गुरुवार, 15 जून 2017

सकल नकारात्मकता नाशक भ्रामरी साधना

सकल नकारात्मकता नाशक भ्रामरी साधना


        आषाढ़ मासीय गुप्त नवरात्रि निकट ही है। इस बार यह नवरात्रि  २४ जून २०१७ से आरम्भ हो रही है। आप सभी को आषाढ़ मासीय गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

         माँ जगदम्बा ने समय-समय पर जगत के कल्याण के लिए कई अवतार लिए। उन अवतारों को तीनों लोकों में पूरी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। देवी माँ के कुछ अवतारों को कुलदेवियों के रूप में स्वीकार किया गया। माँ दुर्गा का ही एक स्वरूप है भ्रामरी देवी। माँ का यह रूप अपने आप में अनूठा है। यह देवी भँवरों से घिरी रहती है और भँवरों की सहायता से अपने भक्तों की रक्षा करती है तथा दुष्टों को दण्ड देती है। कई स्थानों पर भ्रामरी देवी को भँवर माता के नाम से भी पुकारा जाता है।

          भ्रामरी देवी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार देवी ने अरुण नामक एक दैत्य से देवताओं की रक्षा करने के लिए भ्रामरी देवी का रूप धारण किया था। इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में अरुण नामक एक दैत्य ने ब्रह्मदेव की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मदेव ने प्रकट होकर अरुण से वर माँगने को कहा। तब उसने यह वर माँगा कि मुझे कोई भी युद्ध में न मार सके। मेरी मृत्यु किसी भी अस्त्र-शस्त्र से न हो। ना ही कोई स्त्री-पुरुष मुझे मार सके और ना ही दो व चार पैरों वाला कोई प्राणी मेरा वध कर सके। इसके साथ ही मैं देवताओं पर भी विजय पा सकूँ। ब्रह्माजी ने उसे ये सब वर दे दिए।

          वर पाकर अरुण ने देवताओं से स्वर्ग छीनकर उस पर अपना अधिकार कर लिया। सभी देवता घबराकर भगवान शिव के पास गए। तभी आकाशवाणी हुई कि सभी देवता देवी भगवती की उपासना करें, वे ही उस दैत्य को मारने में सक्षम हैं। आकाशवाणी सुनकर सभी देवताओं ने देवी की आराधना की। प्रसन्न होकर देवी ने देवताओं को दर्शन दिए। उनके छह पैर थे। वे चारों ओर से असंख्य भ्रमरों (एक विशेष प्रकार की बड़ी मधुमक्खी) से घिरी थीं। भ्रमरों से घिरी होने के कारण देवताओं ने उन्हें भ्रामरी देवी के नाम से सम्बोधित किया।

           देवताओं से पूरी बात जानकार देवी ने उन्हें आश्वस्त किया तथा भ्रमरों को अरुण को मारने का आदेश दिया। पल भर में ही पूरा ब्रह्माण्ड भ्रमरों से घिर गया। कुछ ही पलों में असंख्य भ्रमर अतिबलशाली दैत्य अरुण के शरीर से चिपक गए और उसे काटने लगे। अरुण ने काफी प्रयत्न किया, लेकिन वह भ्रमरों के हमले से नहीं बच पाया और उसने प्राण त्याग दिए। इस तरह देवी भगवती ने भ्रामरी देवी का रूप लेकर देवताओं की रक्षा की।

           भ्रामरी देवी का एक मन्दिर शेखावाटी अंचल के सीकर जिले में स्थित जीण माता के मन्दिर में विद्यमान है। जिसे भमरिया माता तथा भँवर माता के नाम से जाना जाता है।

          वास्तव में माँ ने दैत्य का नहीं बल्कि उस नकारात्मक विचार का वध किया, जो सृष्टि को कष्ट दे रहा था। नकारात्मक विचार हमारे अन्दर भी है, जो कि हमें दैत्यों की श्रेणी में ले जाकर खड़ा कर देते हैं। नकारात्मक विचारों के कारण ही हम कई-कई बार साधना करने के बावजूद भी सफल नहीं हो पाते हैं। क्योंकि हमारे अन्दर इतनी नकारात्मक ऊर्जा होती है, साधना के प्रति, विधि के प्रति, सफलता के प्रति, कि हम चाहकर भी सकारात्मक मनस्थिति का निर्माण नहीं कर पाते हैं और खासकर देव वर्ग की साधनाओं में तो साधक को पूर्ण सकारात्मक होना आवश्यक है।

