शनिवार, 18 मार्च 2017

नवग्रह दोष निवारण पीताम्बरा साधना

नवग्रह दोष निवारण पीताम्बरा साधना


   
          चैत्र नवरात्रि पर्व निकट ही है। इस वर्ष यह नवरात्रि २८ मार्च २०१७ दिन मंगलवार से शुरु हो रही है। आप सभी को नवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!


          माता बगलामुखी को ही पीताम्बरा कहा जाता है। भगवती पीताम्बरा इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को चलाने वाली शक्ति हैं। नवग्रहों को भगवती के द्वारा ही विभिन्न कार्य सौंपे गये हैं, जिनका वो पालन करते हैं। नवग्रह स्वयं भगवती की सेवा में सदैव उपस्थित रहते हैं। जब साधक भगवती की उपासना करता है तो उसे नवग्रहों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि साधक को उसके कर्मानुसार कहीं पर दण्ड भी मिलना होता है तो वह दण्ड भी भगवती की कृपा से न्यून हो जाता है एवं माँ  पीताम्बरा अपने प्रिय भक्त को इतना साहस प्रदान करती हैं कि वह दण्ड साधक को प्रभावित नहीं कर पाता। इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई भी इतना शक्तिवान नहीं है, जो माँ  पीताम्बरा के भक्तों का एक बाल भी बाँका कर सके। कहने का तात्पर्य यह है कि कारण चाहे कुछ भी हो, भगवती बगलामुखी की उपासना आपको किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्त करा सकती है।

          भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है। स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं। इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तम्भित है।

          इस साधना का प्रभाव तुरन्त ही साधक के जीवन में देखने को मिलता है।  इस साधना की यह विशेषता है कि माँ पीताम्बरा नक्षत्र स्तम्भिनी भी कही जाती है और जब नक्षत्र स्तम्भिनी से हम प्रार्थना करते हैं तो हमारे सभी प्रकार के कार्य सहज ही सम्पन्न हो जाते हैं।  अभी तक आपने पीताम्बरा जी की कई साधनाएँ सम्पन्न की होगी, परन्तु यह साधना आज के युग में अत्यन्त आवश्यक साधना मानी गई है।  इस साधना से जहाँ नवग्रह देवता के दोष कम होते हैं, वैसे ही उनकी प्रचण्ड कृपा भी प्राप्त होती है और जीवन में कई प्रकार के लाभ होते हैं।  इसी साधना से भाग्योदय भी सम्भव है।  इसी साधना से कालसर्प-दोष, नक्षत्र-दोष, पितृ- दोष, कुण्डली में जितने भी दोष हों, उन  सभी  की समाप्ति निश्चित ही हो  जाती है।

साधना विधान :———

                  यह साधना किसी भी नवरात्रि में की जाने वाली साधना है किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शनिवार या बगलामुखी जयन्ती से भी यह साधना आरम्भ कर सकते हैं।  साधना का समय रात्रिकालीन होगा, रात्रि  ९ बजे के बाद साधना की जाए तो अधिक उचित रहेगा। सर्वप्रथम स्नान करके अपने साधना कक्ष में पीले वस्त्र पहिनकर  पीले ही आसन पर  बैठ जाएं।  दिशा उत्तर या  पश्चिम ही उत्तम रहेगी। अपने सामने बाजोट पर पीला वस्त्र  बिछाकर उस पर माँ  भगवती पीताम्बरा और पूज्य सद्गुरुदेवजी का सुन्दर चित्र स्थापित करें। साथ ही साधक गणेश और भैरव की मूर्ति  अथवा दो सुपारी मौलि बाँधकर क्रमशः अक्षत और काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दे।

                साधना से पूर्व साधक संक्षिप्त गुरुपूजन करें और  फिर गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें।  इसके बाद साधक सद्गुरुदेवजी से पीताम्बरा साधना करने की अनुमति लें और साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करें।

