मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018
साबर लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग
रविवार, 28 अक्टूबर 2018
दीपावली के अचूक प्रयोग (भाग-२)
दीपावली
के अचूक प्रयोग (भाग-२)
पञ्च दिवसीय दीपावली महापर्व निकट ही है।
इसका आरम्भ ५ नवम्बर २०१८ से हो रहा है और इसका समापन ९ नवम्बर २०१८ को होगा। आप
सभी को दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीवाली, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता
है, साल का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है। दीवाली उत्सव
धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज पर समाप्त होता है। अधिकतर प्रान्तों में
दीवाली की अवधि पाँच दिनों की होती है, जबकि महाराष्ट्र
में दीवाली उत्सव एक दिन पहले गोवत्स द्वादशी के दिन शुरू हो जाता है।
इन पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में विभिन्न अनुष्ठानों का पालन किया जाता
है और देवी लक्ष्मी के साथ-साथ कई अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है। हालाँकि
दीवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी सबसे महत्वपूर्ण देवी होती हैं। पाँच दिनों के
दीवाली उत्सव में अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है और इसे लक्ष्मी
पूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा और दीवाली पूजा के नाम से जाना
जाता है।
दीवाली पूजा केवल परिवारों में ही नहीं, बल्कि
कार्यालयों में भी की जाती है। पारम्परिक हिन्दु व्यवसायियों के लिए दीवाली पूजा
का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस दिन स्याही की बोतल, कलम और नये बही-खातों की पूजा की जाती है। दवात और लेखनी पर देवी महाकाली
की पूजा कर दवात और लेखनी को पवित्र किया जाता है और नये बही-खातों पर देवी
सरस्वती की पूजा कर बही-खातों को भी पवित्र किया जाता है।
दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का
होता है। सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष के समय व्याप्त
अमावस्या तिथि दीवाली पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है। अतः दीवाली पूजा का
दिन अमावस्या और प्रदोष के इस योग पर ही निर्धारित किया जाता है। इसलिए प्रदोष काल
का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेस्ठ होता है और यदि यह मुहूर्त एक घटी के
लिए भी उपलब्ध हो तो भी इसे पूजा के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
४. पारद लक्ष्मी प्रयोग
कोई भी व्यक्ति कभी दुर्भाग्यशाली नहीं होता है। सारा खेल समय का है। फिर
भी यदि आपके मन में यह बात घर कर गई है कि आप दुर्भाग्यशाली हैं तो आप दीपावली की
रात्रि में अपने घर में पारद की माँ लक्ष्मी की मूर्ति को स्थान दें।
सर्वप्रथम आप किसी पाटे (बाजोट) पर लाल रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी
से रँगे पीले चावलों से “स्वस्तिक” बनाएं। स्वस्तिक के ऊपर ताँबे की प्लेट में हल्दी से ही “श्रीं” लिखकर गुलाब पुष्प की पँखुड़ियों पर माँ पारदेश्वरी
लक्ष्मी को स्थान दें तथा दीपावली की रात्रि से लेकर लगातार ४० दिन तक ११ माला
नित्य निम्न मन्त्र का जाप करें -----
मन्त्र
:----------
॥ ॐ ऐं
ऐं श्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं पारदेश्वरी सिद्धि ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं ऐं ऐं ॐ ॥
OM AYEIM AYEIM SHREEM
SHREEM HREEM HREEM PAARDESHWARI SIDDHI HREEM HREEM SHREEM SHREEM AYEIM AYEIM
OM.
