शनिवार, 5 मई 2018

शनि-साढ़ेसाती और निवारण के उपाय

शनि-साढ़ेसाती और निवारण के उपाय


          शनि जयन्ती समीप ही है। यह इस बार १५ मई २०१८ को आ रही है। इस अवसर का सदुपयोग करके शनि की साढ़ेसाती, अढ़ैया अथवा जन्म कुण्डली में शनि ग्रह की अशुभ स्थिति के कारण होने वाली पीड़ाओं, बाधाओं और कुप्रभावों को दूर किया जा सकता है।

शनि की साढ़ेसाती

          नियमानुसार सभी ग्रह गोचरवश एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते हैं, शनि ग्रह भी इस नियम का पालन करता है। शनि जब आपके लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है। यह समय चक्र साढ़े सात वर्ष का होता हैं, ज्योतिषशास्त्र में इसे ही साढ़ेसाती के नाम से जाना जाता है। शनि की गति चूँकि मन्द होती है, अत: एक राशि को पार करने में इसे ढाई वर्ष का समय लगता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो माना लीजिए, आपके लग्न से बारहवीं राशि मेष है तो इस राशि में जब शनि प्रवेश करेगा, तब क्रमश: वृष और मिथुन तीन राशियों से गुजरेगा और अपना समय चक्र पूरा करेगा। साढ़ेसाती के शुरू होने को लेकर कई मान्यताएँ हैं।
          प्राचीन मान्यता के अनुसार जिस दिन शनि का गोचर किसी विशेष राशि में होता है, उस दिन से शनि की साढ़ेसाती शुरू हो जाती है। यह मान्यता हालांकि तर्क संगत नहीं है, फिर भी प्राचीन होने के कारण व्यवहार में है। इसी सन्दर्भ में एक मान्यता यह भी है कि शनि गोचर में जन्म राशि से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है, तब साढ़ेसाती की दशा शुरू हो जाती है और जब शनि जन्म से दूसरे स्थान को पार कर जाता है तब इसकी दशा से मुक्ति मिल जातीहै। तर्क के आधार पर ज्योतिषशास्त्री शनि के आरम्भ और समाप्ति को लेकर एक गणितीय विधि का हवाला देते हैं। इस विधि में साढ़ेसाती के शुरू होने के समय और समाप्ति के वक्त का ज़ायज़ा लेने के लिए चन्द्रमा के स्पष्ट अंशों की आवश्यकता होती है। चन्द्रमा को इस विधि में केन्द्रबिन्दु मान लिया जाता है। चूँकि साढ़ेसाती के दौरान शनि तीन राशियों से गुजरता है, अत: तीनों राशियों के अंशों को जोड़ कर दो भागों में विभाजित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में चन्द्र से दोनों तरफ अंश-अंश की दूरी बनती है। शनि जब इस अंश के आरम्भ बिन्दु पर पहुँचता है तब साढ़े साती का आरम्भ माना जाता है और जब अन्तिम सिरे को अर्थात अंश को पार कर जाता है तब इसका अन्त माना जाता है। शनि की साढ़ेसाती की शुरूआत को लेकर जहाँ कई तरह की विचारधाराएँ मिलती हैं, वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पित विचारों का ताना-बाना बुना रहता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़ेसाती आज शुरू हो गयी तो आज से ही कष्ट और परेशानियों की शुरूआत होने वाली है। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं, जो लोग ऐसा सोचते हैं, वेअकारण ही भयभीत होते हैं, वास्तव में अलग-अलग राशियों के व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव अलग-अलग होता है। कुछ व्यक्तियों को साढ़ेसाती शुरू होने के कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिल जाते हैं और साढ़ेसाती समाप्त होने से पूर्व ही कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। कुछ लोगों को देर से शनि का प्रभाव देखने को मिलता है और साढ़ेसाती समाप्त होने के कुछ समय बाद तक इसके प्रभाव से दो-चार होना पड़ता है, अत: आपको इस विषय में घबराने की आवश्यकता नहीं है।
          अन्त में एक छोटी, किन्तु महत्वपूर्ण बात यह कहूँगा कि साढ़ेसाती के सन्दर्भ में व्यक्ति के जन्म चन्द्र से द्वादश स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान का महत्व अधिक होने का कारण यह है कि द्वादश स्थान चन्द्र रशि से काफी निकट होता है। ज्योतिष परम्परा में द्वादश स्थान से काल पुरूष के पैरों का विश्लेषण किया जाता है तो दूसरी ओर बुद्धि पर भी इसका प्रभाव होता है। शनि के प्रभाव से बुद्धि प्रभावित होती है और हम अपनी सोच व बुद्धि पर नियन्त्रण नहीं रख पाते हैं, जिसके कारण ग़लत कदम उठा लेते हैं और हमें कष्ट व परेशानी से गुजरना होता है। हमें याद रखना चाहिए कि साढ़ेसाती के दौरान मन और बुद्धि के सभी दरवाजे़ व खिड़कियाँ खोल देनी चाहिए, शान्तचित्त होकर कोई भी काम और निर्णय लेना चाहिए।