         प्रस्तुत साधना इसी विषय पर है। माँ भ्रामरी साधक की नकारात्मक ऊर्जा पर अपने असंख्य भ्रमरों से प्रहार करती है। या यूँ कहे कि वो भ्रमर नहीं बल्कि माँ ही है, जो भ्रमर रूप में साधक की नकारात्मक ऊर्जा पर प्रहार करती है और उसका नाश करती है। तब साधक देव वर्ग की साधनाओं में सफलता प्राप्त करता ही है।

साधना विधि :—————

        यह साधना किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ की जा सकती है। यदि यह सम्भव न हो तो किसी भी कृष्णपक्ष की अष्टमी अथवा किसी भी रविवार से शुरु कर सकते हैं, परन्तु अष्टमी उत्तम है। आपका मुख दक्षिण की ओर हो तथा आपके आसन-वस्त्र लाल हों। सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर पूज्य सद्गुरुदेवजी का चित्र एवं माँ भगवती का कोई भी चित्र स्थापित करे।

       अब सर्वप्रथम सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन सम्पन्न कर कम से कम चार माला गुरुमन्त्र करे। फिर सद्गुरुदेवजी से सकल नकारात्मकता नाशक भ्रामरी साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

        फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और "ॐ भं भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

        इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

        साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से सकल नकारात्मकता नाशक भ्रामरी साधना आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ९ दिनों तक सवा घण्टे तक मन्त्र जाप करूँगा। माँ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा आप मेरी सभी नकारात्मक उर्जा को समाप्त कर दीजिए जो मुझे साधना में बाधा देती है

        इसके बाद साधक माँ भगवती भ्रामरी देवी का सामान्य विधि से पूजन करे और लाल पुष्प अर्पण करे। चूँकि यह माँ भ्रामरी देवी की साधना है, अतः गुलाब के फूलों का रस माँ को भोग में अर्पण करे। क्यूँकि भ्रमर फूलों का रस ही पीते हैं, इस साधना में माँ भी उसी रस का पान करती है। साधना के बाद रोज़ यह रस किसी वृक्ष की जड़ में डाल दिया करे। दीपक किसी भी तेल का जला लें। जो कि एक घण्टे तक जलता रहे।

        अब माँ से प्रार्थना करे कि माँ आप मेरी सभी नकारात्मक उर्जा को समाप्त कर दीजिए जो मुझे साधना में बाधा देती है। अब दीपक की लौ पर त्राटक करते हुए निम्न मन्त्र का जाप करे -----

मन्त्र :—————

      ।। ॐ ह्रीं भ्रामरी महादेवी सकल नकारात्मकता नाशय नाशय छिंदी छिंदी कुरु कुरु फट स्वाहा ।।

OM HREEM BHRAAMARI MAHAADEVI SAKAL NAKAARAATMAKATA NAASHAY NAASHAY CHHINDI CHHINDI KURU KURU PHAT SWAAHAA.

       इसमें माला की कोई जरूरत नहीं है। बस, सवा घण्टे तक नित्य जाप होगा। आँखों में दर्द होने पर मन्त्र जाप बन्द भी किया जा सकता है‚ परन्तु जितना हो सके‚ दीपक की ओर देखते हुए मन्त्र जाप करते रहे।

       मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न श्लोक का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवती भ्रामरी देवी को समर्पित कर दें।

ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
     सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।

         इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य ९ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

         इस साधना में साधक को कई भ्रमरों की आवाज़ सुनाई दे सकती है। यह माँ ही तो है‚ अतः डरे नहीं। घबराहट होना, सरदर्द होना, क्रोध आना स्वाभाविक है, क्यूँकि आपकी नकारात्मक ऊर्जा आपसे बहुत प्रेम करती है‚ जो आसानी से छोड़ती नहीं है। माँ के प्रहार जब उस ऊर्जा पर पड़ते हैं तो साधक को यह तकलीफ होती ही है। अतः धैर्य धारण करे और सफलता प्राप्त करे।

        आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती भ्रामरी देवी का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

                इसी कामना के साथ

              ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।



1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

क्या भ्रामरी देवी और भ्रमारंबा एक ही है