रविवार, 11 मार्च 2018

सर्व दोषनाशक दुर्गा साधना

सर्व दोषनाशक दुर्गा साधना


                    वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह १८ मार्च २०१८ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७५ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          भगवती दुर्गा का रूप अपने आप में साधकों के मध्य हमेशा से ही अत्याधिक प्रचलित रहा है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है देवी दुर्गा। दुर्गा के कई रूपों की साधना तन्त्र ग्रन्थों में निहित है। देवी नित्य कल्याणमयी है तथा अपने साधकों पर अपनी आत्मीय दृष्टि सदैव रखती है।

                 जो दुर्गति का नाश करती हैं, वे ही भगवती दुर्गा है - इस बात का ज्ञान प्रत्येक साधक को है, किन्तु इस ज्ञान के उपरान्त भी क्यों नहीं सहज रूप से भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। इसका भी रहस्य "दुर्गा" शब्द के विवेचन से मिल जाता है। "दुःखेन अष्टांगयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्यते या सा दुर्गा" अर्थात जो अष्टांगयोग, कर्म और उपासना रूपी दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती है, वे ही भगवती दुर्गा है।

          दूसरी ओर यह भी नितान्त सत्य और आवश्यक है कि साधक अपने जीवन में दुर्गा की साधना मात्र एक साधना के रूप में ही नहीं वरन् प्रथम साधना के रूप में सिद्धिपूर्वक कर ले, क्योंकि जब तक भगवती दुर्गा की सिद्धि नहीं प्राप्त हो जाती, तब तक न तो जीवन के दुःख, तनाव, दारिद्रय, वैमनस्य आदि दुर्गतियों की समाप्ति होती है, न ही देवी साधना में प्रवेश का अधिकार मिल पाता है।

          इन्हीं दो सर्वथा विपरीत विचारों अर्थात भगवती दुर्गा की जीवन में परम आवश्यकता एवं भगवती दुर्गा की दुर्लभता का सामंजस्य करने की युक्ति ही नवरात्रि है और वह भी विशेष रूप से चैत्र नवरात्रि, क्योंकि इसी अवसर पर शिव-शक्ति के संयोग से वातावरण की चैतन्यता सामान्य दिनों से कुछ हटकर होती है। वसन्त पंचमी से प्रारम्भ होकर चैत्र नवरात्रि तक का सारा काल शिव-शक्ति के मिलन और आनन्द का पर्व ही है, जिसके ठीक मध्य में महाशिवरात्रि जैसा महापर्व आता है।

         साधकों ने इस प्रकार की अनेक कथाएँ पढ़ी-सुनी होंगी कि किसी अवसर विशेष पर भगवान शिव एवं माँ पार्वतीजी विचरण को निकले और माँ पार्वतीजी ने करूणार्द्र होकर भगवान शिव  से एक भक्त की सहायता करने के लिए प्रार्थना की तथा भगवान शिव को उसके भाग्य को विपरीत जाकर भी वैसा घटित भी करना पड़ा।

          ठीक इसी प्रकार भगवान शिव भी करूणार्द्र होकर भगवती से किसी असहाय, दुर्बल तथा दीन-हीन की मुक्ति की भी याचना करते ही हैं। भगवती दुर्गा के विषय में भगवान शिव की ही करूणा एवं युक्तियों से साधक का कल्याण हो पाता है।

         साधकों को एक सहज जिज्ञासा उत्पन्न हो सकती हैं कि माँ तो प्रत्येक दशा में करूणामय ही रहने वाली होती है, फिर उनकी दुर्गा स्वरूप में आराधना इतनी दुर्गम क्यों है? सहज साध्य क्यों नहीं है?

          इसका उत्तर भी स्पष्ट है कि भगवती दुर्गा अपने आप में तप एवं उग्रता की प्रचण्डमूर्ति है, जो भावगम्य कम, साधनागम्य अधिक है। इसका अत्यन्त सूक्ष्म रहस्य यह है कि भगवती दुर्गा अपने साधक को अपने सदृश ही बना देना चाहती है, क्योंकि जो जितना अधिक इष्टमय होगा, वह उतना ही अधिक अपने इष्ट के गुणों एवं तेजस्विता को ग्रहण कर पाएगा।

          साधना कोई जटिल रहस्य नहीं होता। जो जितना अधिक देवतामय या देवीमय बनता जाता है, वह साधना में उतना ही अधिक सफल होता जाता है।