शनि की साढ़े साती का जीवन पर प्रभाव कैसे जाने?

          शनि की साढेसाती में शनि तीन राशियों पर गोचरवश परिभ्रमण करता है। तीन राशियों पर शनि के गोचर को साढेसाती कहते हैं। जब शनि जन्म या लग्न राशि से बारहवें, पहले व दूसरे हो तो शनि की साढ़े साती होती है। यदि शनि चौथे या आठवें हो तो शनि की ढैया होती है। तीन राशिओं के परिभ्रमण में शनि को साढे़ सात वर्ष लगते हैं। ढाई-ढाई वर्ष के तीन चरण में शनि भिन्न-भिन्न फल देता है। शनि की साढेसाती चल रही है, यह सुनते ही लोग भयभीत हो उठते हैं और मानसिक तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में उसके मन में आने वाले समय में होने वाली घटनाओं को लेकर तरह-तरह के विचार कौंधने लगते है। शनि की साढेसाती को लेकर परेशान न हों, शनि आपको अनुभवी बनाता है। आईये शनि के चरणों को समझने का प्रयास करते है -----
साढेसाती के विभिन्न चरणों का फल
          तीनों चरणों हेतु शनि की साढेसाती निम्न रूप से प्रभाव डाल सकती है ---
प्रथम चरण वृ्षभ, सिंह, धनु राशियों के लिये कष्टकारी होता है।
द्वितीय चरण मेष, कर्क, सिंह, वृ्श्चिक, मकर राशियों के लिये प्रतिकूल होता है।
अन्तिम चरण मिथुन, कर्क, तुला, वृ्श्चिक, मीन राशि के लिये कष्टकारी माना जाता है।
साढ़ेसाती का प्रथम चरण  का फल
          कहते हैं कि इस चरण में शनि मस्तक पर रहता है। इस चरणावधि में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। आय की तुलना में व्यय अधिक होते हैं। सोचे गए कार्य बिना बाधाओं के पूरे नहीं होते हैं। आर्थिक तंगी के कारण अनेक योजनाएँ आरम्भ नहीं हो पाती है। अचानक धनहानि होती है, अनिद्रा रोग हो सकता है एवं स्वास्थ्य खराब रहता है। भ्रमण के कार्यक्रम बनकर बिगडते रहते हैं। यह अवधि बुजुर्गों हेतु विशेष कष्टकारी सिद्ध होती है। मानसिक चिन्ताओं में वृ्द्धि हो जाती है। पारिवारिक जीवन में बहुत सी कठिनाईयाँ आती है और परिश्रम के अनुसार लाभ नहीं मिलता है।
साढे़ साती का द्वितीय चरण  का फल
          व्यक्ति को शनि साढ़ेसाती की इस अवधि में पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते हैं। उसके सम्बन्धी भी उसको कष्ट देते हैं, उसे लम्बी यात्राओं पर जाना पड सकता है और घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है। रोगों में वृ्द्धि होती है, सम्पत्ति से सम्बन्धित मामले परेशान कर सकते हैं। मित्रों एवं स्वजनों का सहयोग समय पर नहीं मिल पाता है। कार्यों के बार-बार बाधित होने के कारण व्यक्ति के मन में निराशा घर कर जाती है। कार्यों को पूर्ण करने के लिये सामान्य से अधिक प्रयास करने पडते हैं, आर्थिक परेशानियाँ तो मुँह खोले खड़ी रहती हैं।
साढे साती का तृतीय चरण  का फल
          शनि साढेसाती के तीसरे चरण में भौतिक सुखों में कमी होती है, उसके अधिकारों में कमी होती है और आय की तुलना में व्यय अधिक होता है, स्वास्थय संबन्धी परेशानियाँ आती है, परिवार में शुभकार्य बिना बाधा के पूरे नहीं होते हैं। वाद-विवाद के योग बनते हैं और सन्तान से वैचारिक मतभेद उत्पन्न होते हैं। यह अवधि कल्याण कारी नहीं रहती है। इस चरण में वाद-विवादों से बचना चाहिए।

