मंगलवार, 8 मई 2018

तान्त्रोक्त शनि साधना

तान्त्रोक्त शनि साधना



                       शनि जयन्ती समीप ही है। यह इस बार १५ मई २०१८ को आ रही है। इस अवसर का सदुपयोग करके शनि की साढ़ेसातीअढ़ैया अथवा जन्म कुण्डली में शनि ग्रह की अशुभ स्थिति के कारण होने वाली पीड़ाओं,बाधाओं और कुप्रभावों को दूर किया जा सकता है।

          शनि ग्रह उग्र प्रकृति का ग्रह है। शनि सूर्य पुत्र है और सदैव वक्र गति से चलता है, लेकिन इसका प्रभाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। शनि को तीव्र ग्रह माना गया है, क्योंकि यह तामस स्वभाव वाला ग्रह है। सामान्यतः यह माना जाता है कि यह चिन्ता कारक ग्रह है। वास्तव में शनि चिन्तन कारक ग्रह है, जो कि मनुष्य को हर समय सोचने के लिए विवश करता रहता है।

          मनुष्य जीवन में सबसे अधिक चिन्ता का कारण आयु, मृत्यु, धन-हानि, घाटा, मुकदमा, शत्रुता इत्यादि है। इसके अलावा चतुराई, धूर्तता, लोहा, तिल, तेल, ऊन, हिंसा आदि का भी यह कारक ग्रह है। इसीलिए शनि ग्रह की शान्ति सभी चाहते हैं। यह आश्चर्य की बात है कि यह सूर्य पुत्र होते हुए भी अपने पिता सूर्य से शत्रुवत् व्यवहार करता है और कई स्थितियों में तो यह सूर्य के प्रभाव को भी कम कर देता है। यह मकर एवं कुम्भ राशि का स्वामी है। इसका उच्च स्थान तुला राशि तथा नीच स्थान मेष राशि है। शनि ग्रह बुध के साथ सात्विक व्यवहार व शुक्र के साथ होने पर राजसी व्यवहार तथा चन्द्रमा और सूर्य के साथ शत्रुवत् व्यवहार करता है। यह मन्द गति का ग्रह है और इससे आकस्मिक विपत्ति, नौकरी के अलावा, राजनैतिक जीवन में सफलता-असफलता जानी जाती है। यह ग्रह तस्करी, जासूसी, दुष्कर्म भी  करा सकता है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह अपने स्थान से सातवें भाव के अलावा तीसरे एवं दसवें भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।

          जैसा कि मैंने ऊपर विवेचन दिया है कि शनि चिन्तन प्रधान ग्रह है। इस कारण हर व्यक्ति शनि से डरता है और शनि बाधा का उपाय भी ढूँढता है। वास्तव में बलवान शनि मनुष्य को विपत्ति में भी लड़ने की क्षमता और ऐसे ही कई गुणों का विकास करता है, जिससे वह व्यक्ति दूसरों पर हावी रह सकता है। किसी भी देवता को अनुकूल किया जा सकता है तो शनि को भी अनुकूल किया जा सकता है। वैसे विपरीत शनि होने पर मनुष्य उन्माद, रोग, अकारण क्रोध, वात रोग, स्नायु रोग इत्यादि से ग्रसित हो सकता है। शनि थोड़ा स्वार्थी ग्रह है, इस कारण यह व्यक्ति की कुण्डली में श्रेष्ठ होने पर उसे अभिमान युक्त, किसी भी प्रकार से प्रगति करने की कला से युक्त कर देता है। इसकी विंशोतरी दशा में शनि की महादशा १९ वर्ष की होती है तथा २९ वर्ष ५ महीने १७ दिन में यह बारह राशियों का भ्रमण कर लेता है।

         शनि ग्रह के चार पाये यानि पाद लौह, ताम्र, स्वर्ण, और रजत के होते हैं। शनि ग्रह जब गोचर में सोना या स्वर्ण और लोहपाद में चल रहा होता है तो शनि ग्रह का अच्छा प्रभाव नहीं माना जाता और शनि ग्रह चाँदी या ताँबे के पाये से चल रहा होता है तो उनको अच्छा-बुरा दोनों ही फल देखने को मिलते हैं। शनि ग्रह अपना प्रभाव तीन चरणों में दिखाता है, जो साढ़े सात सप्ताह से आरम्भ होकर साढ़े सात वर्ष तक लगातार जारी रहता है।

पहला चरण
          जातक का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है तथा वह अपने उद्देश्य से भटक कर चंचल वृति धारण कर लेता है। उसके अन्दर अस्थिरता का अभाव अपनी गहरी पैठ बना लेता है। पहले चरण की अवधि लगभग ढाई वर्ष तक होती है।

