सोमवार, 10 अप्रैल 2017

श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवच सिद्धि

श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवच सिद्धि

           निखिल जयन्ती निकट ही है। आप सभी को विदित ही हैं कि हर वर्ष २१ अप्रैल को श्री निखिलेश्वरानन्द जयन्ती मनाई जाती है। आप सभी को अग्रिम रूप से निखिल जयन्ती की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

         जब कोई व्यक्ति पुलिस में भर्ती होता है तो इसकी खबर चोरोंलुटेरों आदि असामाजिक तत्वों को शीघ्र हो जाती है और वे सभी उस पर कड़ी नजर रखने लगते हैं कि जैसे ही यह पुलिसवाला हमारे विरुद्ध कोई कार्यवाही करता है तो किस तरह उसे रास्ते से हटाया जा सकेमारा जा सके।

         ठीक यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब कोई जातक दीक्षित होता है या साधनात्मक मार्ग पर चलने लगता है तो सभी की सभी नकारात्मक शक्तियाँअहंकारी दुष्ट प्रवृत्ति के साधकसिद्धतान्त्रिक आदि भी ऐसे साधकों से ईर्ष्या एवं बैर भाव रखने लगते हैं और मौका मिलने पर ऐसे साधकों को परेशान करते हैंउसके आसपास के वातावरण को प्रतिकूल करने के लिए उल्टे-सीधे प्रयोग करते हैंऔर तो और उसकी साधनात्मक ऊर्जा को चुराने की भी कोशिश करते हैं। ऐसा काम ज्यादातर साधक के साथ क्रियाशील शक्तियाँ ही करती हैं। अधकचरे तान्त्रिकों के चक्कर में तो वह तब आता हैजब वह निःस्वार्थ भाव से लोगों की मदद करता है या फिर विशुद्ध साधनात्मक वातावरण में प्रवेश करता हैजैसे कि संन्यास जीवन में। इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारी स्थितियाँ हैं।

         वैसे तो साधक के लिए गुरुमन्त्र ही सर्वोपरि हैपरन्तु साधनात्मक जीवन में बहुत सारे पहलुओं सेआयामों से परिचित होना पड़ता हैउनका ज्ञान रखना पड़ता है। यहाँ तक कि साधक के आसपास स्वयं उसके परिवार आदि में भी ऐसे लोग होते हैंजो उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा का अवशोषण कर लेते हैं। कभी-कभी उनके पूर्वज आदि भी ऐसा करते हैंपरन्तु इन सब बातों का पता एक सामान्य साधक को नहीं चलता है। पूर्व जन्मों के कर्मदोष भी हो सकते हैं। गुरु भी हर एक तथ्य को आपको प्रत्यक्ष रूप से नहीं बता सकतेक्योंकि शिविरों आदि में उन्हें अत्यधिक ऊर्जा लगानी पड़ती हैमेहनत करनी पड़ती हैस्वयं की भी साधना करनी पड़ती है। आखिर उनके भी तो गुरु हैं। इसलिए आपको अपने गुरु द्वारा रचित साहित्यों और अन्य आध्यात्मिक व साधनत्मक ग्रन्थों का भी अध्ययन करना चाहिए। या फिर अपने वरिष्ठ गुरु भाईयों या साधकों की सहायता लेनी चाहिए।

         मैं यहाँ पर आध्यात्मिक रूप से श्री निखिलेश्वरानन्द कवच दे रहा हूँजिसका यदि आप उपयोग करते हैं तो न केवल आप पूर्ण रूपेण विपक्ष द्वारा किए जा रहे तन्त्र-मन्त्रादिकों से सुरक्षित रहेंगेअपितु आप जो भी साधनात्मक शक्तियाँ अर्जित करते हैंवोह भी पूर्ण रूपेण कवचित रहेगी। कोई भी उनका हरण नहीं कर पायेगा। इस कवच के मध्यम से आप दुष्कर साधनाओं को भी सम्पन्न कर सकते हैं। श्मशान आदि की साधना में इसके द्वारा सुरक्षा चक्र या गोल घेरा निर्माण और उसके बाद स्वयं के शरीर का कीलनजिससे कोई भी दुष्ट या नकारात्मक शक्तियाँ आपका अहित न कर पाएंआप कर सकते हैं।

