शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

बगलामुखी मालामन्त्र साधना

बगलामुखी मालामन्त्र साधना

          बगलामुखी जयन्ती समीप ही है। यह २३ अप्रैल २०१८ को आ रही है। आप सभी को बगलामुखी जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ। 

          भारतीय तन्त्र-मन्त्र साहित्य अपने आप में अद्भुत, आश्चर्यजनक एवं रहस्यमय रहा है। ज्यों-ज्यों हम इसके रहस्य को मूल में जाते हैं, त्यों-त्यों हमें विलक्षण अनुभव होते जाते हैं। इस साहित्य से कुछ तन्त्र-मन्त्र तो इतने समर्थ बलशाली एवं शीघ्र फलदायी है कि देखकर चकित रह जाना पड़ता है। ऐसे ही मन्त्र-तन्त्रों में एक तन्त्र है बगलामुखी तन्त्र, जो प्रचण्ड तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है।

          बगलामुखी साधना भारत की प्राचीनतम एवं दस महाविद्याओं में से एक रही है, कलियुग में तो इसको पग-पग पर देखा जा सकता है। शत्रुओं पर हावी होने, बलवान शत्रुओं का मान-मर्दन करने, भूत-प्रेतादि को दूर करने, हारते हुए मुकदमों में सफलता पाने एवं समस्त प्रकार से उन्नति करने में बगलामुखी मन्त्र व यन्त्र श्रेष्ठतम माने गए हैं। योगियों, तान्त्रिकों, मान्त्रिकों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। भारत के लगभग सभी तान्त्रिकों ने एक स्वर से यह स्वीकार किया है कि बगलामुखी मन्त्र-यन्त्र के समान और कोई अन्य विधान नहीं है, जो कि इतने वेग से और तुरन्त प्रभाव दिखा सके।

          श्री प्रजापति ने बगला उपासना वैदिक रीति से की और वे सृस्टि की संरचना करने में सफल हुए। श्री प्रजापति ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया।  सनत्कुमार ने इसका उपदेश श्री नारद को और श्री नारद ने सांख्यायन परमहंस को दिया, जिन्होंने छत्तीस पटलों में बगला तन्त्रग्रन्थ की रचना की। स्वतन्त्र तन्त्रके अनुसार भगवान् विष्णु इस विद्या के उपासक हुए। फिर श्री परशुराम जी और आचार्य द्रोण इस विद्या के उपासक हुए। आचार्य द्रोण ने यह विद्या परशुराम जी से ग्रहण की।

          श्री बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं, जिसमें स्त्री (शक्ति) भोग्या नहीं बल्कि पूज्या है। बगला महाविद्या श्री कुलसे सम्बन्धित हैं और अवगत हो कि श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना अत्यन्त सावधानी पूर्वक गुरु के मार्गदर्शन में शुचिता बनाते हुए, इन्द्रिय निग्रह पूर्वक करनी चाहिए। फिर बगला शक्ति तो अत्यन्त तेजपूर्ण शक्ति हैं, जिनका उद्भव ही स्तम्भन हेतु हुआ था। इस विद्या के प्रभाव से ही महर्षि च्यवन ने इन्द्र के वज्र को स्तम्भित कर दिया था। श्रीमद् गोविन्दपाद की समाधि में विघ्न डालने से रोकने के लिए आचार्य श्री शंकर ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी महाविद्या के प्रभाव से किया था। महामुनि श्री निम्बार्क ने कस्सी ब्राह्मण को इसी विद्या के प्रभाव से नीम के वृक्ष पर, सूर्यदेव का दर्शन कराया था। श्री बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र विद्याके नामे से भी जाना जाता है। शत्रुओं का दमन और विघ्नों का शमन करने में विश्व में इनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं है।

          भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है। स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तम्भित है। अतः साधक गण को चाहिए कि ऐसी महाविद्या की साधना सही रीति व विधानपूर्वक ही करें।

साधनाकाल में ध्यान रखने योग्य बातें :-----------

१. बगलामुखी साधना में साधक को पूर्ण पवित्रता के साथ जप कार्य करना चाहिए।
२. साधक को पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। धोती तथा ऊपर ओढ़ने वाली धोती (पीताम्बर) दोनों पीले रंग में रँगी हुई हो।
३. साधनाकाल में पीले अक्षत से "ह्लीं" बनाकर उस पर यन्त्र या चित्र स्थापित कर उसके सामने मन्त्र जाप करें।
४. साधनाकाल में घी प्रयोग में लें तथा दीपक में जो रूई का प्रयोग करें, उस रूई के पहले पीले रंग में रँगकर सुखा लें और इसके बाद ही उस रूई का दीपक के लिए प्रयोग करें।
५. मोक्ष प्राप्ति के लिए क्रोध का स्तम्भन आवश्यक है और यह इस साधना से सम्भव है। अतः मोक्ष प्राप्ति के लिए भी इसका प्रयोग साधकगण करते हैं।

