माँ भगवती बगलामुखी जयन्ती निकट ही है। इस बार माँ भगवती बगलामुखी जयन्ती ३ मई २०१७ को आ रही है। आप सभी को माँ भगवती बगलामुखी जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक
शुभकामनाएँ।
शाक्त सम्प्रदाय के तन्त्र ग्रन्थों में दस महाविद्याओं की उपासना का
विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। ये महाविद्याएँ सिद्ध मानी गयी हैं। इनके
मन्त्र स्वतः सिद्ध हैं। इनका जप पुरश्चरण करके साधक सब कुछ प्राप्त कर सकता है।
दस महाविद्याओं में अष्टम् महाविद्या बगलामुखी है।
बगलामुखी महाविद्या दस महाविद्याओं में
से एक है। तन्त्र शास्त्र में इन्हें ब्रह्मास्त्र विद्या, षट्कर्माधार विद्या, स्तम्भिनी विद्या, त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या, मन्त्र संजीवनी विद्या, प्राणी प्रज्ञापहारिका आदि कईं नामों
से अभिहित किया गया है। माता बगलामुखी साधक के मनोरथों को पूरा करती हैं। जो
व्यक्ति माँ बगलामुखी की पूजा-उपासना करता है, उसका
अहित या अनिष्ट चाहने वालों का शमन स्वतः ही हो जाता है। माँ भगवती बगलामुखी की
साधना से व्यक्ति स्तम्भन,
आकर्षण, वशीकरण, विद्वेषण, मारण, उच्चाटन आदि के साथ अपनी मनचाही कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ
होता है।
दुर्लभ ग्रन्थ “मन्त्र महार्णव” में लिखा है कि –
ब्रह्मास्त्रं च
प्रवक्ष्यामि सदयः प्रत्यय कारणम्। यस्य स्मरण मात्रेण
पवनोऽपि स्थिरायते॥
बगलामुखी मन्त्र को सिद्ध करने के बाद
मात्र स्मरण से ही प्रचण्ड पवन भी स्थिर हो जाता है। भगवती बगलामुखी को ‘पीताम्बरा’ भी कहा गया है। इसलिए इनकी साधना में
पीले वस्त्रों, पीले फूलों व पीले रंग का विशेष महत्व
है, किन्तु साधक के मन में यह प्रश्न उठता
है कि इस सर्वाधिक प्रचण्ड महाविद्या भगवती बगलामुखी का विशेषण पीताम्बरा क्यों? वह इसलिए कि यह पीताम्बर पटधारी भगवान्
श्रीमन्नारायण की अमोघ शक्ति एवं उनकी शक्तिमयी सहचरी हैं।
सांख्यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी
को सिद्घ विद्या कहा गया है। इसी तन्त्र के अनुसार “कलौ जागर्ति पीताम्बरा” अर्थात् कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीताम्बरा की
साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि-व्याधि से त्रस्त मानव माँ
पीताम्बरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी
समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण कर सकता है।
तन्त्र में वही स्तम्भन शक्ति बगलामुखी
के नाम से जानी जाती है, जिसे ‘ब्रह्मास्त्र’
के नाम से भी जाना जाता है। ऐहिक या
पारलौकिक, देश अथवा समाज में अरिष्टों के दमन और
शत्रुओं के शमन में बगलामुखी के मन्त्र के समान कोई मन्त्र फलदायी नहीं है। चिरकाल
से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते आ रहे हैं। इनके बड़वामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पाँच
मन्त्र भेद हैं। “कुण्डिका तन्त्र” में बगलामुखी के जप के विधान पर विशेष
प्रकाश डाला गया है। ‘मुण्डमाला तन्त्र’ में तो यहाँ तक कहा गया है कि इनकी
सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। बगला
महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैै। इस आम्नाय में शक्ति केवल पूज्या
मानी जाती है, भोग्या नहीं।
भगवती बगलामुखी महारुद्र की शक्ति हैं।
इस शक्ति की आराधना करने से साधक के शत्रुओं का शमन तथा कष्टों का निवारण होता है।
यों तो बगलामुखी देवी की उपासना सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है, परन्तु विशेष रूप से युद्ध, विवाद, शास्त्रार्थ,
मुकदमे और प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने, अधिकारी या मालिक को अनुकूल करने, अपने ऊपर हो रहे अकारण अत्याचार से
बचने और किसी को सबक सिखाने के लिए बगलामुखी देवी का वैदिक अनुष्ठान सर्वश्रेष्ठ, प्रभावी एवं उपयुक्त होता है। असाध्य
रोगों से छुटकारा पाने, बन्धनमुक्त होने, संकट से उबरने और नवग्रहों के दोष से
मुक्ति के लिए भी इस मन्त्र की साधना की जा सकती है।
बगलामुखी अत्यन्त तीव्र शत्रुहन्ता, दारिद्र्यहन्ता, समृद्धिप्रदाता एवं साधकों के लिए मातृ
स्वरूपा हैं। बगलामुखी साधना शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की साधना है।
साधना की प्रचण्डता और तीव्रता इतनी अधिक है कि साधक जिस किसी को भी शत्रु मानता
हो, उस पर उसे विजय प्राप्त होती ही है। यह
आवश्यक नहीं कि शत्रु कोई व्यक्ति ही हो, जो
