गुरुवार, 5 जुलाई 2018

साबर धूमावती साधना


साबर धूमावती साधना


          आषाढ़ मासीय गुप्त नवरात्रि समीप है। यह १३ जुलाई २०१८ से शुरू हो रही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          धूमावती देवी दस महाविद्याओं में सातवें स्थान पर मानी जाती हैं। इनकी उत्पत्ति बारे में दो कथाएँ प्रचलित हैं, पहली कथा तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआँ निकला, उससे माँ धूमावती का जन्म हुआ, इसलिए वो हमेशा उदास रहती हैं। यानि धूमावती धुएँ के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है। सती का जो कुछ बचा रहा, वह मात्र उदास धुआँ ही है।

          दूसरी कथा के अनुसार एक बार सती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर विचरण कर रही थीं, तभी उन्हें जोरों की भूख लगी। उन्होंने महादेवजी से अपनी क्षुधा का निवारण करने का निवेदन किया। कई बार भोजन माँगने पर भी जब भगवान शिव ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया, तब उन्होंने महादेव को ही उठाकर निगल लिया। उनके शरीर से धूम्र राशि निकली। शिवजी ने उस समय पार्वती जी से कहा कि आपकी सुन्दर मूर्त्ति धूएँ से ढँक जाने के कारण धूमावती या धूम्रा कही जाएगी।

          धूमावती महाशक्ति अकेली हैं तथा स्वयं नियन्त्रिका है। इनका कोई स्वामी नहीं है, इसलिए इसे विधवा कहा गया है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार इन्होंने ही प्रतिज्ञा की थी, "जो मुझे युद्ध में जीत लेगा तथा मेरा गर्व दूर कर देगा, वही मेरा पति होगा। ऐसा कभी नहीं हुआ, अत: यह कुमारी हैं, यह धन या पतिरहित हैं अथवा अपने पति महादेव को निगल जाने के कारण विधवा हैं।

          नारदपाँचरात्र के अनुसार इन्होंने अपने शरीर से उग्रचण्डिका को प्रकट किया था, जो सैकड़ों गीदड़ियों की तरह आवाज करने वाली थी। शिव को निगलने का तात्पर्य है, उनके स्वामित्व का निषेध। असुरों के कच्चे माँस से इनकी अंगभूता शिवाएँ तृप्त हुईं, यही इनकी भूख का रहस्य है। इनके ध्यान में इन्हें विवर्ण, चंचल, काले रंगवाली, मैले कपड़े धारण करने वाली, खुले केशों वाली, विधवा, काकध्वज वाले रथ पर आरूढ़, हाथ में सूप धारण किये, भूख-प्यास से व्याकुल तथा निर्मम आँखों वाली बताया गया है।

          धूमावती की उपासना विपत्ति-नाश, रोग-निवारण, युद्ध-जय, उच्चाटन तथा मारण आदि के लिये की जाती है। शाक्त प्रमोद में कहा गया है कि इनके उपासक पर दुष्टाभिचार का प्रभाव नहीं पड़ता है। संसार में रोग-दु:ख के कारण चार देवता हैं। ज्वर, उन्माद तथा दाह रुद्र के कोप से, मूर्च्छा, विकलांगता यम के कोप से, धूल, गठिया, लकवा, वरुण के कोप से तथा शोक, कलह, क्षुधा, तृषा आदि निरऋति के कोप से होते हैं। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार धूमावती और निरऋति एक हैं। यह लक्ष्मी जी की ज्येष्ठा है, अत: ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति जीवन भर दु:ख भोगता है।

          तन्त्र ग्रन्थों के अनुसार धूमावती उग्रतारा ही हैं, जो धूम्रा होने से ही धूमावती कही जाती हैं। दुर्गासप्तशती में वाभ्रवी और तामसीना से इन्हीं की चर्चा की गई है। ये प्रसन्न होकर रोग और शोक को नष्ट कर देती हैं तथा कुपित होने पर समस्त सुखों और कामनाओं को नष्ट कर देती हैं। इनकी शरणागति से विपत्तिनाश तथा सम्पन्नता प्राप्त होती है।