          बगलामुखी तन्त्र में कहा गया है कि बगलामुखी माला मन्त्र अपने आप में पूर्ण है और जो साधक इस साधना को सम्पन्न करने के बाद नित्य बगलामुखी माला मन्त्र का एक बार पाठ कर लेता है, उसके जीवन में कोई बाधा व्याप्त नहीं होती।

साधना विधान :-----------

          साधना बगलामुखी जयन्ती से शुरू करें। इसके अलावा इस साधना को किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिन से अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से अथवा किसी भी मंगलवार से आरम्भ किया जा सकता है। साधना रात्रि काल में ९ बजे के बाद करना ही उचित है।

          साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल में पीला आसन बिछाकर बैठ जाएं। सामने किसी चौकी या बाजोट पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर बगलामुखी यन्त्र अथवा चित्र स्थापित करें। शुद्ध घी का दीपक और धूप-अगरबत्ती जला लें।

          अब सर्वप्रथम साधक पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का स्मरण करके चार माला गुरुमन्त्र का जाप करें और फिर गुरुदेवजी से बगलामुखी माला मन्त्र साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें। फिर उनसे साधना की पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          इसके भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर गणपतिजी से साधना की पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके "ॐ हौं जूं सः मृत्युंजय भैरवाय नमः" मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भैरवनाथजी से साधना की पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          इसके बाद साधक साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लें। इसके लिए दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि मैं अमुक नाम का साधक अमुक गौत्र परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी का शिष्य होकर आज से बगलामुखी माला मन्त्र साधना का अनुष्ठान प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ११ दिनों तक नित्य एक माला मन्त्र जाप करूँगा। हे,  माँ! आप मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस मन्त्र की सिद्धि प्रदान करें और इसकी ऊर्जा को आप मेरे भीतर स्थापित कर दें।

          ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर छोड़ दें।

          इसके बाद माँ भगवती बगलामुखी का सामान्य पूजन करे। हल्दी, पीले अक्षत से पूजन कर पीले रंग के ही पुष्प चढ़ाएं और पीले रंग के ही मिष्ठान्न का भोग अर्पित करें।

          फिर साधक को चाहिए कि वह निम्न बगलामुखी मालामन्त्र का हल्दी माला या पीली हकीक माला से एक माला जाप सम्पन्न करें -----

वल्गामुखी माला मन्त्र :-----------

॥ ॐ नमो भगवति ॐ नमो वीर-प्रताप-विजय-भगवति बगलामुखि मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय ब्राह्मीं मुद्रय-मुद्रय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां-शत्रुणां शिरो-ललाट-मुख-नेत्र-कर्ण-नासिकोरु-पद-अणु-रेणु-दन्तोष्ठ-जिह्वा-तालु-गुह्य-गुद-कटि-जानु-सर्वांगेषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय खें खीं मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्ममन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष ग्रहं निवारय-निवारय व्याधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हर-हर दारिद्रयं निवारय-निवारय सर्वमन्त्रस्वरूपिणि, सर्वतन्त्रस्वरूपिणि, सर्वशिल्पप्रयोगस्वरूपिणि, सर्वतत्वस्वरूपिणि, दुष्टग्रह-भूतग्रह-आकाशग्रह-पाषाणग्रह-सर्वचाण्डालग्रह-यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह-भूतप्रेतपिशाचानां-शाकिनी-डाकिनीग्रहाणां, पूर्वदिशां बन्धय-बन्धय वार्तालि माम् रक्ष-रक्ष, दक्षिणदिशां बन्धय-बन्धय किरातवार्तालि माम् रक्ष-रक्ष, पश्चिमदिशां बन्धय-बन्धय स्वप्नवार्तालि माम् रक्ष-रक्ष, उत्तरदिशां बन्धय-बन्धय कालि माम् रक्ष-रक्ष, ऊर्ध्वदिशां बन्धय-बन्धय उग्रकालि माम् रक्ष-रक्ष, पातालदिशां बन्धय-बन्धय बगलापरमेश्वरि माम् रक्ष-रक्ष, सकलरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्वशत्रु पलायनाय, पंचयोजनमध्ये राजजनस्त्रीवशतां कुरु-कुरु, शत्रून् दह-दह पच-पच स्तम्भय-स्तम्भय मोहय-मोहय आकर्षय-आकर्षय, मम् शत्रून् उच्चाटय-उच्चाटय हुम् फट् स्वाहा ॥

          मन्त्र जाप के उपरान्त एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप माँ भगवती बगलामुखी को ही समर्पित कर दें।

          इस प्रकार यह साधना ११ दिन तक नित्य सम्पन्न करें। साधना समाप्ति के पश्चात यन्त्र को, यदि ताबीज़ रूप में है तो धारण कर लें अन्यथा विसर्जित कर दें। चित्र को पूजा घर में ही स्थापित रहने दें।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल गुरुजी को आदेश आदेश आदेश।।।

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