साढ़ेसाती शुभ भी होती है

          शनि की ढईया और साढ़ेसाती का नाम सुनकर बड़े-बड़े पराक्रमी और धनवानों के चेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनिदेव के भय का कई ठग ज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिष शास्त्रियों की मानें तो शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत-से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ, सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करना होता है। देखा जाए तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते, बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं। हम विषय की गहराई में जाकर देखें तो शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति पर उनकी राशि/कुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता है, अत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है। आइये, हम देखें कि शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी को मिश्रित फल देने वाला कैसे होता है?  
          ज्योतिषशास्त्री बताते हैं, यह ज्योतिष का गूढ़ विषय है, जिसका उत्तर कुण्डली में ढूँढा जा सकता है। साढ़ेसाती के प्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमा की स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आप में अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है, जबकि कमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम में नहीं लगता है, जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है। जन्म कुण्डली में चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है। अगर आपका लग्न वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर अथवा कुम्भ है तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुँचाते हैं, बल्कि आपको उनसे लाभ व सहयोग मिलता है। उपरोक्त लग्न वालों के अलावा जो भी लग्न हैं, उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव का सामना करना पड़ता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि साढ़े साती का वास्तविक प्रभाव जानने के लिए चन्द्र राशि के अनुसार शनि की स्थिति ज्ञात करने के साथ लग्न कुण्डली में चन्द्र की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है। शनि अगर लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो आपके लिए किसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है। कुण्डली में अगर स्थिति इसके विपरीत है तो आपको साढ़े साती के दौरान काफी परेशानी और एक के बाद एक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। अगर चन्द्र राशि और लग्न कुण्डली उपरोक्त दोनों प्रकार से मेल नहीं खाते हों अर्थात एक में शुभ हों और दूसरे में अशुभ तो आपको साढ़ेसाती के दौरान मिलाजुला प्रभाव मिलता है अर्थात आपको खट्टा-मीठा अनुभव होता है। निष्कर्ष के तौर पर देखें तो साढ़ेसाती भयकारक नहीं है। "शनि चालीसा" में एक स्थान पर जिक्र आया है -----
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुखसम्पत्ति उपजावैं।।

