बुधवार, 13 जून 2018

तीव्र इच्छापूर्ति धूमावती साधना


तीव्र इच्छापूर्ति धूमावती साधना

           
          माँ भगवती धूमावती जयन्ती निकट ही है। यह २० जून २०१८ को आ रही है। आप सभी को धूमावती जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          महाविद्या धूमावती उग्रशक्ति है। भगवान शिव माँ भगवती धूमावती में धूम्र रूप में विराजमान है। विश्व की अमांगल्यपूर्ण अवस्था की अधिष्ठात्री के रूप में यह भगवती विवर्णा, चंचला, गलिताम्बरा, विरलदन्ता, विधवा, मुक्तकेशी, शूर्पहस्ता, काकध्वजिनी, रूक्षनेत्रा, कलहप्रिया आदि विशेषणों से वर्णित है। शत्रुसंहार, दारिद्रय-विध्वंसन एवं भक्त-संरक्षण के लिए यह महादेवी सदैव आराध्य रही हैं।

         नारदपाँचरात्र में माँ धूमावती की उत्पत्ति की कथा वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि --- "एक समय भगवान शिव के अंक में विराजमान माँ पार्वती ने शिवाजी से प्रार्थना की कि मुझे भूख लगी है, कुछ खाने के लिए दें। तब शिव ने आश्वासन दिया कि कुछ समय प्रतीक्षा करो, अभी भोजन की व्यवस्था होती है। किन्तु व्यवस्था नहीं हुई और बहुत समय बीत गया। तब भगवती ने स्वयं शिव को ही मुख में रखकर निगल लिया। तदनन्तर भगवती के शरीर से धुआँ निकला और उनका सारा शरीर धुएँ से ढँक गया। भगवान शिव अपनी माया से बाहर आ गए। उन्होंने भगवती पार्वती से कहा कि मैं एक ही पुरुष हूँ और तुम एक ही स्त्री हो। तुमने अपने पति को निगल लिया, अतः तुम विधवा हो गई हो। इसलिए सौभाग्यवती के श्रृंगार को छोड़कर वैधव्य वेष में रहो। तुम्हारा यह शरीर परा भगवती बगला के रूप में विद्यमान था। अब तुम धूमावती महाविद्या के रूप में विश्व में पूजित होकर संसार का कल्याण करोगी।"

          स्वतन्त्र तन्त्र के अनुसार सती ने जब दक्ष यज्ञ में योगाग्नि के द्वारा अपने आपको भस्म कर दिया, तब उस समय उनके जलते शरीर से जो धुआँ उत्पन्न हुआ, उससे भी माँ धूमावती का आविर्भाव माना गया है।

          नारद पाँचरात्र के अनुसार देवी धूमावती ने ही उग्र चण्डिका, उग्र तारा जैसी उग्र तथा भयंकर प्रवृति वाली देवियों को अपने शरीर से प्रकट किया। उग्र स्वभाव, भयंकरता, क्रूरता इत्यादि देवी धूमावती ने ही अन्य देवियों को प्रदान किया। देवी की ध्वनि, हजारों गीदड़ों के एक साथ चिल्लाने जैसी हैं, जो महान भयदायक हैं। देवी ने क्रोधवश अपने पति भगवान शिव का भक्षण लिया था। अतः देवी का सम्बन्ध अतृप्त क्षुधा (भूख) से भी हैं, देवी सर्वदा अतृप्त एवं भूखी है, परिणामस्वरूप देवी दुष्ट दैत्यों के माँस का भक्षण करती हैं, परन्तु इनकी क्षुधा का निवारण नहीं हो पाता हैं।

          देवी धूमावती की उपासना विपत्ति नाश, स्थिर रोग निवारण, युद्ध विजय एवं घोर कर्म मारण, उच्चाटन इत्यादि में की जाती हैं। देवी के कोप से शोक, कलह, क्षुधा, तृष्णा मनुष्य के जीवन से कभी जाती ही नहीं हैं, स्थिर रहती हैं। देवी, प्रसन्न होने पर रोग तथा शोक दोनों का विनाश कर देती है और कुपित होने पर समस्त भोग एवं कामनाओं का नाश कर देती हैं। आगम ग्रन्थों के अनुसार, अभाव, संकट, कलह, रोग इत्यादि को दूर रखने हेतु देवी के आराधना की जाती हैं।

