।

          आए दिन के क्लेश, पति-पत्नी के आपसी झगड़े, रिश्तेदारों, भाई-बन्धुओं में आपसी मतभेद ये सब ईर्ष्या, वैमनस्य, प्रतिस्पर्धा और द्वेष के कारण ही होते हैं। व्यक्ति का जीना दुष्कर हो जाता है, भाई-भाई का दुश्मन हो जाता है, इन आपसी मतभेदों के कारण ही शत्रु व्यक्ति की उन्नति के रास्ते में बाधा उत्पन्न करने लगते हैं, इनसे वह मुक्त नहीं हो पाता। फलस्वरूप वह शारीरिक रूप से तो दुर्बल हो ही जाता है, साथ ही उसकी मानसिक शक्ति भी क्षीण हो जाती है और तब उसे एक ही मार्ग सूझता है, तरह-तरह के पण्डे साधुओं के पास जाकर टोने-टोटके करवाना, तन्त्र प्रयोगों का सहारा लेना और इसमें वह हजारों रुपए भी बर्बाद कर डालता है, किन्तु से कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। दर-दर की ठोकरें खाने के बाद वह हताश-निराश होकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाता है और अपने भाग्य को कोसने लगता है।

          ऐसी स्थिति में साधना ही एकमात्र ऐसा प्रबलतम शस्त्र है, जिसके माध्यम से जीवन के समस्त शत्रुओं को परास्त कर जीवन के महासंग्राम में विजय प्राप्त की जा सकती है और वह भी पूर्णता के साथ। साधना, शक्ति का स्रोत है, जिससे व्यक्ति शारीरिक रूप से तो स्वस्थ और बलवान होता ही है, अपितु मानसिक रूप से भी वह पूर्ण स्वस्थ और बलवान हो जाता है, क्योंकि उसे साधना का बल, ओज और तेजस्विता जो प्राप्त हो जाती है, जो उसे जीवन के हर क्षेत्र में विजयी बनाने में सहायक सिद्ध होती है।

          यदि व्यक्ति के पास साधना का तेज, मन्त्र बल हो तो वह पराजित हो ही नहीं सकता, और यदि उसे उस अद्भुत एवं गोपनीय दुर्गा रहस्य का भली प्रकार से ज्ञान हो तो कोई दूसरी शक्ति ऐसी है ही नहीं, जो उसे परास्त कर सके।

          "दुर्गा रहस्य" से अपने जीवन में आने वाले हर शत्रु को, हर बाधा को, हर अड़चन को हमेशा-हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है। फिर किसी टोने-टोटके की या तान्त्रिक प्रयोग की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती, फिर उसे हर प्रकार के डर, भय से छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि इस दुर्गा रहस्य को जानने के बाद उसे ऐसा महसूस होने लगता है, मानो कोई शक्ति हर क्षण उसके साथ हो और उसकी सहायता कर रही हो। वह अपने आप को सुरक्षित और निर्भय अनुभव करने लगता है, और उस शक्ति के माध्यम से ही उसमें दृढ़ता और विश्वास का जागरण होता है, जिसके फलस्वरूप उसमें शत्रुओं को परास्त करने की क्षमता स्वतः ही आने लगती है। लेकिन यह तभी सम्भव हो सकता है, जब उसे इस रहस्य का पूर्ण ज्ञान हो और इसके प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो।

साधना विधान :-----------

           इसे आप किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर सकते हैं। यह साधना साधक को रात्रि ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठें। लाल  आसन का प्रयोग करें तथा लाल वस्त्र धारण करें। अपने सामने लाल वस्त्र से बाजोट पर "महादुर्गा यन्त्र" अथवा माँ भगवती दुर्गा का सुन्दर चित्र स्थापित करें। समस्त पूजन सामग्री को अपने पास रख लें।

          इस प्रयोग से पूर्व गुरु पूजन एवं पाँच माला गुरुमन्त्र जाप अनिवार्य है, क्योंकि समस्त साधनाओं के एकमात्र सूत्रधार गुरु ही हैं, जो प्रत्येक साधना में सफलता देते हैं।

          इसके पश्चात सामान्य गणपति पूजन और भैरव पूजन अवश्य करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधना के प्रथम दिवस साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए साधक हाथ में जल लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर संकल्प ले कि मैं आज से दुर्गा रहस्य साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ९ दिनों तक श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्र के ११२ पाठ करूँगा। माँ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करे और मेरे ज्ञात-अज्ञात समस्त शत्रुओं का शीघ्र संहार हो।

