श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवच सिद्धि
निखिल जयन्ती निकट ही है। आप सभी को विदित ही हैं कि हर वर्ष २१ अप्रैल को
श्री निखिलेश्वरानन्द जयन्ती मनाई जाती है। आप सभी को अग्रिम रूप से निखिल जयन्ती
की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।
जब कोई व्यक्ति पुलिस में भर्ती होता है तो इसकी खबर चोरों, लुटेरों आदि असामाजिक तत्वों को शीघ्र हो जाती है और वे सभी उस पर कड़ी
नजर रखने लगते हैं कि जैसे ही यह पुलिसवाला हमारे विरुद्ध कोई कार्यवाही करता है तो
किस तरह उसे रास्ते से हटाया जा सके, मारा जा सके।
ठीक यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब कोई जातक दीक्षित
होता है या साधनात्मक मार्ग पर चलने लगता है तो सभी की सभी नकारात्मक शक्तियाँ, अहंकारी दुष्ट प्रवृत्ति के साधक, सिद्ध, तान्त्रिक आदि भी ऐसे साधकों से ईर्ष्या एवं बैर भाव रखने लगते हैं और
मौका मिलने पर ऐसे साधकों को परेशान करते हैं, उसके
आसपास के वातावरण को प्रतिकूल करने के लिए उल्टे-सीधे प्रयोग करते हैं, और तो और उसकी साधनात्मक ऊर्जा को चुराने की भी कोशिश करते हैं। ऐसा काम
ज्यादातर साधक के साथ क्रियाशील शक्तियाँ ही करती हैं। अधकचरे तान्त्रिकों के
चक्कर में तो वह तब आता है, जब वह निःस्वार्थ भाव से
लोगों की मदद करता है या फिर विशुद्ध साधनात्मक वातावरण में प्रवेश करता है, जैसे कि संन्यास जीवन में। इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारी स्थितियाँ हैं।
वैसे तो साधक के लिए गुरुमन्त्र ही सर्वोपरि है, परन्तु साधनात्मक जीवन में बहुत सारे पहलुओं से, आयामों से परिचित होना पड़ता है, उनका ज्ञान
रखना पड़ता है। यहाँ तक कि साधक के आसपास स्वयं उसके परिवार आदि में भी ऐसे लोग
होते हैं, जो उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा का अवशोषण कर लेते
हैं। कभी-कभी उनके पूर्वज आदि भी ऐसा करते हैं, परन्तु
इन सब बातों का पता एक सामान्य साधक को नहीं चलता है। पूर्व जन्मों के कर्मदोष भी
हो सकते हैं। गुरु भी हर एक तथ्य को आपको प्रत्यक्ष रूप से नहीं बता सकते, क्योंकि शिविरों आदि में उन्हें अत्यधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है, मेहनत करनी पड़ती है, स्वयं की भी साधना करनी
पड़ती है। आखिर उनके भी तो गुरु हैं। इसलिए आपको अपने गुरु द्वारा रचित साहित्यों
और अन्य आध्यात्मिक व साधनत्मक ग्रन्थों का भी अध्ययन करना चाहिए। या फिर अपने
वरिष्ठ गुरु भाईयों या साधकों की सहायता लेनी चाहिए।
मैं यहाँ पर आध्यात्मिक रूप से श्री निखिलेश्वरानन्द कवच दे रहा हूँ, जिसका यदि आप उपयोग करते हैं तो न केवल आप पूर्ण रूपेण विपक्ष द्वारा किए
जा रहे तन्त्र-मन्त्रादिकों से सुरक्षित रहेंगे, अपितु
आप जो भी साधनात्मक शक्तियाँ अर्जित करते हैं, वोह भी
पूर्ण रूपेण कवचित रहेगी। कोई भी उनका हरण नहीं कर पायेगा। इस कवच के मध्यम से आप
दुष्कर साधनाओं को भी सम्पन्न कर सकते हैं। श्मशान आदि की साधना में इसके द्वारा
सुरक्षा चक्र या गोल घेरा निर्माण और उसके बाद स्वयं के शरीर का कीलन, जिससे कोई भी दुष्ट या नकारात्मक शक्तियाँ आपका अहित न कर पाएं, आप कर सकते हैं।
और एक महत्वपूर्ण बात वह यह है कि आप यह न सोचें कि मात्र निर्देशित
संख्या में कवच या मन्त्र पाठ कर लिया और हो गया आपको वह कवच सिद्ध। ऐसा नहीं होता, क्योंकि यह कलियुग है और आजकल का रहन-सहन, खान-पान, चिन्तन-मनन, कार्य-व्यापार आदि ऐसा हो गया है
कि मनुष्य के न चाहते हुए भी कुछ ऐसे दुष्कर्म हो जाते हैं, जिनका उन्हें खुद ही पता नहीं होता। अतः साधनात्मक ऊर्जा धीरे-धीरे क्षीण
होती जाती है, क्योंकि आप समाज में रह कर साधना कर रहे
