साबर दशामाता साधना
इसी दिन चैत्र कृष्णपक्ष की दशमी को भारत के कई क्षेत्रों में दशा माता का पूजन तथा व्रत किया जाता है। होली के दस दिन बाद मनाए जाने के कारण इसे होली दशा कहा जाता है। मनुष्य की दशा ठीक ना हो तो कई बार निरन्तर उपाय करने के बाद भी वह स्वास्थ्य की दृष्टि से परेशान रहता है तो कई बार आर्थिक परेशानियाँ उसका पीछा नहीं छोड़ती। भाग्य साथ नहीं देता और उसके बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। अपने घर परिवार की इसी दशा को सुधारने की मनोकामना से सुहागिन महिलाएँ चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का पूजन एवं व्रत करती है।
अनेक स्थानों पर यह व्रत होली के अगले दिन से ही प्रारम्भ हो जाता है। प्रथम दिन महिलाएँ दीवार पर स्वास्तिक बनाकर मेहँदी और कुमकुम की दस-दस बिन्दियाँ बनाती है और इसके बाद नौ दिन तक रोज इनका पूजन करती है और दशा माता की कथाएँ सुनती हैं। महिलाएँ नौ दिन तक व्रत रखती हैं तथा फिर दसवें दिन अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को पीपल के पेड़ की छाँव में दशा माता का पूजन कर व्रत सम्पन्न करती है। कच्चे सूत के साथ पीपल की परिक्रमा की जाती है‚ उसके बाद पीपल वृक्ष को चुनरी ओढ़ाई जाती है। पीपल छाल को स्वर्ण समझकर घर लाया जाता है और तिजोरी में सुरक्षित रखा जाता है। महिलाएँ दल में बैठकर व्रत से सम्बन्धित कहानियाँ कहती और सुनती है। दशामाता पूजन के पश्चात पथवारी पूजी जाती है।
दशा पर्व समीप ही है। यह इस बार ३० मार्च २०१९ को आ रहा है। आप सभी को दशा पर्व की
अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!
तन्त्र के क्षेत्र में एक दिवस ऐसा भी आया था, जब तन्त्र की दशा में एक मंगलकारी
परिवर्तन आया, जिसे साधक दस महाविद्या सिद्धि दिवस भी
कहते हैं। इसी दिन शिव ने दस महाविद्याओं पर से पर्दा उठाया था और सम्पूर्ण विश्व
ने जाना था कि दस महाविद्या क्या है?
इसी दिन चैत्र कृष्णपक्ष की दशमी को भारत के कई क्षेत्रों में दशा माता का पूजन तथा व्रत किया जाता है। होली के दस दिन बाद मनाए जाने के कारण इसे होली दशा कहा जाता है। मनुष्य की दशा ठीक ना हो तो कई बार निरन्तर उपाय करने के बाद भी वह स्वास्थ्य की दृष्टि से परेशान रहता है तो कई बार आर्थिक परेशानियाँ उसका पीछा नहीं छोड़ती। भाग्य साथ नहीं देता और उसके बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। अपने घर परिवार की इसी दशा को सुधारने की मनोकामना से सुहागिन महिलाएँ चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का पूजन एवं व्रत करती है।
अनेक स्थानों पर यह व्रत होली के अगले दिन से ही प्रारम्भ हो जाता है। प्रथम दिन महिलाएँ दीवार पर स्वास्तिक बनाकर मेहँदी और कुमकुम की दस-दस बिन्दियाँ बनाती है और इसके बाद नौ दिन तक रोज इनका पूजन करती है और दशा माता की कथाएँ सुनती हैं। महिलाएँ नौ दिन तक व्रत रखती हैं तथा फिर दसवें दिन अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को पीपल के पेड़ की छाँव में दशा माता का पूजन कर व्रत सम्पन्न करती है। कच्चे सूत के साथ पीपल की परिक्रमा की जाती है‚ उसके बाद पीपल वृक्ष को चुनरी ओढ़ाई जाती है। पीपल छाल को स्वर्ण समझकर घर लाया जाता है और तिजोरी में सुरक्षित रखा जाता है। महिलाएँ दल में बैठकर व्रत से सम्बन्धित कहानियाँ कहती और सुनती है। दशामाता पूजन के पश्चात पथवारी पूजी जाती है।
परन्तु दशा माता का शाबर तन्त्र में भी
अत्यधिक महत्व है। यह बात कम ही साधकों को ज्ञात है कि
शाबर तन्त्र में भी दशा माता की साधना की जाती है तथा अपनी दुर्दशा का नाश किया
जाता है।
इस बार यह दिवस ३० मार्च २०१९ को आ रहा
