इतरयोनिबाधा-मुक्ति रुद्र प्रयोग
महाशिवरत्रि पर्व निकट ही है। यह ४
मार्च २०१९ को आ रहा है। आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी
हार्दिक शुभकामनाएँ।
इस अनन्त ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं
है, इस तथ्य को अब विज्ञान भी स्वीकार करने
लगा है। आधुनिक विज्ञान में भी कई प्रकार के परीक्षण इससे सम्बन्धित होने लगे हैं
तथा ऐसी कई शक्तियाँ हैं,
जिनके बारे में विज्ञान आज भी मौन हो
जाता है। क्योंकि विज्ञान की समझ की सीमा के दायरे के बाहर वह कुछ है। खैर, आधुनिक विज्ञान का विकास और परीक्षण
अभी कुछ वर्षों की ही देन है, लेकिन
इस दिशा में हमारे ऋषि-मुनियों ने सेैकड़ों वर्षों तक कई प्रकार के शोध और परीक्षण
किये थे तथा सबने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये थे। मुख्य रूप से सभी महर्षियों
ने स्वीकार किया था कि ब्रह्माण्ड में मात्र मनुष्य योनि ही नहीं है, मनुष्य के अलावा भी कई प्रकार के जीव
इस ब्रह्माण्ड में मौजूद है। निश्चय ही मनुष्य से तात्विक दृष्टि में अर्थात शरीर
के तत्वों के बन्धारण में ये भिन्न है, लेकिन
इनका अस्तित्व बराबर बना रहता है।
इसी क्रम में मनुष्य के अन्दर का
आत्म-तत्व जब मृत्यु के समय स्थूल शरीर को छोड़ कर दूसरा शरीर धारण कर लेता है तो
वह भी मनुष्य से अलग हो जाता है। वस्तुतः प्रेत, भूत, पिशाच, राक्षस आदि मनुष्य के ही आत्म-तत्व के साथ, लेकिन वासना और दूसरे शरीरों से जीवित
है। इसके अलावा लोक लोकान्तरों में भी अनेक प्रकार के जीव का अस्तित्व हमारे आदि
ग्रन्थ स्वीकार करते हैं,
जिनमें यक्ष, विद्याधर, गान्धर्व आदि मुख्य है।
अब यहाँ पर बात करते हैं, मनुष्य के ही दूसरे स्वरूप की। जब
मनुष्य की मृत्यु अत्यधिक वासनाओं के साथ हुई है, तब मृत्यु के बाद उसको सूक्ष्म की जगह वासना शरीर की प्राप्ति होती
है, क्योंकि मृत्यु के समय जीव या आत्मा
उसी शरीर में स्थित थी। जितनी ही ज्यादा वासना प्रबल होगी, मनुष्य की योनि उतनी ही ज्यादा हीन
होती जायेगी। जैसे कि भूत योनि से ज्यादा प्रेत योनि हीन है। यह विषय अत्यन्त बृहद
है, लेकिन यहाँ पर विषय को इतना समझना
अनिवार्य है। अब इन्हीं वासनाओं की पूर्ति के लिए या अपनी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति
के लिए ये जीव एक निश्चित समय तक एक निश्चित शरीर में घूमते रहते हैं। निश्चय ही
इनकी प्रवृत्ति एवं मूल स्वभाव हीनता से युक्त होता है और इसीलिए उनको यह योनि भी
प्राप्त होती है।
कई बार ये अपने जीवन काल के दरमियान जो
भी कार्यक्षेत्र या निवास स्थान रहा हो, उसके
आसपास भटकते रहते हैं। कई बार ये अपने पुराने शत्रु या विविध लोगों को किसी न किसी
प्रकार से प्रताड़ित करने के लिए कार्य करते रहते हैं। इनमें भूमि तथा जल तत्व
अल्प होता है, इसीलिए मानवों से ज्यादा शक्ति इनमें
होती है। कई जीवों में यह सामर्थ्य भी होता है कि वह दूसरों के शरीर में प्रवेश कर
अपनी वासनाओं की पूर्ति करे। इस प्रकार के कई-कई किस्से आए दिन हमारे सामने आते ही
रहते हैं।
इन इतरयोनि से सुरक्षा प्राप्ति हेतु
तन्त्र में भी कई प्रकार के विधान हैं, लेकिन
साधक को इस हेतु कई बार विविध प्रकार की क्रिया करनी पड़ती है, जो कि असहज होती है। साथ ही साथ ऐसे