          ऋग्वेदोक्त रात्रिसूक्त में इन्हें सुतराकहा गया है। सुतरा का अर्थ सुखपूर्वक तारनेयोग्य है। तारा या तारिणी को इनका पूर्वरूप बतलाया गया है। इसलिए आगमों में इन्हें अभाव और संकट को दूर कर सुख प्रदान करने वाली भूति कहा गया है। धूमावती स्थिरप्रज्ञता की प्रतीक है। इनका काकध्वज वासनाग्रस्त मन है, जो निरन्तर अतृप्त रहता है। जीव की दीनावस्था भूख, प्यास, कलह, दरिद्रता आदि इसकी क्रियाएँ हैं अर्थात वेद की शब्दावली में धूमावती कद्रु है, जो वृत्रासुर आदि को पैदा करती है।
 
          आज यहाँ मैं माँ भगवती धूमावतीजी का साबर मन्त्र दे रहा हूँ, जो समस्त प्रकार के कल्याण हेतु शीघ्र फलदायी है। मन्त्र जाप के माध्यम से शत्रु बाधा एवं सभी प्रकार के कष्टों से राहत मिलती है।

साधना विधि :-----------

           यह साधना नवरात्रि काल में पहले दिन से आरम्भ करे। यह साधना ११ दिन की है। साधना में साधक के आसन-वस्त्र काले रंग के हो और दिशा दक्षिण मुख रहेगी। रात्रि ९ बजे के बाद साधक साधना के निमित्त बैठे। अपने सामने काले वस्त्र पर धूमावती चित्र स्थापित करें और गूगल धूप जला लें। इस साधना में चमेली के तेल का दीपक जलाए, जो साधना काल में बुझना नहीं चाहिए।

          पहले सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें और सद्गुरुदेवजी से साबर धूमावती साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें तथा उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करें।

          फिर भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

          तत्पश्चात माँ धूमावती का सामान्य पूजन काजल, अक्षत, भस्म (राख) आदि से करें और किसी भी मिष्ठान्न का भोग लगाएं।

          फिर साधक काली हकीक माला से निम्नलिखित साबर मन्त्र की ११ माला जाप करें ----- 
 
साबर धूमावती मन्त्र :-----------

।। ओम नमो आदेश गुरूजी को,
  धूमावती माई भूख से व्याकुल, ग्रहण करो शत्रु मेरे,
  शिव की माया धूम्र का शरीर, हरो सब कष्ट मेरे,
  दुहाई महादेव की ।।

          मन्त्र का जाप समाप्त होने के बाद समस्त जाप माँ धूमावती को ही एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समर्पित कर दें।

          इस प्रकार यह साधना नित्य ११ दिनों तक सम्पन्न करना चाहिए।

          बारहवें दिन हवन करके एक अनार का बलि देना है। हवन में मन्त्र से १०८ बार आहुति देना चाहिए। हवन सामग्री में सिर्फ घी का प्रयोग करे।

          यह मन्त्र अत्यन्त तीव्र है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी के आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

           इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।


मंगलवार, 3 जुलाई 2018

महागौरी सौन्दर्य साधना


महागौरी सौन्दर्य साधना


          आषाढ़ मासीय गुप्त नवरात्रि समीप ही है। यह १३ जुलाई २०१८ से शुरू हो रही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से हार्दिक शुभकामनाएँ!

          माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है।  इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-सन्ताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

          एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी, जिससे उनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिवजी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं, तब देवी विद्युत के समान अत्यन्त कान्तिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं। अतः इन्हें उज्जवल स्वरूप की महागौरी, धन-ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी, त्रैलोक्य पूज्या, मंगला, शारीरिक, मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया है। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शान्त और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं -----

सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके,
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।

          उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्रि के आठवें दिन पूजने से सदा सुख और शान्ति देती है। अपने भक्तों के लिए यह साक्षात् अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। यह धन वैभव और सुख शान्ति की अधिष्ठात्री देवी है। सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी चतुर्भुज युक्त एक हाथ में त्रिशूल दूसरे हाथ में डमरू लिये हुए गायन संगीत की प्रिय देवी है, जो सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार है।

          महागौरी जी से सम्बन्धित एक अन्य कथा भी प्रचलित है, इस कथा के अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहाँ पहुँचा, जहाँ देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, परन्तु वह देवी के तपस्या से उठने का इन्तज़ार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इन्तज़ार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।

          माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ होकर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।

          महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।

          पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

          वर्तमान समय बड़ा ही भाग-दौड़ का है, क्योंकि समय कम है और काम ज्यादा है, तो भागना तो होगा ही ना! लेकिन इस भाग-दौड़ में हमने प्रकृति में हर जगह प्रदूषण उत्पन्न कर दिया है। वायु दूषित, पानी दूषित और न जाने क्या-क्या कर चुके हैं हम प्रदुषण फ़ैलाने के लिए, पर हम भूल गए है कि इसका प्रभाव हमारे ही जीवन पर पड़ रहा है। हमारा मुख तेजहीन हो चुका है, नए-नए चर्म रोग हमें घेर रहे हैं, क्योंकि ओज़ोन परत कमज़ोर हो रही है और हमें झुलसा रही है। इसलिए जितना हो सके प्रदुषण को रोकें, वृक्ष लगाकर प्रकृति का सहयोग करें। परन्तु अभी जो हमारे शरीर का सौन्दर्य समाप्त हो रहा है इसका क्या करें?

          माना कि देह नश्वर है, परन्तु इसका मतलब यह तो नहीं है ना कि हम उसका ध्यान ही न रखें। यह नश्वर है तो साथ ही ईश्वर का दिया सबसे बड़ा उपहार भी है, जिसके माध्यम से हम मुक्ति को पा सकते हैं। तो आइये करें, महागौरी सौन्दर्य साधना और अपनी देह को आकर्षक तथा सुन्दर बनाएं।

साधना सामग्री :----------

ताम्र पात्र, हल्दी, एक सुपारी, तुलसी या चन्दन माला।

साधना विधि :----------

          साधना किसी भी नवरात्रि के पहले दिन से शुरू की जा सकती है। यदि यह सम्भव न हो तो किसी भी रविवार की रात्रि से आरम्भ करें। समय रात्रि १० के बाद का रहे। आपका मुख पूर्व या उत्तर की ओर हों। आपके वस्त्र तथा आसन सफ़ेद हों।

          सामने एक सफ़ेद कपडा बाजोट पर बिछाएं। अब उस पर माँ भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित करें और माँ के चित्र के ठीक सामने एक ताम्रपात्र चावल की ढ़ेरी पर रखें और उसे पूरा हल्दी से भर दें। अब पात्र के ऊपर एक प्लेट में चावल की ढेरी बनाए और उसपर एक सुपारी स्थापित कर दे। घी का दीपक जलाकर धूप-अगरबत्ती लगा दे।

          साधक को चाहिए कि वह पहले गुरुपूजन एवं गणेश पूजन अवश्य करे। संक्षिप्त गुरुपूजन करने के बाद गुरुमन्त्र का चार माला जाप करे और सद्गुरुदेवजी से महागौरी सौन्दर्य साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें तथा उनसे साधना की सफलता के निवेदन करे।

          फिर सामान्य गणेश पूजन करे और किसी गणेश मन्त्र का एक माला जाप करके उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लें। संकल्प में यह अवश्य बोलें कि मैं यह साधना अपने दैहिक सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए कर रहा हूँ।

          फिर हल्दी-पात्र का पूजन करे, फिर सुपारी को माँ महागौरी मानकर पूजन करे। माँ दुर्गा के चित्र का भी सामान्य पूजन करे, भोग पञ्च मेवे का लगाए।

          इस प्रकार पूजन के बाद निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करे -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ क्लीं महागौरी महासुन्दरी माम् अखण्ड सौन्दर्य देहि-देहि नमः ॥


OM KLEEM MAHAAGAURI MAHAASUNDARI MAAM AKHAND SAUNDARYA DEHI-DEHI NAMAH.