गर्दभ हानि करै बहु काजा। गर्दभ सिद् कर राजसमाजा।।
          उपरोक्त चौपाई के अर्थ पर ध्यान दें तो एक ओर जब शनि देव हाथी पर चढ़ कर व्यक्ति के जीवन प्रवेश करते हैं तो उसे धन लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तो दूसरी ओर जब गधे पर सवार होकर आते हैं तो अपमान और कष्ट उठाना होता है। इस चौपाई से आशय यह निकलता है कि शनि हर स्थिति में हानिकारक नहीं होते, अत: शनि से भय खाने की ज़रूरत नहीं है। अगर आपकी कुण्डली में शनि की साढ़ेसाती चढ़ रही है तो बिल्कुल नहीं घबराएं और स्थिति का सही  मूल्यांक  करें।
          साढ़ेसाती का नाम ही हमारी नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त होता है। शनि वैसे ही कठोर माना जाता है, उस पर साढ़े सात वर्ष उसका हमारी राशि से सम्बन्ध होना मुश्किल ही प्रतीत होता है। वास्तव में साढ़ेसाती में आने वाले अशुभ फलों की जानकारी लेकर उनसे बचने हेतु अपने व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाए जाएं तो साढ़ेसाती की तीव्रता कम की जा सकती है। साढ़ेसाती में मुख्यत: प्रतिकूल बातें क्या घटती हैं?
                    आइए देखें --- पारिवारिक कलह, नौकरी में परेशानी, कोर्ट-कचहरी प्रकरण, रोग, आर्थिक परेशानी, काम न होना, धोखाधड़ी आदि साढ़ेसाती के मूल प्रभाव है। इनसे बचने के पूर्व उपाय करके, नए खरीदी-व्यवहार टालकर, शान्ति से काम करके इन परेशानियों को टाला या कम किया जा सकता है। वैसे भी साढ़ेसाती के सातों वर्ष खराब हो, ऐसा नहीं है। जब शनि मित्र राशि या स्व राशि में हो, गुरु अनुकूल हो तो अशुभ प्रभाव घटता है।
          मूल कुण्डली में शनि ३, , ११ भाव में हो या मकर, कुंभ, वृषभ, तुला, मिथुन या कन्या में हो तो साढ़ेसाती फलदायक ही होती है। यही नहीं यदि शनि पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो भी साढ़ेसाती से परेशानी नहीं होती। कुण्डली में बुध-शनि जैसी शुभ युति हो तो कुप्रभाव नहीं मिलते।

लक्षण और उपाय

          जिस प्रकार हर पीली दिखने वाली धातु सोना नहीं होती, उसी प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें, शनि आपसे कुपित हैं और उनकी साढ़े साती चल रही है अथवा नहीं, पहले इस तथ्य की जाँच कर लें, फिर शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।
          ज्योतिषशास्त्री कहते हैं, शनि की साढ़ेसाती के समय कुछ विशेष प्रकार की घटनाएँ होती हैं, जिनसे संकेत मिलता है कि साढ़े साती चल रही है। शनि की साढ़ेसाती के समय आमतौर पर इस प्रकार की घटनाएँ होती है जैसे घर का कोई भाग अचानक गिर जाता है। घर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएँ अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं, दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में माँसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आँख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं।
          आपके जीवन में जब उपरोक्त घटनाएँ दिखने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप साढ़ेसाती से पीड़ित हैं। इस स्थिति के आने पर आपको शनिदेव के कोप से बचने हेतु आवश्यक उपाय करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य साढ़ेसाती के प्रभाव से बचने हेतु कई उपाय बताते हैं। आप अपनी सुविधा एवं क्षमता के आधार पर इन उपायों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आप साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव से बचने क लिए जिन उपायों को आज़मा सकते हैं, वे निम्न हैं -----  

