सूर्य सायुज्य कुबेर साधना
मकर
संक्रान्ति का समय निकट ही है। यह १५ जनवरी २०१९ को आ
रहा है। आप सभी को मकर संक्रान्ति पर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!
मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख
पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता
है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है, तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह
त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को
छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण
गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को
देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन
अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का
विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन:
प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है -----
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम्।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान
एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं
गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों
को प्रभावित करते हैं, किन्तु
कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह
प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी
गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है
अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं
दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य
उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन
बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश
अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य
की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है।
प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा
जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर उनके प्रति अपनी
कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ
चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति
से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर
अपने पुत्र
शनि
से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम
से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर
संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के
पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
मकर संक्रान्ति एक ऐसा दिव्य दिवस होगा, जब भगवान सूर्यदेव अपने पूर्ण तेज पर
होंगे। इसी पवित्र दिवस पर साधना जगत में कई-कई साधनाएँ साधक सम्पन्न कर जीवन को
नयी गति प्रदान करते हैं।
मैं प्रतिवर्ष यह दिव्य साधना करता ही
हूँ और विगत पाँच वर्षों से मेरी यह साधना कभी नहीं रुकी। प्रतिवर्ष इस साधना को
सम्पन्न करना में अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ।
उसका विशेष कारण यह है कि इस दिव्य
साधना से हमें भगवान आदित्य और भगवान कुबेर का आशीर्वाद सहज ही प्राप्त हो जाता
है। भगवान सूर्य के तेज से साधक के सभी पापों तथा रोगों का नाश होता है, जीवन में एक तेजस्विता आती है, गृहस्थ जीवन में सुख-शान्ति का वातावरण
निर्मित हो जाता है तथा भगवान कुबेर के आशीर्वाद से धन का व्यर्थ का अपव्यय समाप्त
होकर धन स्थिर होने लगता है। धन के आगमन में आ रही सभी बाधाओं का निवारण हो जाता
है, साधना के बाद मन में प्रसन्नता स्थापित
हो जाती है।
हर साधना धैर्य और विश्वास से किए
जाने पर ही परिणाम देती है। अतः साधना में
अतिशीघ्रता अच्छी बात नहीं है। ऐसा करके केवल हम अपना समय ही बर्बाद करते हैं, कोई लाभ नहीं उठा पाते हैं। अतः इस
उच्च कोटि के प्रयोग को आप पूर्ण धैर्य और विश्वास के साथ करें, आपको अवश्य लाभ होगा।
साधना विधान :---------
यह साधना आप मकर संक्रान्ति के दिन ही
करें। यह एक दिवसीय प्रयोग है। यदि आप इस दिन न कर पाए तो आप मुझसे मत पूछना कि
इसे और कब किया जा सकता है, क्यूँकि इसका पूर्ण प्रभाव तो मकर संक्रान्ति के दिन ही होता है। फिर
भी यदि आप न कर पाए तो किसी भी रविवार को कर सकते है।
