सोमवार, 19 नवंबर 2018

काल भैरव साधना

काल भैरव साधना



          कालभैरव जयन्ती समीप ही है। यह २९ नवम्बर २०१८ को आ रही है। आप सभी को कालभैरव जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          प्रत्येक व्यक्ति अपने अन्दर तेजस्विता और प्रचण्डता  को भी आत्मसात कर सके, यह सम्भव है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के दो प्रमुख पहलू होते हैं अच्छा-बुरा, उल्टा-सीधा, तेज-धीमा, सौम्य-उग्र। और उसका व्यक्तित्व तभी पूर्णतायुक्त होता है, जब वह दोनों पहलुओं से परिपूर्ण हो। जहाँ उसके अन्दर ममत्व, प्यार, दया जैसी सौम्य भावनाएँ होनी आवश्यक हैं, वहीं पौरुष, प्रचण्डता, तेजस्विता जैसी स्थितियाँ भी होनी अत्यावश्यक है।

          कृष्ण के बारे में प्रसिद्ध है कि जहाँ उनकी एक आँख में करुणा, ममता, प्रेम, अपनत्व झलकता रहता था, तो वहीं उनकी दूसरी आँख में प्रचण्डता, शत्रु-दमन एवं क्रोध की स्थिति रहती थी और इन्हीं दोनों के समग्र रूप ने उन्हें "योगेश्वरमय पुरुषोत्तम" बनाया।

          काल भैरव ऐसे ही प्रचण्ड देव हैं, जिनकी आराधना-साधना से व्यक्ति के अन्दर स्वतः ही एक ऐसा अग्नि स्फुलिंग स्थापित हो जाता है कि उसका सारा शरीर शक्तिमय हो जाता है, ओजस्विता एवं दिव्यता से दिव्यता से परिपूर्ण हो जाता है और वह अपने जीवन में प्रत्येक प्रकार की चुनौती को मुस्कुरा कर झेलने तथा उस पर विजय पाने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।

          ऋषियों ने जब साधनाओं का निर्माण किया तो छोटी से छोटी साधना भी उनके अनुभव पर ही आधारित थी। जब उन्होंने काल भैरव के लिए अष्टमी तिथि निर्धारित की और वह भी कृष्ण पक्ष की, तो उसके पीछे एक गूढ़ चिन्तन था। प्रथम तो काल भैरव एक ऐसे देव हैं, जो कि व्यक्ति के झूठे व्यक्तित्व को नष्ट कर उसे सभी अष्टपाशों से मुक्त करते हैं और चूँकि सभी अष्टपाश अज्ञान रूपी अंधकार से निर्मित होते हैं, अतः इनकी साधना के लिए कृष्ण पक्ष की अष्टमी को निर्धारित किया गया।

          काल भैरव का रूप मनोहर है, उनका शरीर दिव्य, तेजस्वी एवं सम्मोहक है। उनके एक हाथ में मनुष्य का खप्पर, जो कि नवीन चेतना का प्रतीक है, स्थित है। दूसरे हाथ में यम पाश है, जो मृत्यु पर विजय का द्योतक है। तीसरे हाथ में खडग अष्टपाशों को काटने के लिए तथा चौथा वरमुद्रा में उठा हाथ सर्व स्वरूप में मंगल और आनंद का प्रतीक है।

          वैसे साधना के दौरान काल भैरव साधक की कई प्रकार से परीक्षा लेते हैं और कई बार तो विकराल रूप धारण कर उनके समक्ष उपस्थित हो जाते हैं। पर साधक को इतना ख्याल रखना चाहिए कि काल भैरव केवल बाह्य रूप में ही भयंकर है, उनका अन्तः स्वरूप तो अमृत तत्व से आपूरित और साधक का हित चाहने वाला ही है। अतः साधक को ऐसी किसी भी परिस्थिति के उत्पन्न होने पर इस साधना से विचलित होने या डरने की जरा भी आवश्यकता नहीं है।

          प्राचीन ग्रन्थों में विवरण मिलता है कि अगर सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी यह साधना सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेता है, तो ऐसे व्यक्ति के जीवन में यदि अकाल मृत्यु या दुर्घटना का योग हो, तो वह स्वतः ही मिट जाता है और कुण्डली में स्थित कुप्रभावी ग्रह भी शान्त हो जाते हैं, जिससे उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त होने लगता है।