          मन्त्र जाप के बाद फिर एक बार पुनः हल्दी-पात्र का पूजन करे और सुपारी का भी। पूजन के बाद समस्त जाप एवं पूजा कर्म एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर माँ भगवती महागौरी को ही समर्पित कर दे।

          इस प्रकार यह साधना नवरात्रि काल में ९ दिन तक करे। अन्य दिनों में लगातार ११ दिन करे। साधना समाप्ति के बाद अगले दिन पात्र के अन्दर की हल्दी निकाल ले और रोज़ इसका सेवन एक चुटकी मात्रा में करे। सेवन के पहले भी मन्त्र को २१ बार पढ़ ले। बाकि सभी सामग्री जल में विसर्जित कर दे। पात्र को रहने दे, यह अन्य साधना में प्रयोग किया जा सकता है और माला गले में धारण कर ले। प्रसाद रोज़ स्वयं ही खाए।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूरी हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी के आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।


बुधवार, 13 जून 2018

तीव्र इच्छापूर्ति धूमावती साधना


तीव्र इच्छापूर्ति धूमावती साधना

           
          माँ भगवती धूमावती जयन्ती निकट ही है। यह २० जून २०१८ को आ रही है। आप सभी को धूमावती जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          महाविद्या धूमावती उग्रशक्ति है। भगवान शिव माँ भगवती धूमावती में धूम्र रूप में विराजमान है। विश्व की अमांगल्यपूर्ण अवस्था की अधिष्ठात्री के रूप में यह भगवती विवर्णा, चंचला, गलिताम्बरा, विरलदन्ता, विधवा, मुक्तकेशी, शूर्पहस्ता, काकध्वजिनी, रूक्षनेत्रा, कलहप्रिया आदि विशेषणों से वर्णित है। शत्रुसंहार, दारिद्रय-विध्वंसन एवं भक्त-संरक्षण के लिए यह महादेवी सदैव आराध्य रही हैं।

         नारदपाँचरात्र में माँ धूमावती की उत्पत्ति की कथा वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि --- "एक समय भगवान शिव के अंक में विराजमान माँ पार्वती ने शिवाजी से प्रार्थना की कि मुझे भूख लगी है, कुछ खाने के लिए दें। तब शिव ने आश्वासन दिया कि कुछ समय प्रतीक्षा करो, अभी भोजन की व्यवस्था होती है। किन्तु व्यवस्था नहीं हुई और बहुत समय बीत गया। तब भगवती ने स्वयं शिव को ही मुख में रखकर निगल लिया। तदनन्तर भगवती के शरीर से धुआँ निकला और उनका सारा शरीर धुएँ से ढँक गया। भगवान शिव अपनी माया से बाहर आ गए। उन्होंने भगवती पार्वती से कहा कि मैं एक ही पुरुष हूँ और तुम एक ही स्त्री हो। तुमने अपने पति को निगल लिया, अतः तुम विधवा हो गई हो। इसलिए सौभाग्यवती के श्रृंगार को छोड़कर वैधव्य वेष में रहो। तुम्हारा यह शरीर परा भगवती बगला के रूप में विद्यमान था। अब तुम धूमावती महाविद्या के रूप में विश्व में पूजित होकर संसार का कल्याण करोगी।"