४० वें दिन किसी सुहागिन को भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा आदि भेंट देकर
सन्तुष्ट करें।
पारदेश्वरी महालक्ष्मी अपने उपासकों को धन, ऐश्वर्य, भूमि, मान-सम्मान, पुत्र,
बन्धु-बान्धव, आयु एवं बुद्धि प्रदान
करती है। वह स्वयं शक्ति स्वरूपा है।
इस उपाय से आपके मन का सारा शक निकल जाएगा तथा आप स्वयं ही स्वीकार करेंगे
कि आप से बड़ा कोई भाग्यशाली नहीं है।
५. मोती शंख प्रयोग
मोती शंख भी सामान्य शंख जैसा ही होता है, परन्तु
इसमें चमक मोती जैसी होती है। इसीलिए इसको मोती शंख कहा जाता है।
दीपावली की रात्रि में दीपावली पूजन के साथ ही मोती शंख और एक चाँदी के सिक्के का भी पूजन करें। जब दीपावली पूजन के बाद
सभी लोग पूजास्थल से हट जाएं तो आप मोती शंख को
उठाकर माँ भगवती लक्ष्मी से अपनी सम्पन्नता का निवेदन करते हुए शंख को अपने माथे
से लगाकर उसमें चाँदी का सिक्का रख दें और “श्रीदक्षिणलक्ष्मी स्तोत्र” का ५१ बार पाठ करें -------
ॐ
त्रैलोक्य पूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे।
यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि
स्थिरा॥
कमला चञ्चला लक्ष्मीश्चला
भूतिर्हरिप्रिया।
पद्मा पद्मालया सम्पदुच्चैः
श्रीपद्मधारिणी॥
द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मीं
सम्पूज्य यः पठेत्।
स्थिरा लक्ष्मीः भवेतस्य
पुत्रदारादिभिः सह॥
फिर निम्न मन्त्र का १०८ बार जाप करें -------
मन्त्र
:---------------
॥ ॐ
श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
ॐ ॥
OM SHREEM HREEM SHREEM
KAMALE KAMALAALAYE PRASEED-PRASEED SHREEM HREEM SHREEM MAHAALAKSHMYEI NAMAH OM.
प्रत्येक मन्त्र जाप के साथ ही मोती शंख में एक चावल का दाना डालते जाएं।
इसमें यह ध्यान रखें कि चावल का दाना साबुत हो, खण्डित
न हो।
जब मन्त्र जाप पूर्ण हो जाए तो शंख को लाल वस्त्र में लपेटकर पूजास्थल में
ही रख दें। अगले दिन सांध्यकाल में फिर माँ भगवती लक्ष्मी की पूजनकर यही प्रक्रिया
अपनाएं। यह प्रक्रिया तब तक चलेगी, जब तक मोती शंख
चावलों से भर न जाए।
जिस दिन शंख चावलों से भर जाए, उस दिन उसे उसी
लाल वस्त्र में बाँधकर पुनः श्रीलक्ष्मी स्तोत्र का ५१ बार पाठ करके अपने धन रखने के स्थान पर रख दें। फिर २१ दिन तक नित्य
अगरबत्ती अवश्य दिखाएं।
इस प्रयोग से आपको माँ भगवती लक्ष्मी की कृपा तो अवश्य प्राप्त होगी, साथ ही आपका निवास वास्तुदोष से भी मुक्त रहेगा।
६. कनकधारा प्रयोग
अब श्री कनकधारा यन्त्र से सम्बन्धित एक प्रयोग प्रस्तुत किया जा रहा है।
आर्थिक समृद्धि के लिए यह यन्त्र बहुत अधिक शक्तिशाली है। इसकी स्थापना का तरीका
भी बहुत ही सामान्य रूप से बताया जा रहा है।
दीपावली की रात्रि में आप पूजन के समय श्री कनकधारा यन्त्र को पंचतत्व
(दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान करवाकर उसका भी पूजन करें। फिर लाल वस्त्र पर चावल
की ढेरी बनाकर उस पर इस यन्त्र को स्थापित करें। यन्त्र को कुमकुम से तिलक करके
दीप, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। इसके साथ ही २१ आँवले
समर्पित करें। आँवले सूखे अथवा हरे, कैसे भी हो सकते
हैं।
इसके बाद आप रुद्राक्ष अथवा कमलगट्टे की माला से निम्न मन्त्र का ११ माला
जाप करें -------
मन्त्र
:-----------
॥ ॐ
ह्रीं श्रीं कनकधारायै श्रीं ह्रीं नमः ॥
OM HREEM SHREEM
KANAKDHAARAAYEI SHREEM HREEM NAMAH.
