तीक्ष्ण त्रिशक्ति साधना
आश्विन नवरात्रि महापर्व
समीप ही है। यह २६ सितम्बर २०२२ से आरम्भ हो रहा है। आप सभी को आश्विन नवरात्रि पर्व
की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!
इस ब्रह्माण्ड में आदिशक्ति
के अनन्त रूप अपने-अपने सुनिश्चित कार्यों को गति प्रदान करने के लिए तथा
ब्रह्माण्ड के योग्य सञ्चालन के लिए अपने नियत क्रम के अनुसार गतिशील है। इसी
ब्रह्माण्डीय शक्ति के मूल तीन दृश्यमान स्वरूप को हम महासरस्वती‚ महालक्ष्मी तथा महाकाली
के रूप में देखते हैं। तान्त्रिक दृष्टि से यही तीन शक्तियाँ सृजन, पालन तथा संहार क्रम की मूल शक्तियाँ हैं‚ जो कि त्रिदेव की सर्व कार्य
क्षमता का आधार है।
ये ही त्रिदेवियाँ
ब्रह्माण्ड की सभी क्रियाओं में सूक्ष्म या स्थूल रूप से अपना कार्य करती ही रहती
हैं तथा ये ही शक्तियाँ मनुष्य के अन्दर तथा बाह्य दोनों रूप में विद्यमान हैं।
मनुष्य के जीवन में होने वाली सभी घटनाओं का मुख्य कारण इन्हीं त्रिशक्तियों के
सूक्ष्म रूप हैं।
क्रिया ज्ञान इच्छा स शक्तिः।
अर्थात् शक्ति के तीन मूल
स्वरूप हैं ------
(१) ज्ञान-शक्ति
(२) इच्छा-शक्ति
(३) क्रिया-शक्ति
ज्ञान‚ इच्छा तथा क्रिया के माध्यम से ही हमारा पूर्ण अस्तित्व बनता है, चाहे वह हमारे रोज़िन्दा जीवन की शुरूआत से लेकर अन्त हो या फिर हमारे
सूक्ष्म से सूक्ष्म या वृहद से वृहद क्रियाकलाप। हमारे जीवन के सभी क्षण इन्हीं
त्रिशक्ति के अनुरूप गतिशील रहते हैं।
वस्तुतः जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है‚ मनुष्य शरीर ब्रह्माण्ड की एक अत्यन्त
ही अद्भुत रचना है। लेकिन मनुष्य को अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं है, उसकी अनन्त क्षमताएँ
सुप्त रूप में उसके भीतर ही विद्यमान होती है।
इसी प्रकार यह त्रिशक्ति का
नियन्त्रण वस्तुतः हमारे हाथ में नहीं है और हमें इसका कोई ज्ञान भी नहीं होता है।
लेकिन अगर हम सोच के देखें तो हमारा कोई भी सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य भी इन्हीं
तीनों शक्तियों में से कोई एक शक्ति के माध्यम से ही सम्पादित होता है। योगीजन
इन्हीं शक्तियों के विविध रूप को चेतन कर उनकी सहायता प्राप्त करते हुए ब्रह्माण्ड
के मूल रहस्यों को जानने का प्रयत्न करते रहते हैं।
न सिर्फ आध्यात्मिक जीवन में
वरन् हमारे भौतिक जीवन के लिए भी इन शक्तियों का हमारी तरफ अनुकूल होना कितना
आवश्यक है। यह सामन्य रूप से कोई भी व्यक्ति समझ ही सकता है। ज्ञान शक्ति एक तरफ
आपको जीवन में किस प्रकार से आगे बढ़कर उन्नति कर सकते हैं‚ इस पक्ष की ओर विविध
अनुकूलता दे सकती है।
वहीं दूसरी ओर जीवन में
प्राप्त ज्ञान का योग्य संचार कर विविध अनुकूलता की प्राप्ति कैसे करनी है तथा
उनका उपभोग कैसे करना है‚ यह इच्छाशक्ति के माध्यम से समझा जा सकता है।
क्रिया शक्ति हमें विविध
पक्ष में गति देती है तथा किस प्रकार प्रस्तुत उपभोग को अपनी महत्तम सीमा तक हमें
अनुकूलता तथा सुख प्रदान कर सकती है। यह तथ्य समझा देती है।
प्रस्तुत साधना, इन्हीं त्रिशक्ति को चेतन
कर देती है‚ जिससे साधक अपने जीवन के विविध पक्षों में स्वतः ही अनुकूलता प्राप्त
करने लगता है, न ही सिर्फ भौतिक पक्ष में‚ बल्कि आध्यात्मिक
पक्ष में भी।
साधक के नूतन ज्ञान को
प्राप्त करने तथा उसे समझने में अनुकूलता प्राप्त होने लगती है। किसी भी विषय को
समझने में पहले से ज्यादा साधक अनुकूलता अनुभव करने लगता है। अपने अन्दर की विविध
क्षमताओं तथा कलाओं के बारे में साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है, उसके लिए क्या योग्य और
क्या अयोग्य हो सकता है? इसके सम्बन्ध में भी साधक की समझ बढ़ाने लगती है।
इच्छाशक्ति की वृद्धि के साथ साधक को विविध
प्रकार के उन्नति के सुअवसर प्राप्त होने लगते हैं तथा साधक को अपने ज्ञान का