         ऐसा कहकर जल को भूमि पर छोड़ दें।

         इसके बाद यन्त्र अथवा चित्र का कुमकुम, अक्षत व गुलाब की पँखुड़ियों से सामान्य पूजन करें। शुद्ध घी का हलवा बनाकर माँ भगवती दुर्गा को भोग लगाएं। पूरे साधना काल में घी का दीपक जलते रहना चाहिए।          

          फिर दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती दुर्गा का ध्यान करें -----

ॐ कालाभ्रामां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखाम्,
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीम्,
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
 शरण्य त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते॥

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र का १०८ बार जाप करे -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

         अब निम्न स्तोत्र का ११२ बार पाठ करें, जो समस्त शत्रुओं का संहार करके साधक की मनोकामना को पूर्ण करता है -----

॥ श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्रम् ॥

नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे नमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे।
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥१॥
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे नमस्ते महायोगिविज्ञानरूपे।
नमस्ते नमस्ते सदानन्द रूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥२॥
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥३॥
अरण्ये रणे दारुणे शुत्रुमध्ये जले सङ्कटे राजगेहे प्रवाते।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तार हेतुर्नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥४॥
अपारे महदुस्तरेऽत्यन्तघोरे विपत् सागरे मज्जतां देहभाजाम्।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥५॥
नमश्चण्डिके चण्डोर्दण्डलीलासमुत्खण्डिता खण्डलाशेषशत्रोः।
त्वमेका गतिर्विघ्नसन्दोहहर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥६॥
त्वमेका सदाराधिता सत्यवादिन्यनेकाखिला क्रोधना क्रोधनिष्ठा।
इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी  नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥७॥
नमो देवि दुर्गे शिवे भीमनादे सदासर्वसिद्धिप्रदातृस्वरूपे।
विभूतिः सतां कालरात्रिस्वरूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥८॥
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां मुनिमनुजपशूनां दस्यभिस्त्रासितानाम्।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानां त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद॥९॥

॥ फलश्रुति ॥
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदुद्धारहेतुकम्।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा पठनाद्धोरसङ्कटात्॥१०॥
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले।
सर्वं वा श्लोकमेकं वा यः पठेद्भक्तिमान् सदा॥११॥
स सर्व दुष्कृतं त्यक्त्वा प्राप्नोति परमं पदम्।
पठनादस्य देवेशि किं न सिद्ध्यति भूतले॥१२॥
स्तवराजमिदं देवि सङ्क्षेपात्कथितं मया॥१३॥

                  ११२ पाठ के उपरान्त पुनः उपरोक्त मन्त्र १०८ जाप करें -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

                 मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इस प्रकार नित्य नौ दिनों तक यह प्रयोग करना चाहिए।

        पहले पाठ में मूल स्तोत्र और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल स्तोत्र का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः मूल स्तोत्र एवं फलश्रुति दोनों का पाठ करें। इस प्रकार आप १००८ पाठ को नवरात्रि काल के ९ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं।

        इस प्रयोग को करते समय बार-बार आसन से न उठें, क्योंकि शक्ति की उपासना में विघ्न आने की सम्भावना रहती है।

        यदि किसी कारणवश साधक नवरात्रि काल में इस प्रयोग को सम्पन्न नहीं कर पाए तो किसी भी महीने की पूर्णमासी अथवा रविवार के दिन से इस प्रयोग को शुरू किया जा सकता है।

        प्रयोग समाप्ति के बाद यन्त्र को नदी या कुएं में विसर्जित कर दें तथा चित्र को पूजा स्थान में ही रहने दें।

        यह दुर्गा रहस्य निश्चित ही साधक के सौभाग्य को जागृत करने वाला और शत्रु विनाश के लिए पूर्णतया लाभदायक माना जाता है। यह अद्वितीय एवं नवीन प्रयोग है, जो बाण की तरह अचूक है और लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रसिद्ध माना गया है।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

गुरुवार, 21 मार्च 2019

साबर दशामाता साधना

साबर दशामाता साधना

 

             दशा पर्व समीप ही है। यह इस बार ३० मार्च २०१ को आ रहा है। आप सभी को दशा पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

