शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

भुवनेश्वरी साधना

भुवनेश्वरी साधना

         माघ  मासीय  गुप्त  नवरात्रि  निकट  ही  है।  यह ५ फरवरी २०१९ से आरम्भ हो रही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से बहुत–बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

         दस महाविद्याओं में चतुर्थ स्थान पर भुवनेश्वरी महाविद्याविद्यमान है, जो त्रिभुवन (ब्रह्माण्ड) पालन एवं उत्पत्ति कर्ता मानी गयी है। भुवनेश्वरी शब्द भुवन से बना है, जिसका अर्थ है भुवनत्रय अर्थात तीनों लोक। अतः भुवनेश्वरी तो तीनों लोकों की अधिष्ठात्री देवी है, उनकी नियन्ता है और इन तीनों ही लोकों में सब के द्वारा पूजनीय है।

          वस्तुतः भुवनेश्वरी साधना भोग और मोक्ष दोनों को समान रूप से देने वाली उच्च कोटि की साधना है, इसके बारे में संसार के कई तान्त्रिक, मान्त्रिक ग्रन्थों में विशेष रूप से उल्लेख है। शाक्त प्रमोद में बताया गया है कि भुवनेश्वरी साधना समस्त साधनाओं में श्रेष्ठ है और इस साधना से जीवन की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती है। अतः जो साधक अपने जीवन में सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान चाहते हैं, उन्हें भुवनेश्वरी साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए।

          गुरु गोरखनाथ ने भुवनेश्वरी महाविद्या सिद्ध करने के बाद अपने ज्ञान बल और साधना के बल से यह अनुभव किया था कि हमें अपने जीवन में अन्य देवी-देवताओं की साधना करनी ही नहीं है,  यदि कोई साधक पूर्ण रूप से भुवनेश्वरी साधना ही सम्पन्न कर लेता है, उसके जीवन में किसी भी दृष्टि से कोई अभाव व्याप्त नहीं रहता।

          विश्व के सभी साधकों ने एक स्वर से यह स्वीकार किया है कि प्रत्येक गृहस्थ को जीवन में एक बार अवश्य ही भुवनेश्वरी देवी की साधना या आराधना कर लेनी चाहिएजिससे उसके जीवन के सभी पाप समाप्त हो जाते हैंपूर्व जन्म कृत दोष दूर हो जाते हैं और इस जीवन में सभी प्रकार के भौतिक पदार्थों को भोगता हुआपूर्ण सुख और सम्मान प्राप्त करता हुआवह अन्त में भुवनेश्वरी महाविद्या में लीन होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

          तन्त्र सार एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसको अत्यन्त ही प्रमाणिक माना जाता है। उसमें भगवती भुवनेश्वरी साधना के दस लाभ स्पष्ट रूप से वर्णित किये गए है –––