                फिर साधक संक्षिप्त गणेशपूजन  करे और निम्न गणेशमन्त्र की एक माला जाप करे ———

।।  वक्रतुण्डाय हुम् ।।

                इसके बाद साधक साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए भगवान गणपतिजी से प्रार्थना करें।


                फिर  साधक  संक्षिप्त भैरव पूजन सम्पन्न करे और  निम्न भैरव मन्त्र की एक माला जाप करें ---

।।  हौं जूं सः मृत्युंजय भैरवाय  नमः।।

  
                इसके बाद साधक साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए भगवान मृत्युंजय भैरवजी से प्रार्थना करें। 

                इसके बाद साधना के प्रथम दिवस पर साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

                संकल्प लेने के बाद  किसी स्टील या ताँबे की प्लेट में हल्दी से "ह्लीं" बीज का अंकन करें इस "ह्लीं" बीज अंकन के ऊपर पीली सरसों की एक ढेरी बनाकर उस पर एक सुपारी, जिसे पहले से ही पीली हल्दी से रँग दिया गया हो, को स्थापित कर दें। इस सुपारी पर हल्दी से रँगा हुआ पीला धागा लपेटकर ही स्थापित करना चाहिए

                इसके बाद भगवती बगलामुखी के  चित्र और सुपारी का पंचोपचार पूजन करें। पीले रंग के पुष्प चढ़ाएं और पीले रंग के  प्रसाद का ही भोग लगाएं, अन्य रंग का उपयोग वर्जित है।

                इसके बाद माँ  पीताम्बरा बगलामुखी का हाथ जोड़कर निम्न श्लोकों का उच्चारण करते हुए ध्यान करें

ॐ सौवर्णासन संस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं,                                      हेमाभांगरुचिं शशांकमुकुटां सच्चम्पकस्त्रग्युताम्।                                        हस्तैर्मुद्गरपाश वज्ररसनां सम्बिभ्रतिं भूषणैः,                                  व्याप्तांगीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्।।

                 इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानसिक पूजन सम्पन्न करें

मानसिक पीताम्बरा पूजन :———

ॐ लं पृथ्वी तत्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखीश्रीपादुकाभ्यां  नमः अनुकल्पयामि।               (अँगूठे से कनिष्ठिका के अधोभाग को स्पर्श करें)
ॐ हं आकाश तत्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखीश्रीपादुकाभ्यां  नमः अनुकल्पयामि।            (तर्जनी से अँगूठे के अधोभाग को स्पर्श करें)
 यं वायु तत्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखीश्रीपादुकाभ्यां  नमः अनुकल्पयामि।                   (अँगूठे से तर्जनी के अधोभाग को स्पर्श करें)
ॐ रं अग्नि तत्वात्मकं दीपं श्रीबगलामुखीश्रीपादुकाभ्यां  नमः अनुकल्पयामि।              (अँगूठे से मध्यमा के अधोभाग को स्पर्श करें)
ॐ वं जल तत्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखीश्रीपादुकाभ्यां  नमः अनुकल्पयामि।            (अँगूठे से अनामिका के अधोभाग को स्पर्श करें)
ॐ शं सर्व तत्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखीश्रीपादुकाभ्यां  नमः अनुकल्पयामि।          (दोनों हाथों के करतलकर पृष्ठों को एक-दूसरे से स्पर्श करें)

               पीताम्बरा मानस पूजन के पश्चात निम्न मन्त्र का सिद्ध  हल्दी माला अथवा पीली हकीक माला से जाप करें