             तन्त्र के क्षेत्र में एक दिवस ऐसा भी आया था, जब तन्त्र की दशा में एक मंगलकारी परिवर्तन आया, जिसे साधक दस महाविद्या सिद्धि दिवस भी कहते हैं। इसी दिन शिव ने दस महाविद्याओं पर से पर्दा उठाया था और सम्पूर्ण विश्व ने जाना था कि दस महाविद्या क्या है

             इसी दिन चैत्र कृष्णपक्ष की दशमी को भारत के कई क्षेत्रों में दशा माता का पूजन तथा व्रत किया जाता है। होली के दस दिन बाद मनाए जाने के कारण इसे होली दशा कहा जाता है। मनुष्य की दशा ठीक ना हो तो कई बार निरन्तर उपाय करने के बाद भी वह स्वास्थ्य की दृष्टि से परेशान रहता है तो कई बार आर्थिक परेशानियाँ उसका पीछा नहीं छोड़ती। भाग्य साथ नहीं देता और उसके बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। अपने घर परिवार की इसी दशा को सुधारने की मनोकामना से सुहागिन महिलाएँ चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का पूजन एवं व्रत करती है।

             अनेक स्थानों पर यह व्रत होली के अगले दिन से ही प्रारम्भ हो जाता है। प्रथम दिन महिलाएँ दीवार पर स्वास्तिक बनाकर मेहँदी और कुमकुम की दस-दस बिन्दियाँ बनाती है और इसके बाद नौ दिन तक रोज इनका पूजन करती है और दशा माता की कथाएँ सुनती हैं। महिलाएँ नौ दिन तक व्रत रखती हैं तथा फिर दसवें दिन अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को पीपल के पेड़ की छाँव में दशा माता का पूजन कर व्रत सम्पन्न करती है। कच्चे सूत के साथ पीपल की परिक्रमा की जाती है उसके बाद पीपल वृक्ष को चुनरी ओढ़ाई जाती है। पीपल छाल को स्वर्ण समझकर घर लाया जाता है और तिजोरी में सुरक्षित रखा जाता है। महिलाएँ दल में बैठकर व्रत से सम्बन्धित कहानियाँ कहती और सुनती है। दशामाता पूजन के पश्चात पथवारी पूजी जाती है।

           परन्तु दशा माता का शाबर तन्त्र में भी अत्यधिक महत्व है। यह बात कम ही साधकों को ज्ञात है कि शाबर तन्त्र में भी दशा माता की साधना की जाती है तथा अपनी दुर्दशा का नाश किया जाता है।

           इस बार यह दिवस ३० मार्च २०१९ को आ रहा है। इस दिन आप दशा माता से जुड़ी साधना कर सकते हैं। इस साधना को करने से साधक की दशा सुधरती है अर्थात उसके जीवन को उच्चता की प्राप्ति होती है। लाख परिश्रम के बाद भी आपका जीवन दुर्गति पूर्ण ही है तो दशा माता की साधना अवश्य करें।

           इससे साधक की दशा में परिवर्तन होता है तथा दशा माता की कृपा से प्रगति के मार्ग खुल जाते हैं। जीवन में आ रही रुकावटें समाप्त हो जाती है। यदि आपके व्यापार पर या आप पर किसी ने तन्त्र क्रिया की हो तो उसका भी नाश हो जाता है। जीवन से नकारात्मक ऊर्जा पलायन कर जाती है तथा जीवन में आनन्द की अनुभूति आती है।

साधना विधान :-----------

           यह साधना आप ३० मार्च २०१९ की रात्रि ९ के बाद करें। सम्भव हो तो इस दिन व्रत रखें, केवल फल का ही सेवन करें। रात्रि में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें तथा पीले आसन पर उत्तर या पूर्व की ओर मुख कर बैठ जाएं। भूमि पर बाजोट रखकर पीला वस्त्र बिछा दें। वस्त्र पर अक्षत की ढेरी बनाकर उस पर एक मिट्टी का दीपक स्थापित कर दें। इसमें तिल का तेल भरकर दीपक प्रज्वलित करें। दीपक की लौ आपकी ओर होनी चाहिए।

          सबसे पहले पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से साबर दशा माता साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।

          तत्पश्चात सामान्य गणपति पूजन सम्पन्न करके "ॐ वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र की एक माला जाप करें और भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तदुपरान्त साधक संक्षिप्त भैरव पूजन सम्पन्न करें और "ॐ भं भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          अब दीपक को दशा माता का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करें। कुमकुम, हल्दी, अक्षत आदि से दीपक का पूजन करें। भोग में कोई भी पीले रंग की मिठाई रखें। दशा माता से अपनी दशा को परिवर्तित करने की प्रार्थना करें तथा कहें कि माँ! मेरे जीवन को प्रगति प्रदान करें।