          ऐसे व्यक्ति का सारा शरीर एक दिव्य आभा से युक्त हो जाता है। मित्रगण हमेशा उसके चारो ओर मँडराते रहते हैं और उसकी हर बात का पालन करने के लिए तत्पर रहते हैं। शत्रु उसके समक्ष आते ही समर्पण मुद्रा में प्रस्तुत हो जाते हैं और साधक के आज्ञापालक बन जाते हैं। वह कभी भी युद्ध, विवाद, मुकदमे आदि में पराजित नहीं होता। इस साधना से व्यक्ति के अष्टपाश नष्ट होते हैं।

          काल भैरव "काल" के देवता हैं, अतः उनकी साधना सम्पन्न करने वाले साधक को स्वतः ही त्रिकाल स्वरूप में भूत, भविष्य, वर्तमान का ज्ञान होने लगता है, जिससे वह पहले से ही भविष्य के लिए उचित योजनाएँ बना लेता है। वह पहले से ही जान जाता है कि यह व्यक्ति मेरे लिए सहयोगी होगा कि नहीं, यह कार्य मेरे लिए अनुकूल होगा या नहीं। साथ ही साथ धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, वैभव उसके जीवन में उसके साथ-साथ चलते हैं और वह सामान्य जीवन से ऊपर उठकर देवत्व की ओर अग्रसर होता है।

साधना विधान :-----------

          यह साधना एक दिवसीय है। इस साधना को काल भैरव अष्टमी, पुष्य नक्षत्र दिवस को या किसी भी रविवार को सम्पन्न करें।

          साधक रात्रि में स्वच्छ काले वस्त्र धारण कर काला आसन या कम्बल बिछाकर दक्षिणाभिमुख होकर यह साधना सम्पन्न करें। साधक अपने माथे पर काजल की बिन्दी भी लगाएं।

          अपने पूजा स्थान को साफ कर लकड़ी के बाजोट पर काला वस्त्र बिछाकर, उस पर काले तिल से अष्टदल कमल बनाएं, कमल के मध्य में "कालभैरव यन्त्र" स्थापित करें। प्रत्येक दल पर एक-एक सुपारी रखें।

          साधना से पूर्व साधक को सामान्य गुरुपूजन करके कम से कम चार माला गुरुमन्त्र की जाप करनी चाहिए और फिर सद्गुरुदेवजी से कालभैरव साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

          इसके बाद भगवान गणपति का स्मरण कर संक्षिप्त पूजन करें और एक माला गणपति मन्त्र का जाप कर उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करे।

          तत्पश्चात यन्त्र का पूजन सिन्दूर, अक्षत तथा लाल पुष्प से करें, साथ ही प्रत्येक सुपारी पर भी सिन्दूर, अक्षत तथा पुष्प चढ़ाएं। तेल का दीपक लगाएं, दीपक में चार बत्तियाँ हो, धूप भी जला लें।

                     "काली हकीक माला" को हाथ में लेकर उस पर सिन्दूर तथा पुष्प चढ़ाएं। फिर निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए ५१ माला मन्त्र जाप सम्पन्न करें -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट् ॥

OM  KREEM  KREEM  KAALBHAIRAVAAY  PHAT.

          साधना समाप्ति के अगले दिन यन्त्र, माला तथा सुपारी उसी वस्त्र में लपेटकर नदी में यह कहते हुए प्रवाहित कर दें -----

         "हे, कालभैरव! आप समस्त प्रकार से मेरी रक्षा करें। मेरे शत्रुओं को परास्त करें तथा मुझ पर अपनी कृपा कर मुझे सर्व सुख और सम्पदा से युक्त करें।"

         ऐसा करने पर यह साधना पूर्ण होती है तथा साधक कालभैरव की तेजस्विता को अपने अन्दर समाहित कर अकाल मृत्यु, चिन्ताओं, बाधाओं को दूर करता हुआ निर्भरता व निडरता युक्त जीवन व्यतीत करने में समर्थ होता है।

          आपकी साधना सफल हो और भगवान कालभैरव आपकी मनोकामना पूरी करे! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश ॥

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