बुधवार, 21 सितंबर 2022

तीक्ष्ण त्रिशक्ति साधना

 तीक्ष्ण त्रिशक्ति साधना   

          आश्विन नवरात्रि महापर्व समीप ही है। यह २६ सितम्बर २०२२ से आरम्भ हो रहा है। आप सभी को आश्विन नवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          इस ब्रह्माण्ड में आदिशक्ति के अनन्त रूप अपने-अपने सुनिश्चित कार्यों को गति प्रदान करने के लिए तथा ब्रह्माण्ड के योग्य सञ्चालन के लिए अपने नियत क्रम के अनुसार गतिशील है। इसी ब्रह्माण्डीय शक्ति के मूल तीन दृश्यमान स्वरूप को हम महासरस्वतीमहालक्ष्मी तथा महाकाली के रूप में देखते हैं। तान्त्रिक दृष्टि से यही तीन शक्तियाँ सृजन, पालन तथा संहार क्रम की मूल शक्तियाँ हैं‚ जो कि त्रिदेव की सर्व कार्य क्षमता का आधार है।

          ये ही त्रिदेवियाँ ब्रह्माण्ड की सभी क्रियाओं में सूक्ष्म या स्थूल रूप से अपना कार्य करती ही रहती हैं तथा ये ही शक्तियाँ मनुष्य के अन्दर तथा बाह्य दोनों रूप में विद्यमान हैं। मनुष्य के जीवन में होने वाली सभी घटनाओं का मुख्य कारण इन्हीं त्रिशक्तियों के सूक्ष्म रूप हैं।

क्रिया ज्ञान इच्छा  शक्तिः।

          अर्थात् शक्ति के तीन मूल स्वरूप हैं ------

(१) ज्ञान-शक्ति

      (२) इच्छा-शक्ति

      (३) क्रिया-शक्ति

          ज्ञानइच्छा तथा क्रिया के माध्यम से ही हमारा पूर्ण अस्तित्व बनता है, चाहे वह हमारे रोज़िन्दा जीवन की शुरूआत से लेकर अन्त हो या फिर हमारे सूक्ष्म से सूक्ष्म या वृहद से वृहद क्रियाकलाप। हमारे जीवन के सभी क्षण इन्हीं त्रिशक्ति के अनुरूप गतिशील रहते हैं।

वस्तुतः जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है‚ मनुष्य शरीर ब्रह्माण्ड की एक अत्यन्त ही अद्भुत रचना है। लेकिन मनुष्य को अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं है, उसकी अनन्त क्षमताएँ सुप्त रूप में उसके भीतर ही विद्यमान होती है।  

          इसी प्रकार यह त्रिशक्ति का नियन्त्रण वस्तुतः हमारे हाथ में नहीं है और हमें इसका कोई ज्ञान भी नहीं होता है। लेकिन अगर हम सोच के देखें तो हमारा कोई भी सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य भी इन्हीं तीनों शक्तियों में से कोई एक शक्ति के माध्यम से ही सम्पादित होता है। योगीजन इन्हीं शक्तियों के विविध रूप को चेतन कर उनकी सहायता प्राप्त करते हुए ब्रह्माण्ड के मूल रहस्यों को जानने का प्रयत्न करते रहते हैं।

          न सिर्फ आध्यात्मिक जीवन में वरन् हमारे भौतिक जीवन के लिए भी इन शक्तियों का हमारी तरफ अनुकूल होना कितना आवश्यक है। यह सामन्य रूप से कोई भी व्यक्ति समझ ही सकता है। ज्ञान शक्ति एक तरफ आपको जीवन में किस प्रकार से आगे बढ़कर उन्नति कर सकते हैं‚ इस पक्ष की ओर विविध अनुकूलता दे सकती है।

          वहीं दूसरी ओर जीवन में प्राप्त ज्ञान का योग्य संचार कर विविध अनुकूलता की प्राप्ति कैसे करनी है तथा उनका उपभोग कैसे करना है‚ यह इच्छाशक्ति के माध्यम से समझा जा सकता है।

          क्रिया शक्ति हमें विविध पक्ष में गति देती है तथा किस प्रकार प्रस्तुत उपभोग को अपनी महत्तम सीमा तक हमें अनुकूलता तथा सुख प्रदान कर सकती है। यह तथ्य समझा देती है।

          प्रस्तुत साधना, इन्हीं त्रिशक्ति को चेतन कर देती है‚ जिससे साधक अपने जीवन के विविध पक्षों में स्वतः ही अनुकूलता प्राप्त करने लगता है, न ही सिर्फ भौतिक पक्ष में‚ बल्कि आध्यात्मिक पक्ष में भी।

          साधक के नूतन ज्ञान को प्राप्त करने तथा उसे समझने में अनुकूलता प्राप्त होने लगती है। किसी भी विषय को समझने में पहले से ज्यादा साधक अनुकूलता अनुभव करने लगता है। अपने अन्दर की विविध क्षमताओं तथा कलाओं के बारे में साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है, उसके लिए क्या योग्य और क्या अयोग्य हो सकता है? इसके सम्बन्ध में भी साधक की समझ बढ़ाने लगती है।

          इच्छाशक्ति की वृद्धि के साथ साधक को विविध प्रकार के उन्नति के सुअवसर प्राप्त होने लगते हैं तथा साधक को अपने ज्ञान का उपयोग किस प्रकार और कैसे करना है? यह समझ में आने लगता है। उदहारण के लिए किसी व्यक्ति के पास व्यापार करने का ज्ञान है‚ लेकिन उसके पास व्यापार करने की कोई क्षमता नहीं है या उस ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग हो नहीं पा रहा है तो इच्छाशक्ति के माध्यम से यह सम्भव हो जाता है।

          क्रियाशक्ति के माध्यम से साधक अपनी इच्छाशक्ति में गति प्राप्त करता है अर्थात किसी भी कार्य का ज्ञान है, उसको करने के लिए मौका भी है। लेकिन अगर वह क्रिया ही न हो‚ जो कि परिणाम की प्राप्ति करवा सकती है तो सब बेकार हो जाता है। क्रिया शक्ति उसी परिणाम तक साधक को ले जाती है तथा एक स्थिरता प्रदान करती है।

          त्रिशक्ति से सम्बन्धित यह तीव्र प्रयोग निश्चय ही एक गूढ़ प्रक्रिया है। वास्तव में अत्यन्त ही कम समय में साधक की तीनों शक्तियाँ चैतन्य होकर साधक के जीवन को अनुकूल बनाने की ओर प्रयासमय हो जाती है। इस प्रकार की साधना की अनिवार्यता को शब्दों के माध्यम से आँका नहीं जा सकता है‚ वरन इसे तो मात्र अनुभव ही किया जा सकता है। साधना प्रयोग का विधान कुछ इस प्रकार है -------

साधना विधान :------------

          इस साधना को साधक किसी भी शुभ दिन से शुरू कर सकता हैफिर भी यदि इसे किसी भी नवरात्रि में सम्पन्न किया जाए तो कहीं अधिक श्रेष्ठ होगा। साधना में समय रात्रिकाल में ९ बजे के बाद का रहे।

          साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत होकर लाल वस्त्र को धारणकर लाल आसन पर बैठ जाए। साधक का मुख उत्तर दिशा की ओर रहे।

          अपने सामने बाजोट पर या किसी लकड़ी के पट्टे पर साधक को लाल वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु चित्र/यन्त्र स्थापित करे। फिर साधक को सर्वप्रथम गुरुपूजन, गणेश-पूजन तथा भैरव-पूजन सम्पन्न करना चाहिए। 

          पहले सद्गुगुरुदेवजी का ध्यान कर पञ्चोपचारों से संक्षिप्त गुरुपूजन करे, फिर गुरुमन्त्र का जाप करे। गुरुमन्त्र की न्यूनतम चार माला जाप कर सद्गुरुदेवजी से साधना में सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक भगवान गणपतिजी एवं भगवान भैरव का स्मरण करके सामान्य पूजन करे। साधक चाहे तो मन्त्र जाप भी कर सकता है। फिर उनसे साधना की सफलता और निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करे। 

          अब एक भोजपत्र या सफ़ेद कागज़ पर एक अधः त्रिकोण कुंकुंम से बनाना है तथा उसके तीनों कोण में बीजमन्त्रों को लिखना है। इस यन्त्र निर्माण के लिए साधक चाँदी की शलाका का प्रयोग करे तो उत्तम है। अगर यह सम्भव न हो तो साधक को अनार की कलम का प्रयोग करना चाहिए।

          साधक अब उस यन्त्र का सामान्य पूजन करे तथा दीपक प्रज्वलित करे। दीपक किसी भी तेल का हो सकता है।

          उसके बाद साधक निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप करे। इस मन्त्र जाप के लिए साधक “मूँगा माला” का प्रयोग करे।

मन्त्र :-----------

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं फट्  

OM HREENG SHREENG KREENG PHAT.