         ज्येष्ठा देवी, धूम्रवर्णा, धूमावती आदि नामों से प्रसिद्घ इस भगवती के अनेक उपासक हुए हैं, जिनमें अर्धनारीश्वर, नारसिंह, स्कन्द, क्षपणक, पिप्पलाद, बौधायन आदि प्रमुख है। इनका एक मन्त्र इस प्रकार है --- ॐ धूं धूं धूं धूमावती स्वाहा।

             यह धूमावती साधना का एक सफल, अनुभूत और तीव्र प्रभावयुक्त प्रयोग है। यह केवल एक दिन की ही साधना है और आपकी जो भी इच्छा हो, वह इच्छा माँ भगवती धूमावती अवश्य ही पूरी करती है। विषम परिस्थिति में आप यह साधना नौ दिन तक जारी रखें।

            वैसे तो एक ही दिन बहुत है, इस साधना के लिए परन्तु हमारे अन्दर ऊर्जा के कमी के कारण कभी-कभी हमारे द्वारा की गई साधना सफल नहीं होती है। फिर भी इसमें ऐसा नहीं है, माँ भगवती अवश्य ही मनोकामना पूरी करती है।

साधना विधान :----------

           यह साधना धूमावती जयन्ती को सम्पन्न करे अथवा इसे किसी भी नवरात्रि काल में भी किया जा सकता है। साथ ही इसे किसी भी शनिवार, मंगलवार या रविवार किसी भी दिन किया जा सकता है।  समय होगा रात्रि का महानिशाकाल अर्थात यह साधना रात्रि को दस बजे आरम्भ करके प्रातः लगभग तीन या चार बजे तक समाप्त करनी चाहिए।

          साधना के लिए स्थान ऐसा हो, जहाँ आपको कोई असुविधा ना हो और कोई आपको व्यर्थ परेशान न करे। आपके आसन एवं वस्त्र लाल होने चाहिए और दिशा उत्तर रहे या आप सुविधा के अनुसार सुनिश्चित कर सकते हैं।

           यह साधना आपको पद्मासन अथवा सिद्धासन बैठकर सम्पन्न करनी चाहिए। माला रुद्राक्ष की होनी आवश्यक है और इस साधना में आपको ११ माला जाप करना है।

           साधना आरम्भ करने से पहले सामान्य गुरुपूजन एवं गणेश पूजन अवश्य करें। गुरुमन्त्र का जाप करके गुरुदेवजी से मानसिक रूप से आज्ञा लेकर ही साधना करनी चाहिए।

           साधना से पूर्व साधक को चाहिए कि वह संकल्प अवश्य करें। संकल्प में साधक अपनी उस मनोकामना उच्चारण अवश्य करें, जिसकी पूर्ति के निमित्त वह साधना कर रहा है।

           अपने सामने गोबर के उपले जलाकर उसमें गुग्गल डालकर धुआँ करते रहे। साधना के वक्त लगातार धुआँ होते रहना अवश्यक है।

साबर मन्त्र :----------

।। आई आई धूमावती माई,                                                                                       सुहाग छेड़े कोन कुले जाई                                             
धुआँ होय धूँ-धूँ कोरे,                                                  
आमार काज ना कोरले                                               

शिबेर जोटा खोसे भुमिते पोड़े ।।

AAYEE AAYEE DHOOMAWATI MAAYEE
SUHAAG CHHEDE KON KULE JAAYEE
DHUAAN HOY DHOON-DHOON KORE
AAMAAR KAAJ NAA KORLE
SHIBER JOTA KHOSE BHUMITE PODE.

          मन्त्र जाप समाप्ति के पश्चात साधक एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती को ही समर्पित कर दें।

          यह बांग्ला भाषा का साबर मन्त्र है, जो कि अत्यन्त तीव्र एवं शीघ्र प्रभावकारी कामनापूर्ति मन्त्र है। इस साधना को सम्पन्न करने से साधक की संकल्पित मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए मंगल कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल गुरूजी को आदेश आदेश आदेश।।।


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