          इसके बाद निम्नलिखित शाबर मन्त्र की  एक माला जाप करें -----

शाबर मन्त्र :-----------

       ।। ॐ नमो आदेश गुरु को,
             दशा पलटे दशा माता, सुख समृद्धि प्रदान करे,
             धन बरसे सुख बरसे, दशा माँ कल्याण करे,
             आदेश गुरु गोरखनाथ को आदेश ।।

OM  NAMO  AADESH  GURU  KO
DASHA  PALTE  DASHA  MAATA  SUKH-SAMRIDDHI  PRADAAN  KARE
DHAN  BARSE  SUKH  BARSE  DASHA  MAAN  KALYAANN  KARE
AADESH  GURU  GORAKHNAATH  KO  AADESH.

          इस साधना में आपको माला स्वयं बनानी होगी। एक लाल धागा इतना बड़ा ले लीजिए, जिसमें १०८ गठान लगाई जा सके तथा एक सुमेरु की गाँठ लगाई जा सके। इसी माला से आपको एक माला जाप करना होगा।

          जाप के पश्चात् अग्नि प्रज्वलित कर घी तथा पञ्च मेवे को मिलाकर अग्नि में १०८ आहुति प्रदान करें। आहुति के पश्चात् जो माला आपने  बनाई थी, उसे गले में धारण कर लें तथा माता से पुनः प्रार्थना कर आशीर्वाद प्राप्त करें। प्रसाद में जो मिठाई अर्पित की गई थी, उसे पूरे परिवार को दें तथा स्वयं भी ग्रहण करें।

          अगले दिन अक्षत, वस्त्र तथा दीपक किसी भी वृक्ष के नीचे रख आएं। इस प्रकार यह एक दिवसीय साधना पूर्ण होती है, जो आपके जीवन को बदल देने में सक्षम है।

          आप सभी की साधना सफल हो और दशा पर्व आपके लिए मंगलमय हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल गुरुजी को आदेश आदेश आदेश ।।।


सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

इतरयोनिबाधा-मुक्ति रुद्र प्रयोग


इतरयोनिबाधा-मुक्ति रुद्र प्रयोग



          महाशिवरत्रि पर्व निकट ही है। यह ४ मार्च २०१९ को आ रहा है। आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

          इस अनन्त ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं है, इस तथ्य को अब विज्ञान भी स्वीकार करने लगा है। आधुनिक विज्ञान में भी कई प्रकार के परीक्षण इससे सम्बन्धित होने लगे हैं तथा ऐसी कई शक्तियाँ हैं, जिनके बारे में विज्ञान आज भी मौन हो जाता है। क्योंकि विज्ञान की समझ की सीमा के दायरे के बाहर वह कुछ है। खैर, आधुनिक विज्ञान का विकास और परीक्षण अभी कुछ वर्षों की ही देन है, लेकिन इस दिशा में हमारे ऋषि-मुनियों ने सेैकड़ों वर्षों तक कई प्रकार के शोध और परीक्षण किये थे तथा सबने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये थे। मुख्य रूप से सभी महर्षियों ने स्वीकार किया था कि ब्रह्माण्ड में मात्र मनुष्य योनि ही नहीं है, मनुष्य के अलावा भी कई प्रकार के जीव इस ब्रह्माण्ड में मौजूद है। निश्चय ही मनुष्य से तात्विक दृष्टि में अर्थात शरीर के तत्वों के बन्धारण में ये भिन्न है, लेकिन इनका अस्तित्व बराबर बना रहता है।

          इसी क्रम में मनुष्य के अन्दर का आत्म-तत्व जब मृत्यु के समय स्थूल शरीर को छोड़ कर दूसरा शरीर धारण कर लेता है तो वह भी मनुष्य से अलग हो जाता है। वस्तुतः प्रेत, भूत, पिशाच, राक्षस आदि मनुष्य के ही आत्म-तत्व के साथ, लेकिन वासना और दूसरे शरीरों से जीवित है। इसके अलावा लोक लोकान्तरों में भी अनेक प्रकार के जीव का अस्तित्व हमारे आदि ग्रन्थ स्वीकार करते हैं, जिनमें यक्ष, विद्याधर, गान्धर्व आदि मुख्य है।