          १. भुवनेश्वरी साधना से निरन्तर आर्थिक, व्यापारिक और भौतिक उन्नति होती ही रहती है। जो अपने भाग्य में दरिद्र योग लिखा कर लाया है, जो व्यक्ति जन्म से ही दरिद्री है, वह भी भुवनेश्वरी साधना कर अपनी दरिद्रता को समृद्धि में बदल सकता है।
          २. भुवनेश्वरी साधना ही एक मात्र कुण्डलिनी जागरण साधना है। इस साधना से स्वत: शरीर स्थित चक्र जाग्रत होने लगते हैं और अनायास उसकी कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है। ऐसा होने पर उसका सारा जीवन जगमगाने लग जाता है।
          ३. एक मात्र भुवनेश्वरी साधना ही ऐसी है, जो जीवन में भौतिक उन्नति और आध्यात्मिक प्रगति एक साथ प्रदान करती है।
          ४. भुवनेश्वरी को आद्या माँ कहा गया है, फलस्वरूप भुवनेश्वरी साधना से योग्य सन्तान प्राप्त होती है और पूर्ण सन्तान सुख प्राप्त होता है।
          ५. भुवनेश्वरी साधना इच्छापूर्ति की साधना है। यदि पूर्ण रूप से भुवनेश्वरी को सिद्ध कर लिया जाए तो व्यक्ति जो भी इच्छा या आकांक्षा रखता है, वह इच्छा अवश्य ही पूर्ण होती है।
          ६. भुवनेश्वरी सम्मोहन स्वरूपा है। तन्त्र सार के अनुसार भुवनेश्वरी साधना करने से पुरुष या स्त्री का सारा शरीर एक अपूर्व सम्मोहन अवस्था में आ जाता है, जिसके व्यक्तित्व से लोग प्रभावित होने लगते हैं और वह जीवन में निरन्तर उन्नति करता रहता है।
          ७. भुवनेश्वरी भोग और मोक्ष दोनों को एक साथ प्रदान करने वाली है, यही एक मात्र ऐसी साधना है, जिसको सम्पन्न करने पर जीवन में सम्पूर्ण भोगों की प्राप्ति होती है और अन्त में पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
          ८. भुवनेश्वरी रोगान् शेषा है अर्थात भुवनेश्वरी साधना करने पर असाध्य रोग भी समाप्त हो जाते हैं और जीवन में अथवा परिवार में किसी प्रकार का कोई रोग व्याप्त नहीं होता।
          ९. तोडल तन्त्र में बताया है कि भुवनेश्वरी शत्रु संहारिणी है। इसकी साधना करने वाले साधक के शत्रु स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं, यहाँ तक कि जो भी व्यक्ति इस प्रकार के साधक के प्रति दुराग्रह या शत्रुभाव रखते हैं, वे अपने आप समाप्त होते रहते हैं और उनका जीवन बर्बाद हो जाता है।
          १०. भुवनेश्वरी को योगमाया कहा गया है, इसकी साधना कर जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति निश्चित रूप से होती ही है।

          इन सारे तथ्यों को केवल एक ऋषि या एक साधक ने ही स्वीकार नहीं किया है, अपितु जिन-जिन योगियों या महर्षियों ने इस साधना को सम्पन्न किया है, उन्होंने यह अनुभव किया है कि यदि साधक अपने जीवन में इस साधना को सम्पन्न नहीं करता है तो वह जीवन ही बेकार चला जाता है। उसके जीवन में कोई रस नहीं रहता और यदि सिद्धाश्रम के द्वारा वर्णित इस साधना का उपयोग नहीं किया जाता, तो ऐसी महत्वपूर्ण साधना कहीं नहीं प्राप्त हो पाती।

साधना विधान :-----------

          यह साधना आप गुप्त नवरात्रि पहले दिन से आरम्भ करें। वैदिक ग्रन्थों में बताया गया है कि भुवनेश्वरी साधना किसी भी नवरात्रि, शिवरात्रि, भुवनेश्वरी जयन्ती अथवा किसी भी सोमवार से प्रारम्भ की जा सकती है।

          इस साधना को करने के लिए प्राण प्रतिष्ठित सिद्ध भुवनेश्वरी यन्त्र”‚ दस लघु नारियल और सफ़ेद हकीक या रुद्राक्ष माला की आवश्यकता होती है।

          इस साधना को करने के लिए साधक सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण कर, प्रात: (४:२४ से ६:०० पूर्वाह्न) के बीच या रात्रि सवा दस बजे पूर्व दिशा की तरफ़ मुख होकर बैठे। अपने सामने किसी बाजोट (चौकी) पर सफेद रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर किसी प्लेट में रोली से त्रिकोण बनाएं। यह त्रिकोण तीनों लोकों का प्रतीक है। उस त्रिकोण में अक्षत (बिना टूटे चावल) भर दें। उन अक्षत पर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित भुवनेश्वरी यन्त्र स्थापित करें। यन्त्र के सामने दस चावल की ढेरियाँ बनाकर उस पर १० लघु नारियल स्थापित करें। प्रत्येक नारियल पर रोली से तिलक करें। सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर धूप-अगरबत्ती प्रज्ज्वलित कर दें।

          अब साधक को चाहिए कि वह सद्गुरुदेवजी का सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। फिर उनसे भुवनेश्वरी साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा प्राप्त करे और साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक क्रमशः संक्षिप्त गणेशपूजन और भैरवपूजन सम्पन्न करे। फिर उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करे।