मूल मन्त्र :———

॥ ॐ नमो भगवते मंगल शनि राहू केतु चतुर्भुजे पीताम्बरे अघोर रात्रि कालरात्रि मनुष्याणां सर्व मंगल तेजस राहवे शान्तये शान्तये  केतवे क्रूर कर्मे दुर्भिक्षता विनाशाय फट् स्वाहा 
OM  NAMO  BHAGWATE  MANGAL  SHANI  RAAHU  KETU  CHATURBHUJE  PEETAAMBARE  AGHOR  RAATRI  KAAL  RAATRI  MANUSHYAANAAM  SARVA  MANGAL  TEJAS  RAAHAVE  SHAANTAYE  SHAANTAYE  KETAVE  KROOR  KARME  DURBHIKSHATA  VINAASHAAY  PHAT  SWAAHA.
                इस साधना में आपको  प्रतिदिन ७ माला का जाप करना है। फिर साधक  पुनः एक माला मृत्युंजय भैरव  मन्त्र  की जाप करें ---

।। ॐ हौं जूं सः मृत्युंजय भैरवाय  नमः।।

               ऐसा आप सतत्  ९ दिन तक करें और दशमी के दिन या दसवें दिन पीली सरसों से ६८१ आहुतियाँ अग्नि में समर्पित करें। तत्पश्चात हो सके तो किसी शिव मन्दिर जाकर किसी गरीब भूखे व्यक्ति को अन्नदान करके सन्तुष्ट करें। बगलामुखी माला एवं पीली सुपारी को जल में विसर्जित कर दें। 
                माँ भगवती जगदम्बा आप और आपके परिवार का कल्याण करेसाथ ही आपकी साधना सफल हो और आपको माँ भगवती पीताम्बरा का वरदहस्त प्राप्त होमैं सदगुरुदेवजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

        इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥

शुक्रवार, 17 मार्च 2017

अष्टाक्षरी दुर्गा मन्त्र साधना

अष्टाक्षरी दुर्गा मन्त्र साधना

          चैत्र नवरात्रि पर्व निकट ही है। इस वर्ष यह नवरात्रि २८ मार्च २०१७ दिन मंगलवार से शुरु हो रही है। आप सभी को नवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          दस महाविद्या साधक को भौतिक और आध्यात्मिक रूप से सब कुछ दिलाने के लिए पर्याप्त हैं, लेकिन मैंने विभिन्न प्रदेशों में तन्त्र के रूप में दुर्गा और उनके मन्त्रों का सबसे ज्यादा प्रयोग होते देखा है। यहाँ तक कि कई मुसलमान साधकों एवं जनजातियों के साधकों को, जिनके समुदाय में दुर्गा की पूजा नहीं होती है, उनके मन्त्रों का धड़ल्ले से प्रयोग करते और सफल होते पाया है।

          दरअसल माँ भगवती दुर्गा में सभी देवी-देवताओं की शक्तियाँ समाहित हैं। उनका प्रादुर्भाव ही सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर किया है। देश में सबसे ज्यादा उन्हीं की पूजा भी होती है।

          याद करें कि वेदों व पुराणों में साफ वर्णित हैं कि हवन की आहुतियों से देवताओं को बल मिलता था। राक्षसों ने जब भी उन्हें कमजोर किया, तो पहले उन्हें मिलने वाली आहुतियों एवं पूजा को ही रोकने की कोशिश की। हवन की आहुतियों में अपना हिस्सा न मिलने से देवता कमजोर होते थे। इसी तरह जिन देवी-देवताओं की जितनी ज्यादा पूजा होती है, उनका आभामण्डल उतना ज्यादा बढ़ता जाता है।

          याद करें कि किसी जमाने में सन्तोषी माता का नाम अचानक चर्चा और प्रचलन में आया। उस समय कई लोगों को उनकी पूजा से काफी फल भी मिला। कारण वही है कि लोगों की भक्ति और पूजा से देवी-देवताओं की शक्ति बढ़ती है। चूँकि इस समय देवियों में सर्वाधिक पूजित एवं श्रद्धा की केन्द्र माँ भगवती दुर्गा हैं। अत: वह भक्तों के लिए भी कामधेनु समान बनी हुई हैं। सर्वाधिक मन्त्र जप से उनके मन्त्र भी इस समय पर्याप्त जागृत अवस्था में हैं।

