सोमवार, 28 जनवरी 2019

आपदुद्धारक धूमावती साधना

आपदुद्धारक धूमावती साधना



          माघ मास में आनेवाली गुप्त नवरात्रि समीप ही है। यह ५ फरवरी २०१९ से शुरू हो रही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          हिन्दू धर्म में नवरात्रि माँ दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं। नवरात्रि के दौरान साधक विभिन्न तन्त्र विद्याएँ सीखने के लिए माँ भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तन्त्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्रियाँ बेहद विशेष मानी जाती हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है। शिशिर ऋतु के पवित्र माघ मास में शुभ्र चाँदनी को फैलाते शुक्ल पक्ष में मन्दिर-मठों और सिद्ध देवी स्थानों पर दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते की शास्त्रीय ध्वनि सुनाई देने लगती है।

          जिस तरह वर्ष में दो बार नवरात्रि आती हैं और जिस प्रकार नवरात्रियों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तान्त्रिक क्रियाएँ, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लम्बी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्रि में कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने से भी लाभ होता है।

          गुप्त नवरात्रि के दौरान माँ काली, तारा, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी, छिन्नमस्तिका, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, माँ कमला देवी की आराधना करनी चाहिए। इन नवरात्रों में प्रलय एवं संहार के देव महादेव एवं माँ काली की पूजा का विधान है। इन गुप्त नवरात्रि में कई साधक गुप्त सिद्धियों को अंजाम देते हैं और चमत्कारी शक्तियों के स्वामी बन जाते हैं। ध्यान रखें कि पूजा अर्चना करते समय फल की इच्छा कभी ना करें। अगर आप किसी मन्शा से माता रानी की पूजा अर्चना करते है तो माता आपकी इच्छा पूर्ण नहीं करती। माता बहुत दयालु है, अपने सभी भक्तों की माता जरुर सुनती है। इस गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से भी उपासना की जाती है।

          यह समय शाक्त एवं शैव धर्मावलम्बियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है। इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल और महाकाली की पूजा की जाती है। साथ ही संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना भी की जाती है। यह साधनाएँ बहुत ही गुप्त स्थान पर या किसी सिद्ध श्मशान में की जाती हैं।

          माँ धूमावती दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या हैं। धूमावती को अलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। माँ धूमावती का रूप अत्यन्त उग्र होता है, लेकिन माँ अपने साधक/पुत्र के लिए सौम्य भाव रखती हैं और सन्तान के लिए कल्याणकारी सिद्ध होती हैं। क्रोधमय ऋषियों यथा दुर्वासा, भृगु एवं परशुराम आदि की मूल शक्ति माँ धूमावती ही थीं। माँ की कृपा से सभी पापों का नाश होता है और सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।

          माँ धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इनकी साधना से जीवन में निडरता और निश्चितता आती है। इनकी साधना से आत्मबल का विकास होता है। देवी धूमावती सूकरी रूप में प्रत्यक्ष होती हैं और साधक के सभी रोग, कष्ट, दुःख एवं शत्रुओं का नाश करती है। वह साधक महाप्रतापी और सिद्ध पुरुष के रूप में ख्याति प्राप्त करता है। माँ धूमावती महाशक्ति स्वयं नियन्त्रिका हैं। ऋग्वेद में रात्रिसूक्तम में इन्हे सूतरा कहा गया है अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली कहा गया है। माँ धूमावती की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित नमक और घी से होम किया जाता है।

          जीवन में यदि बार बार रूकावटें आ रही हों या समस्याएँ लगातार आपका पीछा कर रही हों तो यह प्रयोग ब्रह्मास्त्र समान है। माँ धूमावती इस प्रयोग को करने वाले पर अपनी कृपा अवश्य करती है। हर प्रकार की बाधा चाहे वह आर्थिक हो, दैहिक हो, मानसिक हो या साधनात्मक। हर प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है इस दिव्य प्रयोग से। यह प्रयोग तीव्र रूप से फल प्रदान करता है।

साधना विधि :----------

          यह साधना किसी भी रविवार से आरम्भ करे। समय रात्रि १० के बाद का हो, दिशा दक्षिण हो। आपके आसन, वस्त्र सफ़ेद हो। यह साधना ८ दिन की है।

          सामने बाजोट पर एक सफ़ेद वस्त्र बिछा दे। उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र कर दे। एक पान के पत्ते पर भस्म से एक त्रिशूल की आकृति बनाए और उसे स्थापित करे।

           सर्वप्रथम संक्षिप्त सद्गुरु पूजन सम्पन्न करे। फिर गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करे। तत्पश्चात सद्गुरुदेवजी से आपद उद्धारक धूमावती साधना सम्पन्न करने की अनुमति लेकर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          इसके बाद सामान्य गणेश पूजन करे। फिर किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करके उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तदुपरान्त भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके किसी भी भैरव मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          साधना के पहले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। फिर प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं होती।

          अब उस त्रिशूल को जिसे आपने पान के पत्ते पर बनाया है, माँ भगवती धूमावती मानकर पूजन करे। इस साधना में यन्त्र या चित्र की कोई आवश्यकता नहीं है। सामान्य पूजन में केवल भस्म चढ़ाएं एवं सफ़ेद पुष्प अर्पण करे, थोड़े-से काले तिल भी अर्पण करे। तिल के तेल का दीपक लगाएं, दीपक मिटटी का होना चाहिए। भोग में आप पेठे का भोग लगाएं, यह सम्भव न हो तो कोई भी सफ़ेद मिठाई का भोग लगाएं। नित्य सुबह यह भोग किसी गाय को दे देना है, आपको नहीं खाना है।

          पान का पत्ता नित्य नया लेना है और पहले वाले पत्ते को किसी मिटटी के पात्र में नित्य डाल देना है। पूजन के बाद माँ से अपनी विपदाओं के निवारण के लिये प्रार्थना करे तथा तुलसी की माला से जाप करे।

          जिस क्रम से मन्त्र लिखे जा रहे हैं, उसी क्रम से जाप करे।

               ।। धूं धूं धूमावती ठः ठः ।।


DHOOM DHOOM DHOOMAAVATI TTHAH TTHAH. 

                              (एक माला जाप करे)


मूलमन्त्र :-----------

                ।। ॐ धूं धूं धूमावती आपद उद्धारणाय कुरु कुरु स्वाहा ।।


          OM DHOOM DHOOM DHOOMAAVATI AAPAD UDDHAARANAAY KURU KURU SWAAHA. 

                        (२१ माला जाप करे)

          पुनः उपरोक्त मन्त्र की एक माला जाप करे -----

                 ।। धूं धूं धूमावती ठः ठः ।।

          मन्त्र जाप के उपरान्त समस्त जाप माँ भगवती धूमावती का एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ कर समर्पित कर दें।

          यह क्रम नित्य रहे। आखिरी दिन अग्नि जलाकर कम से कम १०८ आहुति काली मिर्च से प्रदान करे। इस तरह यह साधना सम्पन्न होती है।

          अगले दिन जिस मिटटी की मटकी में आप पान का पत्ता डालते थे, उसी में सारी सामग्री डाल दे। सफ़ेद कपड़ा, पान, माला, मिटटी का दीपक सब उसी में डाल दे और एक नए सफ़ेद कपड़े से मटकी का मुँह बाँध दे। उस मटकी को घर से ले जाते वक़्त माँ से प्रार्थना करे ----- "हे! माँ, आप जाते-जाते मेरे जीवन से सारी विपदाओं, सारे आर्थिक कष्टों, सारी दरिद्रता को साथ लेकर चली जाओ तथा मुझे आशीर्वाद देकर जाओ कि मैं जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति प्राप्त करूँ।"

          और मटकी को शमशान में रख आएं। यह सम्भव न हो तो किसी निर्जन स्थान में रख आएं या किसी पीपल के पेड़ के नीचे रख आएं या जल में विसर्जन कर आएं। पीछे मुड़कर न देखें, घर आकर स्नान अवश्य करें।

          याद रखें, एक बार मटकी को बाँधने के बाद पुनः खोले नहीं अन्यथा सारी विपदाएँ पुनः आपके जीवन में आ जाएंगी।

          आपकी यह साधना सफल हो और माँ भगवती धूमावती आप सबका कल्याण करे। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

              इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

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