संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग
हनुमान जयन्ती समीप ही है। यह इस बार
३१ मार्च २०१८ को आ रही है। आप सभी को हनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत
हार्दिक शुभकामनाएँ!
हनुमानजी अपने आप में पूर्ण समर्थ, सक्षम और सर्व व्यापक देवता हैं। श्री
तुलसीदासजी स्वयं हनुमानजी के ऋणी हैं --- श्रीराम दर्शन और रोग-मुक्ति दोनों के
लिए। हनुमान के चरित्र में ऐसा कोई रहस्य अवश्य है, जिससे कि साधकों को तुरन्त सफलता प्राप्त हो जाती है। मैंने जीवन में
यह अनुभव किया है कि किसी भी प्रकार की रोग-मुक्ति के लिए हनुमान साधना अपने आप
में पूर्ण और श्रेष्ठ साधना है।
मानसिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार के
रोगों को समाप्त करने के लिए, जीवन
में बुद्धि, बल, साहस
एवं निर्भयता प्राप्त करने के लिए हनुमान साधना से बढ़कर कोई साधना नहीं है। आज का
युग चंचल प्रवृत्ति का युग है। हम मन, वाणी
और कर्म से चंचल एवं अधीर हो गए हैं। हम में पौरुषता और कर्मठता होनी चाहिए। वह आज
के युग में कहीं पर भी दिखाई नहीं देती, इसीलिए
जीवन में संयम प्राप्त करने के लिए और सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान करने के
लिए हनुमान साधना सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय है।
हनुमान जो अणिमा आदि समस्त सिद्धियों को
जानने वाले हैं, जो योग के क्षेत्र में अपने आप में
पूर्ण हैं, जो सेवा की दृष्टि से पूरे संसार के
लिए उदाहरण हैं और जो पूर्ण धन, यश
तथा वैभव प्रदान करने में समर्थ हैं -----
अष्ट सिद्धि नवनिधि के
दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
वास्तव में ही हनुमान चंचल चित्त को
स्थिर बनाने में समर्थ हैं। योग के द्वारा जो शक्ति और साहस प्राप्त होता है, वह हनुमानजी के द्वारा ही सम्भव है।
मैंने अपने जीवन में अनेकों बार अनुभव किया है कि आर्थिक उन्नति के लिए, नवनिधि, अष्ट सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री हनुमानजी से बढ़कर और कोई
समर्थ साधना नहीं है। चाहे कितना ही ऋण हो, यदि
आगे दिया हुआ प्रयोग एक बार भी सम्पन्न कर लिया जाए तो निश्चय ही व्यक्ति ऋण से
कुछ ही समय में मुक्त हो जाता है।
अनेक बार तो मुझे ऐसा लगा कि यह प्रयोग
होते-होते कार्य की सिद्धि होने लग जाती है। जीवन में बाधाएँ तो आती ही रहती है।
परन्तु पूरे संसार में जितने प्रकार की साधनाएँ हैं, उन समस्त साधनाओं में इस कार्य के लिए हनुमानजी की साधना सबसे
श्रेष्ठ और प्रमुख है। मेरे अपने जीवन में जब-जब भी बाधाएँ आईं, मैंने इसी प्रयोग को सम्पन्न किया और
सम्पन्न होते-होते ही वातावरण कुछ इस प्रकार से बदल गया कि जो व्यक्ति प्रतिकूल थे, जो अधिकारी बात ही सुनना पसन्द नहीं
करते थे, वे ही व्यक्ति और अधिकारी अनुकूलता
प्रदर्शित करने लगे तथा आगे बढ़कर कार्य कर देते हैं। रोग-मुक्ति के लिए तो यह
प्रयोग अपने आप में अद्वितीय है। मेरा तो अनुभव अब यह बना है कि चाहे कितना ही
भीषण रोग हो, चाहे भौतिक व दैविक बाधाएँ हों, इस प्रयोग को सम्पन्न करने से उनका
समाधान अवश्य हो जाता है।
यह प्रयोग मुझे बहुत समय पहले एक योगी से प्राप्त हुआ
था। यह प्रयोग दिखने में अत्यन्त सरल है, परन्तु इसका प्रभाव अपने आप में अचूक है। साधक को चाहिए कि हनुमान
जयन्ती या हनुमान अष्टमी या मंगलवार की रात्रि को इस प्रयोग को निष्ठापूर्वक
सम्पन्न करें।
मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक साधक आए हैं, जो प्रत्येक मंगलवार की रात्रि को यह प्रयोग सम्पन्न करते हैं और मैंने अनुभव किया है कि उनके जीवन में कभी किसी प्रकार की बाधा व्याप्त नहीं होती, भूत-प्रेत, पिशाच आदि का भय नहीं रहता, गृह बाधा या पितृदोष अपने आप में ही समाप्त हो जाते हैं और बहुत तेजी से उसका ऋण भी समाप्त होने लग जाता है तथा उसकी निरन्तर आर्थिक उन्नति होने लगती है।
साधना प्रयोग विधान :-----------
इस प्रयोग को हनुमान जयन्ती, हनुमान अष्टमी अथवा किसी भी मंगलवार के
दिन सम्पन्न किया जा सकता है। जिस दिन यह प्रयोग सम्पन्न करना हो, साधक स्वयं लाल धोती पहिनकर दक्षिण
दिशा की ओर मुख कर लाल आसन पर बैठ जाएं और सामने किसी बाजोट (चौकी) पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान महावीर हनुमानजी का चित्र या हनुमान यन्त्र या विग्रह स्थापित कर दे। उसके बाद धूप-अगरबत्ती जला लें।
इसके बाद साधक को चाहिए कि वह संकल्प अवश्य लें। संकल्प में अपनी जो भी समस्या हो, जिस प्रकार की भी बाधा हो, जिसके निवारण के लिए आप यह प्रयोग कर रहे हैं, उसका उल्लेख अवश्य करें और उसकी निवृत्ति के लिए हनुमानजी से प्रार्थना करें।
फिर साधक सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम एक माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।
फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।
इसके उपरान्त हनुमान यन्त्र या विग्रह या चित्र का सामान्य पूजन करें और लाल रंग के पुष्प चढ़ाएं। किसी भी मिष्ठान्न का भोग लगाएं। इसके बाद चित्र या विग्रह के सामने पाँच दीपक तेल के लगावें, उनमें किसी भी प्रकार के तेल का प्रयोग किया जा सकता है और सामने एक
ताँबे के लोटे में पानी भरकर रख दें। फिर
हनुमानजी का ध्यान करें -----
ॐ मनोजवं मारूततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानर यूथ
मुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।
ध्यान सम्पन्न करने के बाद एक बार पुनः
हनुमानजी के सामने अपनी समस्या का निवेदन करें और फिर निम्न प्रकार से अष्टक का
उच्चारण करें।
कार्यसिद्धि के लिए एक ही रात्रि में
१०८ बार संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ होना आवश्यक है।
संकटमोचन हनुमानाष्टक
॥ मत्तगयन्द ॥
बाल समय रबि भक्षी लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥
अंगद के संग लेन गए सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब लाए सिया सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥
रावण त्रास दई सिय को सब राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाए महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥
रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥
बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥
काज किये बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥
दोहा
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥
पाठ सम्पन्न होने के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप एवं पूजन समर्पित कर दें। लोटे में जो
जल रखा हुआ है, वह जल घर में छिड़क दें या घर में किसी
को रोग हो तो उसे वह जल पिला दें।
यह निश्चित समझे कि दूसरे दिन सुबह से
ही अनुकूलता प्रारम्भ हो जाती है, किसी
भी प्रकार का संकट निश्चय ही समाप्त हो जाता है।
आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना
पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण
कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।
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