शनि-साढ़ेसाती निवारण के उपाय

          १. श्रीशिवशंकर पर ताँबे का सर्प (नाग) चढ़ाना हितकर है।
          २. पाँच शनिवार लगातार किसी लोहे के पात्र में तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखकर तेल आक के पौधे पर डाल दें। अन्तिम शनिवार अर्थात पाँचवें शनिवार को तेल चढ़ाने के बाद तेल वाला पात्र आक के पौधे के पास ही गाड़ दें।
          ३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः इस मन्त्र का जप प्रतिदिन १०८ बार करें।
          ४. सात शनिवार तक आक के पौधे पर लोहे की सात कील चढ़ानी चाहिए।
          ५. काले रंग की वस्तुएँ एवं सात बादाम सात शनिवार तक लगातार किसी मन्दिर में दान करें।
          ६. श्री हनुमान की पूजा-अर्चना तथा तेल युक्त सिन्दूर समर्पण कर भक्तिपूर्वक शनिवार का व्रत करना चाहिए।
          ७. सूर्यास्त के उपरान्त सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहिए। पाठ के दौरान स्वयं की लम्बाई के बराबर कच्चे सूत के धागे से बनी बत्ती द्वारा तेल का दीपक प्रज्जवलित रखें तथा प्रत्येक शनिवार को किसी भी हनुमान मन्दिर में हनुमानजी की प्रतिमा को सिन्दूर, चमेली का तेल, चाँदी के वर्क से चोला चढ़ावें। जनेऊ, लाल फूल की माला, लड्डू तथा पान अर्पण करें।
          ८. सात प्रकार के धानों का दान तथा शनिवार को प्रातः पीपल का पूजन करें।
          ९. लाजवन्ती, लौंग, लोबान, चौलाई, काला तिल, गौर, काली मिर्च, मंगरैला, कुल्थी, गौमूत्र आदि में से जो भी प्राप्त हो (कम से कम पाँच या सात) के चूर्ण को जल में मिलाकर दक्षिणमुखी खड़े होकर स्नान करें। इस जल से स्नान करने के पश्चात् किसी भी तरह का साबुन या तेल का प्रयोग नहीं करें।
         १०. बिच्छु की जड़ या शमी वृक्ष की जड़ का पूजन कर अभिमन्त्रित कर काले कपड़े में बाँधकर श्रवण नक्षत्र में विधि पूर्वक धारण करने से शनिदोष क्षीण होता है।
          ११. लाल चन्दन या काली वैजयन्ती की अभिमन्त्रित माला धारण करें।
          १२. शनिवार के दिन काले उड़द, तेल, तिल, लोहे से बनी वस्तु तथा श्याम वस्त्र दान देने से शनि-पीड़ा का शमन होता है।
          १३. काले घोड़े की नाल को प्राप्त कर उसमें से अपनी मध्यमा अँगुली की नाप का छल्ला बनवायें। इस छल्ले का मुँह खुला रखें। शनिवार के दिन कच्चे सूत से अपनी लम्बाई नाप कर उसको मोड़कर बत्ती बनाए, इस बत्ती से तेल का दीपक प्रज्जवलित कर उसमें छल्ला डाल दें तथा निम्नलिखित मन्त्र का काली वैजयन्ती माला से ५ माला जाप करें -----
        ।।  प्रां प्रीं प्रौं सः शनेश्चराय नमः ।।
          मन्त्र जप के उपरान्त क्रमशः जल, पंचामृत तथा गंगाजल से छल्ले को स्नान कराकर मध्यमा अँगुली में धारण करें।
          १४. एक गट (सूखा नारियल) लेकर उसमें चाकू से छोटा सा गोल छेद काट लें। इस छेद से नारियल में बूरा तथा बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, अखरोट या छुआरा भी गट में भरें। अब इसे पुनः बन्द कर किसी पीपल के पास भूमि के अन्दर इस प्रकार गाड़ दें कि चीटियाँ आसानी से तलाश लें, किन्तु अन्य जानवर न पा सकें। घर लौटकर पैर धोकर घर में प्रवेश करें। इस प्रकार ८ शनिवार तक यह क्रिया सम्पन्न करें।