          स्वतन्त्र तन्त्र के अनुसार सती ने जब दक्ष यज्ञ में योगाग्नि के द्वारा अपने आपको भस्म कर दिया, तब उस समय उनके जलते शरीर से जो धुआँ उत्पन्न हुआ, उससे भी माँ धूमावती का आविर्भाव माना गया है।

          नारद पाँचरात्र के अनुसार देवी धूमावती ने ही उग्र चण्डिका, उग्र तारा जैसी उग्र तथा भयंकर प्रवृति वाली देवियों को अपने शरीर से प्रकट किया। उग्र स्वभाव, भयंकरता, क्रूरता इत्यादि देवी धूमावती ने ही अन्य देवियों को प्रदान किया। देवी की ध्वनि, हजारों गीदड़ों के एक साथ चिल्लाने जैसी हैं, जो महान भयदायक हैं। देवी ने क्रोधवश अपने पति भगवान शिव का भक्षण लिया था। अतः देवी का सम्बन्ध अतृप्त क्षुधा (भूख) से भी हैं, देवी सर्वदा अतृप्त एवं भूखी है, परिणामस्वरूप देवी दुष्ट दैत्यों के माँस का भक्षण करती हैं, परन्तु इनकी क्षुधा का निवारण नहीं हो पाता हैं।

          देवी धूमावती की उपासना विपत्ति नाश, स्थिर रोग निवारण, युद्ध विजय एवं घोर कर्म मारण, उच्चाटन इत्यादि में की जाती हैं। देवी के कोप से शोक, कलह, क्षुधा, तृष्णा मनुष्य के जीवन से कभी जाती ही नहीं हैं, स्थिर रहती हैं। देवी, प्रसन्न होने पर रोग तथा शोक दोनों का विनाश कर देती है और कुपित होने पर समस्त भोग एवं कामनाओं का नाश कर देती हैं। आगम ग्रन्थों के अनुसार, अभाव, संकट, कलह, रोग इत्यादि को दूर रखने हेतु देवी के आराधना की जाती हैं।

         ज्येष्ठा देवी, धूम्रवर्णा, धूमावती आदि नामों से प्रसिद्घ इस भगवती के अनेक उपासक हुए हैं, जिनमें अर्धनारीश्वर, नारसिंह, स्कन्द, क्षपणक, पिप्पलाद, बौधायन आदि प्रमुख है। इनका एक मन्त्र इस प्रकार है --- ॐ धूं धूं धूं धूमावती स्वाहा।

             यह धूमावती साधना का एक सफल, अनुभूत और तीव्र प्रभावयुक्त प्रयोग है। यह केवल एक दिन की ही साधना है और आपकी जो भी इच्छा हो, वह इच्छा माँ भगवती धूमावती अवश्य ही पूरी करती है। विषम परिस्थिति में आप यह साधना नौ दिन तक जारी रखें।

            वैसे तो एक ही दिन बहुत है, इस साधना के लिए परन्तु हमारे अन्दर ऊर्जा के कमी के कारण कभी-कभी हमारे द्वारा की गई साधना सफल नहीं होती है। फिर भी इसमें ऐसा नहीं है, माँ भगवती अवश्य ही मनोकामना पूरी करती है।

साधना विधान :----------

           यह साधना धूमावती जयन्ती को सम्पन्न करे अथवा इसे किसी भी नवरात्रि काल में भी किया जा सकता है। साथ ही इसे किसी भी शनिवार, मंगलवार या रविवार किसी भी दिन किया जा सकता है।  समय होगा रात्रि का महानिशाकाल अर्थात यह साधना रात्रि को दस बजे आरम्भ करके प्रातः लगभग तीन या चार बजे तक समाप्त करनी चाहिए।

          साधना के लिए स्थान ऐसा हो, जहाँ आपको कोई असुविधा ना हो और कोई आपको व्यर्थ परेशान न करे। आपके आसन एवं वस्त्र लाल होने चाहिए और दिशा उत्तर रहे या आप सुविधा के अनुसार सुनिश्चित कर सकते हैं।