दूसरा चरण
          मानसिक के साथ-साथ शारीरिक कष्ट भी उसको घेरने लगते हैं। उसके सारे प्रयास असफल होते जाते हैं। तन-मन-धन से वह निरीह और दयनीय अवस्था में अपने को महसूस करता है। इस दौरान अपने और परायों की परख भी हो जाती है। अगर उसने अच्छे कर्म किए हों, तो इस दौरान उसके कष्ट भी धीरे-धीरे कम होने लगते हैं। यदि दूषित कर्म किए हैं और गलत विचारधारा से जीवनयापन किया है तो साढ़ेसाती का दूसरा चरण घोर कष्टप्रद होता है। इसकी अवधि भी ढाई साल की होती है।

तीसरा चरण
          तीसरे चरण के प्रभाव से ग्रस्त जातक अपने सन्तुलन को पूर्ण रूप से खो चुका होता है तथा उसमें क्रोध की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। इस वजह से हर कार्य का उल्टा ही परिणाम सामने आता है तथा उसके शत्रुओं की वृद्धि होती जाती है। मतिभ्रम और गलत निर्णय लेने से फायदे के काम भी हानिप्रद हो जाते हैं। स्वजनों और परिजनों से विरोध बढ़ता है। आम लोगों में छवि खराब होने लगती है।

          अतः जिन राशियों पर साढ़ेसाती तथा ढैय्या का प्रभाव है, शनि की शन्ति के उपचार करने पर अशुभ फलों की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे वे संकट से निकलने के रास्ते प्राप्त कर सकते हैं।

साढ़ेसाती का समय

         शनि उग्र प्रकृति का क्रूर ग्रह है। गोचर में साढ़ेसाती के विपरीत प्रभाव से एक्सीडेंट, कर्जा चढ़ना, कोर्ट केस, तान्त्रिक प्रयोग, मृत्यु, झूठी बदनामी, जेल जाना, नशा करना, बर्बाद होना, धन हानि, शत्रु से नुकसान, चोरी होना, दु:ख, चिन्ता, दुर्भाग्य, पैसा फँसना, समय पर काम न होना, घर में क्लेश बना रहना, पारिवारिक झगड़े, अगर स्त्री हो तो उसकी शादी लेट होना, अच्छा पति न मिलना, पति का शराब पीना, लड़ाई-झगड़े करना, अपनी इच्छा से विवाह न होना, घर से भाग जाना, सन्तान कष्ट, पुत्र प्राप्ति न होना, अपमान, तनाव, आर्थिक तंगी, गरीबी, नौकरी न लगना, प्रमोशन न होना, व्यापार न चलना, बच्चों से नुकसान अर्थात बच्चे का बिगड़ना, शिक्षा प्राप्त न होना, परीक्षा में फेल होना, गुप्त शत्रु होना, गुप्त स्थानों के रोग, जोड़ों के दर्द होना, साँस की समस्या, पेट के रोग, शरीर में मोटापा, बीमारियों पर पैसा खर्चा होना, जीवन में असफलता आदि सब शनि की महादशा, अन्तर्दशा, गोचर या शनि के अनिष्ट योग होने पर होता है।

          रत्न विज्ञान के अनुसार शनि के लिए धातु मुद्रिका भी धारण कर सकते हैं। पंच धातु अथवा लोहे की मुद्रिका में ४ रत्ती से अधिक का नीलम बाएँ हाथ की मध्यमा अँगुली में धारण करना चाहिए।

          शनि जीवन में आकस्मिकता की स्थिति लाता है और जीवन में जो अकस्मात् घटनाएँ होती है, चाहे वे अच्छे फल की तरफ हों अथवा बुरे फल की ओर उनका मूल कारक शनि ही है।

          वैसे मेरा तो विश्वास है कि शनि की पूजा, जप, साधना और मन्त्र द्वारा इसे तीव्रता से अनुकूल बनाया जा सकता है। और जब यह अनुकूल होता है तो व्यक्ति को रंक से राजा बना देता है। जितने भी लोग राजनीति में उच्च स्थान पर पहुँचते हैं, उनका शनि प्रबल होता है। परिवार में भी शनि प्रधान व्यक्ति का ही वर्चस्व रहता है।

         यदि आपके ऊपर शनि साढ़ेसाती ग्रह का समय चल रहा है या इस तरह की कोई समस्या आ रही है तो कहीं न कहीं शनि ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है। शनि ग्रह के अशुभ फल से बचने के लिए अन्य बहुत से उपाय है, पर सभी उपायों में मन्त्र का उपाय सबसे अच्छा माना जाता है। इन मन्त्रों का कोई नुकसान भी नहीं होता और इसके माध्यम से शनि ग्रह के अनिष्ट प्रभाव से पूर्णतः बचा जा सकता है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।