          तत्पश्चात साधक को चाहिए कि वह साधना के पहले दिन मन्त्र-विधान अनुसार संकल्प अवश्य करे। फिर माँ भगवती भुवनेश्वरी (यन्त्र) का सामान्य पूजन करे, कुमकुम, अक्षत (चावल), धूप, दीप, पुष्प से और भोग में कोई मिष्ठान्न अर्पण करे।

          इस प्रकार पूजन सम्पन्न कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़ें -----

          ॐ अस्य श्रीभुवनेश्वरी मन्त्रस्य शक्तिः ऋषि:, गायत्रीछन्द:, श्रीभुवनेश्वरी देवता, हं बीजं, ईं शक्ति:, रं कीलकं श्रीभुवनेश्वरी देवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।

          और  फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।

ऋष्यादि न्यास :----------

शक्तिऋषये नमः शिरसि।           (सिर को स्पर्श करें)
गायत्रीछन्दसे नमः मुखे।            (मुख को स्पर्श करें)
श्रीभुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदये।     (हृदय को स्पर्श करें)
हं बीजाय नम: गुह्ये।               (गुह्य-स्थान को स्पर्श करें)
ईं शक्तये नमः पादयोः।             (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
रं कीलकाय नमः नाभौ।             (नाभि को स्पर्श करें)
श्रीभुवनेश्वरी देवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।     (पूरे शरीर को स्पर्श करें)

कर न्यास :----------

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।         (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।        (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।     (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।    (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादि न्यास :-----------

ॐ ह्रां हृदयाय नमः।          (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।          (सिर को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।           (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं कवचाय हुम्।           (परस्पर भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।       (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ ह्र: अस्त्राय फट्।          (सिर से हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)

ध्यान :-----------
          इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती भुवनेश्वरी का ध्यान करे -----

ॐ उद्यद्दिनद्युतिमिन्दु किरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम्।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीति करां प्रभजेत् भुवनेशीम्॥

           ध्यान के पश्चात सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित सफ़ेद हकीक माला या रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की १०१ माला मन्त्र जाप करें -----

भुवनेश्वरी मन्त्र :-----------

                 ‌‌॥ ह्रीं ॥
                                      HREEM.

          मन्त्र जाप के पश्चात् भुवनेश्वरी कवच का पाठ करें

॥ भुवनेश्वरीकवचम् ॥

देव्युवाच ।
देवेश भुवनेश्वर्या या या विद्याः प्रकाशिताः।
श्रुताश्चाधिगताः सर्वाः श्रोतुमिच्छामि साम्प्रतम्॥१॥
त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं यत्पुरोदितम्।
कथयस्व महादेव मम प्रीतिकरं परम्॥२॥

ईश्वर उवाच ।
शृणु पार्वति वक्ष्यामि सावधानावधारय।
त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं मन्त्रविग्रहम्॥३॥
सिद्धविद्यामयं देवि सर्वैश्वर्यसमन्वितम्।
पठनाद्धारणान्मर्त्यस्त्रैलोक्यैश्वर्यभाग्भवेत्॥४॥

विनियोग :----------

           ॐ अस्य श्रीभुवनेश्वरीत्रैलोक्यमङ्गलकवचस्य शिव ऋषिः, विराट् छन्दः, जगद्धात्री भुवनेश्वरी देवता, धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः।

ह्रीं बीजं मे शिरः पातु भुवनेशी ललाटकम्।
ऐं पातु दक्षनेत्रं मे ह्रीं पातु वामलोचनम्॥१॥
श्रीं पातु दक्षकर्णं मे त्रिवर्णात्मा महेश्वरी।
वामकर्णं सदा पातु ऐं घ्राणं पातु मे सदा॥२॥
ह्रीं पातु वदनं देवि ऐं पातु रसनां मम।
वाक्पुटा च त्रिवर्णात्मा कण्ठं पातु परात्मिका॥३॥
श्रीं स्कन्धौ पातु नियतं ह्रीं भुजौ पातु सर्वदा।
क्लीं करौ त्रिपुटा पातु त्रिपुरैश्वर्यदायिनी॥४॥
ॐ पातु हृदयं ह्रीं मे मध्यदेशं सदावतु ।
क्रौं पातु नाभिदेशं मे त्र्यक्षरी भुवनेश्वरी॥५॥
सर्वबीजप्रदा पृष्ठं पातु सर्ववशङ्करी।
ह्रीं पातु गुह्यदेशं मे नमोभगवती कटिम्॥६॥
माहेश्वरी सदा पातु शङ्खिनी जानुयुग्मकम्।
अन्नपूर्णा सदा पातु स्वाहा पातु पदद्वयम्॥७॥
सप्तदशाक्षरा पायादन्नपूर्णाखिलं वपुः।
तारं माया रमाकामः षोडशार्णा ततः परम्॥८॥
शिरःस्था सर्वदा पातु विंशत्यर्णात्मिका परा।
तारं दुर्गे युगं रक्षिणी स्वाहेति दशाक्षरा॥९॥
जयदुर्गा घनश्यामा पातु मां सर्वतो मुदा।
मायाबीजादिका चैषा दशार्णा च ततः परा॥१०॥
उत्तप्तकाञ्चनाभासा जयदुर्गाऽऽननेऽवतु।
तारं ह्रीं दुं च दुर्गायै नमोऽष्टार्णात्मिका परा॥११॥
शङ्खचक्रधनुर्बाणधरा मां दक्षिणेऽवतु।
महिषामर्द्दिनी स्वाहा वसुवर्णात्मिका परा॥१२॥
नैऋत्यां सर्वदा पातु महिषासुरनाशिनी।
माया पद्मावती स्वाहा सप्तार्णा परिकीर्तिता॥१३॥
पद्मावती पद्मसंस्था पश्चिमे मां सदाऽवतु।
पाशाङ्कुशपुटा मायो स्वाहा हि परमेश्वरि॥१४॥
त्रयोदशार्णा ताराद्या अश्वारुढाऽनलेऽवतु।
सरस्वति पञ्चस्वरे नित्यक्लिन्ने मदद्रवे॥१५॥
स्वाहा वस्वक्षरा विद्या उत्तरे मां सदाऽवतु।
तारं माया च कवचं खे रक्षेत्सततं वधूः॥१६॥
हूँ क्षें ह्रीं फट् महाविद्या द्वादशार्णाखिलप्रदा।
त्वरिताष्टाहिभिः पायाच्छिवकोणे सदा च माम्॥१७॥
ऐं क्लीं सौः सततं बाला मूर्द्धदेशे ततोऽवतु।
बिन्द्वन्ता भैरवी बाला हस्तौ मां च सदाऽवतु॥१८॥

फलश्रुति ----------

इति ते कथितं पुण्यं त्रैलोक्यमङ्गलं परम्।
सारात्सारतरं पुण्यं महाविद्यौघविग्रहम्॥१९॥
अस्यापि पठनात्सद्यः कुबेरोऽपि धनेश्वरः।
इन्द्राद्याः सकला देवा धारणात्पठनाद्यतः॥२०॥
सर्वसिद्धिश्वराः सन्तः सर्वैश्वर्यमवाप्नुयुः।
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दद्यान्मूलेनैव पृथक् पृथक्॥२१॥
संवत्सरकृतायास्तु पूजायाः फलमाप्नुयात्।
प्रीतिमन्योऽन्यतः कृत्वा कमला निश्चला गृहे॥२२॥
वाणी च निवसेद्वक्त्रे सत्यं सत्यं न संशयः।
यो धारयति पुण्यात्मा त्रैलोक्यमङ्गलाभिधम्॥२३॥
कवचं परमं पुण्यं सोऽपि पुण्यवतां वरः।
सर्वैश्वर्ययुतो भूत्वा त्रैलोक्यविजयी भवेत्॥२४॥
पुरुषो दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा।
बहुपुत्रवती भूयाद्वन्ध्यापि लभते सुतम्॥२५॥
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम्।
एतत्कवचमज्ञात्वा यो भजेद्भुवनेश्वरीम्।
दारिद्र्यं परमं प्राप्य सोऽचिरान्मृत्युमाप्नुयात्॥२६॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे देवीश्वर संवादे त्रैलोक्यमङ्गलं नाम भुवनेश्वरीकवचं सम्पूर्णम् ॥