           यह साधना आपको पद्मासन अथवा सिद्धासन बैठकर सम्पन्न करनी चाहिए। माला रुद्राक्ष की होनी आवश्यक है और इस साधना में आपको ११ माला जाप करना है।

           साधना आरम्भ करने से पहले सामान्य गुरुपूजन एवं गणेश पूजन अवश्य करें। गुरुमन्त्र का जाप करके गुरुदेवजी से मानसिक रूप से आज्ञा लेकर ही साधना करनी चाहिए।

           साधना से पूर्व साधक को चाहिए कि वह संकल्प अवश्य करें। संकल्प में साधक अपनी उस मनोकामना उच्चारण अवश्य करें, जिसकी पूर्ति के निमित्त वह साधना कर रहा है।

           अपने सामने गोबर के उपले जलाकर उसमें गुग्गल डालकर धुआँ करते रहे। साधना के वक्त लगातार धुआँ होते रहना अवश्यक है।

साबर मन्त्र :----------

।। आई आई धूमावती माई,                                                                                       सुहाग छेड़े कोन कुले जाई                                             
धुआँ होय धूँ-धूँ कोरे,                                                  
आमार काज ना कोरले                                               

शिबेर जोटा खोसे भुमिते पोड़े ।।

AAYEE AAYEE DHOOMAWATI MAAYEE
SUHAAG CHHEDE KON KULE JAAYEE
DHUAAN HOY DHOON-DHOON KORE
AAMAAR KAAJ NAA KORLE
SHIBER JOTA KHOSE BHUMITE PODE.

          मन्त्र जाप समाप्ति के पश्चात साधक एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती को ही समर्पित कर दें।

          यह बांग्ला भाषा का साबर मन्त्र है, जो कि अत्यन्त तीव्र एवं शीघ्र प्रभावकारी कामनापूर्ति मन्त्र है। इस साधना को सम्पन्न करने से साधक की संकल्पित मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए मंगल कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल गुरूजी को आदेश आदेश आदेश।।।


सोमवार, 11 जून 2018

दारिद्रय नाशक धूमावती साधना


दारिद्रय नाशक धूमावती साधना


           माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती जयन्ती समीप ही है। यह २० जून २०१८ को आ रही है। आप सभी को धूमावती जयन्ती की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

               तन्त्र साधनाओं का क्षेत्र अपने आप में बड़ा व्यापक हैजिसकी थाह पाना सम्भव नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान हैजिसमें प्रामाणिक विधि-विधान एवं योग्य मार्गदर्शन द्वारा साधना सम्पन्न करने पर निश्चित ही सफलता प्राप्त होती हैजिससे व्यक्ति अपने कल्याण के साथ-साथ जनकल्याण करने में भी सक्षम हो पाता है। प्राचीन समय में यह विज्ञान प्रगति के ऊँचे शिखर पर रहा है और तन्त्र का प्रयोग हमारे पूर्वजों ने पूर्णता के साथ सम्पन्न कियाजिससे उनका जीवन सभी दृष्टियों से ज्यादा सुखमयआनन्ददायक एवं तनावरहित था।

               
सांसारिक सुख भी अनायास ही प्राप्त नहीं हो जातेउनके लिए भी साधना का बल और मन्त्र की सिद्धि आवश्यक है। सुख प्राप्त करना महत्वपूर्ण हैकिन्तु उन सुखों का उपभोग करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। आज के इस प्रतिस्पर्धावादी युग में यह कहाँ सम्भव है कि व्यक्ति कुछ क्षण सुख सेआनन्द से व्यतीत कर सकेउसे तो आए दिन कोई न कोई समस्या घेरे ही रहती है और उन्हीं से जूझते हुए उसकी शक्ति समाप्त होती जाती है। ऐसी परिस्थिति में उसे शारीरिक शक्ति के साथ-साथ दैविक बल की भी आवश्यकता पड़ती है। यह मानव मात्र का स्वभाव है कि जब चारों ओर परेशानियों केबाधाओं केअड़चनों के बादल मँडरा रहे होते हैंतभी व्यक्ति ईश्वर की अभ्यर्थना करने के लिएसमय निकालने के लिए विवश हो ही जाता है।