          १५. शिवलिंग पर कच्चा दूध चढावें व अमोघ शिव कवचका पाठ करें।
          १६. प्रत्येक शनिवार जौ के आटे से बनी गोलियाँ मछलियों को खाने को डालें।
          १७. शनि वज्रपंजर कवच, दशरथ-कृत-शनि-स्तोत्र अथवा शनैश्चरस्तवराजः का नियमित पाठ करें।
          १८. एक काला छाता, सवा किलो काले चने, सवा किलो काले तिल, काला कम्बल, तेल का दीपक शनिवार कि दिन शनिदेव के मन्दिर में दान करें।
          १९. भोजन करने से पूर्व परोसी गयी थाली में से एक ग्रास निकालकर काले कुत्ते को खिलाएँ अथवा शनिवार को शाम के समय उड़द की दाल के पकौडे व इमरती कुत्ते को खिलाएं।
          २०. शनिवार के दिन काले कपड़े में जौ, नारियल, लोहे की चौकोर शीट, काले तिल, कच्चे कोयले व काले चने को पोटली में बाँधकर बहते हुए पानी में डालना शुभ रहता है।
          २१. काली गाय व काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी, चने की दाल व गुड खिलाना लाभप्रद रहता है।
          २२. दूध में शहद व गुड़ को मिलाकर वट वृक्ष को सींचे।
          २३. शनिवार, अमावस्या आदि दिनों पर शनि-मन्दिरमें जाकर आक-पर्ण (मदार के पत्ते) एवं पुष्पों की माला मूर्ति पर चढ़ाएँ। एक या आधा चम्मच तेल भी चढ़ाएँ। अब मूर्ति के सामने बैठकर शान्त-चित्त से निम्न मन्त्र, मूर्ति के भ्रू-मध्य या दाहिनी आँख पर त्राटक-पूर्वक प्रेम-भाव से, ११ बार जपें -----
।। ॐ नीलाञ्जन-समाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम् छाया-मार्तण्ड-सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम् ।।
          अब सूर्य-भगवान् को गायत्री-मन्त्र से एक बार अर्घ्य दें। या ॐ ह्रीं सूर्याय नमः का यथा-शक्ति जप करें। शनि सूर्य-पुत्र हैं। इस प्रकार पिता-पुत्र की उपासना लाभप्रद होती है।
          २४. यह उपासना एक नाथपन्थी महात्मा से प्राप्त है। साढ़ेसाती काल में यह उपासना भक्तिपूर्वक करें। आकके कुछ पत्ते सुखाकर उसका चूर्ण तैयार करके रखें। एक चौरस १ इंची लोहे के टुकड़े पर ॐ चैतन्य-शनैश्चरम् यह मन्त्र खुदवा लें। यदि धनाभाव हो तो कम से कम एक काला गोल पत्थर ले आवें और उसमें शनिदेवकी भावना रखकर पूजा-स्थान में रखें। भगवान् शनिके प्रति चैतन्यकी भावना रखनी चाहिए।
          उक्त प्रतिमा को किसी थाली में रखकर उसका पूजन करें। गन्ध, हल्दी-कुमकुम और ११ उड़द के दाने चढ़ाएं। आक के १०८ पुष्प ॐ चैतन्य-शनीश्चराय नमः मन्त्र से अर्पित करें। आकके ही सूखे पत्तों के चूर्ण की धूप दें। दीप दिखाकर सुख-शन्ति हेतु शनिकी प्रार्थना करें। भोजन में उड़द के बड़ों का नैवेद्य देना चाहिए।
          हर शनिवार को उक्त उपासना करें। उपासना-काल में शनिवार को नही; गुरुवार को उपवास करें। यह बात ध्यान में रखें। साढ़े सातीकाल पूर्ण होने के ढाई मास बाद उपासना बन्द करें और प्रतिमा को जलाशय में विसर्जित कर दें।