          कवच पाठ के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इस प्रकार नित्य साधना सम्पन्न करें।

          यह ग्यारह दिन की साधना है। साधना के बीच साधना के नियमों का अवश्य ही पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन तक भुवनेश्वरी मन्त्र जाप करें। नित्य जाप करने से पहले नित्य संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें।

          ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद जितना आपने मन्त्र का जाप किया है, उसका दशांश (१०%) या संक्षिप्त हवन कमल गट्टे, शुद्ध घी, हवन समग्री में मिलाकर हवन करें।

          हवन के पश्चात् भुवनेश्वरी यन्त्र को अपने घर के मन्दिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बाँधकर एक वर्ष के लिए रख दें और बाकि बची पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जित कर दें।

          इस तरह करने से यह साधना पूर्ण मानी जाती है, उसके संकल्पित कार्य भविष्य में शीघ्र पूरे होते हैं। माँ भुवनेश्वरी की कृपा से साधक को ज्ञान,  धन-सम्मान,  प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। धन प्राप्ति के नये-नये अवसर उसे प्राप्त होते हैं। माँ भुवनेश्वरी उसके जीवन की दरिद्रता पूर्णत: समाप्त कर उसे सभी दृष्टियों से परिपूर्ण कर देती है।

                    आपकी साधना सफल हो और आपका जीवन माँ भगवती भुवनेश्वरी की  कृपा से ज्ञान धन मान और प्रतिष्ठा  से परिपूर्ण हों। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।


              इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।



रविवार, 6 जनवरी 2019

सूर्य सायुज्य कुबेर साधना

सूर्य सायुज्य कुबेर साधना


          मकर संक्रान्ति का समय निकट ही है। यह १५ जनवरी २०१९ को आ रहा है। आप सभी को मकर संक्रान्ति पर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है, तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।

          शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है -----

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम्।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

          मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

          ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

                        मकर संक्रान्ति  एक ऐसा दिव्य दिवस होगा, जब भगवान सूर्यदेव अपने पूर्ण तेज पर होंगे। इसी पवित्र दिवस पर साधना जगत में कई-कई साधनाएँ साधक सम्पन्न कर जीवन को नयी गति प्रदान करते हैं।

          मैं प्रतिवर्ष यह दिव्य साधना करता ही हूँ और विगत पाँच वर्षों से मेरी यह साधना कभी नहीं रुकी। प्रतिवर्ष इस साधना को सम्पन्न करना में अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ।

                     उसका विशेष कारण यह है कि इस दिव्य साधना से हमें भगवान आदित्य और भगवान कुबेर का आशीर्वाद सहज ही प्राप्त हो जाता है। भगवान सूर्य के तेज से साधक के सभी पापों तथा रोगों का नाश होता है, जीवन में एक तेजस्विता आती है, गृहस्थ जीवन में सुख-शान्ति का वातावरण निर्मित हो जाता है तथा भगवान कुबेर के आशीर्वाद से धन का व्यर्थ का अपव्यय समाप्त होकर धन स्थिर होने लगता है। धन के आगमन में आ रही सभी बाधाओं का निवारण हो जाता है, साधना के बाद मन में प्रसन्नता स्थापित हो जाती है।

          हर साधना धैर्य और विश्वास से किए जाने  पर ही परिणाम देती है। अतः साधना में अतिशीघ्रता अच्छी बात नहीं है। ऐसा करके केवल हम अपना समय ही बर्बाद करते हैं, कोई लाभ नहीं उठा पाते हैं। अतः इस उच्च कोटि के प्रयोग को आप पूर्ण धैर्य और विश्वास के साथ करें, आपको अवश्य लाभ होगा।

साधना विधान :---------

          यह साधना आप मकर संक्रान्ति के दिन ही करें। यह एक दिवसीय प्रयोग है। यदि आप इस दिन न कर पाए तो आप मुझसे मत पूछना कि इसे और कब किया जा सकता है,  क्यूँकि इसका पूर्ण प्रभाव तो मकर संक्रान्ति के दिन ही होता है। फिर भी यदि आप न कर पाए तो किसी भी रविवार को कर सकते है। 