तत्पश्चात “श्रीकनकधारा स्तोत्र” के ११ पाठ सम्पन्न करें -------
॥ श्रीकनकधारा
स्तोत्रम् ॥
ॐ अङ्गं
हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताऽखिल
विभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः॥१॥
मुग्धा
मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गताऽगतानि।
माला
दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः॥२॥
विश्वामरेन्द्रपद
विभ्रमदानदक्षम् आनन्द हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्
निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धं इन्दीवरोदर सहोदरं इन्दिरायाः॥३॥
आमीलिताक्षं
अधिगम्य मुदा मुकुन्दं आनन्दकन्दं अनिमेषं अनङ्गतन्त्रम्।
आकेकरस्थित
कनीनिकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः॥४॥
बाह्वन्तरे
मधुजितः श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा
भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणं आवहतु मे कमलालयायाः॥५॥
कालाम्बुदालि
ललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
मातुः
समस्त जगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः॥६॥
प्राप्तं
पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन्।
मय्यापतेत्
तदिह मन्थर मीक्षणार्धं मन्दालसञ्च मकरालय कन्यकायाः॥७॥
दद्याद्
दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां अस्मिन्नकिञ्चन विहङ्ग शिशौ विषण्णे।
दुष्कर्म-घर्ममपनीय
चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयन अम्बुवाहः॥८॥
इष्टा
विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः
प्रहृष्ट कमलोदर दीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टरायाः॥९॥
गीर्देवतेति
गरुडध्वज सुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु
संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैक गुरोस्तरुण्यै॥१०॥
श्रुत्यै
नमोऽस्तु शुभकर्म-फलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्त्यै
नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायै पुष्टयै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम वल्लभायै॥११॥
नमोऽस्तु
नालीक निभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधि जन्म भूत्यै।
नमोऽस्तु
सोमामृत सोदरायै नमोऽस्तु नारायण वल्लभायै॥१२॥
नमोऽस्तु
हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नायिकायै।
नमोऽस्तु
देवादिदयापरायै नमोऽस्तु शार्ङ्गायुध वल्लभायै॥१३॥
नमोऽस्तु
देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरस स्थितायै।
नमोऽस्तु
लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै॥१४॥
नमोऽस्तु
कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत् भुवनप्रसूत्यै।
नमोऽस्तु
देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मज वल्लभायै॥१५॥
सम्पत्कराणि
सकलेन्द्रिय नन्दनानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्
वन्दनानि दुरिताहरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु मान्ये॥१६॥
यत्कटाक्ष
समुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थ सम्पदः।
सन्तनोति
वचनाऽङ्ग मानसैस्त्वां मुरारि हृदयेश्वरीं भजे॥१७॥
सरसिज
निलये सरोजहस्ते धवलतमांशुक गन्ध माल्यशोभे।
भगवति
हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥१८॥
दिग्घस्तिभिः
कनककुम्भमुखाव सृष्टस्वर्वाहिनी विमलचारु जलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि
जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणीं अमृताब्धि पुत्रीम्॥१९॥
कमले
कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूर तरंगि तैरपाङ्गैः।
अवलोकय
माम् अकिञ्चनानां प्रथमं पात्रं अकृत्रिमं दयायाः॥२०॥
स्तुवन्ति
ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका
गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुध भाविताशयाः॥२१॥
॥ श्रीभगवत्पादशङ्कराचार्यविरचितं
श्रीकनकधारा स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
इसके बाद दूसरे दिन से नित्य २१ दिनों तक एक माला मन्त्र जाप एवं एक पाठ
कनकधारा स्तोत्र का करते रहें। फिर आप इसका चमत्कार देखें।
इस यन्त्र की एक विशेषता होती है कि इस यन्त्र पर जितने अधिक लोगों की
दृष्टि पड़ती है, यह उतना ही अधिक प्रभावी फल देता है।
आपके लिए यह दीपावली महापर्व मंगलमय हो और यह दीपावली आप के जीवन में
धन-धान्य, सुख-समृद्धि, यश
एवं अपार खुशियाँ लेकर आए। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप
सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को
आदेश आदेश आदेश ॥
शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018
दीपावली के अचूक प्रयोग (भाग-१)
दीपावली के अचूक प्रयोग (भाग-१)
पञ्च दिवसीय दीपावली
महापर्व निकट ही है। इसका आरम्भ ५ नवम्बर २०१८ से हो रहा है और इसका समापन ९
नवम्बर २०१८ को होगा। आप सभी को दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी
हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीपावली या दीवाली अर्थात “रोशनी का त्योहार”
शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू
त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रभावशाली त्योहारों में से एक है। यह
त्योहार आध्यात्मिक रूप से अन्धकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक
और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् “अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए” यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा
जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप
में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के
वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से
प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए।
कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब
से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलेण्डर के अनुसार अक्टूबर या नवम्बर महीने
में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की
सदा जीत होती है, झूठ का नाश होता है। दीवाली यही
चरितार्थ करती है − असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह
पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं।
लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य
आरम्भ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते
हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झण्डियों से सजाया जाता है। दीपावली से
पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे
नज़र आते हैं।
लक्ष्मी का अर्थ हमारे शास्त्रों में केवल मात्र धन से ही सम्बन्धित नहीं
है, अपितु जीवन के विविध आयाम धन-धान्य, गृहस्थ,आरोग्य, शान्ति, पुत्र, पौत्र, शत्रु-विनाश, यश, समृद्धि, प्रतिष्ठा, भवन से भी है। यही कारण है कि
लक्ष्मी को अनेकानेक नामों से सम्बोधित किया गया है और उनके प्रत्येक स्वरूप का
पूजन भी वर्णित किया गया है। दीपावली का पर्व महालक्ष्मी की साधना का पर्व है, इस अवसर पर लक्ष्मी के ही विभिन्न स्वरूपों से सम्बन्धित प्रयोग प्रस्तुत
हैं, जिन्हें सम्पन्न कर आप अवश्य ही लाभ प्राप्त कर
सकेंगे और अपने जीवन की समस्याओं को इन लघु प्रयोगों के माध्यम से समाप्त कर
सकेंगे।
१. लक्ष्मीप्रदाता गणपति प्रयोग
दीपावली की रात्रि को स्थिर लग्न में एक चौकी पर पारद गणेश की प्रतिमा
स्थापित करे। तत्पश्चात सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करके गुरुमन्त्र
की चार माला जाप करे। फिर सद्गुरुदेवजी से लक्ष्मीप्रदाता गणपति प्रयोग सम्पन्न
करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए प्रार्थना
करे।
उसके बाद गणेश प्रतिमा का यथा विधि पूजन करें और भोग में मोदक (लड्डू)
अर्पण करे। तदुपरान्त भगवान गणपतिजी का ध्यान करके निम्नलिखित लक्ष्मीप्रदाता
गणपति स्तोत्र के १०८ पाठ सम्पन्न करे -------
॥
लक्ष्मीप्रदाता गणपति स्तोत्र ॥
ॐ नमो
विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय
परमात्मने॥
लम्बोदरं महावीर्यं
नागयज्ञोपशोभितम्।
अर्धचन्द्रधरं देवं
विघ्नव्यूहविनाशनम्॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं
ह्रौं ह्रः हेरम्बाय नमो नमः।
सर्वसिद्धिप्रदोऽसि त्वं
सिद्धिबुद्धि प्रदो भव॥
चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं
मोदकप्रिय :।
सिन्दूरारूणवस्त्रैश्च पूजितो वरदायकः॥
॥
फलश्रुति ॥
इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद भक्तिमान नरः।
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति॥
१०८ स्तोत्र पाठ के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त स्तोत्र जाप
समर्पित कर दें।
अन्त में विघ्न नाशक गणनायक से अपनी आर्थिक मनोकामना की पूर्ति के लिए
प्रार्थना करें। १०८ पाठ के पश्चात प्रत्येक दिन प्रातः काल इस स्तोत्र का ५ बार
पाठ करते रहे। इस स्तोत्र का पाठ करने से घर में
धन-धान्य की वृद्धि होती है तथा लक्ष्मी कभी भी उस साधक को एवं उसके घर को छोड़कर
पलायन नहीं करती! यह कथन मिथ्या नहीं है!