          उक्त उपासना से शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और साधक का भाग्योदय उपासना काल में सुनिश्चित होने लगता है। इसके आगे की फलश्रुति प्रकट न करने का निर्देश है।
          . यह उपासना शान्ति-समाधान हेतु और साढ़ेसाती-पीड़ा निवारण के लिए भी कर सकते हैं। २१ सोमवार यह उपासना करें। शिवलिंग का यथा शक्ति पूजन करें। हो सके तो जलाभिषेक भी करें। पाँच श्वेत पुष्प और एक बिल्व-पत्र चढ़ाएं। शिव-मन्त्र का जप करें, फिर प्रार्थना करें। यथा ---
ॐ श्रीशंकराय नमः। श्रीकैलास-पतये नमः। श्रीपार्वती-पतये नमः। श्रीविघ्न-हर्ताय नमः। श्रीसुख-दात्रे नमः। ॐ शान्ति! शान्ति!! शान्ति!!!
          इस प्रकार प्रार्थना कर शिवलिंग के सामने एक नारियल और एक मुठ्ठी गेहूँ रखें। फिर नमस्कार कर घर वापस आ जाएं।
          २६. शनि स्तोत्र एवं शनि-भार्या-स्तोत्र का नित्य तीन पाठ करने से शनि-ग्रहकी पीड़ा निश्चय की दूर होती है।
  यः पुरा नष्ट-राज्यायनलाय प्रददौ किल।
स्वप्ने तस्मै निजं राज्यं, स मे सौरिः प्रसीदतु ।।१।।
केशनीलाञ्जन-प्रख्यं, मनश्चेष्टा प्रसारिणम्।
छाया-मार्तण्ड-सम्भूतंनमस्यामि शनैश्चरम्।।२।।
ॐ नमोऽर्कपुत्राय शनैश्चराय, नीहारवर्णाञ्जनमेचकाय।
श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्चफलप्रदो मे भवे सूर्यपुत्रम्।।३।।
नमोऽस्तु प्रेत-राजायकृष्ण-देहाय वै नमः।
शनैश्चराय ते द्वयंसिद्धि-बुद्धि प्रदायिने।।४।।
य एभिर्नामाभिः स्तौतितस्य तुष्टो भवाम्यहम्।
मामकानां भयं तस्यस्वप्नेष्वपि न जायते।।५।।
गार्गेय कौशिकस्यापिपिप्लादो महामुनिः।
शनैश्चर-कृता पीड़ा,  न भवति कदाचनः।।६।।
कोणस्थः पिंगलो बभ्रुःकृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।
शौरिः शनैश्चरो मन्दः, प्रियतां मे ग्रहोत्तमः।।७।।
नमस्तु कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोsस्तुते।
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमोsस्तुते।।८।।
नमस्ते रौद्र देहाय, नमस्ते अन्तकाय च।
नमस्ते यम संज्ञाय, नमस्ते सौरये विभो।।९।।
नमस्ते मन्दसंज्ञाय, शनैश्चर नमोsस्तुते।
प्रसादं कुरु देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च।।१०।।
एतानि शनि-नामानिप्रातरुत्थाय यः पठेत्।
तस्य शौरेः कृता पीड़ान भवति कदाचन।।११।।
शनि-भार्या-नाम-स्तोत्र
ध्वजिनी धामिनी चैवकंकाली कलह-प्रिया।
कलही कण्टकी चापिअजा महिषी तुरगंमा।।१२।।
नामानि शनि-भार्यायाःनित्यं जपति यः पुमान्।
तस्य दुःखा विनश्यन्तिसुख-सौभाग्यं वर्द्धते।।१३।।
           २७. किसी छोटे मिट्टी के बर्तन में या मोटा मजबूत कपड़े में २५० ग्राम तम्बाकू (बनाकर या बना हुआ खरीद कर) तथा ५०० ग्राम तेल डालकर उस बर्तन या कपड़े में नीचे एक छोटा-सा छेद करें तथा उसको शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर बाँध दें। फिर ५ सप्ताह तक प्रति शनिवार उसमें ५०० ग्राम तेल डालें।
           . जिस पेड़ पर शहद का छत्ता लगा हो, उस पेड़ के नीचे हर शनिवार के दिन तेल का चिराग जलायें । कच्चे सूत को शहद के छत्ते के समीप से जड़ तक बाँधें । सात शनिवार तक करने के बाद उस छत्ते को तोड़ कर उससे जो शहद निकले उसका प्रतिदिन सेवन करें।