प्रयोग के लिए स्थान जैसे कि श्मशान या अरण्य या फिर मध्यरात्रि का समय आदि आज के
युग में सहज सम्भव नहीं हो पाता।
प्रस्तुत विधान एक दक्षिणमार्गी, लेकिन तीव्र विधान है, जिसे व्यक्ति सहज ही सम्पन्न कर सकता
है तथा अपने और अपने घर-परिवार के सभी सदस्यों को इस प्रकार की समस्या से मुक्ति
दिला सकता है एवं अगर समस्या न भी हो तो भी इससे सुरक्षा प्रदान कर सकता है। यह
पारद शिवलिंग से सम्बन्धित भगवान रूद्र का साधना प्रयोग है। मूलतः इसमें पारद
शिवलिंग ही आधार है पूरे प्रयोग का, इसलिए
पारद शिवलिंग विशुद्ध पारद से निर्मित हो तथा उस पर पूर्ण तान्त्रोक्त प्रक्रिया
से प्राणप्रतिष्ठा और चैतन्यीकरण प्रक्रिया की गई हो, यह नितान्त आवश्यक है। अशुद्ध और अचेतन
पारद शिवलिंग पर किसी भी प्रकार की कोई भी साधना सफलता नहीं दे सकती है।
साधना विधान :------------
यह प्रयोग महाशिवरात्रि से आरम्भ करे।
इसे साधक किसी भी सोमवार से भी शुरू कर सकता है। साधक रात्रिकाल में यह प्रयोग करे
तो ज्यादा उत्तम है, वैसे अगर रात्रि में करना सम्भव न हो
तो इस प्रयोग को दिन में भी किया जा सकता है।
साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल
वस्त्रों को धारण करे तथा लाल आसन पर बैठ जाए। साधक का मुख उत्तर की तरफ हो। साधक
अपने सामने लाल वस्त्र से ढँके बाजोट पर किसी पात्र में पारदशिवलिंग को स्थापित करे। साधक पहले सामान्य
गुरुपूजन और गणेशपूजन सम्पन्न करें। फिर यथाशक्ति गुरुमन्त्र का जाप करें। इसके
बाद सद्गुरुदेवजी और भगवान गणपतिजी से रुद्र साधना सम्पन्न करने के लिए मानसिक रूप
से आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता एवं निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करें।
तत्पश्चात साधना के पहले दिन साधक को
संकल्प अवश्य लेना चाहिए।
संकल्प लेने के बाद साधक पारदशिवलिंग का सामान्य पूजन करे तथा भोग में कोई
मिष्ठान्न अर्पित करें।
फिर निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र
जाप पारदशिवलिंग के सामने करे। यह जाप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए।
मन्त्र :-----------
॥ ॐ नमो भगवते रुद्राय भूत वेताल त्रासनाय फट् ॥
OM
NAMO BHAGAWATE RUDRAAY BHOOT VETAAL TRAASANAAY PHAT.
मन्त्र जाप के बाद साधक पारदशिवलिंग को किसी पात्र में रख कर उस पर पानी का अभिषेक उपरोक्त मन्त्र को बोलते हुए करे।
यह क्रिया अन्दाज़े से १५-२० मिनिट करनी चाहिए। इसके बाद साधक उस पानी को अपने पूरे
घर-परिवार के सदस्यों पर तथा पूरे घर में छिड़क दे।
इस प्रकार यह क्रिया साधक सतत ११ दिन
करे। अगर साधक को कोई समस्या नहीं हो तथा मात्र ऊपरी बाधा से और तन्त्र प्रयोग से
सुरक्षा प्राप्ति के लिए अगर साधक यह प्रयोग करना चाहे तो भी यह प्रयोग किया जा
सकता है। माला का विसर्जन करने की आवश्यकता नहीं है, साधक इसका उपयोग कई बार कर सकता है।
आपकी साधना सफल हो और यह महाशिवरात्रि
पर्व आपके लिए मंगलमय हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके
लिए कल्याण कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।
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