निखिलेश्वरानन्द सुरक्षा कवच साधना
निखिल संन्यास दिवस निकट ही है। यह इस बार २३ नवम्बर २०१८ को आ
रहा है। आप सभी को निखिल संन्यास दिवस की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक
शुभकामनाएँ!
पूज्यपाद सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्दजी
मन्त्र, तन्त्र
और साधना के क्षेत्र में प्रामाणिक और चेतनावान व्यक्तित्व माने गए हैं। सूर्य विज्ञान, पारद विज्ञान तथा परा विज्ञान के
अद्वितीय ज्ञाता रहे हैं। अपनी तपस्या एवं साधना के बल से किसी के भी दुर्भाग्य की
रेखा को सौभाग्य के रूप में बदलने की क्षमता रखते हैं। योग के माध्यम से समस्त
ब्रह्माण्ड जिनकी लीला भूमि है,भगवत्पाद सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्दजी ने श्रीकृष्ण के बाद सम्मोहन
विज्ञान को सम्पूर्ण रूप से अपने भीतर संजोया है, ऐसे सिद्धाश्रम संस्पर्शित व्यक्तित्व
जो वर्तमान में डॉ. नारायणदत्त श्रीमालीजी के रूप में जाने जाते हैं, ने साधारण गृहस्थ की तरह रहकर भौतिक और
आध्यात्मिक धरोहरों को साधनाओं के माध्यम से पुनर्जीवित करके समस्त भारतीय ज्ञान
और तन्त्र विद्या के वैज्ञानिक स्वरूप को सार्वजनीन किया है। तन्त्र, मन्त्र और ज्योतिष ज्ञान को जो कुछ
वर्षों पूर्व समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था, आज उन्होंने उनके सम्मान को पुनः
स्थापित करके गौरवान्वित किया है। जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ के लिए इन साधनाओं
या सिद्धियों का कभी उपयोग नहीं किया, ऐसे सिद्धाश्रम के प्राणश्चेतनायुक्त
अद्वितीय व्यक्तित्व का लोकोपकारी अधिकाधिक कार्य अप्रत्यक्ष ही होता है, जो निरन्तर अपने को भीड़ से छुपाकर
निर्मल गंगा की तरह सतत क्रियाशील हैं, प्रवाहमान हैं, ऐसे चेतनापुंज व्यक्तित्व के लिए कुछ
भी कहना या लिखना समग्र नहीं होगा।
आज विज्ञान ने समग्र मानव जाति को ऐसे
चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ केवल मौत का ही खौफ़ है, भय है, जहाँ से निकलने के लिए कोई मार्ग नहीं
सूझ रहा है, इस
घटाटोप अन्धकार में दूर-दूर तक आशा की किरणें दृष्टिगोचर नहीं हो रही है। विज्ञान
के चकाचौंध से त्रस्त मानव अपने मार्गदर्शन के लिए ऐसे महामानव की तलाश कर रहा है, जिन की छत्रछाया में यह समस्त विश्व
शान्ति और सौहार्द्र का पाठ पढ़ सके। इस भयावह स्थिति में विश्व को विनाश से बचाने
के लिए एकमात्र पूज्यपाद गुरुदेव डॉ. नारायणदत्त श्रीमालीजी ही उपयुक्त व्यक्तित्व
हैं, जो
योग एवं तन्त्र बल से अभय दान दे सकते हैं।
सिद्धाश्रम में या अन्यत्र अनेक योगियों
और सैकड़ों वर्षों की आयु प्राप्त संन्यासियों ने आपकी स्तुति की है, आपके चरित्र का और गुणों का वर्णन किया
है, फिर
भी उन्होंने स्वीकार किया है कि आपके ज्ञान की गहराइयों को जितना ही ज्यादा जानने
का प्रयास करते हैं, उतनी ही गहराई और प्रतीत होती है। महर्षि पुलस्त्य, महर्षि विश्वामित्र ज्ञानानन्द आदि भी
आपकी गम्भीरता को नहीं समझ सके। वे सैकड़ों-हजारों वर्षों की साधना करने के बाद भी
आप का सौवां हिस्सा भी अनुभव नहीं कर पाए।
वे जितनी और ज्यादा तपस्या करते हैं, उतनी ही आपकी महिमामण्डित विराटता का
अनुभव करने लग जाते हैं। तब वे आपके सामने अपने आपको बौना पाते हैं, क्योंकि आप अपने आप में पूर्ण ब्रह्म
स्वरूप हैं और पूर्ण ब्रह्म अपने आप में अथाह और असीम है। उसका जितना भी अंश जिसको
प्राप्त हो जाता है, वह अपने आप में अद्वितीय बन जाता है, हजार-हजार जन्म लेकर भी आप की पूर्णता
को शब्दों में बाँध पाना कठिन है।
ऐसे महामानव परमहंस स्वामी
निखिलेश्वरानन्दजी के गुणगान में सहस्त्रों स्तोत्र रचे गए। ऋषि, महर्षि तो क्या देवी-देवताओं ने भी