         यदि किसी कारण वश आप यदि साधना न कर सके तो शनि तान्त्रोक्त मन्त्र की नित्य ५ माला काले आसन पर बैठकर काले हकीक की माला से या रुद्राक्ष माला से जाप करें, तब भी शनि ग्रह का विपरीत प्रभाव शीघ्र समाप्त होने लग जाता है। पर ऐसा देखा गया है कि मन्त्र जाप छोड़ने के बाद फिर पुन: आपको शनि ग्रह के अनिष्ट प्रभाव देखने को मिल सकते है, इसलिए साधना करने का निश्चय करें तो अधिक अच्छा है। अगर आप साधना नहीं कर सकते तो किसी योग्य पण्डित से भी करवा सकते हैं।

साधना विधान :----------

          यह साधना रात्रिकालीन साधना है। इस साधना को साधक शनि जयन्ती की रात्रि को प्रारम्भ करे। किसी शनैश्चरी अमावस्या अथवा किसी भी शनिवार की रात्रि से भी इसको शुरु किया जा सकता है। साधना रात्रि में बजे से  आरम्भ करे।

          साधक स्नान करके काले या गहरे नीले रंग के वस्त्र धारण करे और नीले या काले रंग के आसन पर पश्चिम दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं। अपने सामने भूमि पर काजल से एक त्रिभुज का बनाएं और उसपर एक बाजोट  रखें।  बाजोट  पर काला  वस्त्र  बिछाएं  और  उसपर सद्गुरुदेवजी  का  चित्र  स्थापित करें।  चित्र  के  समक्ष  एक  ताम्रपात्र रखें। ताम्रपात्र में काजल से ही अष्टदल कमल बनाएं। उसपर काले उड़द की ढेरी बनाकर उस पर शनि यन्त्र स्थापित करें।

          अब सबसे पहले पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का सामान्य  पूजन कर गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। तत्पश्चात सद्गुरुदेवजी से शनि साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा प्राप्त करें और उनसे साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तदुपरान्त भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें और भगवान गणपतिजी से साधना की सफलता व निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करें।

          फिर साधना के पहले दिन साधक संकल्प अवश्य करें।  इसके बाद साधक यन्त्र का सामान्य पूजन करें और यन्त्र पर काजल से रँगे हुए अक्षत (चावल) चढ़ाएं। अक्षत चढ़ाते समय "ॐ शं ॐ" मन्त्र का उच्चारण करते रहें।

          इसके बाद साधक हाथ जोड़कर शनिदेव का निम्नानुसार ध्यान करें -----

नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं, गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्द्धरम्।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं, वन्दे सदाSभीष्टकरं वरेण्यम्।।

         इस प्रकार ध्यान के पश्चात शनि-भार्या-नाम स्तोत्र के ७ पाठ सम्पन्न करें -----

ॐ स्वामिनी ध्वंसिनी कंकाली बला च महाबला,
कलही कण्टकी दुर्मुखी च अजामुखी।
एतत्शनैश्चराः नवम-भार्या नामः प्रातः सायं, 
पठेतस्य नरः शनैश्चरी पीड़ा भवन्तु कदाचन्।।

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह शनि तान्त्रोक्त मन्त्र का काली हकीक माला अथवा रुद्राक्ष माला से २३ (तेईस) माला जाप करें -----

शनि तान्त्रोक्त मन्त्र :-----------

।। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ।।

OM PRAAM PREEM PROUM SAH SHANAISHCHARAAY NAMAH.

          मन्त्र जाप के पश्चात साधक तीन बार शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -----

ॐ नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥१॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रु जटाय च।
नमो विशाल नेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥२॥
नमो: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोSस्तुते॥३॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने॥४॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोSस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च॥५॥
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोSस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥६॥
तपसा दग्ध देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥७॥
ज्ञानचक्षुष्मते तुभ्यं काश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥८॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्धि विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलतः॥९॥
प्रसादं कुरु मे देव वरार्होऽहमुपागतः।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः॥११॥

          स्तोत्र पाठ के उपरान्त साधक समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर शनिदेव को ही समर्पित कर दें।

          यह साधना ग्यारह दिन की है। साधना के बीच साधनात्मक नियमों का पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन मन्त्र जाप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद मन्त्र का दशांश या संक्षिप्त हवन करें। हवन के पश्चात् यन्त्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें।

         इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। धीरे-धीरे शनि अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है। शनि ग्रह की साढ़ेसाती के समय में आपको अच्छे परिणाम देखने को मिलते है, धीरे-धीरे शनि से सम्बन्धित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते हैं।

                  मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल गुरूजी को आदेश आदेश आदेश ।।।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

dhanyawaad guru ji . bohut he adbhoot or satik jaankari hai. mujhe bohut khushi hui ise read kr kr .