भी व्यक्ति अथवा परिस्थिति आपके तनाव का कारण है, वही आपके शत्रु हैं।
यदि आपके किसी शत्रु ने आप पर तन्त्र
प्रयोग करवाया हो तो भी इस साधना से वह बाधा समाप्त हो जाती है। बगलामुखी अपने
साधक के शत्रुओं के सभी प्रयासों को निष्फल कर देती हैं। शत्रुनाशिनी श्री
बगलामुखी का परिचय भौतिक रूप में शत्रुओं का शमन करने की इच्छा रखने वाली तथा
आध्यात्मिक रूप में परमात्मा की संहार शक्ति हैं। पीताम्बरा विद्या के नाम से
विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की
जाती है।
बगलामुखी साधना की पूर्णता के लिए तीन
महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं, जो
कि इस प्रकार हैं ---
१.
साधना काल में पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए।
२.
ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्णता के साथ पालन हो और भूमि शयन करें तथा दिन में एक समय भोजन करें।
३.
पीले रंग की हकीक माला या हल्दी की माला का ही प्रयोग करें।
साधना विधान :----------
यह
साधना बगलामुखी जयन्ती, किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी, गुरुवार, रविवार अथवा मंगलवार से शुरू की जा सकती है। इस साधना को रात्रि १०
बजे के बाद ही प्रारम्भ करना चाहिए। साधक
स्नान आदि से निवृत्त होकर पश्चिम या दक्षिण दिशा की तरफ मुँह करके पीले आसन पर
बैठ जाए। अपने सामने किसी बाजोट पर बगलामुखी देवी का चित्र एवं यन्त्र और पूज्यपाद सद्गुरुदेव का
चित्र या विग्रह स्थापित करें। इसके साथ ही गणपति और भैरव के प्रतीक रूप में दो
सुपारी क्रमशः अक्षत एवं काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दें।
अब सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक
प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करें तथा
गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से बगलामुखी साधना
सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए
प्रार्थना करें।
इसके बाद साधक संक्षिप्त गणपति पूजन सम्पन्न
करें और “ॐ वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर
भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
तत्पश्चात साधक सामान्य भैरवपूजन
सम्पन्न करें और “ॐ हौं जूं सः मृत्युंजय भैरवाय नमः” मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर
भगवान मृत्युंजय भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना
करें।
इसके बाद साधना के पहले दिन साधक को
संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक अमुक गौत्र परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी
का शिष्य होकर आज से श्री बगलामुखी साधना का अनुष्ठान प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं
नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। हे,
माँ! आप मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस मन्त्र की सिद्धि प्रदान
करें और इसकी ऊर्जा को आप मेरे भीतर स्थापित कर दें।”
ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर
छोड़ देना चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।
तदुपरान्त साधक माँ भगवती बगलामुखी चित्र और यन्त्र का सामान्य पूजन करे। हल्दी, पीले अक्षत से पूजन कर पीले रंग के
पुष्प चढ़ाएं और पीले रंग के ही मिष्ठान्न का भोग लगाएं।
फिर साधक दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न
विनियोग मन्त्र पढ़ें ---
विनियोग :-----
ॐ अस्य श्रीबगलामुखी मन्त्रस्य नारद ऋषिः बृहतीच्छन्दः
बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः ॐ कीलकं श्रीबगलामुखी वर प्रसाद
सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास :-----
ॐ नारद ऋषये नमः शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ बृहतीच्छन्दः नमः
मुखे। (मुख को स्पर्श करें)
ॐ बगलामुखी देवतायै नमः
हृदि। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ ह्लीं बीजाय नमः
गुह्ये। (गुह्य स्थान को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा शक्तये नमः
पादयोः। (पैरों को स्पर्श करें)
ॐ ॐ कीलकाय नमः नाभौ। (नाभि को स्पर्श करें)
ॐ श्रीबगलामुखी वर
प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (सभी अंगों को स्पर्श करें)
कर न्यास :-----
ॐ ॐ ह्लीं
अँगुष्ठाभ्याम् नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों
अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ बगलामुखी
तर्जनीभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी
उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्याम्
नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को
स्पर्श करें)
ॐ वाचं मुखं पदं
स्तम्भय अनामिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ जिह्वां कीलय
कनिष्ठिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ बुद्धिं विनाशय ह्लीं
ॐ स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्याम् नमः। (परस्पर
दोनों हाथों को स्पर्श करें)
हृदयादि न्यास :-----
ॐ ॐ ह्लीं हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ बगलामुखी शिरसे
स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ सर्वदुष्टानां शिखायै
वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ वाचं मुखं पदं
स्तम्भय कवचाय हुम्।
(भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ जिह्वां कीलय
नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ बुद्धिं विनाशय ह्लीं
ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्।
(सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)
व्यापक न्यास :-----
श्री बगलामुखी देवी के मूल मन्त्र से
तीन बार व्यापक न्यास करें ---
ॐ ह्लीं बगलामुखि
सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।
पीठ शक्तियों का पूजन :-----
निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए हल्दी से रँगे हुए अक्षत यन्त्र पर
अर्पित करते जाएं ---
ॐ जयायै नमः।
ॐ विजयायै नमः।
ॐ अजितायै नमः।
ॐ अपराजितायै नमः।
ॐ स्तम्भिन्यै नमः।
ॐ जृम्भिण्यै नमः।
ॐ मोहिन्यै नमः।
ॐ आकर्षिण्यै नमः।
ॐ मंगलायै नमः।
ॐ ह्लीं सर्वशक्ति कमलासनाय श्री पीताम्बरायाः योग पीठात्मने नमः।
इसके बाद साधक हाथ जोड़कर निम्न
सन्दर्भ का उच्चारण करते हुए माँ भगवती बगलामुखी का ध्यान करें ---
ध्यान :-----
ॐ मध्ये सुधाब्धि मणिमण्डप रत्नवेदी
सिंहासनो परिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरण माल्याविभूषितांगीं देवीं
नमामि धृतमुद्गर वैरिजिह्वाम्।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन शत्रुं
परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां
द्विभुजां नमामि।।
इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक बगला
गायत्री मन्त्र का इक्कीस बार जाप करें ---
।। ॐ ह्लीं बगलामुखि
विद्महे दुष्टस्तम्भिनि धीमहि तन्नो शक्तिः प्रचोदयात् ।।
फिर साधक महारुद्र मन्त्र का इक्कीस
बार जाप करें ---
।। ॐ नमो भगवते
महारुद्राय हुं फट् स्वाहा ।।
इसके बाद साधक भगवती बगलामुखी के
मूलमन्त्र का ५१ माला जाप करें ---
मूल मन्त्र :----------
।। ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां
कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ।।
OM HLEEM BAGLAAMUKHI SARVA
DUSHTAANAAM VAACHAM MUKHAM PADAM STAMBHAY JIHVAAM KEELAY BUDDHIM VINAASHAY
HLEEM OM SWAAHA.
मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न
सन्दर्भ का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवती बगलामुखी
को समर्पित कर दें।
ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देवि!
त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।
इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१
दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।
यह साधना कोई भी साधक सम्पन्न कर सकता
है, परन्तु कईं बार साधना के बीच में भयानक
दृश्य भी दिखाई दे जाते हैं या भयंकर अनुभव होने लगते हैं, इसलिए प्रत्येक साधक को चाहिए कि वह
साधना से पूर्व और साधना के अन्त में तान्त्रोक्त गुरु कवच अथवा श्री
निखिलेश्वरानन्द कवच का ५-५ बार पाठ अवश्य कर लिया करें।
बाईसवें दिन बगलामुखी यन्त्र एवं माला को जल में विसर्जित कर दें। चित्र को पूजा-स्थल में ही स्थापित रहने दें।
बाईसवें दिन बगलामुखी यन्त्र एवं माला को जल में विसर्जित कर दें। चित्र को पूजा-स्थल में ही स्थापित रहने दें।
वास्तव में ही इस कलिकाल में भगवती
बगलामुखी की साधना श्रेष्ठ एवं उच्चकोटि की है, जिसके
माध्यम से हम सभी प्रकार के शत्रुओं पर पूर्णता के साथ विजय प्राप्त कर सकते हैं
और किसी व्यक्ति के लिए यह साधना सम्पन्न कर उसके जीवन की समस्या मिटा सकते हैं।
आपकी साधना सफल हो और माँ
भगवती बगलामुखी का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से
ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।
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