स्तोत्र के माध्यम से अपने को सौभाग्यशाली बनाया। ऐसे ही स्तोत्रों में से एक
चैतन्य एवं शीघ्र फलदायी स्तोत्र है निखिलेश्वरानन्द सुरक्षा कवच, जिसका मात्र पाठ करके ही समस्त
समस्याओं व बाधाओं का अन्त किया जा सकता है।
कभी-कभी व्यक्ति का जीवन बहुत ही
असुरक्षित-सा हो जाता है,
वह अकारण ही शत्रुओं से घिर जाता है।
आज का सामाजिक परिवेश इतना घिनौना और भयास्पद है कि कभी भी आपके साथ कुछ भी घटित हो
सकता है। आज तो जीवन इतना सस्ता है, जितना
पहले कभी नहीं रहा। कभी हम अकारण ही विवाद में फँस जाते हैं, मुकदमा शुरु हो जाता है, फिर तो जीवन बिलकुल भी निरापद नहीं रह
पाता। इसी तरह निरन्तर तनाव की स्थिति बनी रहती है, जो कि मृत्यु से भी अधिक दुष्कर अनुभव
होती है। कभी आपके ऊपर तन्त्र प्रयोग हो जाता है, चलता हुआ कारोबार भी रुक जाता है, यह
विवाद लड़ते-लड़ते इतना भीषण हो जाता है, जहाँ
जीवन को खतरा हो जाता है। ऐसी स्थितियों से निजात पाने के लिए इस
कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए। यह कवच निश्चित रूप से आपको भय या विवाद से मुक्ति
प्रदान करेगा।
यह अद्भुत कवच गुरुदेव “परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द” के
तपोबल से प्रदीप्त महामन्त्र है, प्रतिदिन
ब्रह्म मुहूर्त में स्नानोपरान्त शुद्ध वस्त्र धारण कर संक्षिप्त गुरु
पूजन कर इसका पाठ करने से साधक को सुरक्षा, आनन्द, सौभाग्य तथा गुरुदेव का तेज प्राप्त
होता है। दृढ़ निश्चय से युक्त होकर शुद्ध अन्तःकरण से सम्पन्न किया गया इस कवच का
विधिवत् अनुष्ठान जीवन की विकटतम परिस्थितियों में भी साधक को विजय प्रदान करने
में सक्षम है।
यदि सम्भव हो तो प्रतिदिन इसका एक पाठ
गुरुपूजन एवं गुरुमन्त्र जाप के बाद करना ही चाहिए। किसी भी आपत्ति के आने से
पूर्व ही उससे बचने का उपाय करना बुद्धिमानी है। आपत्ति कभी बताकर नहीं आती, इसलिए इस कवच की उपयोगिता आपके लिए है।
इसका समुचित पाठ करके आप स्वयं सुरक्षित होइए तथा अपने परिवार को भी सुरक्षित
करें। जीवन में विपत्तियों से भागना कायरता है। उनका साहस पूर्वक मुकाबला इन्हीं
उपायों से किया जाता है। आप भी ऐसा कर सकते हैं।
कवच साधना विधान :-----------
यह साधना निखिल जयन्ती, गुरु पूर्णिमा या निखिल संन्यास दिवस
से आरम्भ की जा सकती है। इसके अतिरिक्त इसे किसी भी सोमवार, मंगलवार या गुरूवार से भी शुरू किया जा
सकता है। यह ११ दिन की साधना है, जिसमें
इस कवच के नित्य १०८ पाठ करना आवश्यक है।
साधक को चाहिए कि वह प्रातःकाल
ब्रह्ममुहूर्त में अथवा रात्रि काल में स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व या उत्तर
दिशा की ओर मुख करके स्वच्छ आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर पीला या लाल
वस्त्र बिछाकर उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र स्थापित कर दें। इसके साथ ही
धूप-दीप प्रज्ज्वलित कर दें।
सर्वप्रथम भगवान गणपतिजी का स्मरण करके
सामान्य पूजन करें। फिर "ॐ वक्रतुण्डाय हुम् फट्" मन्त्र की एक माला जाप करें और भगवान
गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
तदुपरान्त पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का
स्मरण करके सामान्य पूजन करें। फिर गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर
सद्गुरुदेवजी से निखिलेश्वरानन्द सुरक्षा कवच साधना सम्पन्न करने के लिए मानसिक
रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।
इसके बाद दाहिने हाथ में जल, कुमकुम तथा अक्षत लेकर निम्नानुसार
संकल्प करें -----
ॐ
विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महाप्रभावस्य द्वितीय परार्धे
