शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

रावणकृत लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग

रावणकृत लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग



                 पंच दिवसीय दीपावली महापर्व समीप ही है। इस वर्ष १७ अक्टूबर २०१७ धन तेरस से इसका आरम्भ हो रहा है और २१ अक्टूबर २०१७ को भाई दूज के दिन इसका समापन होगा। आप सभी को दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

         रावण का नाम सुनते ही आपके मन में ख्याल आता होगा कि यह तो वही है, जिसने माता सीता का अपहरण किया था और खुद का सर्वनाश कर लिया।

         रावण रामायण का एक केन्द्रीय प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन भी था। किसी भी कृति के लिए नायक के साथ ही सशक्त खलनायक का होना अति आवश्यक है। रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है। किञ्चित मान्यतानुसार रावण में अनेक गुण भी थे। सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा ऋषि का पुत्र रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकाण्ड विद्वान पण्डित एवं महाज्ञानी था। रावण के शासन काल में लङ्का का वैभव अपने चरम पर था, इसीलिए उसकी लङ्कानगरी को सोने की लङ्का अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता है।

          रावण में कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। ऐसा माना जाता हैं कि रावण शङ्कर भगवान का बड़ा भक्त था। वह महातेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।

          वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुए उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपनी कृति "रामायण" में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं -----

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

          आगे वे लिखते हैं --- "रावण को देखते ही हनुमान मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"

          रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था, वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादाएँ भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है --- "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।"

          शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है, अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण शास्त्रोचित मर्यादा का ही आचरण करता है।

          वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रन्थों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।

          बहुत ही कम लोग जानते हैं कि रावण असल में भगवान् शिव का अंश था। एक मुनि थे, जो कि शिवजी के रुद्रांश थे, जिनका नाम "मुण्डिकेश" ऋषि था, वे एक बहुत बड़े औघड़ नाथ थे। उन्होंने ही रावण के रूप में जन्म लिया था और बहुत से लोग कहते है कि रावण शरीर छोड़ने के बाद शिव में विलीन हो गए थे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, वे वापस अपने ऋषि के शरीर में आ गए थे। (जिनकी कुण्डलिनी जागृत है, साधकगण  इस सत्य की जाँच कर सकते हैं।)

          वास्तव में रावण अपने आप में तन्त्र का अद्भुत  जानकार था। उसने ऋषि कुल में उत्पन्न होकर उच्चकोटि की तन्त्र साधनाएँ सम्पन्न की और अपने घर-परिवार को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण लङ्का राज्य को धन-धान्य, वैभव और समृद्धि से सम्पन्न कर दिया था। "रावण संहिता" में इस प्रयोग को दुर्लभ और महत्वपूर्ण बताया गया है।

साधना विधान :----------

          यह साधना प्रयोग कार्तिक मास के किसी भी शुभ मुहूर्त में आरम्भ करें, यथा-धन तेरस, दीपावली, शुक्लपक्ष की तृतीया, किसी भी शुक्रवार आदि। इसके अलावा किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया या शुक्रवार से इस साधना को शुरू किया जा सकता है। साधक इस दिन रात्रि को स्नान कर लाल वस्त्र पहन कर उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाएं और सामने किसी बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर माँ भगवती लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें। चित्र के समक्ष सफेद वस्त्र पर ही कुमकुम या केशर या सिन्दूर से निम्न प्रकार का लक्ष्मी आबद्ध यन्त्र बनाएं -----


         अब सबसे पहले साधक सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन सम्पन्न करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से रावणकृत लक्ष्मी साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक संक्षिप्त गणपति पूजन सम्पन्न करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         तदुपरान्त साधक सामान्य भैरवपूजन सम्पन्न करें और एक माला किसी भी भैरव मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। फिर प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं होती है।

          फिर उपरोक्त लक्ष्मी आबद्ध यन्त्र की पूजा करें, इस यन्त्र पर अक्षत और पुष्प चढ़ाएं।

          इसके बाद पहले से ही प्राप्त किए हुए "नौ लक्ष्मी वरवरद" प्रत्येक कोष्ठक में एक-एक स्थापित कर दें। ये नौ लक्ष्मी वरवरद नौ सिद्धियों के प्रतीक हैं, जो रावणकृत "ऋषि प्रयोग" से मन्त्रसिद्ध प्राणप्रतिष्ठायुक्त हों।

          यदि आपके पास उपरोक्त सामग्री उपलब्ध नहीं है तो भी आप चिन्ता न करें। आप लक्ष्मी आबद्ध यन्त्र के प्रत्येक खाने में एक-एक कमलगट्टा रख दें।

          इसके बाद प्रत्येक "लक्ष्मी वरवरद" अथवा कमलगट्टे की जल, कुमकुम, अक्षत और पुष्प से पूजन करें। फिर कमलगट्टा माला या महाशंङ्ख माला या किसी भी माला से निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करें।

रावणकृत लक्ष्मी आबद्ध मन्त्र :----------

 ।। ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं वर वरद लक्ष्मी आबद्ध आबद्ध फट् ।।

OM  HREEM SHREEM HREEM SHREEM  HREEM SHREEM VAR VARAD LAXMI AABADDH AABADDH PHAT.

         मन्त्र जाप के उपरान्त एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती लक्ष्मी को समर्पित कर दें। 

         यह साधना कम से कम ११ दिन तक सम्पन्न करना चाहिए। अन्तिम दिन मन्त्र जाप समाप्त होने पर अथवा अगले दिन सभी ९ "लक्ष्मी वरवरद" अथवा ९ कमलगट्टे किसी धागे में पिरोकर या सफेद कपड़े की पोटली में बाँधकर मकान या घर के मुख्य द्वार पर टाँग दें अथवा घर में किसी भी स्थान पर टाँग दें, जिससे कि उनको हवा स्पर्श करती रहे। ये "लक्ष्मी वरवरद" अथवा कमलगट्टे दुकान के मुख्य द्वार पर लटकाए या टाँगे जा सकते हैं।

          जितने समय तक इनको स्पर्श कर हवा घर में या दुकान में प्रवेश करेगी, तब तक निरन्तर आर्थिक, व्यापारिक उन्नति होती रहेगी। प्रयत्न यह करना चाहिए कि धागा मज़बूत हो और पूरे वर्ष भर ये लक्ष्मी वरवरद अथवा कमलगट्टे टँगे रहने चाहिए, जिससे कि इनसे स्पर्श कर वायु घर में या दुकान में प्रविष्ट होती रहे।

          इस साधना को सम्पन्न करने के बाद जीवन में आकस्मिक धन का प्रवाह आरम्भ हो जाता है। अगर जो लोग व्यक्ति घर से बाहर जाकर काम करते  है, वो इसके सामने ११ बार मन्त्र पढ़कर अगरबत्ती लगाकर निकले, धनहानि नहीं होगी।

          वास्तव में यह एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण प्रयोग है, जो साधकों को ठीक समय पर सम्पन्न करना ही चाहिए।

          यह दीपावली पर्व आपके लिए मंगलमय हो, सुख-समृद्धि दायक हो और हर क्षेत्र में उन्नति प्रदायक हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

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