               
दस महाविद्याओं के क्रम में धूमावती सप्तम महाविद्या हैं। धूमावती शत्रुओं का भक्षण करने वाली और दुःखों का समापन करने वाली महाशक्ति हैं। इस शक्ति के आगे बड़े से बड़े तन्त्र को भी हार माननी पड़ती है। बुरी शक्तियों से पराजित न होना और विपरीत स्थितियों को अपने अनुकूल बना देने की शक्ति साधक को इनकी साधना से प्राप्त होती है। 

         देवी धूमावती की उपासना विपत्ति नाश, स्थिर रोग निवारण, युद्ध विजय एवं घोर कर्म मारण, उच्चाटन इत्यादि में की जाती हैं। देवी के कोप से शोक, कलह, क्षुधा, तृष्णा मनुष्य के जीवन से कभी जाती ही नहीं हैं, स्थिर रहती हैं। देवी, प्रसन्न होने पर रोग तथा शोक दोनों का विनाश कर देती है और कुपित होने पर समस्त भोग एवं कामनाओं का नाश कर देती हैं। आगम ग्रन्थों के अनुसार, अभाव, संकट, कलह, रोग इत्यादि को दूर रखने हेतु देवी के आराधना की जाती हैं।   

               कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है और उसके आगे सबको हार माननी पड़ती हैकिन्तु जो समय पर हावी हो जाता हैवह उससे भी ज्यादा बलशाली कहलाता है। धूमावती अपने साधकों को ऐसा ही बल प्रदान करती हैं कि उसके साधक काल को भी मोड़ सकते हैंबदल सकते हैं।

               धूमावती अपने साधक को अप्रतिम बल प्रदान करने वाली देवी हैंजो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में सहायक सिद्ध होती ही हैं। सृष्टि में जितने भी दुःख हैंव्याधियाँ हैंबाधाएँ हैंउन पर विजय प्राप्ति हेतु धूमावती साधना श्रेष्ठतम मानी जाती है। जो साधक धूमावती महाशक्ति की साधना-आराधना करता हैउस साधक पर वे प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण तो करती ही हैंसाथ ही उसके जीवन में धन-धान्यसमृद्धि की कमी भी नहीं होने देती। क्योंकि यह लक्ष्मी प्राप्ति में आने वाली बाधाओं का भी पूर्ण रूप से भक्षण कर लेती हैं। अतः लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भी धूमावती महाविद्या की साधना करनी चाहिए।

        जीवन में कई बार ऐसे पल आ जाते हैं कि हम बहुत अधिक निराश हो जाते हैं, अपनी गरीबी से, अपनी तकलीफों से और इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि हर इन्सान को धन की आवश्यकता होती ही है। जीवन के ९९% काम धन के अभाव में अधूरे ही रह जाते हैं, यहाँ तक कि साधना करने के लिए भी धन ज़रूरत होती है। तो क्यों और कब तक बैठे रहोगे इस गरीबी का रोना लेकर? क्यों ना इसे उठा कर फेंक दिया जाए जीवन से?