        और एक महत्वपूर्ण बात वह यह है कि आप यह न सोचें कि मात्र निर्देशित संख्या में कवच या मन्त्र पाठ कर लिया और हो गया आपको वह कवच सिद्ध। ऐसा नहीं होताक्योंकि यह कलियुग है और आजकल का रहन-सहनखान-पानचिन्तन-मननकार्य-व्यापार आदि ऐसा हो गया है कि मनुष्य के न चाहते हुए भी कुछ ऐसे दुष्कर्म हो जाते हैंजिनका उन्हें खुद ही पता नहीं होता। अतः साधनात्मक ऊर्जा धीरे-धीरे क्षीण होती जाती हैक्योंकि आप समाज में रह कर साधना कर रहे हैं। कोई संन्यासी तो हैं नहीं कि २४ घण्टे साधनात्मक चिन्तन ही हो। और न ही उन जैसा सधा हुआ सिद्ध शरीर जो किसी भी साधनात्मक शक्ति की ऊर्जा को एक ही बार में भलीभाँति अपने आप में समाहित कर सकेपचा सके।

         अतः आप किसी भी साधना को करते हैं तो यह आवश्यक है कि आप मूल साधना को कम-से-कम ४-५ बार करें और उसके बाद उसकी निरन्तरता बनाए रखने के लिए नित्य कवच या मन्त्र का कुछ मात्रा में पाठ या जाप करें। विशेषतया कवच या स्तोत्र आदि की सिद्धि १००० पाठ से हो जाती है और इस तरह ४-५ बार में कुल चार या पाँच हजार पाठ सम्पन्न हो जाते हैं। कुछ कवचों और स्तोत्रों में उनकी पाठ संख्या दी गई होती है। इन सबके बाद ही आप कवच या स्तोत्र में लिखे प्रयोग आदि को करने की पात्रता अर्जित करते हैं।

कवच साधना विधि :-----------

           इस साधना को निखिल जयन्ती अथवा किसी भी गुरुवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारणकर पीले आसन पर बैठ जाए। दिशा उत्तर या पूर्व ही उचित रहेगी। अपने सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर साधक उसपर सद्गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी का चित्र अथवा गुरु यन्त्र स्थापित करे। घी या तेल का दीपक जलाकर साथ ही धूप-अगरबत्ती भी जला ले। 
         फिर साधक सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से श्री निखिलेश्वरानन्द कवच साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न कर गणेशमन्त्र की एक माला जाप करें और भगवान गणेशजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         फिर साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवच के १००० पाठ का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी मेरी साधना को स्वीकार कर निखिलेश्वरानन्द कवच की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।

         ऐसा कहकर जल भूमि पर छोड़ दे और कवच पाठ आरम्भ करें -----

श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवच

विनियोग :-----------

       ॐ अस्य श्रीनिखिलेश्वरानन्द कवचस्य श्रीमुद्गल ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीगुरुदेवो निखिलेश्वरानन्द परमात्मा देवता, महोस्तवं रूपं च इति बीजम्, प्रबुद्धम् निर्नित्यम् इति कीलकम्, अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचम्, श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास :-----------

 

श्रीमुद्गल ऋषये नमः शिरसि।                        (सिर को स्पर्श करें।)

अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे।                          (मुख को स्पर्श करें।)

श्रीगुरुदेवो निखिलेश्वरानन्द परमात्मा देवतायै नमः हृदि।   (हृदय को स्पर्श करें।)

महोस्तवं रूपं च इति बीजाय नमः गुह्ये।              (गुह्य-स्थान को स्पर्श करें।)