इस स्तोत्र का पाठ एक वर्ष तक अर्थात अगली दीपावली तक करते रहे, आपकी आय एवं संचित धन में निश्चय ही वृद्धि होगी। यह मेरा स्व-अनुभूत
प्रयोग है।
२. महालक्ष्मी मन्त्र प्रयोग
मन्त्र
:----------
॥ ॐ ऐं
श्रीं महालक्ष्म्यै कमलधारिण्यै गरुड़वाहिन्यै श्रीं ऐं नमः ॥
OM AYIEM SHREEM
MAHAALAKSHMYEI KAMALDHAARINYEI GARUDVAAHINYEI SHREEM AYIEM NAMAH.
यह मन्त्र अत्यन्त ही श्रेष्ठ मन्त्र है, इस मन्त्र के जप को किसी शुक्रवार से प्रारम्भ करना चाहिए।
सबसे पहले किसी चाँदी अथवा काँसे की थाली में सवा पाव चावल बिछाकर उस पर
नारियल का एक गोला जल से स्नान करा कर रख दें। उस गोले के ऊपर श्वेत चन्दन से “श्रीं” बीज लिखकर गोले की पूजा करें। उस गोले पर
सफेद फूल चढ़ावे और दूध से बने प्रसाद का भोग लगावे।
इसके बाद वह थाली और उसमें रखे हुए चावल यथावत रहने दे और नित्य उसके
सामने १०८ बार उपरोक्त
महालक्ष्मी मन्त्र का जाप करें।
साधक जब तक दिए गए मन्त्र का जाप करे, तब तक घी
का दीपक अवश्य जलते रहना चाहिए। साधक साधना काल में श्वेत वस्त्र धारण करें, श्वेत आसन पर बैठे, “कमलगट्टे
की माला” से जाप करें और एक समय भोजन करें।
यदि साधक अनुष्ठान के रूप में इस मन्त्र का प्रयोग करना चाहे तो
महालक्ष्मी मन्त्र की १२५० मालाएँ अर्थात सवा लाख मन्त्र जाप करें और ४० दिन में
यह अनुष्ठान सम्पन्न कर ले। इसके बाद बादाम से १०८ आहुतियाँ इसी मन्त्र से दे।
इसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर चावल तथा गोला उसे दान कर दें तथा माला को
नदी में प्रवाहित कर दे।
यदि साधक अनुष्ठान के रूप में इस मन्त्र को नहीं करे तो नित्य एक माला
फेरे और इस प्रकार एक वर्ष पर्यन्त करे। वर्ष के अन्त में किसी एक ब्राह्मण को
भोजन करावे और वह थाली, चावल, गोला आदि उस ब्राह्मण को दान कर दे।
ऐसा करने पर साधक को मनोवांछित लक्ष्मी प्राप्त होती है, व्यापार में उन्नति होने लगती है तथा आर्थिक दृष्टि से पूर्णता और
सम्पन्नता प्राप्त होती है।
यह मन्त्र अत्यन्त श्रेष्ठ और व्यापार वृद्धि में विशेष रूप से सहायक बताया
गया है। दूसरे रूप में इसको “व्यापार लक्ष्मी मन्त्र”
भी कहते हैं। अतः यदि व्यापार नहीं हो रहा हो या व्यापार में बाधाएँ आ रही हो या
व्यापार में आर्थिक उन्नति नहीं हो रही हो तो यह मन्त्र और इसका अनुष्ठान विशेष
रूप से लाभदायक होता है।
३. श्रीयन्त्र साधना प्रयोग