          अब यहाँ पर बात करते हैं, मनुष्य के ही दूसरे स्वरूप की। जब मनुष्य की मृत्यु अत्यधिक वासनाओं के साथ हुई है, तब मृत्यु के बाद उसको सूक्ष्म की जगह वासना शरीर की प्राप्ति होती है, क्योंकि मृत्यु के समय जीव या आत्मा उसी शरीर में स्थित थी। जितनी ही ज्यादा वासना प्रबल होगी, मनुष्य की योनि उतनी ही ज्यादा हीन होती जायेगी। जैसे कि भूत योनि से ज्यादा प्रेत योनि हीन है। यह विषय अत्यन्त बृहद है, लेकिन यहाँ पर विषय को इतना समझना अनिवार्य है। अब इन्हीं वासनाओं की पूर्ति के लिए या अपनी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ये जीव एक निश्चित समय तक एक निश्चित शरीर में घूमते रहते हैं। निश्चय ही इनकी प्रवृत्ति एवं मूल स्वभाव हीनता से युक्त होता है और इसीलिए उनको यह योनि भी प्राप्त होती है।

          कई बार ये अपने जीवन काल के दरमियान जो भी कार्यक्षेत्र या निवास स्थान रहा हो, उसके आसपास भटकते रहते हैं। कई बार ये अपने पुराने शत्रु या विविध लोगों को किसी न किसी प्रकार से प्रताड़ित करने के लिए कार्य करते रहते हैं। इनमें भूमि तथा जल तत्व अल्प होता है, इसीलिए मानवों से ज्यादा शक्ति इनमें होती है। कई जीवों में यह सामर्थ्य भी होता है कि वह दूसरों के शरीर में प्रवेश कर अपनी वासनाओं की पूर्ति करे। इस प्रकार के कई-कई किस्से आए दिन हमारे सामने आते ही रहते हैं।

          इन इतरयोनि से सुरक्षा प्राप्ति हेतु तन्त्र में भी कई प्रकार के विधान हैं, लेकिन साधक को इस हेतु कई बार विविध प्रकार की क्रिया करनी पड़ती है, जो कि असहज होती है। साथ ही साथ ऐसे प्रयोग के लिए स्थान जैसे कि श्मशान या अरण्य या फिर मध्यरात्रि का समय आदि आज के युग में सहज सम्भव नहीं हो पाता।

          प्रस्तुत विधान एक दक्षिणमार्गी, लेकिन तीव्र विधान है, जिसे व्यक्ति सहज ही सम्पन्न कर सकता है तथा अपने और अपने घर-परिवार के सभी सदस्यों को इस प्रकार की समस्या से मुक्ति दिला सकता है एवं अगर समस्या न भी हो तो भी इससे सुरक्षा प्रदान कर सकता है। यह पारद शिवलिंग से सम्बन्धित भगवान रूद्र का साधना प्रयोग है। मूलतः इसमें पारद शिवलिंग ही आधार है पूरे प्रयोग का, इसलिए पारद शिवलिंग विशुद्ध पारद से निर्मित हो तथा उस पर पूर्ण तान्त्रोक्त प्रक्रिया से प्राणप्रतिष्ठा और चैतन्यीकरण प्रक्रिया की गई हो, यह नितान्त आवश्यक है। अशुद्ध और अचेतन पारद शिवलिंग पर किसी भी प्रकार की कोई भी साधना सफलता नहीं दे सकती है।

साधना विधान :------------

          यह प्रयोग महाशिवरात्रि से आरम्भ करे। इसे साधक किसी भी सोमवार से भी शुरू कर सकता है। साधक रात्रिकाल में यह प्रयोग करे तो ज्यादा उत्तम है, वैसे अगर रात्रि में करना सम्भव न हो तो इस प्रयोग को दिन में भी किया जा सकता है।

          साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्रों को धारण करे तथा लाल आसन पर बैठ जाए। साधक का मुख उत्तर की तरफ हो। साधक अपने सामने लाल वस्त्र से ढँके बाजोट पर किसी पात्र में पारदशिवलिंग को स्थापित करे। साधक पहले सामान्य गुरुपूजन और गणेशपूजन सम्पन्न करें। फिर यथाशक्ति गुरुमन्त्र का जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी और भगवान गणपतिजी से रुद्र साधना सम्पन्न करने के लिए मानसिक रूप से आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता एवं निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करें।

          तत्पश्चात साधना के पहले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

          संकल्प लेने के बाद साधक पारदशिवलिंग का सामान्य पूजन करे तथा भोग में कोई मिष्ठान्न अर्पित करें।

          फिर निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप पारदशिवलिंग के सामने करे। यह जाप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए।

मन्त्र :-----------

॥ ॐ नमो भगवते रुद्राय भूत वेताल त्रासनाय फट् ॥

OM NAMO BHAGAWATE RUDRAAY BHOOT VETAAL TRAASANAAY PHAT.

          मन्त्र जाप के बाद साधक पारदशिवलिंग को किसी पात्र में रख कर उस पर पानी का अभिषेक उपरोक्त मन्त्र को बोलते हुए करे। यह क्रिया अन्दाज़े से १५-२० मिनिट करनी चाहिए। इसके बाद साधक उस पानी को अपने पूरे घर-परिवार के सदस्यों पर तथा पूरे घर में छिड़क दे।

          इस प्रकार यह क्रिया साधक सतत ११ दिन करे। अगर साधक को कोई समस्या नहीं हो तथा मात्र ऊपरी बाधा से और तन्त्र प्रयोग से सुरक्षा प्राप्ति के लिए अगर साधक यह प्रयोग करना चाहे तो भी यह प्रयोग किया जा सकता है। माला का विसर्जन करने की आवश्यकता नहीं है, साधक इसका उपयोग कई बार कर सकता है।

         आपकी साधना सफल हो और यह महाशिवरात्रि पर्व आपके लिए मंगलमय हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

अघोरेश्वर शिव साधना

अघोरेश्वर शिव साधना


           शिवकल्प निकट ही है। माघ मास की पूर्णिमा से लेकर फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि तक का समय शिवकल्प कहलाता है। यह १९ फरवरी २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इन दिवसों में और शिवरात्रि में कोई भेद नहीं है, इन दिनों में की गई शिव साधना निष्फल नहीं होती, ऐसा भगवान शिव ने स्वयं कहा है।

          भगवान शिव नित्य और अजन्मा हैं। इनका आदि और अन्त न होने से वे अनन्त हैं। इनके समान न कोई दाता है, न तपस्वी, न ज्ञानी है, न त्यागी, न वक्ता है और न ऐश्वर्यशाली। भगवान सदाशिव की महिमा का गान कौन कर सकता है? भीष्म पितामह के शिवमहिमा बताने के सम्बन्ध में प्रार्थना करने पर भगवान श्रीकृष्ण ने भी यही कहा हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), इन्द्र और महर्षि आदि भी शिवतत्त्व जानने में असमर्थ हैं, मैं उनके कुछ गुणों का ही व्याख्यान करता हूँ।

          ऐसी स्थिति में हम जैसे तुच्छ जीव शिव-तत्त्व के बारे में क्या कह सकते हैं। परन्तु एक सत्य यह भी है कि आकाश अनन्त है, सृष्टि में कोई भी पक्षी ऐसा नहीं जो आकाश का अन्त पा ले, फिर भी वे अपनी सामर्थ्यानुसार आकाश में उड़ान भरते हैं; उसी तरह हम भी अपनी बुद्धि के अनुसार उस अनन्त शिवतत्त्व के बारे में लिखने का प्रयास करेंगे। भगवान शिव के विविध नाम हैं। भगवान शिव के प्रत्येक नाम में, नाम के गुण, प्रयोजन और तथ्य भरे पड़े हैं।

          हमारे हिन्दू धर्म में त्रिदेवों अर्थात भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर का अपना एक विशिष्ट स्थान है और इसमें भी भगवान शंकर का चरित्र जहाँ अत्यधिक रोचक हैं, वहीं यह पौराणिक कथाओं में अत्यधिक गूढ रहस्यों से भी भरा हुआ है।