प्रबुद्धम निर्नित्यम इति कीलकाय नमः पादयोः।            (दोनों पैरों को स्पर्श करें।)

अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचाय नमः नाभौ।               (नाभि को स्पर्श करें।)

श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थेस्वकृतेन आत्म मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (पूरे शरीर को स्पर्श करें।) 

कर-न्यास :-----------

 

श्रीसर्वात्मने निखिलेश्वराय अंगुष्ठाभ्यां नमः।   (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करें।)

श्रीमन्त्रात्मने पूर्णेश्वराय तर्जनीभ्यां नमः।      (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें।)

श्रीतन्त्रात्मने वागीश्वराय मध्यमाभ्यां नमः।    (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें।)

श्रीतन्त्रात्मने योगीश्वराय अनामिकाभ्यां नमः।  (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें।)

श्रीशिष्य प्राणात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः।      (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें।)

श्रीसच्चिदानन्द प्रियाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें।)

हृदयादि-न्यास :-----------

श्रीं शेश्वरः हृदयाय नमः।            (हृदय को स्पर्श करें।)  

ह्रीं शेश्वरः शिरसे स्वाहा।            (सिर को स्पर्श करें।)

क्लीं शेश्वरः शिखायै वषट्।          (शिखा को स्पर्श करें।)

तपसेश्वरः कवचाय हुं।              (परस्पर भुजाओं को स्पर्श करें।)

तापेशेश्वरः नेत्रत्रयाय वौषट्।          (नेत्रों को स्पर्श करें।)

एकेश्वरः अस्त्राय फट्।              (सिर से हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं।)

मूल कवचम् :-----------

ॐ शिरः सिद्धेश्वरः पातु ललाटं च परात्परः।

नेत्रे निखिलेश्वरानन्दः नासिके नरकान्तकः॥१॥

कर्णौ कालात्मकः पातु मुखं मन्त्रेश्वरस्तथा।

कण्ठं रक्षतु वागीशः भुजौ च भुवनेश्वरः॥२॥

स्कन्धौ कामेश्वरः पातु हृदयं ब्रह्मवर्चसः।

नाभिं नारायणो रक्षेत ऊरुं ऊर्जस्वलोऽपि वै॥३॥

जानुनि सच्चिदानन्दः पातु पादौ शिवात्मकः।

गुह्यं लयात्मकः पायात् चित्तं चिन्तापहारकः॥४॥

मदनेशः मनः पातु पृष्ठं पूर्णप्रदायकः।

पूर्वं रक्षतु तन्त्रेशः यन्त्रेशः वारुणीं तथा॥५॥

उत्तरं श्रीधरः रक्षेत दक्षिणं दक्षिणेश्वरः।

पातालं पातु सर्वज्ञः ऊर्ध्वं मे प्राणसंज्ञकः॥६॥

फलश्रुति :-----------

कवचेनावृतो यस्तु यत्र कुत्रापि गच्छति।

तत्र सर्वत्र लाभः स्यात् किंचिदत्र न संशयः॥७॥

यं यं चिन्तयते काम तं तं प्राप्नोति निश्चितं।

धनवान बलवान लोके जायते समुपासकः॥८॥

ग्रह भूत पिशाचाश्च यक्ष गर्न्धव राक्षसाः।

नश्यन्ति सर्व विघ्नानि दर्शनात् कवचेनावृतम्॥९॥

य इदं कवचं पुण्यं प्रातः पठति नित्यशः।

सिद्धाश्रमः पदारूढ़ः ब्रह्मभावेन भूयते॥१०॥

        पहले पाठ में मूल कवच और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल कवच का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः मूल कवच एवं फलश्रुति दोनों का पाठ करें। आप १००० पाठ को ५ या ११ या २१ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं। इस तरह इस सम्पूर्ण प्रक्रम को आप ५ बार करें तो कुल ५००० पाठ सम्पन्न हो जाएंगे।