बारह राशियों पर साढ़े-साती के उपाय

मेष राशि की साढ़े-साती  :-------
          जौ का सवा पाँच किलो आटा पिसवायें और उस आटे से रोजाना सवा सौ ग्राम आटा चीटियों के बिल पर चढ़ायें। यह क्रिया करने के प्रथम तथा आखिरी दिन चीटियों के बिल पर तेल का दीपक जलायें।
वृष राशि की साढ़े-साती :-------
          पूर्णमासी के दिन सवा ५ किलो चावल का आटा बनवायें, प्रतिदिन उस आटे में से सवा सौ ग्राम गाय के दूध के साथ गाय को खिलायें। हर रोज पीपल के पत्ते या पीपल पर किसी भी चीज से अपना नाम लिखें। आखिरी दिन पीपल पर घी की ज्योत लगाके मीठा प्रसाद चढ़ायें।
मिथुन राशि की साढ़े-साती :-------
          गाय का सींग अपने घर में रखो, प्रतिदिन उस सींग को अपने माथे से लगायें। सवा महीने तक प्रतिदिन गाय को बाजरा, चौलाई तथा मीठा मिलाकर खिलायें।
कर्क राशि की साढ़े-साती :-------
          हर रविवार के दिन कन्याओं (छः वर्ष तक की) को हलवा-पूरी से भोजन करायें तथा उन्हें सवा रुपया भेंट करें। किसी कन्या की शादी हो रही हो तो उसमें कन्यादान करें, बारातियों के लिए बन रहे खाने में यथा-शक्ति धन का योगदान करें।
सिंह राशि की साढ़े-साती :-------
          भूखे-गरीब, गरीब-कन्याओं को भोजन-कपड़े दें। प्रत्येक मंगलवार भूखे को रोटी-कपड़ा दें। पीपल पर तेल की ज्योत जलायें।
कन्या राशि की साढ़े-साती :-------
          जो मनुष्य पागल की स्थिति में हो, जिसको सांसारिक विषयों का ज्ञान न हो, उसे अपने हाथों से खाना खिलायें और अपने हाथों से नहलायें, नये कपड़े पहनायें। यह कार्य करने के बाद किसी अनजान जगह पर शनिवार के दिन तेल का चिराग जलाकर हल्दी की दो गाँठ रखकर आ जायें। यह कार्य पाँच शनिवार करना है।
तुला राशि की साढ़े-साती :-------
          रविवार के दिन सवा किलो सरसों का तेल लेकर पीपल की पाँच बार प्रदक्षिणा करें, फिर उसी दिन उस तेल से हलवा, पूरी तथा सब्जी बनायें तथा बारह वर्ष के कम-से-कम दो लड़कों को भोजन करायें।
वृश्चिक राशि की साढ़े-साती :-------
          सोमवार के दिन खीर बनाकर कुछ खीर लेकर उसमें गुलाब के पाँच फूल मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ायें। फिर उन फूलों को शिवजी के आशीर्वाद-स्वरूप वापस उठाकर ले आयें तथा शेष बची खीर में उन फूलों को तोड़कर मिला दें। साठ वर्ष से अधिक आयु के कम-से-कम पाँच बूढ़ों को वह खीर खिलायें।
धनु राशि की साढ़े-साती :-------
          सोमवार के दिन अपनी मेहनत की कमाई से नये कपड़े खरीद कर अपने माता-पिता को नहला-कर पहनायें । उनसे अपनी पिछली गलतियों के लिये माफी माँगे। घर में ज्योत जलायें। उसके बाद आने वाले अन्य चार सोमवार नये कपड़े आवश्यक नहीं है, लेकिन शेष क्रिया करनी है। अगर किसी के माता-पिता न हो तो दूसरे किसी दोस्त आदि के माता-पिता की सेवा कर सकते हैं।
मकर राशि की साढ़े-साती :-------
          रविवार की रात्रि में किसी छोटे बच्चों की स्कूल के सामने सरसों के तेल में भिगोकर पाँच हल्दी की गाँठ किसी भारी वस्तु के नीचे दबा कर रखें। फिर सोमवार से अगले सोमवार तक स्कूल में काले चने उबालकर ले जाकर बाँट दें । अगर स्कूल में नहीं कर सको तो कहीं बच्चों का समूह हो, उन्हें बाँट सकते हैं। उक्त क्रिया प्रत्येक रविवार व सोमवार को करनी है।
कुम्भ राशि की साढ़े-साती :-------
          सोमवार से अगले सोमवार तक प्रातःकाल शिवलिंग पर घी की ज्योत लगाकर हाथ में गंगाजल लेकर २१ प्रदक्षिणा करें तथा अन्तिम प्रदक्षिणा में गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ादें।
मीन राशि की साढ़े-साती :-------
          सतनजा बनाकर २१ दिन लगातार चलते दरिया में रोज़ एक मुट्ठी डालें। प्रतिदिन नदी के किनारे एक तेल का दिया जलाकर एक मुट्ठी सतनजा चढ़ावें।

          उपरोक्तानुसार बताए गए उपायों को अमल में लाकर शनि-साढ़ेसाती, अढ़ैया, जन्मकुण्डली में शनि की अशुभ स्थिति के कारण होने वाली पीड़ाओं, परेशानियों और कष्टों से निजात पाई जा सकती है।

          मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल गुरूजी को आदेश आदेश आदेश ।।।

कोई टिप्पणी नहीं: