रविवार, 19 मार्च 2017

कुञ्जिका स्तोत्र साधना विधान

कुञ्जिका स्तोत्र साधना विधान

           चैत्र नवरात्रि पर्व निकट ही है। इस वर्ष यह नवरात्रि २८ मार्च २०१७ दिन मंगलवार से शुरु हो रही है। आप सभी को नवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

           कुञ्जिका स्तोत्र एक अत्यधिक प्रभावशाली स्तोत्र हैजो माँ भगवती जगदम्बा दुर्गा का है। माँ दुर्गा को जगत माता का दर्जा दिया गया है। माँ दुर्गा को ही आदिशक्ति भी कहा जाता है। इस स्तोत्र के पाठ मात्र से ही सम्पूर्ण दुर्गापाठ का फल प्राप्त होता है। यह स्तोत्र स्तम्भन,  मारणमोहनशत्रुनाशसिद्धि-प्राप्तिविजय-प्राप्तिज्ञान-प्राप्ति अर्थात सभी क्षेत्रों में प्रवेश की महाकुञ्जी है। प्रतिदिन प्रातःकाल सिद्धकुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ करने से सभी प्रकार के विघ्न-बाधा नष्ट हो जाते हैं व परम सिद्धि प्राप्त होती है। इसके पाठ से काम-क्रोध का मारणइष्टदेव का मोहनमन का वशीकरणइन्द्रियों की विषय-वासनाओं का स्तम्भन और मोक्ष-प्राप्ति हेतु उच्चाटन आदि कार्य सफल होते हैं।

           कुञ्जिका स्तोत्र वास्तव में सफलता की कुञ्जी ही है। सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। षटकर्म में भी कुञ्जिका रामबाण की तरह कार्य करता है। इस स्तोत्र को जागृत या सिद्ध स्तोत्र कहा गया हैजिसका मतलब है कि यह स्वयंसिद्ध हैआपको इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोड़ न लिया जाएतब तक इसके पूर्ण प्रभाव कम ही दिख पाते हैं।

           आप किसी  भी साधना को करते हैं तो यह आवश्यक है कि आप मूल साधना को कम-से-कम ४-५ बार करें और उसके बाद उसकी निरन्तरता बनाए रखने के लिये नित्य कवच या मन्त्र का कुछ मात्रा में पाठ या जाप करें। विशेषतया कवच या स्तोत्र आदि की सिद्धि १००० पाठ से हो जाती है और इस तरह ४ या ५ बार में कुल चार या पाँच हजार पाठ सम्पन्न हो जाते हैं। कुछ कवचों और स्तोत्रों में उनकी पाठ संख्या दी गई होती है। इन सबके के बाद ही आप कवच या स्तोत्र में लिखे प्रयोग आदि को करने की पात्रता अर्जित करते हैं। 

साधना विधान :------------

          साधक किसी भी मंगलवार अथवा शुक्रवार से यह साधना आरम्भ करे। यदि  नवरात्रि  काल  में  यह साधना की जाए तो अधिक उचित रहेगा। समय रात्रि १० बजे के बाद का हो और ११.३० बजे के बाद कर पाए तो और भी उत्तम होगा। लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाए। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे। उस पर माँ भगवती दुर्गा का चित्र और पूज्य गुरुदेवजी का सुन्दर चित्र स्थापित करें। साथ ही साथ साधक गणेश और भैरव की मूर्ति  अथवा दो सुपारी मौलि बाँधकर क्रमशः अक्षत और काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दे।

           साधना से पूर्व साधक संक्षिप्त गुरुपूजन करें और  फिर गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें।  इसके बाद साधक सद्गुरुदेवजी से कुञ्जिका स्तोत्र साधना करने की अनुमति लें और साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करें।

           फिर साधक संक्षिप्त गणेशपूजन  करे और निम्न गणेशमन्त्र की एक माला जाप करे -------

                 वक्रतुण्डाय हुम् ॥

           इसके बाद साधक साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए भगवान गणपतिजी से प्रार्थना करें।

           फिर  साधक  संक्षिप्त भैरव पूजन सम्पन्न करे और  निम्न भैरव मन्त्र की एक माला जाप करें ---

                भं भैरवाय नमः ॥

           इसके बाद साधक साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए भगवान भैरवजी से प्रार्थना करें।

           इसके बाद साधना के प्रथम दिवस पर साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

           साधक हाथ में जल लेकर संकल्प ले कि माँ ! मैं आज से सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ९ दिनों तक ११२ पाठ करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे कुञ्जिका स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे। 

           फिर जल भूमि पर छोड़ दे।

           अब साधक माँ दुर्गा का सामान्य पूजन करे एवं तेल अथवा घी का दीपक प्रज्ज्वलित करे। किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप में अर्पित करे और और साधक ११२ पाठ आरम्भ करे।

सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम्

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।                                  येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।                                    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।                                      अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।                                     मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।                                 पाठमात्रेण संसिद्धयेत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥

॥ अथ मन्त्रः ॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

 इति मन्त्रः ॥

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै  नमस्ते मधुमर्दिनि।                                     नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।                                 जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे॥२॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।                                   क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोSस्तु ते॥३॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।                                    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥४॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।                                  क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥५॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।                                     भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥६॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।                                 धिजाग्रं-धिजाग्रं त्रोटय-त्रोटय दीप्तं कुरु-कुरु स्वाहा॥७॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।                                  सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥८॥

फलश्रुति

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्र जागर्ति हेतवे।                                 अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥१॥

यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।                                   न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥२॥

           इसी प्रकार साधक ९ दिनों तक नित्य  यह अनुष्ठान करे। प्रसाद नित्य स्वयं खाए। इस तरह ९ दिनों में कुल १००८ पाठ हो जाएंगे और कुञ्जिका स्तोत्र आपके लिए सिद्ध हो जाएगा।

           इस प्रकार कुञ्जिका स्तोत्र साधक के लिए पूर्ण रूप से जागृत तथा चैतन्य हो जाता है। फिर साधक इससे जुड़ी कोई भी साधना सफलता पूर्वक कर सकता है।

कुछ अवश्यक नियम :------------

     १. साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक हैकेवल देह से ही नहीं अपितु मन से भी  आवश्यक है।

     २. साधक भूमि शयन कर पाए तो उत्तम होगा।

     ३. कुञ्जिका स्तोत्र पाठ  के समय मुख में पान रखा  जाए तो इससे माँ प्रसन्न होती है। इस पान में चूनाकत्था और इलायची के अतिरिक्त  और कुछ ना ड़ाले। कई साधक सुपारी और लौंग भी डालते  हैंपर इतनी देर पान मुख में रहेगा तो सुपाऱी  से जिह्वा कट सकती है तथा लौंग अधिक समय मुख में रहे तो छाले हो जाते हैं। अतः ये दो वस्तुएँ ना डाले।

     ४. अगर नित्य कुञ्जिका स्तोत्र पाठ  समाप्त करने के बाद एक अनार काटकर माँ  भगवती जगदम्बा को अर्पित किया जाए तो इससे साधना का प्रभाव और अधिक हो जाता है। परन्तु यह अनार साधक को नहीं ख़ाना चाहिए। इसे नित्य प्रातः गाय को दे देना चाहिए।

     ५. यदि आपका रात्रि में कुञ्जिका स्तोत्र पाठ  का अनुष्टान चल रहा  है तो नित्य प्रातः पूजन के समय किसी भी माला से ३ माला नवार्ण मन्त्र की जाप करे -------

                 ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे 

          इससे यदि साधना काल में आपसे कोई त्रुटि हो रही होगी तो वह समाप्त हो जाएगी। वैसे यह आवश्यक अंग नहीं हैफिर भी साधक चाहे तो कर सकते हैं।

     ६. अपनी साधना गोपनीय रखे। गुरु तथा मार्गदर्शक के अतिरिक्त किसी अन्य को साधना समाप्त होने तक कुछ न बताएना ही साधना सामाप्त होने तक किसी से कोई चर्चा करे।

     ७. जहाँ तक सम्भव होसाधना में सभी वस्तुएँ लाल रंग की ही प्रयोग करे।

         जब साधक उपरोक्त विधान के अनुसार कुञ्जिका स्तोत्र को जागृत कर लेतब इसके माध्यम से कई प्रकार के काम्य प्रयोग किए जा सकते हैं।

         माँ भगवती जगदम्बा आप और आपके परिवार का कल्याण करेसाथ ही आपकी साधना सफल हो और आपको माँ भगवती का वरदहस्त प्राप्त होमैं सदगुरुदेवजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

        इसी कामना के साथ 

       ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

गुरु जी प्रणाम
सिद्ध कुंजिका स्त्रोत्र शिव उवाच से लेकर रोदनम यथा तक पाठ करना होगा क्या। कृपया बताने की कृपा करें।

Radhelal Hathile ने कहा…

स्तोत्र ज्यादा बड़ा नहीं है,अतः सम्पूर्ण स्तोत्र का ही पाठ किया जाना चाहिए।

kunwar veer vijaypal singh bundela ने कहा…

सदगुरु देव को नमन
कुन्जिका पाठ स्तोत्र का बिनियोग करना पडता है या नही कृपा बताने कष्ट करें

संभुनाथ ने कहा…

जी करना आवश्यक है