साधक सूर्योदय के समय स्नान कर पीले वस्त्र धारण करे तथा सूर्य-दर्शन कर ताम्रपात्र से गुलाब जल मिले हुए जल से सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे। इसके बाद साधक अपने पूजन कक्ष में आकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाए। सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गेहूँ की एक ढेरी बनाए और उस पर केसर से रंजित एक सुपारी स्थापित करे और कक्ष में ही उत्तर की ओर एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर हल्दी मिश्रित अक्षत की ढेरी पर एक हल्दी से रंजित सुपारी स्थापित करे।
साधक सूर्योदय के समय स्नान कर पीले वस्त्र धारण करे तथा सूर्य-दर्शन कर ताम्रपात्र से गुलाब जल मिले हुए जल से सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे। इसके बाद साधक अपने पूजन कक्ष में आकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाए। सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गेहूँ की एक ढेरी बनाए और उस पर केसर से रंजित एक सुपारी स्थापित करे और कक्ष में ही उत्तर की ओर एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर हल्दी मिश्रित अक्षत की ढेरी पर एक हल्दी से रंजित सुपारी स्थापित करे।
पूर्व में रखी गई सुपारी सूर्य का
प्रतीक है तथा उत्तर में रखी गयी सुपारी कुबेर का प्रतीक है।
सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन करें। फिर गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से सूर्य सायुज्य कुबेर साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लेकर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
तत्पश्चात भगवान गणपति का सामान्य पूजन करें तथा किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
इसके बाद सूर्य-पूजन करे, पूजन सामान्य ही करना है। खीर का
प्रसाद अर्पित करना है, जिसमें
केसर मिश्रित हो। शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे। इसी प्रकार उत्तर में स्थापित
कुबेर का भी पूजन करे तथा संकल्प ले कि मैं यह सूर्य सायुज्य कुबेर प्रयोग अपने
जीवन से समस्त दरिद्रता के नाश हेतु, पाप नाश हेतु, साधना में सफलता हेतु कर रहा हूँ। भगवान सूर्यदेव तथा कुबेरदेव मेरी
साधना को स्वीकार कर मेरी मनोकामना पूर्ण करे। इसके बाद स्फटिक माला से दिए गए
मन्त्रों का क्रमानुसार जाप करे।
सर्वप्रथम एक माला महामृत्युंजय मन्त्र
की जाप करे।
।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
इसके बाद ३ माला निम्न मन्त्र का जाप करे और प्रत्येक माला के बाद थोड़े
अक्षत सूर्यदेव को अर्पित करे।
।।ॐ सूं सूर्याय नमः।।
इसके बाद ३ माला निम्न मन्त्र का जाप करे। प्रत्येक माला के बाद थोड़े
अक्षत कुबेर पर अर्पित करे।
।।ॐ यक्ष राजाय नमः।।
अब १ माला निम्न सूर्य मन्त्र की जाप करे और जाप के बाद सूर्य
को थोड़े अक्षत अर्पित करे।
।।ॐ सूर्याय तेजोरूपाय आदित्याय नमो नमः।।
अब ३ माला निम्न कुबेरमन्त्र की जाप करे। प्रत्येक माला के बाद थोड़े अक्षत कुबेर को अर्पित करे।
।।ॐ धं कुबेराय धं ॐ।।
इस क्रिया के सम्पन्न होने के बाद अब
साधक निम्न मूलमन्त्र की ११ (ग्यारह) माला जाप
सम्पन्न करे ----
मूलमन्त्र :----------
।। ॐ धं कुबेराय आदित्य स्वरूपाय धं नमः ।।
OM DHAM KUBERAAY AADITYA
SWAROOPAAY DHAM NAMAH.
इसके बाद पुनः एक माला महामृत्युंजय
मन्त्र की सम्पन्न करे।
।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
अब अग्नि प्रज्ज्वलित कर जिस मन्त्र
की ११ माला जाप की थी, उसकी
कम से कम १०८ आहुति दही तथा घी मिश्रित कर प्रदान करे,आप चाहे तो अधिक आहुति भी दी जा सकती
है।
इस प्रकार यह दिव्य साधना पूर्ण होती
है, जो कि आपके जीवन में तेजस्विता लाती है, सुख और समृद्धि लाती है।
शाम को गेहूँ व अक्षत बाजोट पर बिछे
वस्त्र में बाँधकर किसी भी मन्दिर में रख दे। साधना के तुरन्त बाद प्रसाद स्वयं
ग्रहण करे तथा परिवार के सभी सदस्यों को भी दे।
अब विचार आपको करना है कि आप इस विशेष
दिवस पर यह दिव्य साधना सम्पन्न करते हैं या नहीं। आप सभी की साधना सफल हो और आपके
जीवन में सुख-समृद्धि आए।
इसी
कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।
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