सोमवार, 11 जून 2018

दारिद्रय नाशक धूमावती साधना


दारिद्रय नाशक धूमावती साधना


           माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती जयन्ती समीप ही है। यह २० जून २०१८ को आ रही है। आप सभी को धूमावती जयन्ती की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

               तन्त्र साधनाओं का क्षेत्र अपने आप में बड़ा व्यापक हैजिसकी थाह पाना सम्भव नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान हैजिसमें प्रामाणिक विधि-विधान एवं योग्य मार्गदर्शन द्वारा साधना सम्पन्न करने पर निश्चित ही सफलता प्राप्त होती हैजिससे व्यक्ति अपने कल्याण के साथ-साथ जनकल्याण करने में भी सक्षम हो पाता है। प्राचीन समय में यह विज्ञान प्रगति के ऊँचे शिखर पर रहा है और तन्त्र का प्रयोग हमारे पूर्वजों ने पूर्णता के साथ सम्पन्न कियाजिससे उनका जीवन सभी दृष्टियों से ज्यादा सुखमयआनन्ददायक एवं तनावरहित था।

               
सांसारिक सुख भी अनायास ही प्राप्त नहीं हो जातेउनके लिए भी साधना का बल और मन्त्र की सिद्धि आवश्यक है। सुख प्राप्त करना महत्वपूर्ण हैकिन्तु उन सुखों का उपभोग करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। आज के इस प्रतिस्पर्धावादी युग में यह कहाँ सम्भव है कि व्यक्ति कुछ क्षण सुख सेआनन्द से व्यतीत कर सकेउसे तो आए दिन कोई न कोई समस्या घेरे ही रहती है और उन्हीं से जूझते हुए उसकी शक्ति समाप्त होती जाती है। ऐसी परिस्थिति में उसे शारीरिक शक्ति के साथ-साथ दैविक बल की भी आवश्यकता पड़ती है। यह मानव मात्र का स्वभाव है कि जब चारों ओर परेशानियों केबाधाओं केअड़चनों के बादल मँडरा रहे होते हैंतभी व्यक्ति ईश्वर की अभ्यर्थना करने के लिएसमय निकालने के लिए विवश हो ही जाता है।

               
दस महाविद्याओं के क्रम में धूमावती सप्तम महाविद्या हैं। धूमावती शत्रुओं का भक्षण करने वाली और दुःखों का समापन करने वाली महाशक्ति हैं। इस शक्ति के आगे बड़े से बड़े तन्त्र को भी हार माननी पड़ती है। बुरी शक्तियों से पराजित न होना और विपरीत स्थितियों को अपने अनुकूल बना देने की शक्ति साधक को इनकी साधना से प्राप्त होती है। 

         देवी धूमावती की उपासना विपत्ति नाश, स्थिर रोग निवारण, युद्ध विजय एवं घोर कर्म मारण, उच्चाटन इत्यादि में की जाती हैं। देवी के कोप से शोक, कलह, क्षुधा, तृष्णा मनुष्य के जीवन से कभी जाती ही नहीं हैं, स्थिर रहती हैं। देवी, प्रसन्न होने पर रोग तथा शोक दोनों का विनाश कर देती है और कुपित होने पर समस्त भोग एवं कामनाओं का नाश कर देती हैं। आगम ग्रन्थों के अनुसार, अभाव, संकट, कलह, रोग इत्यादि को दूर रखने हेतु देवी के आराधना की जाती हैं।   

               कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है और उसके आगे सबको हार माननी पड़ती हैकिन्तु जो समय पर हावी हो जाता हैवह उससे भी ज्यादा बलशाली कहलाता है। धूमावती अपने साधकों को ऐसा ही बल प्रदान करती हैं कि उसके साधक काल को भी मोड़ सकते हैंबदल सकते हैं।

               धूमावती अपने साधक को अप्रतिम बल प्रदान करने वाली देवी हैंजो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में सहायक सिद्ध होती ही हैं। सृष्टि में जितने भी दुःख हैंव्याधियाँ हैंबाधाएँ हैंउन पर विजय प्राप्ति हेतु धूमावती साधना श्रेष्ठतम मानी जाती है। जो साधक धूमावती महाशक्ति की साधना-आराधना करता हैउस साधक पर वे प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण तो करती ही हैंसाथ ही उसके जीवन में धन-धान्यसमृद्धि की कमी भी नहीं होने देती। क्योंकि यह लक्ष्मी प्राप्ति में आने वाली बाधाओं का भी पूर्ण रूप से भक्षण कर लेती हैं। अतः लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भी धूमावती महाविद्या की साधना करनी चाहिए।

        जीवन में कई बार ऐसे पल आ जाते हैं कि हम बहुत अधिक निराश हो जाते हैं, अपनी गरीबी से, अपनी तकलीफों से और इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि हर इन्सान को धन की आवश्यकता होती ही है। जीवन के ९९% काम धन के अभाव में अधूरे ही रह जाते हैं, यहाँ तक कि साधना करने के लिए भी धन ज़रूरत होती है। तो क्यों और कब तक बैठे रहोगे इस गरीबी का रोना लेकर? क्यों ना इसे उठा कर फेंक दिया जाए जीवन से?