हैं। कोई संन्यासी तो हैं नहीं कि २४ घण्टे साधनात्मक चिन्तन ही हो। और न ही उन
जैसा सधा हुआ सिद्ध शरीर जो किसी भी साधनात्मक शक्ति की ऊर्जा को एक ही बार में
भलीभाँति अपने आप में समाहित कर सके, पचा सके।
अतः आप किसी भी साधना को करते हैं तो यह आवश्यक है कि आप मूल साधना को
कम-से-कम ४-५ बार करें और उसके बाद उसकी निरन्तरता बनाए रखने के लिए नित्य कवच या
मन्त्र का कुछ मात्रा में पाठ या जाप करें। विशेषतया कवच या स्तोत्र आदि की सिद्धि
१००० पाठ से हो जाती है और इस तरह ४-५ बार में कुल चार या पाँच हजार पाठ सम्पन्न हो
जाते हैं। कुछ कवचों और स्तोत्रों में उनकी पाठ संख्या दी गई होती है। इन सबके बाद
ही आप कवच या स्तोत्र में लिखे प्रयोग आदि को करने की पात्रता अर्जित करते हैं।
कवच
साधना विधि :-----------
इस साधना को निखिल जयन्ती अथवा किसी भी गुरुवार से प्रारम्भ किया जा सकता
है। सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारणकर पीले आसन पर बैठ
जाए। दिशा उत्तर या पूर्व ही उचित रहेगी। अपने सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर
साधक उसपर सद्गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी का चित्र अथवा गुरु यन्त्र
स्थापित करे। घी या तेल का दीपक जलाकर साथ ही धूप-अगरबत्ती भी जला ले।
फिर साधक सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप
करें। फिर सद्गुरुदेवजी से श्री निखिलेश्वरानन्द कवच साधना सम्पन्न करने की आज्ञा
लें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।
इसके बाद संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न कर गणेशमन्त्र की एक माला जाप करें
और भगवान गणेशजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।
फिर साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। साधक दाहिने हाथ
में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र
अमुक आज से श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवच के १००० पाठ का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ।
श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी मेरी साधना को स्वीकार कर निखिलेश्वरानन्द कवच की सिद्धि
प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।”
ऐसा कहकर जल भूमि पर छोड़ दे और कवच पाठ आरम्भ करें -----
श्रीनिखिलेश्वरानन्द
कवच
विनियोग
:-----------
ॐ अस्य श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवचस्य श्रीमुद्गल ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीगुरुदेवो निखिलेश्वरानन्द परमात्मा
देवता, महोस्तवं रूपं च इति बीजम्, प्रबुद्धम् निर्नित्यम् इति कीलकम्, अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचम्, श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम
सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे
च पारायणे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास :-----------
श्रीमुद्गल
ऋषये नमः शिरसि। (सिर को
स्पर्श करें।)
अनुष्टुप
छन्दसे नमः मुखे। (मुख को स्पर्श
करें।)
श्रीगुरुदेवो
निखिलेश्वरानन्द परमात्मा देवतायै नमः हृदि। (हृदय को स्पर्श
करें।)
महोस्तवं
रूपं च इति बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्य-स्थान
को स्पर्श करें।)
प्रबुद्धम
निर्नित्यम इति कीलकाय नमः पादयोः। (दोनों
पैरों को स्पर्श करें।)
अथौ
नेत्रं पूर्णं इति कवचाय नमः नाभौ। (नाभि को
स्पर्श करें।)
श्री
भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म
मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (पूरे शरीर को
स्पर्श करें।)
कर-न्यास :-----------
श्रीसर्वात्मने
निखिलेश्वराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों
तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करें।)
श्रीमन्त्रात्मने
पूर्णेश्वराय तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से
दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें।)
श्रीतन्त्रात्मने
वागीश्वराय मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से
दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें।)
श्रीतन्त्रात्मने
योगीश्वराय अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें।)
श्रीशिष्य
प्राणात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से
दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें।)
श्रीसच्चिदानन्द
प्रियाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों
हाथों को स्पर्श करें।)
हृदयादि-न्यास :-----------
श्रीं
शेश्वरः हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें।)
ह्रीं
शेश्वरः शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें।)
क्लीं
शेश्वरः शिखायै वषट्। (शिखा को
स्पर्श करें।)
तपसेश्वरः
कवचाय हुं। (परस्पर भुजाओं को स्पर्श करें।)
तापेशेश्वरः
नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को
स्पर्श करें।)
एकेश्वरः
अस्त्राय फट्। (सिर से हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं।)
मूल
कवचम् :-----------
ॐ शिरः
सिद्धेश्वरः पातु ललाटं च परात्परः।
नेत्रे
निखिलेश्वरानन्दः नासिके नरकान्तकः॥१॥
कर्णौ
कालात्मकः पातु मुखं मन्त्रेश्वरस्तथा।
कण्ठं
रक्षतु वागीशः भुजौ च भुवनेश्वरः॥२॥
स्कन्धौ
कामेश्वरः पातु हृदयं ब्रह्मवर्चसः।
नाभिं
नारायणो रक्षेत ऊरुं ऊर्जस्वलोऽपि वै॥३॥
जानुनि
सच्चिदानन्दः पातु पादौ शिवात्मकः।
गुह्यं
लयात्मकः पायात् चित्तं चिन्तापहारकः॥४॥
मदनेशः
मनः पातु पृष्ठं पूर्णप्रदायकः।
पूर्वं
रक्षतु तन्त्रेशः यन्त्रेशः वारुणीं तथा॥५॥
उत्तरं
श्रीधरः रक्षेत दक्षिणं दक्षिणेश्वरः।
पातालं
पातु सर्वज्ञः ऊर्ध्वं मे प्राणसंज्ञकः॥६॥
फलश्रुति
:-----------
कवचेनावृतो
यस्तु यत्र कुत्रापि गच्छति।
तत्र
सर्वत्र लाभः स्यात् किंचिदत्र न संशयः॥७॥
यं यं
चिन्तयते काम तं तं प्राप्नोति निश्चितं।
धनवान
बलवान लोके जायते समुपासकः॥८॥
ग्रह
भूत पिशाचाश्च यक्ष गर्न्धव राक्षसाः।
नश्यन्ति
सर्व विघ्नानि दर्शनात् कवचेनावृतम्॥९॥
य इदं
कवचं पुण्यं प्रातः पठति नित्यशः।
सिद्धाश्रमः
पदारूढ़ः ब्रह्मभावेन भूयते॥१०॥
पहले पाठ में मूल कवच और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। बीच के पाठों में
मात्र मूल कवच का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः मूल कवच एवं फलश्रुति दोनों का
पाठ करें। आप १००० पाठ को ५ या ११ या २१ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं। इस तरह इस
सम्पूर्ण प्रक्रम को आप ५ बार करें तो कुल ५००० पाठ सम्पन्न हो जाएंगे।
प्रयोग
विधि :------------
नित्य किसी भी पूजन या साधना को करने से पूर्व और अन्त
में आप कवच का ५ बार पाठ करें। रोगयुक्त अवस्था में या यात्राकाल में स्तोत्र को
मानसिक रूप से भावना पूर्वक स्मरण कर लें।
इसी तरह यदि आप श्मशान में किसी साधना को कर रहे हों तो एक लोहे की छ्ड़
को कवच से २१ बार अभिमंत्रित कर अपने चारों ओर घेरा बना लें और साधना से पूर्व व
अन्त में कवच का ५-५ बार पाठ कर लें। जब कवच सिद्धि की साधना कर रहे हो उस समय एक
लोहे की छ्ड़ को भी गुरु चित्र या यन्त्र के सामने रख सकते हैं और बाद में उपरोक्त
विधि से प्रयोग कर सकते हैं।
मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना
करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।
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