श्वेतवाराहकल्पे भरतखण्डे पुण्य क्षेत्रे अमुक गोत्रीयः (अपना गोत्र बोलें) अमुक
शर्मा हं (अपना नाम बोलें) अस्य श्रीनिखिलेश्वरानन्द सुरक्षा कवचस्य सर्व आपद्
विनाशाय पाठं अहं करिष्ये।
और फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।
तत्पश्चात दोनों हाथ जोड़कर
निम्नानुसार ध्यान करें -----
ॐ आनन्दमानन्द करं
प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपं।
योगीन्द्रमीड्यं भवरोगवैद्यं श्रीमद्गुरुं
नित्यमहं नमामि।।
इस प्रकार ध्यान के पश्चात
श्रीनिखिलेश्वरानन्द सुरक्षा कवच के १०८ पाठ सम्पन्न करें -----
मूल कवचम्
ॐ शिरो मे पातु निखिलः सर्व
सम्पत् यशस्करः।
नेत्रे पातु निरालम्बः नर चित्त
प्रमोदकः।।१।।
श्रुतौ रक्षेत् सुसंवैद्यः दुःख-ताप
निवारकः।
नासिके च द्वयं पातु नित्यं पातु
निरंजनः।।२।।
गण्डौ पातु गणाध्यक्षः गणेशः गणनायकः।
मस्तकं परमोदारः पातु च परिनिष्ठितः।।३।।
जिह्वां रक्षेत् जगज्येष्ठः जगन्मंगलदायकः।
वाचं मे पातु विश्रब्धः वेद वैद्य
विशारदः।।४।।
कण्ठदेशं कलानाथः नित्य कल्पः नियामकः।
बाहु मूलं सदा पातु ब्रह्माण्डस्य च
नायकः।।५।।
कुमुदमाली करौ पातु काव्यशास्त्र कलात्मकः।
हृदयं हरि प्रियः पातु अंशौ च अखिलाधरः।।६।।
नाभिं "निं" सदा रक्षेत् सर्वांगं
सर्वसन्धिषु।
गृहे अरण्ये सदा पायात् दुष्ट दैव
विघातकः।।७।।
मुखं पातु महोपायः महोल्लासः महातपः।
कमनीयः कटिं रक्षेत् कनकांगः कलाधरः।।८।।
वाचं मुखं पदं रक्षेत् विश्वकर्मा विशोधनः।
लिंगं लोकोत्तरः पातु लोहांगः लोक
विश्रुतः।।९।।
मूष्क द्वयं महामायः रक्षेच्च मनमोहनः।
जंघायुग्मं सदा पातु महातेजः महातपः।।१०।।
पृष्ठं पातु च पूतात्मा पुण्यतीर्थ
निषेवितः।
जिह्वां च जपोपेतः गुल्फौ च गण सेवितः।।११।।
पादोर्ध्वे सदा पातु पुत्र-पौत्र विवर्धनः।
रक्त विन्दून् प्ररक्षेच्च राजीवायतलोचनः।।१२।।
मनो मे पातु "खिं" बीजं सर्व दिक्
च दिशां पतिः।
"लं" बीजं सदा पातु
बुद्धीन्द्रियं वचांसि मे।।१३।।
फलश्रुति
राजकार्ये विवादे च पंच वारं पठेत् तु यः।
सर्वत्र विजय भूतिः नात्र संशय संशयः।।१।।
सर्वकार्ये सभामध्ये अष्ट वारं पठेत् तु यः।
सर्वसिद्धिः भवेत् शीघ्रं आपदुद्धारकं हि
तत्।।२।।
इदं तु कवचं पुण्यं यः पठेत् गुरु सन्निधौ।
तस्य सर्वत्र रक्षा स्यात् नात्र काचित्
विचारणा।।३।।
पहले पाठ में मूल कवच और फलश्रुति दोनों
का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल कवच का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः
मूल कवच एवं फलश्रुति दोनों का पाठ करें।
एक सौ आठ पाठ पूरे होने के पश्चात एक
आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप (पाठ) पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी को ही समर्पित कर दें।
इस प्रकार नित्य ११ दिन तक यह साधना सम्पन्न करें।
जब आप किसी भी साधना को करते हैं तो यह
आवश्यक है कि आप मूल साधना को कम-से-कम ४-५ बार करें और उसके बाद उसकी निरन्तरता
बनाए रखने के लिए नित्य कवच या मन्त्र का कुछ मात्रा में पाठ या जाप करें।
विशेषतया कवच या स्तोत्र आदि की सिद्धि १००० पाठ से हो जाती है और इस तरह ४-५ बार
में कुल चार या पाँच हजार पाठ सम्पन्न हो जाते हैं। कुछ कवचों और स्तोत्रों में
उनकी पाठ संख्या दी गई होती है। इन सबके बाद ही आप कवच या स्तोत्र में लिखे प्रयोग
आदि को करने की पात्रता अर्जित करते हैं।
आपकी साधना सफल हो और आपको पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का पूर्ण
आशीर्वाद प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए
ऐसी ही कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिलजी
को आदेश आदेश आदेश।।।
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