धन प्राप्ति के लिए लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों की भिन्न-भिन्न रूप से
पूजा-आराधना की जाती है, जिनमें से सर्वाधिक तीव्र एवं
प्रभावी परिणाम श्रीयन्त्र की उपासना से
प्राप्त होता है। श्रीयन्त्र स्वयं लक्ष्मी स्वरूप होता है। जिस घर में अथवा जिस स्थान
पर पूजा घर में श्रीयन्त्र रखा हो तथा नित्य
प्रति उसका पूजन किया जाए तो वहाँ सभी प्रकार के आर्थिक कष्टों का शमन होकर माता
लक्ष्मी की कृपा से सभी प्रकार का धन वैभव प्राप्त होता है।
“श्रीयन्त्र” को
पञ्चामृत से स्नान कराकर लाल वस्त्र अथवा चाँदी की प्लेट में रखना चाहिए। यथाशक्ति
षोडशोपचार अथवा पंचोपचार पूजन करने के पश्चात सुगन्धित धूप-दीप एवं गौ-घृत का दीपक
जलाना चाहिए।
“श्रीयन्त्र” के
सम्मुख आसन पर बैठकर सर्वप्रथम विनियोग करना चाहिए -----
विनियोग
:---------
ॐ अस्य श्रीलक्ष्मी बीजमन्त्रस्य भृगु ऋषिः, निवृच्छन्दः, श्रीलक्ष्मीः देवता मम धनप्राप्तये जपे विनियोग।
विनियोग करने के पश्चात लक्ष्मी की ध्यान स्तुति करनी चाहिए -------
ध्यान
:----------
ॐ आसीना सरसीरुहे स्मितमुखी हस्ताब्जैः बिभ्रती,
दानं पदम्युगामये च वपुषा
सौदामिनी सन्निभा।
मुक्ताहार विराजमान
पृथुलोतुङ्गस्तनोद्भासिनी,
पायाद्वः कमला कटाक्ष
विभवैरानन्दयन्ती हरिम्॥
ध्यान स्तुति के बाद लक्ष्मी के नीचे दिए गए मन्त्र का
कमलगट्टे अथवा स्फटिक माला से ५१ मालाएँ जाप करना चाहिए -------
मन्त्र
:----------
॥ ॐ नमः
कमलवासिन्यै स्वाहा ॥
OM NAMAH
KAMALVAASINYEI SWAAHAA.
मन्त्र जप के पश्चात मिष्ठान्न का भोग लगाकर प्रसाद को कन्याओं को बाँटना
चाहिए। इस प्रकार श्रीयन्त्र का पूजन करना चाहिए तथा दूसरे दिन श्रीयन्त्र को पूजा घर में रख देना चाहिए। प्रतिदिन
ऊपर दिए गए लक्ष्मी मन्त्र की एक माला का जप करने से लक्ष्मी की कृपा अवश्य ही
प्राप्त होती है।
मन्त्र जप हेतु लक्ष्मी के अन्य मन्त्र का प्रयोग भी किया जा सकता है।
प्रतिदिन श्रीयन्त्र के सम्मुख गौ-घृत का दीपक एवं धूप-दीप मन्त्रोच्चार द्वारा
पूजन करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के धन-ऐश्वर्य का सुख सहज ही प्राप्त हो जाता
है।
आपके लिए यह दीपावली महापर्व मंगलमय हो और यह दीपावली आप के जीवन में
धन-धान्य, सुख-समृद्धि, यश
एवं अपार खुशियाँ लेकर आए। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप
सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को
आदेश आदेश आदेश ॥