        साधक भाइयों और बहनों की ऐसी ही आर्थिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनके निवारण के लिए और सम्पूर्ण दरिद्रता-नाश के लिए एक विशेष साधना विधि दी जा रही है। इस साधना को सम्पन्न करने से उनके सभी आर्थिक कष्ट माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती की कृपा से समाप्त हो जाएंगे। यह मेरी स्व-अनुभूत साधना है, आप इसे सम्पन्न करें और माँ धूमावती की कृपा के पात्र बने।

साधना सामग्री :----------

१. एक सूपड़ा, २. स्फटिक या तुलसी माला, ३. धूमावती यन्त्र

साधना विधि :-----------

          यह साधना धूमावती जयन्ती से आरम्भ करे। इसके अलावा आप इसे किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से भी शुरू कर सकते हैं। समय रात्रि १० बजे के बाद का होगा।

          आप इस साधना में सफ़ेद वस्त्र धारण कर सफ़ेद आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर सूपड़ा रख कर उसमें सफ़ेद वस्त्र बिछा दें, फिर उसमें "धूमावती यन्त्र" स्थापित करे। शुद्ध घी का दीपक जलाकर धूप-अगरबत्ती जला दें।

          साधक को चाहिए कि वह पहले गुरुपूजन और गणेशपूजन सम्पन्न करें। गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें और पूज्य गुरुदेवजी से दरिद्रता नाशक धूमावती साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें। फिर उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करें।

          अब सामान्य गणेशपूजन सम्पन्न करके एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें और फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य करें। साधक दाहिने हाथ में जल लेकर निम्नानुसार संकल्प लें -----

                      "मैं अमुक पिता का नाम अमुक गोत्र अमुक आज से दरिद्रता नाशक धूमावती साधना शुरू कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक धूमावती मन्त्र का ६१ माला मन्त्र जाप करूँगा। हे, माँ! आप मेरी साधना को स्वीकार कर मेरे आर्थिक कष्टों का निवारण करें और मेरे जीवन से दरिद्रता के अभिशाप को पूरी तरह मिटा दें।"

           और फिर हाथ के जल को भूमि पर छोड़ दें।

           इसके बाद गाय के कण्डे से बनी भस्म यन्त्र पर अर्पण करे, धूप-दीप अर्पित करें और माँ को पेठे का भोग अर्पण करे।फिर माँ से प्रार्थना करे कि मैं यह साधना अपनी दरिद्रता से मुक्ति के लिए कर रहा हूँ। आप मेरी साधना को सफलता प्रदान करे तथा मेरे सभी कष्टों को दूर कर दे।
          इसके बाद सर्वप्रथम निम्न मन्त्र की एक माला जाप करें -----

          ।। ॐ धूम्र शिवाय नमः ।।

                OM DHOOMRA SHIVAAY NAMAH.

          इसके बाद मूल मन्त्र का ६१ माला जाप करें -----


मूल मन्त्र :–––––––––––

          ।। धूं धूं धूमावती ठः ठः ।।

       DHOOM DHOOM DHOOMAAVATI THAH THAH.

          फिर पुनः एक माला पहले वाले मन्त्र की जाप करें -----

          ।। ॐ धूम्र शिवाय नमः ।।

          जप के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती धूम्रवर्णा धूमावती को ही समर्पित कर दें। और एक बार फिर दिल से माँ धूमावती से प्रार्थना करें।

          इस साधना को नित्य २१ दिन तक निरन्तर सम्पन्न करें।साधना पूरी होने के बाद सुपड़े को यन्त्र सहित उठाकर माँ धूमावती से प्रार्थना करें कि "हे, माँ! आप हमारे सभी पापों को क्षमा करें और आज आप हमारे जीवन के सारे दुःख, सारी दरिद्रता को आपके इस पवित्र सुपड़े में भरकर ले जाएं। हे, माँ! हमारे जीवन में कभी दरिद्रता ना लौटे, ऐसी दया करें।"

          इसके बाद सुपड़े और यन्त्र को जल में प्रवाहित कर दें या किसी निर्जन स्थान में रख दें। निश्चित ही माँ धूमावती की आप पर कृपा बरसेगी और जीवन की दरिद्रता कोसों दूर चली जाएगी।

          आपकी साधना सफल हो और आप जीवन में दिन-दूनी रात-चौगुनी प्रगति करे। मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए ऐसी ही कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।


2 टिप्‍पणियां:

Deepak Gaur ने कहा…

सूपड़ा क्या होता है ?

Radhelal Hathile ने कहा…

इसे संस्कृत में शूर्प कहते हैं और शुद्ध हिन्दी में सूप या सूपा कहा जाता है। यह बाँस का बना होता है और अनाज फटकने के काम आता है। यह सदैव माँ भगवती धूमावती के हाथ विद्यमान रहता है, इसीलिए माँ का एक नाम शूर्पहस्ता भी है।