प्रयोग विधि :------------

          नित्य किसी भी पूजन या साधना को करने से पूर्व और अन्त में आप कवच का ५ बार पाठ करें। रोगयुक्त अवस्था में या यात्राकाल में स्तोत्र को मानसिक रूप से भावना पूर्वक स्मरण कर लें।

        इसी तरह यदि आप श्मशान में किसी साधना को कर रहे हों तो एक लोहे की छ्ड़ को कवच से २१ बार अभिमंत्रित कर अपने चारों ओर घेरा बना लें और साधना से पूर्व व अन्त में कवच का ५-५ बार पाठ कर लें। जब कवच सिद्धि की साधना कर रहे हो उस समय एक लोहे की छ्ड़ को भी गुरु चित्र या यन्त्र के सामने रख सकते हैं और बाद में उपरोक्त विधि से प्रयोग कर सकते हैं।

        मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ

        ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

रविवार, 2 अप्रैल 2017

श्री हनुमान चालीसा सिद्धि

श्री हनुमान चालीसा सिद्धि



         श्रीराम नवमी और श्रीहनुमान जयन्ती निकट ही है। इस बार श्रीराम नवमी ५ अप्रैल २०१७ और श्रीहनुमान जयन्ती ११ अप्रैल २०१७ को आ रही है। आप सभी को श्रीराम नवमी और श्रीहनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

                  शास्त्रों के अनुसार कलयुग में हनुमानजी की भक्ति को सबसे रूरी, प्रथम और उत्तम बताया गया है। हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। यह भक्ति जहाँ हमें भूत-प्रेत जैसी न दिखने वाली आपदाओं से बचाती है, वहीं यह ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचाती है। हनुमानजी को मनाने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ।

         हनुमान चालीसा के बारे में आज के युग में कौन व्यक्ति नहीं जानता? सन्त प्रवर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह हनुमान चालीसा हिन्दी भाषी जगत् में सर्व प्रसिद्ध है। जिस प्रकार से श्रीरामचरित मानस का प्रचार-प्रसार है, उससे भी कहीं अधिक हनुमान चालीसा का है। प्रत्येक कल्याणकामी व्यक्ति के लिए बल, बुद्धि, विद्या इन तीनों की प्राप्ति परमावश्यक है। बलबुद्धिविद्या से रहित कोई भी व्यक्ति, जाति तथा राष्ट्र किसी भी प्रकार से सुखसमृद्धि का भाजन नहीं बन सकता और बलबुद्धिविद्या के स्रोत स्वयं रुद्रावतार भगवान् आंजनेय ही हैं। उनकी प्राप्ति के लिए उनके चरित्र चिन्तन के रूप में विरचित हनुमान चालीसा एक अमोघ साधन है।

         वस्तुतः हनुमान चालीसा एक विलक्षण साधना क्रम है, जिसमें कई सिद्धों की शक्ति एक साथ कार्य करती है। विविध साबर मन्त्रों के समूह सम यह चालीसा अनन्त शक्तियों से सम्पन्न है। अगर सूक्ष्म रूप से अध्ययन किया जाए तो यह हनुमानजी के ही मूल शिवस्वरुप के आदिनाथ स्वरुप की ही साबर अभ्यर्थना है। कानन कुण्डल, संकर सुवन, तुम्हारो मन्त्र, आपन तेज, गुरुदेव की नाईं, अष्टसिद्धि आदि विविध शब्द के बारे में साधक खुद ही अध्ययन कर विविध पदों के गूढ़ार्थ समझने की कोशिश करे तो कई प्रकार के रहस्य साधक के सामने उजागर हो सकते हैं।

         हनुमान चालीसा की साधना बड़ी ही सरल और सुगम है, थोड़े ही प्रयास से अल्पज्ञ बालक भी इसे याद कर सकता है। बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी श्रद्धायुक्त होकर प्रात:काल शौच और स्नान के पश्चात् श्रीहनुमान जी की मूर्ति के समक्ष मन्दिर में या घर में ही श्रीहनुमान जी के चित्र के सामने, हो सके तो अगरबत्ती जलाकर श्रीहनुमान जी का ध्यान करते हुए इस चालीसा का नित्यप्रति पाठ करें। इससे वह सब प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर सुखसमृद्धि का पात्र बनेगा, इसमें सन्देह नहीं।