है। इस दिन आप दशा माता से जुड़ी साधना कर सकते हैं। इस साधना को करने से साधक की
दशा सुधरती है अर्थात उसके जीवन को उच्चता की प्राप्ति होती है। लाख परिश्रम के
बाद भी आपका जीवन दुर्गति पूर्ण ही है तो दशा माता की साधना अवश्य करें।
इससे साधक की दशा में परिवर्तन होता है
तथा दशा माता की कृपा से प्रगति के मार्ग खुल जाते हैं। जीवन में आ रही रुकावटें
समाप्त हो जाती है। यदि आपके व्यापार पर या आप पर किसी ने तन्त्र क्रिया की हो तो
उसका भी नाश हो जाता है। जीवन से नकारात्मक ऊर्जा पलायन कर जाती है तथा जीवन में
आनन्द की अनुभूति आती है।
साधना विधान :-----------
यह साधना आप ३० मार्च २०१९ की रात्रि ९
के बाद करें। सम्भव हो तो इस दिन व्रत रखें, केवल
फल का ही सेवन करें। रात्रि में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें तथा पीले आसन पर उत्तर या
पूर्व की ओर मुख कर बैठ जाएं। भूमि पर बाजोट रखकर पीला वस्त्र बिछा दें। वस्त्र पर
अक्षत की ढेरी बनाकर उस पर एक मिट्टी का दीपक स्थापित कर दें। इसमें तिल का तेल
भरकर दीपक प्रज्वलित करें। दीपक की लौ आपकी ओर होनी चाहिए।
सबसे पहले पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का
सामान्य पूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी
से साबर दशा माता साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे
साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।
तत्पश्चात सामान्य गणपति पूजन सम्पन्न
करके "ॐ वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र की एक माला जाप करें और भगवान
गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।
तदुपरान्त साधक संक्षिप्त भैरव पूजन
सम्पन्न करें और "ॐ भं भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर भगवान
भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।
अब दीपक को दशा माता का स्वरूप मानकर
उसकी पूजा करें। कुमकुम, हल्दी, अक्षत आदि से दीपक का पूजन करें। भोग में कोई भी पीले रंग की मिठाई
रखें। दशा माता से अपनी दशा को परिवर्तित करने की प्रार्थना करें तथा कहें कि माँ!
मेरे जीवन को प्रगति प्रदान करें।
इसके बाद निम्नलिखित शाबर मन्त्र
की एक माला जाप करें -----
शाबर मन्त्र :-----------
।। ॐ नमो आदेश गुरु को,
दशा पलटे दशा माता, सुख समृद्धि प्रदान करे,
धन बरसे सुख बरसे, दशा माँ कल्याण करे,
आदेश गुरु गोरखनाथ को आदेश
।।
OM NAMO AADESH
GURU KO
DASHA PALTE DASHA MAATA SUKH-SAMRIDDHI PRADAAN
KARE
DHAN BARSE SUKH
BARSE DASHA MAAN
KALYAANN KARE
AADESH GURU GORAKHNAATH
KO AADESH.
इस साधना में आपको माला स्वयं बनानी
होगी। एक लाल धागा इतना बड़ा ले लीजिए, जिसमें
१०८ गठान लगाई जा सके तथा एक सुमेरु की गाँठ लगाई जा सके। इसी माला से आपको एक
माला जाप करना होगा।
जाप के पश्चात् अग्नि प्रज्वलित कर घी
तथा पञ्च मेवे को मिलाकर अग्नि में १०८ आहुति प्रदान करें। आहुति के पश्चात् जो
माला आपने बनाई थी, उसे गले में धारण कर लें तथा माता से
पुनः प्रार्थना कर आशीर्वाद प्राप्त करें। प्रसाद में जो मिठाई अर्पित की गई थी, उसे पूरे परिवार को दें तथा स्वयं भी
ग्रहण करें।
अगले दिन अक्षत, वस्त्र तथा दीपक किसी भी वृक्ष के नीचे
रख आएं। इस प्रकार यह एक दिवसीय साधना पूर्ण होती है, जो आपके जीवन को बदल देने में सक्षम
है।
आप सभी की साधना सफल हो और दशा पर्व
आपके लिए मंगलमय हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए
कल्याण कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल गुरुजी को आदेश आदेश आदेश ।।।
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