          मन्त्र जाप के उपरान्त एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती त्रिशक्ति को ही समर्पित कर दें।

          साधक अगले ८ दिन तक यह क्रम जारी रखे अर्थात कुल ९ दिन तक यह प्रयोग करना है।

          प्रयोग पूर्ण होने के बाद साधक उस यन्त्र को पूजा स्थान में ही स्थापित कर दे। माला को प्रवाहित नहीं किया जाता है। साधक उस माला का प्रयोग वापस इस मन्त्र की साधना के लिए कर सकता है तथा निर्मित किये गए यन्त्र के सामने ही मन्त्र जाप को किया जा सकता है।

          अन्तिम दिन साधक को यथा सम्भव छोटी बालिकाओं को भोजन कराना चाहिए तथा वस्त्र‚ दक्षिणा आदि देकर सन्तुष्ट करना चाहिए।

          आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती का आपको आशीर्वाद प्राप्त हो। मैं पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी ऐसी कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।

 

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

श्रीगणेश षोडशोपचार पूजन विधान

श्रीगणेश षोडशोपचार पूजन विध

          गणेश चतुर्थी पर्व समीप ही है। इस वर्ष गणेशोत्सव अगस्त २०२२ से आरम्भ हो रहा है। आप सभी को गणेश चतुर्थी पर्व और गणेशोत्सव की अग्रिम रूप से बहुत–बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

           भगवान गणेश की गणेश चतुर्थी के दिन सोलह उपचारों से वैदिक मन्त्रों के जापों के साथ पूजा की जाती है। भगवान की सोलह उपचारों से की जाने वाली पूजा को षोडशोपचार पूजा कहते हैं। गणेश चतुर्थी की पूजा को विनायक चतुर्थी पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

          भगवान गणेश को प्रातःकाल, मध्याह्न और सायाह्न में से किसी भी समय पूजा जा सकता है। परन्तु गणेश-चतुर्थी के दिन मध्याह्न का समय गणेश-पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मध्याह्न के दौरान गणेश-पूजा का समय गणेश-चतुर्थी पूजा मुहूर्त कहलाता है।

          गणेश-पूजा के समय किये जाने वाले सम्पूर्ण उपचारों को नीचे सम्मिलित किया गया है। इन उपचारों में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह उपचार भी शामिल हैं। दीप-प्रज्वलन और संकल्प, पूजा प्रारम्भ होने से पूर्व किये जाते हैं। अतः दीप-प्रज्वलन और संकल्प षोडशोपचार पूजा के सोलह उपचारों में सम्मिलित नहीं होते हैं।

          यदि भगवान गणपति आपके घर में अथवा पूजा स्थान में पहले से ही प्राण-प्रतिष्ठित हैं तो षोडशोपचार पूजा में सम्मिलित आवाहन और प्रतिष्ठापन के उपचारों को त्याग देना चाहिये। आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा नवीन गणपति मूर्ति (मिट्टी अथवा धातु से निर्मित) की ही की जाती है। यह भी उल्लेखनीय है कि घर अथवा पूजा-स्थान में प्रतिष्ठित मूर्तियों का पूजा के पश्चात विसर्जन के स्थान पर उत्थापन किया जाता है।

          गणेश चतुर्थी पूजा के दौरान भक्त लोग भगवान गणपति की षोडशोपचार पूजा में एक-विंशति गणेश नाम पूजा और गणेश अङ्ग पूजा को भी सम्मिलित कर लेते हैं।

          इसके बाद भगवान गणपतिजी का पूर्ण षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। षोडशोपचार पूजन विधि निम्नानुसार है -----

          हाथ में अक्षत लेकर भगवान गणपतिजी का ध्यान करें -------

ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारूभक्षणम्।

   उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः‚ ध्यानं समर्पयामि।

         हाथ के अक्षत गणेशजी पर चढ़ा दें।

१.     आवाहन एवं प्राण-प्रतिष्ठा

आवाहन

          सर्वप्रथम निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर उनका आवाहन करें -----

ॐ गणानां त्वा गणपति (गूं) हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति (गूं) हवामहे।

निधीनां त्वा निधिपति (गूं) हवामहे, वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥

ॐ एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र समस्तविघ्नौघविनाशदक्ष।

मांगल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन्नमस्ते॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।

प्राण-प्रतिष्ठा

           आवाहन के पश्चात् हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर भगवान गणेश की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करें ------

ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।

   अस्यै  देवत्वं  अर्चायै  मामहेति  च  कश्चन

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टम्

यज्ञ गूं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्तामोऽम्प्रतिष्ठ

ॐ गजाननं! सुप्रतिष्ठे वरदे भवेताम्।

प्रतिष्ठापूर्वकम आसनार्थे अक्षतान समर्पयामि

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः

           यह कहकर अक्षत-पुष्प गणेशजी पर अर्पित कर दें

२.     आसन

           आवाहन एवं प्रतिष्ठापन के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को आसन के लिए थोड़े अक्षत या पुष्प समर्पित करें -----