          भगवती की साधना करना जीवन का एक अत्यधिक उच्च सोपान है। व्यक्ति अपने कर्म दोषों से जब तक मुक्त नहीं होता, तब तक उन्नति की गति मन्द रूप से ही चलती है, चाहे वह भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक क्षेत्र हो। भौतिक रूप में चाहे हम कर्मफलों को प्राप्त कर दोषों का निवारण एक बार कर भी ले, लेकिन मानसिक दोषों तथा मन में जो उन दोषों का अंश रह गया है, उसका शमन भी उतना ही ज़रुरी है जितना भौतिक दोषों का निवारण।

          कई बार व्यक्ति अपने अत्यधिक परिश्रम के बाद भी सफलता को प्राप्त नहीं कर पाता है या फिर कोई न कोई बाधा व्यक्ति के सामने आ जाती है या फिर परिवारजनों से अचानक ही अनबन होती रहती है। इन सब के पीछे कहीं न कहीं व्यक्ति के वे दोष शामिल होते हैं, जो कि पाप कर्मों के आचरण से उन पर हावी हो जाते हैं, चाहे वह इस जन्म से सम्बन्धित हो या पूर्व जन्म के सन्दर्भ में।

          कर्म की गति न्यारी है, लेकिन साधना का भी अपने आप में एक विशेष महत्व है। साधना के माध्यम से हम अपने दोषों की समाप्ति कर सकते हैं, निवृति कर सकते हैं। इस प्रकार की साधनाओं में माँ भगवती की साधनाएँ आधार रूप रही है। भगवती की साधना मातृ स्वरुप में ही ज्यादातर की जाती है।

           इस महत्वपूर्ण साधना को सम्पन्न करने पर साधक की भौतिक तथा आध्यात्मिक गति मन्द से तीव्र हो जाती है, समस्त बाधाओं का निराकारण होता है तथा व्यक्ति अपने दोषों से मुक्त होकर निर्मल चित्तयुक्त बन जाता है। आगे के सभी कार्यों में देवी साधक की सहायता करती है तथा साधक का सतत् कल्याण होता रहता है।

साधना विधान :-----------

           इस साधना को करने के लिए साधक के पास शुद्ध पारद दुर्गा विग्रह हो तो ज्यादा अच्छा है, लेकिन यह सम्भव नहीं हो तो साधक को देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को अपने सामने स्थापित करना चाहिए।

           इस साधना को नवरात्रि काल में सम्पन्न किया जाए तो अधिक उचित रहता है। फिर भी साधक इस साधना को किसी रविवार से शुरू कर सकता है। रात्रिकाल में ११ बजे के बाद इस साधना को शुरू करना चाहिए। साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहन लें और लाल आसन पर बैठ जाएं। साधक का मुख उत्तर दिशा की ओर रहे। सामने बाजोट या चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर पारद दुर्गा विग्रह अथवा माँ दुर्गा का चित्र तथा गुरु चित्र या गुरु यन्त्र स्थापित कर दे।

          सर्वप्रथम साधक पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करके सामान्य पूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करे। फिर साधक सद्गुरुदेवजी से सर्व दोषनाशक दुर्गा साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          तदुपरान्त साधक भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके किसी भी भैरव मन्त्र का एक माला जाप करे और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

         संकल्प लेने के बाद साधक माँ भगवती दुर्गा देवी का सामान्य पूजन करे तथा नैवेद्य में कोई भी मिष्ठान्न अर्पित करें।

         संक्षिप्त पूजन के उपरान्त साधक निम्न मन्त्र की मूँगा माला से २४ माला जाप करे, साधक चाहे तो ५४ माला भी जाप कर सकता है।

मूल मन्त्र :-----------

          ।। ॐ दुं सर्वदोष शमनाय सिंहवासिनी नमः ।।

OM DUM SARV DOSH SHAMANAAY SINHAVAASINI NAMAH.

          मन्त्र जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती दुर्गा को समर्पित कर दें।

          यह साधना क्रम निरन्तर ११ दिनों तक रहे। नवरात्रि के दिनों में यह विधान नवमी तिथि तक सम्पन्न करे। सम्भव हो तो अन्तिम दिन साधक को मन्त्र जाप के बाद शुद्ध घी की १०८ आहुति इसी मन्त्र से अग्नि में प्रदान करे।

          साधना काल में कमल की सुगन्ध आने लगती है तथा सौभाग्यशाली साधकों को देवी बिम्बात्मक रूप से दर्शन भी देती है। साधना के दिनों में ही उत्तरोत्तर साधक का चित्त निर्मलता की ओर अग्रसर होता रहता है, जिसे साधक स्पष्ट रूप से अनुभव कर पाएगा।

                  आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

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