          साधक सूर्योदय के समय स्नान कर पीले वस्त्र धारण करे तथा सूर्य-दर्शन कर ताम्रपात्र से गुलाब जल मिले हुए जल से सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे। इसके बाद साधक अपने पूजन कक्ष में आकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाए। सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गेहूँ की एक ढेरी बनाए और उस पर केसर से रंजित एक सुपारी स्थापित करे और कक्ष में ही उत्तर की ओर एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर हल्दी मिश्रित अक्षत की ढेरी पर एक हल्दी से रंजित सुपारी स्थापित करे।

          पूर्व में रखी गई सुपारी सूर्य का प्रतीक है तथा उत्तर में रखी गयी सुपारी कुबेर का प्रतीक है। 


          सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन करें फिर गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से सूर्य सायुज्य कुबेर साधना सम्पन्न  करने  की  आज्ञा  लेकर  उनसे  साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता  के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात भगवान गणपति का सामान्य पूजन करें तथा किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता  के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद सूर्य-पूजन करे, पूजन सामान्य ही करना है। खीर का प्रसाद अर्पित करना है, जिसमें केसर मिश्रित हो। शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे। इसी प्रकार उत्तर में स्थापित कुबेर का भी पूजन करे तथा संकल्प ले कि मैं यह सूर्य सायुज्य कुबेर प्रयोग अपने जीवन से समस्त दरिद्रता के नाश हेतु, पाप नाश हेतु, साधना में सफलता हेतु कर रहा हूँ। भगवान सूर्यदेव तथा कुबेरदेव मेरी साधना को स्वीकार कर मेरी मनोकामना पूर्ण करे। इसके बाद स्फटिक माला से दिए गए मन्त्रों का क्रमानुसार जाप करे।

          सर्वप्रथम एक माला महामृत्युंजय मन्त्र की जाप करे।

।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

          इसके बाद ३ माला निम्न  मन्त्र का जाप करे और प्रत्येक माला के बाद थोड़े अक्षत सूर्यदेव को अर्पित करे।

।।ॐ सूं सूर्याय नमः।।

          इसके बाद ३ माला निम्न मन्त्र का जाप करे। प्रत्येक माला के बाद थोड़े अक्षत कुबेर पर अर्पित करे।

।।ॐ यक्ष राजाय नमः।।

           अब १ माला निम्न सूर्य मन्त्र की जाप करे और जाप के बाद सूर्य को थोड़े अक्षत अर्पित करे।

।।ॐ सूर्याय तेजोरूपाय आदित्याय नमो नमः।।

          अब ३ माला निम्न कुबेरमन्त्र की जाप करे। प्रत्येक  माला के बाद थोड़े अक्षत कुबेर को अर्पित करे।

।।ॐ धं कुबेराय धं ॐ।।

           इस क्रिया के सम्पन्न होने के बाद अब साधक निम्न मूलमन्त्र की ११ (ग्यारह) माला जाप सम्पन्न करे ----

मूलमन्त्र :----------

          ।। ॐ धं कुबेराय आदित्य स्वरूपाय धं नमः ।।


OM DHAM KUBERAAY AADITYA SWAROOPAAY DHAM NAMAH. 

           इसके बाद पुनः एक माला महामृत्युंजय मन्त्र की सम्पन्न करे।

।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

           अब अग्नि प्रज्ज्वलित कर जिस मन्त्र की ११ माला जाप की थी, उसकी कम से कम १०८ आहुति दही तथा घी मिश्रित कर प्रदान करे,आप चाहे तो अधिक आहुति भी दी जा सकती है।

           इस प्रकार यह दिव्य साधना पूर्ण होती है, जो कि आपके जीवन में तेजस्विता लाती है, सुख और समृद्धि लाती है।

           शाम को गेहूँ व अक्षत बाजोट पर बिछे वस्त्र में बाँधकर किसी भी मन्दिर में रख दे। साधना के तुरन्त बाद प्रसाद स्वयं ग्रहण करे तथा परिवार के सभी सदस्यों को भी दे।

           अब विचार आपको करना है कि आप इस विशेष दिवस पर यह दिव्य साधना सम्पन्न करते हैं या नहीं। आप सभी की साधना सफल हो और आपके जीवन में सुख-समृद्धि आए।

            इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।