उपयोग किस प्रकार और कैसे करना है? यह समझ में आने लगता है। उदहारण के लिए किसी
व्यक्ति के पास व्यापार करने का ज्ञान है‚ लेकिन उसके पास व्यापार करने की कोई
क्षमता नहीं है या उस ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग हो नहीं पा रहा है तो इच्छाशक्ति
के माध्यम से यह सम्भव हो जाता है।
क्रियाशक्ति के माध्यम से
साधक अपनी इच्छाशक्ति में गति प्राप्त करता है अर्थात किसी भी कार्य का ज्ञान है, उसको करने के लिए मौका
भी है। लेकिन अगर वह क्रिया ही न हो‚ जो कि परिणाम की प्राप्ति करवा सकती है तो सब
बेकार हो जाता है। क्रिया शक्ति उसी परिणाम तक साधक को ले जाती है तथा एक स्थिरता
प्रदान करती है।
त्रिशक्ति से सम्बन्धित यह
तीव्र प्रयोग निश्चय ही एक गूढ़ प्रक्रिया है। वास्तव में अत्यन्त ही कम समय में
साधक की तीनों शक्तियाँ चैतन्य होकर साधक के जीवन को अनुकूल बनाने की ओर प्रयासमय
हो जाती है। इस प्रकार की साधना की अनिवार्यता को शब्दों के माध्यम से आँका नहीं
जा सकता है‚ वरन इसे तो मात्र अनुभव ही किया जा सकता है। साधना प्रयोग का विधान
कुछ इस प्रकार है -------
साधना विधान :------------
इस साधना को साधक किसी भी
शुभ दिन से शुरू कर सकता है‚ फिर भी यदि इसे किसी भी नवरात्रि में सम्पन्न
किया जाए तो कहीं अधिक श्रेष्ठ होगा। साधना में समय रात्रिकाल में ९ बजे के बाद का
रहे।
साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से
निवृत होकर लाल वस्त्र को धारणकर लाल आसन पर बैठ जाए। साधक का मुख उत्तर दिशा की
ओर रहे।
अपने सामने बाजोट पर या किसी लकड़ी के पट्टे पर साधक को लाल वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु चित्र/यन्त्र स्थापित करे। फिर साधक को सर्वप्रथम गुरुपूजन, गणेश-पूजन तथा भैरव-पूजन सम्पन्न करना चाहिए।
पहले सद्गुगुरुदेवजी का ध्यान कर पञ्चोपचारों से संक्षिप्त गुरुपूजन करे, फिर गुरुमन्त्र का जाप करे। गुरुमन्त्र की न्यूनतम चार माला जाप कर सद्गुरुदेवजी से साधना में सफलता के लिए प्रार्थना करे।
इसके बाद साधक भगवान गणपतिजी एवं भगवान भैरव का स्मरण करके सामान्य पूजन करे। साधक चाहे तो मन्त्र जाप भी कर सकता है। फिर उनसे साधना की सफलता और निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करे।
अब एक भोजपत्र या सफ़ेद कागज़ पर एक अधः त्रिकोण कुंकुंम से बनाना है तथा उसके तीनों कोण में बीजमन्त्रों को लिखना है। इस यन्त्र निर्माण के लिए साधक चाँदी की शलाका का प्रयोग करे तो उत्तम है। अगर यह सम्भव न हो तो साधक को अनार की कलम का प्रयोग करना चाहिए।
साधक अब उस यन्त्र का सामान्य पूजन करे तथा दीपक प्रज्वलित करे। दीपक किसी भी तेल का हो सकता है।
उसके बाद साधक निम्न मन्त्र
की २१ माला मन्त्र जाप करे। इस मन्त्र जाप के लिए साधक “मूँगा
माला” का प्रयोग करे।
मन्त्र :-----------
॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं फट् ॥
OM HREENG SHREENG KREENG PHAT.
मन्त्र जाप के उपरान्त एक
आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती त्रिशक्ति को ही समर्पित कर दें।
साधक अगले ८ दिन तक यह क्रम
जारी रखे अर्थात कुल ९ दिन तक यह प्रयोग करना है।
प्रयोग पूर्ण होने के बाद
साधक उस यन्त्र को पूजा स्थान में ही स्थापित कर दे। माला को प्रवाहित नहीं किया
जाता है। साधक उस माला का प्रयोग वापस इस मन्त्र की साधना के लिए कर सकता है तथा
निर्मित किये गए यन्त्र के सामने ही मन्त्र जाप को किया जा सकता है।
अन्तिम दिन साधक को यथा
सम्भव छोटी बालिकाओं को भोजन कराना चाहिए तथा वस्त्र‚ दक्षिणा आदि देकर सन्तुष्ट
करना चाहिए।
आपकी
साधना सफल हो और माँ भगवती का आपको आशीर्वाद प्राप्त हो। मैं पूज्यपाद
सद्गुरुदेवजी ऐसी कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।
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