          पौराणिक कथाओं में भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है, क्योंकि उनका अपना चरित्र अनेक विरोधाभासों से भरा हुआ है। जैसे शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी हो, जबकि शिवजी का अपना व्यक्तित्व इससे जरा भी मेल नहीं खाता, क्योंकि वे अपने शरीर में इत्र के स्थान पर चिता की राख मलते हैं तथा गले में फूल-मालाओं के स्थान पर विषैले सर्पों को धारण करते हैं। यही नहीं भगवान शिव को कुबेर का स्वामी माना जाता है, जबकि वे स्वयं कैलाश पर्वत पर बिना किसी ठौर-ठिकानों के यूँ ही खुले आकाश के नीचे निवास करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि भगवान शिव का स्वभाव शास्त्रों में वर्णित उनके गुणों से जरा भी मेल नहीं खाता और इतने अधिक विरोधाभासों में, किसी भी व्यक्ति की शिव के प्रति आस्था, उसके अपने विश्वास के आधार पर ही टिकी हुई है, इसलिए सभी कथाओं में भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है।

           भगवान शिव के अनेकों स्वरूप हैं और उनका हर स्वरूप निराला है। उनकी पूजा किसी भी समय कीजिए, अनुभूतियाँ तो ऐसी-ऐसी मिलेगी कि सम्पूर्ण जीवन उनके गुणगान करने में ही निकल जाएगा। ऐसा समय आज तक शिवभक्तों के जीवन में नहीं आया होगा, जिस दिन उन्हें शिव कृपा प्राप्त ना हुई हो। आज एक दिव्य साधना दे रहा हूँ, जो मेरी ही नहीं बल्कि बहुत-से शिवभक्तों द्वारा अनुभूत की गई साधना है और एक बात, इस साधना को किए बिना चाहे कितना भी महाविद्या साधना कर लीजिए, प्रत्यक्ष अनुभूतियाँ शीघ्र नहीं मिलेगी। इसलिए अघोरेश्वर शिव साधना प्रत्येक साधक के जीवन में लक्ष्य-प्राप्ति की ओर बढ़ने का एक आसान-सा मार्ग है। जिसने अघोरत्व प्राप्त कर लिया, वह तो जीवन मे सब कुछ प्राप्त कर लेता है अन्यथा जीवन जीने का हर एक अन्दाज़ व्यर्थ ही इच्छा पूर्ति हेतु गँवा देता है।

          प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ नया और अद्भुत करने का लक्ष्य होता है। कुछ नहीं तो कैरियर, कारोबार या सफल व्यक्तित्व का उद्देश्य अवश्य रहता है। निरन्तर प्रयास के साथ-साथ लक्ष्य साधने की कोशिश और जीवटता बनी रहे, इसके लिए यदि अघोर शिव साधना की जाए तो चमत्कारी लाभ निश्चित है। मान्यता है कि प्रत्येक साधक के लिए लक्ष्य साधने का यह आसान जरिया है। यह साधना वैदिक या शाबर मन्त्र से की जा सकती है।

           इस साधना से सभी प्रकार के ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है, सभी साधनाओं में पूर्ण सफलता मिलती है, सभी प्रकार के तन्त्र प्रयोगों से सुरक्षा प्राप्त होती है। अगर पुराना कोई मन्त्र-तन्त्र दोष किसी साधक के जीवन में हो, चाहे वह इस जन्म का हो या पूर्वजन्म का हो तो वह भी समाप्त हो जाता है। चाहे साबर मन्त्र हो, वैदिक हो या अघोर मन्त्र हो, इन सभी में इस साधना को सम्पन्न करने के पश्चात पूर्ण सफलता मिलती है।

          साधना के समय शरीर में बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होगी, ऐसे समय में घबराना मत और साधना को अधूरा नहीं छोड़ना है। ऐसे समय में दुर्गन्ध या डरावनी आवाज़ आ सकती है तो यह भी आपकी साधना में सफलता के लक्षण हैं, जिसे आपको महसूस करना है। इस साधना के माध्यम से भोले बाबा अपने भक्तों को स्वप्न में दर्शन भी प्रदान करते हैं और आशीर्वाद भी।

साधना विधान :---------------

           इस साधना को सम्पन्न करने का सर्वाधिक उपयुक्त समय शिवकल्प ही है, अतः आप इसे शिवकल्प में ही सम्पन्न करें। यदि यह सम्भव न हो तो इसे श्रावण मास में किसी भी सोमवार से शुरू किया जा सकता है, लेकिन यदि इसे शिवकल्प और महाशिवरात्रि के अवसर पर सम्पन्न किया जाए तो यह अत्यधिक श्रेष्ठ माना गया है।