ॐ विचित्ररत्नखचितं दिव्यास्तरणसंयुतम्।

   स्वर्ण सिंहासनं चारू ग्रहाण गुहाग्रज॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, आसनं समर्पयामि।

३.     पाद्य

          आसन समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें -----

ॐ सर्वतीर्थसमुद्भूतं पाद्यं गन्धादिभिर्युतम्।

   गजानन गृहणेदं भगवान भक्तवत्सलः॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि।

४.     अर्घ्य

           पाद्य समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को गन्धमिश्रित अर्घ्य जल समर्पित करें -----

ॐ गणाध्यक्ष नमस्तेऽस्तु गृहाण करुणाकर।

   अर्घ्यं च फल संयुक्तं गन्धमाल्याक्षतैर्युतम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, हस्तोरर्घ्यं समर्पयामि।

५.     आचमन

           अर्घ्य समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए भगवान गणेश को जल समर्पित करें -----

ॐ विघ्नराज नमस्तुभ्यं त्रिदशैरभिवन्दित।

   गङ्गोदकेन देवेश कुरुष्व आचमनं प्रभो॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, मुखे आचमनीयं समर्पयामि।

६.     स्नान

           आचमन समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को जल से स्नान कराएं -----

ॐ नर्मदा चन्द्रभागादि गङ्गासङ्ग सजैर्जलैः।

   स्नानि तोसि मया देव विघ्नसंघं निवारय॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, सर्वाङ्ग स्नानं समर्पयामि।

पञ्चामृत स्नान

          जल से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पञ्चामृत से स्नान कराएं -----

ॐ पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु।

   शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि।

पयः (दुग्ध) स्नान

                      पञ्चामृत से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पयः (दूध) से स्नान कराएं -----

ॐ कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम्।

   पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, पयः स्नानं समर्पयामि।

दधि स्नान

          पयः से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दही से स्नान कराएं -----

ॐ पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।

   दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, दधि स्नानं समर्पयामि।

घृत स्नान

          दही से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को घी से स्नान कराएं -----

ॐ नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसन्तोषकारकम्।

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, घृत स्नानं समर्पयामि।

मधु स्नान

          घी से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शहद से स्नान कराएं -----

ॐ पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।

तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिग्रह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, मधु स्नानं समर्पयामि।

शर्करा स्नान

          शहद से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शर्करा (शक्कर) से स्नान कराएं -----

ॐ इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्।

मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, शर्करा स्नानं समर्पयामि।

सुवासित स्नान

           शर्करा से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को सुगन्धित तेल से स्नान कराएं -----

ॐ चम्पाकाशेकबकुल मालती मोगरादिभिः।

वासितं स्निग्धताहेतु तैलं चारू प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, सुवासित स्नानं समर्पयामि।

शुद्धोदक स्नान

          सुगन्धित तेल से स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शुद्ध जल से स्नान कराएं -----

ॐ गङ्गा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती।

नर्मदा सिन्धु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

७.     वस्त्र समर्पण वं उत्तरीय समर्पण

वस्त्र

          शुद्धोदक स्नान के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को मौलि के रूप में वस्त्र समर्पित करें -----

ॐ शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।

   देहालङ्करणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, वस्त्रं समर्पयामि।

उत्तरीय समर्पण

          वस्त्र समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शरीर के ऊपरी अङ्गों के लिए वस्त्र समर्पित करें -----

ॐ उत्तरीयं तथा देव नाना चित्रितमुत्तमम्।

   गृहणेदं मया भक्तया दत्तं तत्सफली कुरु॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, उत्तरीयं समर्पयामि।

८.     यज्ञोपवीत

          वस्त्र एवं उत्तरीय समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को यज्ञोपवीत समर्पित करें -----

ॐ नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्।

   उपवीतं  मया  दत्तं  गृहाण  परमेश्वर॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।

९.     गन्ध

           यज्ञोपवीत समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को सुगन्धित द्रव्य समर्पित करें -----

ॐ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।

   विलेपनं  सुरश्रेष्ठ!  चन्दनं  प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, गन्धं समर्पयामि।

१०.                    अक्षत

          गन्ध समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को अक्षत चढ़ाएं -----

ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिता।

   मया  निवेदिता  भक्त्या  गृहाण  परमेश्वर॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, अक्षतान् समर्पयामि।

११.                    पुष्प माला, शमी पत्र, दुर्वाङ्कुर, सिन्दूर

पुष्पमाला

          अक्षत समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पुष्प माला चढ़ाएं -----