        साधक भाइयों और बहनों की ऐसी ही आर्थिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनके निवारण के लिए और सम्पूर्ण दरिद्रता-नाश के लिए एक विशेष साधना विधि दी जा रही है। इस साधना को सम्पन्न करने से उनके सभी आर्थिक कष्ट माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती की कृपा से समाप्त हो जाएंगे। यह मेरी स्व-अनुभूत साधना है, आप इसे सम्पन्न करें और माँ धूमावती की कृपा के पात्र बने।

साधना सामग्री :----------

१. एक सूपड़ा, २. स्फटिक या तुलसी माला, ३. धूमावती यन्त्र

साधना विधि :-----------

          यह साधना धूमावती जयन्ती से आरम्भ करे। इसके अलावा आप इसे किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से भी शुरू कर सकते हैं। समय रात्रि १० बजे के बाद का होगा।

          आप इस साधना में सफ़ेद वस्त्र धारण कर सफ़ेद आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर सूपड़ा रख कर उसमें सफ़ेद वस्त्र बिछा दें, फिर उसमें "धूमावती यन्त्र" स्थापित करे। शुद्ध घी का दीपक जलाकर धूप-अगरबत्ती जला दें।

          साधक को चाहिए कि वह पहले गुरुपूजन और गणेशपूजन सम्पन्न करें। गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें और पूज्य गुरुदेवजी से दरिद्रता नाशक धूमावती साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें। फिर उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करें।

          अब सामान्य गणेशपूजन सम्पन्न करके एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें और फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य करें। साधक दाहिने हाथ में जल लेकर निम्नानुसार संकल्प लें -----

                      "मैं अमुक पिता का नाम अमुक गोत्र अमुक आज से दरिद्रता नाशक धूमावती साधना शुरू कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक धूमावती मन्त्र का ६१ माला मन्त्र जाप करूँगा। हे, माँ! आप मेरी साधना को स्वीकार कर मेरे आर्थिक कष्टों का निवारण करें और मेरे जीवन से दरिद्रता के अभिशाप को पूरी तरह मिटा दें।"

           और फिर हाथ के जल को भूमि पर छोड़ दें।

           इसके बाद गाय के कण्डे से बनी भस्म यन्त्र पर अर्पण करे, धूप-दीप अर्पित करें और माँ को पेठे का भोग अर्पण करे।फिर माँ से प्रार्थना करे कि मैं यह साधना अपनी दरिद्रता से मुक्ति के लिए कर रहा हूँ। आप मेरी साधना को सफलता प्रदान करे तथा मेरे सभी कष्टों को दूर कर दे।
          इसके बाद सर्वप्रथम निम्न मन्त्र की एक माला जाप करें -----

          ।। ॐ धूम्र शिवाय नमः ।।

                OM DHOOMRA SHIVAAY NAMAH.

          इसके बाद मूल मन्त्र का ६१ माला जाप करें -----


मूल मन्त्र :–––––––––––

          ।। धूं धूं धूमावती ठः ठः ।।

       DHOOM DHOOM DHOOMAAVATI THAH THAH.

          फिर पुनः एक माला पहले वाले मन्त्र की जाप करें -----

          ।। ॐ धूम्र शिवाय नमः ।।

          जप के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती को ही समर्पित कर दें। और एक बार फिर दिल से माँ धूमावती से प्रार्थना करें।

          इस साधना को नित्य २१ दिन तक निरन्तर सम्पन्न करें।साधना पूरी होने के बाद सुपड़े को यन्त्र सहित उठाकर माँ धूमावती से प्रार्थना करें कि "हे, माँ! आप हमारे सभी पापों को क्षमा करें और आज आप हमारे जीवन के सारे दुःख, सारी दरिद्रता को आपके इस पवित्र सुपड़े में भरकर ले जाएं। हे, माँ! हमारे जीवन में कभी दरिद्रता ना लौटे, ऐसी दया करें।"

          इसके बाद सुपड़े और यन्त्र को जल में प्रवाहित कर दें या किसी निर्जन स्थान में रख दें। निश्चित ही माँ धूमावती की आप पर कृपा बरसेगी और जीवन की दरिद्रता कोसों दूर चली जाएगी।

          आपकी साधना सफल हो और आप जीवन में दिन-दूनी रात-चौगुनी प्रगति करे। मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए ऐसी ही कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।