           यह साधना रात्रि १० बजे के बाद आरम्भ करना चाहिए। इस साधना में आसन-वस्त्र काले रंग के उत्तम होते हैं, परन्तु यदि आपके पास उपलब्ध न हो तो, जो भी उपलब्ध हो, उसे ही इस्तेमाल करें। ईशान दिशा की ओर साधक का मुख हो, माला रुद्राक्ष या काले हकीक की हो। इस साधना में पारद शिवलिंग की आवश्यकता होती है और उसी पर यह साधना सम्पन्न की जाती है। यदि आपके पास पारद शिवलिंग नहीं है तो फिर जिस शिवलिंग का पूजन आप करते हैं, उसी पर यह साधना सम्पन्न करें।

           मूल साधना से पूर्व सामान्य गुरुपूजन करें एवं गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से अघोरेश्वर शिव साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।

           तदुपरान्त संक्षिप्त गणेश पूजन करें और किसी भी गणेश मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

           चूँकि यह एक तान्त्रिक मन्त्र साधना है। इसलिए इस साधना में दिग्बन्धन और सुरक्षा घेरा बनाना आवश्यक है। इसके लिए दाहिने हाथ में सरसों के दाने लेकर "रं" बीजमन्त्र का १०८ बार उच्चारण करते हुए अभिमन्त्रित कर लें। इन अभिमन्त्रित सरसों के दानों को बाएँ हाथ से थोड़े-थोड़े लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए क्रमशः दसों दिशाओं में फेंकते जाएं -----

ॐ वज्रक्रोधाय महादन्ताय दश दिशो बन्ध-बन्ध हूं फट् स्वाहा

           इसके बाद आसन के चारों ओर कील या लोहे की धारदार वस्तु से "ॐ रं अग्नि-प्राकाराय नमः" मन्त्र का उच्चारण करते हुए गोलाकार घेरा बना लेना चाहिए, जिससे आपकी अदृश्य शक्तियों से रक्षा हो।

            तत्पश्चात महामृत्युंजय मन्त्र का उच्चारण करते हुए भस्म और चन्दन को मिलाकर अपने मस्तक पर तिलक लगाएं -----

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

          इसके बाद पारद शिवलिंग का सामान्य पूजन भस्म मिश्रित चन्दन, अक्षत, पुष्प आदि से करके भोग में कोई भी मिष्ठान्न अर्पित करें।

          फिर मन्त्र जाप से पूर्व हाथ जोड़कर भगवान अघोरेश्वर शिव की निम्नानुसार स्तुति करनी चाहिए -----

प्रार्थना :-------------

जय शम्भो विभो अघोरेश्वर स्वयंभो जयशंकर।
जयेश्वर जयेशान जय जय जय सर्वज्ञ कामदम्

          इस साधना में काली हकीक माला या रुद्राक्ष की माला से अघोरेश्वर शिव मन्त्र का २१ माला जाप किया जाता है। मन्त्र इस प्रकार है -----

मन्त्र :------------

॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूं अघोरेभ्यो सर्वसिद्धिं देहि-देहि अघोरेश्वराय हूं ह्रीं ह्रां ॐ फट् ॥

OM HRAAM HREEM HOOM AGHOREBHYO SARVA SIDDHIM DEHI-DEHI AGHORESHWARAAYE HOOM HREEM HRAAM OM PHAT.

           मन्त्र जाप के उपरान्त भी उपरोक्तानुसार प्रार्थना करना आवश्यक है। अतः पुनः हाथ जोड़कर भगवान अघोरेश्वर शिव की स्तुति (प्रार्थना) करें -----

जय शम्भो विभो अघोरेश्वर स्वयंभो जयशंकर।
जयेश्वर जयेशान जय जय जय सर्वज्ञ कामदम्

           इस प्रकार प्रार्थना (स्तुति) करने के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप भगवान अघोरेश्वर शिवजी को समर्पित कर दें।

           यह साधना नित्य ग्यारह दिन तक सम्पन्न करना चाहिए, ताकि सर्व कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो और आपको भोले बाबा शिव शंकर का आशीर्वाद प्राप्त हो। अन्तिम दिन साधना समाप्ति के बाद पाँच बिल्वपत्र, दुग्ध युक्त जल, अक्षत (चावल), गन्ध, वस्त्र, पुष्प, लड्डू का भोग, दक्षिणा मूल मन्त्र बोलकर चढ़ाएं।


          आपकी साधना सफल हो और यह शिवकल्प एवं महाशिवरात्रि पर्व आपके लिए मंगलमय हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ 

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।