         यदि आप मानसिक अशान्ति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्या सता रही है तो ऐसे में इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें कोई शंका या सन्देह नहीं है।

         जो व्यक्ति प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ता है, उसके साथ कभी भी कोई घटना-दुर्घटना नहीं होती। 

         हनुमान चालीसा की यह साधना सकाम प्रयोग तथा निष्काम प्रयोग दोनों ही रूपों में की जा सकती है। इसीलिए साधक को अनुष्ठान करने से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है। अगर साधक निष्काम भाव से यह प्रयोग कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।

         साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीरभाव से युक्त चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमें वे पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हों या असुरों का नाश कर रहे हों। लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दासभाव युक्त हनुमान का चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमें वे ध्यान मग्न हों या फिर श्रीरामजी के चरणों में बैठे हुए हों।

         साधक को यह साधना क्रम एकान्त में करना चाहिए। अगर साधक अपने कमरे में यह क्रम कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए। सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे, निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का प्रयोग होता है।

         स्त्री साधिका हनुमान चालीसा या साधना नहीं कर सकती, यह मात्र मिथ्या धारणा ही है। कोई भी साधिका हनुमान साधना या प्रयोग सम्पन्न कर सकती है। मासिक रजस्वला समय में यह प्रयोग या कोई भी साधना नहीं की जा सकती है।

         आज सर्वजन हितार्थ श्री हनुमान चालीसा की साधना विधि प्रस्तुत की जा रही है, जो मुझ सहित अनेकानेक साधकों एवं हनुमान भक्तों द्वारा अनुभूत की हुई है।

साधना विधान :----------

           यह साधना साधक श्रीराम नवमीहनुमान जयन्ती अथवा किसी भी मंगलवार की रात्रि को शुरु कर सकता है तथा समय १० बजे के बाद का रहेगा। सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल या भगवे वस्त्र धारण करके लाल आसन पर बैठ जाए। सकाम और निष्काम दोनों ही कार्यों में दिशा उत्तर ही रहेगी।

         साधक अपने समीप ही किसी पात्र में १०८ भुने हुए चने या १०८ तिल की रेवड़ियाँ रख ले। अब साधक अपने सामने किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह और सदगुरुदेवजी का चित्र स्थापित करे। साथ ही भगवान गणपतिजी का विग्रह या प्रतीक रूप में एक सुपारी स्थापित करे। उसके बाद दीपक और धूप-अगरबत्ती जलाए।

         फिर साधक सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से हनुमान चालीसा साधना सम्पन्न करने की अनुमति ले और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

         फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और " वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक भगवान हनुमानजी का सामान्य पूजन करे। उन्हें सिन्दूर से तिलक करे और फिर धूप-दीप अर्पित करे। साधक को भोग में गुड़ तथा उबले हुए चने अर्पित करने चाहिए। साथ ही कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है। साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है। साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करना चाहिए।

          इस क्रिया के बाद साधक "हं" बीज का उच्चारण कुछ देर करे तथा उसके बाद अनुलोम-विलोम प्राणायाम करे। प्राणायाम के बाद साधक हाथ में जल लेकर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले। अगर कोई विशेष इच्छा के लिए साधना की जा रही हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए कि मैं अमुक नाम का साधक अमुक गोत्र अमुक गुरु का शिष्य होकर यह साधना अमुक कार्य के लिए कर रहा हूँ। भगवान हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे।

          इसके बाद साधक राम रक्षा स्तोत्र का एक पाठ या "रां रामाय नमः" का यथासम्भव जाप करे। जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाड़ियों अर्थात इडा, पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे ----------

अतुलित बलधामं हेमशैलाभ देहं,                                                                      दनुजवन कृशानुं ज्ञानिनां अग्रगण्यं।                                            सकल गुणनिधानं वानराणामधीशं,                                                                          रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

          अब जो १०८ भुने हुए चने या तिल की रेवड़ियाँ आपने ली थी, वे अपने सामने एक कटोरी में रख लें तथा हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे ———

श्रीहनुमान चालीसा

।। दोहा।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।                                                      बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार।                                                                    बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

।। चौपाई।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।                                 राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।                                          कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।।                                                शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जगबन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।                                            प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।                                  भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे।।

लाय संजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।                                      रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।                        सनकादिक ब्रहमादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।                                    तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।                                       जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।                               दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।                                                    सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै।।                                                   भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।                                              संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।                                    और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।                                             साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।                                     राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।                                     अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।                                          संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गौसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।                                          जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहिं  बन्दी महासुख होई।

जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।                                 तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

।। दोहा।।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।                                                                      राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

           इस साधना में आपको श्रीहनुमान चालीसा के १०८ पाठ करने हैं। आप हनुमान चालीसा पढ़ते जाएं और हर एक बार पाठ पूर्ण होने के बाद एक चना या रेवड़ी हनुमानजी के यन्त्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करते जाएं। इस प्रकार १०८ बार पाठ करने पर १०८ चने या रेवड़ियाँ समर्पित करनी चाहिए।

                   १०८ पाठ पूरे होने के बाद साधक पुनः "हं" बीज का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे।

         यह साधना २१ दिनों की है। साधक या तो लगातार २१ दिनों तक प्रतिदिन यह साधना करे या हर मंगलवार को कुल २१ मंगलवार तक यह साधना करे।
 
                    २१ वें दिन आपके द्वारा पूरे १०८ पाठ करके चने या तिल की रेवड़ी जब चढ़ा दी जाए, तब उसके बाद साधना पूर्ण होने पर अन्तिम दिन मन्दिर जाएं और भगवान हनुमानजी के दर्शन करे। साथ ही साथ साधना के दौरान भी आप हनुमत दर्शन करते रहें।

         साधक-साधिकाओं को यह साधना शुरू करने से एक दिन पूर्व से लेकर साधना समाप्त होने के एक दिन बाद तक कुल २३ दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। लेकिन साधना २१ मंगलवार तक करने की स्थिति में प्रयोग के एक दिन पूर्वप्रयोग के दिन तथा प्रयोग के दूसरे दिन अर्थात कुल तीन दिन प्रति सप्ताह ब्रह्मचर्य पालन करना आवश्यक है।

          कुछ भी हो, कैसा भी संकट आए, आपने साधना शुरू कर दी तो छोड़ना नहीं। प्रभु आपकी परीक्षा भी ले सकते हैं। साधना से विचलित करेंगे ही, पर आप दृढ़ रहें, क्योंकि भक्ति में अटूट शक्ति है और एक बार आपने यह साधना कर ली तो जो आनन्द और जीवन में उत्साह का प्रवाह होगा - उसका वर्णन मैं अपनी तुच्छ बुद्धि से नहीं कर सकता। फिर भी इतना कह सकता हूँ कि इस साधना से निश्चित ही आप की अभिलाषा की पूर्ति होगी। क्योंकि तुलसीदास जी ने कहा है ना - "कवन सो काज कठिन जग माही, जो नही होहि तात तुम पाहि।"

          साधना का क्रम यही रहेगा, २१ दिन या २१ मंगलवार तक तथा प्रतिदिन जो १०८ चने या तिल की रेवड़ी आप ने प्रभु को अर्पण किए थे, वो आप ही को खाना है, किसी को देना नही है।

          आपकी यह श्रीहनुमान चालीसा साधना सफल हों और आपको भगवान हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्त हों ! मैं सदगुरुदेवजी से यही प्रार्थना करता हूँ।

         इसी कामना के साथ 
  
     ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