ॐ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।

   मयाहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, पुष्पमालां समर्पयामि।

शमीपत्र

           पुष्प माला समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शमी पत्र चढ़ाएं -----

ॐ त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै।

   शमीदलानि   हेरम्ब!   गृहाण   गणनायकः॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, शमी पत्राणि समर्पयामि।

दुर्वाङ्कुर

           शमी पत्र समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दुर्वाङ्कुर (तीन अथवा पाँच पत्र वाला दूर्वा) चढ़ाएं -----

ॐ दुर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान मङ्गलप्रदान्।

   आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायकः॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, दुर्वाङ्कुरान् समर्पयामि।

सिन्दूर

           दुर्वाङ्कुर समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ाएं -----

ॐ सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।

   शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, सिन्दूरं समर्पयामि।

१२.                    धूप

           सिन्दूर समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को धूप समर्पित करें -----

ॐ वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।

   आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, धूपं आघ्रापयामि।

१३.                      दीप

           धूप समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दीप समर्पित करें -----

ॐ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।

   दीपं  गृहाण  देवेश  त्रैलोक्य  तिमिरापहम्॥

   भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।

    त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, दीपं दर्शयामि।

हस्त-प्रक्षालन

“ॐ हृषिकेशाय नमः।” — कहकर हाथ धो लें।

१४.                      नैवेद्य एवं करोद्वर्तन

नैवेद्य

          दीप समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को नैवेद्य समर्पित करें -----

ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष (गूं) शीर्ष्णोद्यौः समवर्तत।

       पदभ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रा तथा लोकां अकल्पयन्॥

ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ समानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा।

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।

आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिग्रह्यताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, नैवेद्यं निवेदयामिनानाऋतुफलानि च समर्पयामि।

नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।

          आचमन हेतु जल समर्पित करें

चन्दन करोद्वर्तन

           नैवेद्य समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को चन्दन युक्त जल समर्पित करें -----

ॐ चन्दनं मल्योद्भूतं कस्तूर्यादि समन्वितम्।

   करोद्वर्तनकम्  देव  गृहाण  परमेश्वर॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, करोद्वर्तनकम् चन्दनं समर्पयामि।

१५.                      ताम्बूल, नारिकेल एवं दक्षिणा

ताम्बूल

          चन्दन करोद्वर्तन के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को ताम्बूल (इलायची, लौंग, सुपारी के साथ) समर्पित करें -----

ॐ पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।

   एलादिचूर्ण संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्याताम्॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, मुखवासार्थम् ताम्बूलं समर्पयामि।

नारिकेल

          ताम्बूल समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को नारियल समर्पित करें  -----

ॐ इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव।

तेन वे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, नारिकेलं फलं समर्पयामि।

दक्षिणा

          नारिकेल समर्पण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दक्षिणा समर्पित करें  -----

ॐ हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।

   अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिम् प्रयच्छ मे॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, दक्षिणा द्रव्यं समर्पयामि।

१६.                      नीराजन एवं विसर्जन

नीराजन/आरती

         निम्नलिखित मन्त्र पढ़ने के पश्चात् भगवान गणेश की आरती करें -----

ॐ इद (गूं) हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर (गूं) सर्वगुण (गूं) स्वस्तये।

   आत्मसनि  प्रजासनि  पशुसनि  लोकसन्य  भयसनि।

   अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त॥

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तू प्रदीपितम्।

आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, कर्पूरं आरार्तिकं समर्पयामि।

पुष्पाञ्जलि

          निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पुष्पाञ्जलि समर्पित करें -----

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च।

पुष्पाञ्जलिः मया दत्तो गृहाण परमेश्वर॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।

प्रदक्षिणा

         भगवान गणेश की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीगणेश को फूल समर्पित करें -----

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि  सर्वाणि  नश्यन्तु  प्रदक्षिणपदे पदे॥

ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि।

विसर्जन

          दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर विसर्जन हेतु निम्नलिखित मन्त्र पढ़ें -----

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।

पूजां चैव न जानामि  क्षमस्व गणेश्वर

अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम्।

तस्मात्कारुण्य भावेन रक्षस्व विघ्नेश्वर॥

गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्रयं मेव च।

आगता सुख सम्पत्तिः पुण्याञ्च तव दर्शनात्॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरः।

यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे।

यदक्षरपद भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।

तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर॥

          भगवान लम्बोदर आपको तथा आपके सम्पूर्ण परिवार को अपना आशीर्वाद प्रदान करे और आपके जीवन से सभी विघ्नों का नाश हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।