         दुर्गा सप्तशती में भगवती दुर्गा के सुन्दर इतिहास के साथ-साथ गूढ़ रहस्यों का भी वर्णन किया गया है। राजा सुरथ ने भी दुर्गा आराधना से ही अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया था। न जाने कितने ही आर्तअर्थार्थीजिज्ञासु तथा मन्त्र साधक माँ दुर्गा के सिद्ध मन्त्र की साधना कर अपने मनोरथों को पूरा करने में सफलता प्राप्त कर चुके हैं। नवरात्रों अथवा ग्रहण काल में दुर्गा मन्त्र की साधना कर आप भी अपने मनोरथ पूर्ण कर सकते हैं। यह मन्त्र साधना सभी प्रकार के फल प्रदान करती है। “ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः”  यह आठ अक्षरों का भगवती दुर्गा का सिद्ध मन्त्र हैजिसका जाप रक्तचन्दन की १०८ दाने की माला से प्रतिदिन शुद्ध अवस्था में साधक को करना चाहिए।

साधना विधि :-------------

          नवरात्रिसूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय अथवा किसी भी शुभ मुहूर्त में इस साधना को करें। नवरात्रि में पूरे ९ दिनों तक नियम के साथ दैनिक पूजन और मन्त्र जाप करें। ग्रहण काल में जितना समय ग्रहणकाल रहता हैउतने ही समय तक मन्त्र जाप साधना करनी चाहिए। 

          सर्वप्रथम साधक स्नानकर लाल वस्त्र धारणकर अपने पूजाघर में लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर लाल रंग का शुद्ध रेशमी कपड़ा बिछाकर उस पर पूज्यपाद सदगुरुदेवजी  का चित्रभगवती दुर्गाजी की प्रतिमा या चित्र तथा श्री सिद्ध दुर्गा यन्त्र जिसे नवार्ण मन्त्र से प्रतिष्ठित किया गया होको स्थापित करें। साथ ही साधक गणेश और भैरव की मूर्ति  अथवा दो सुपारी मौलि बाँधकर क्रमशः अक्षत और काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दे। 

          साधना से पूर्व साधक शुद्ध घी का दीपक एवं धूप-अगरबत्ती जलाकर संक्षिप्त गुरुपूजन करें और  फिर गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें।  इसके बाद साधक सद्गुरुदेवजी से माँ भगवती दुर्गा साधना करने की अनुमति लें और साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          फिर साधक संक्षिप्त गणेशपूजन करे और निम्न गणेशमन्त्र की एक माला जाप करे ———--

               ॥ ॐ वक्रतुण्डाय हुम् ॥

          इसके बाद साधक साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए भगवान गणपतिजी से प्रार्थना करें।

         फिर साधक संक्षिप्त भैरव पूजन सम्पन्न करे और निम्न भैरव मन्त्र की एक माला जाप करें -------

              ॥ ॐ भं भैरवाय नमः ॥

         इसके बाद साधक साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए भगवान भैरवजी से प्रार्थना करें। 

         इसके बाद साधना के प्रथम दिवस पर साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

         साधक हाथ में जल लेकर संकल्प ले कि “माँ! मैं आज से माँ भगवती दुर्गा साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ९ दिनों तक २७ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।”

         फिर जल भूमि पर छोड़ दे।

         इसके बाद साधक माँ भगवती दुर्गा का सामान्य पूजन करे। कुंकुंम, लाल चन्दनपुष्पधूपदीप व नैवेद्य अर्पित करे।  
         तत्पश्चात साधक निम्न विनियोग का उच्चारण कर एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दे -------

विनियोग :-----------

ॐ अस्य श्रीदुर्गाष्टाक्षरमन्त्रस्य महेश्वर ऋषिःअनुष्टुप्छन्दःश्रीदुर्गाष्टाक्षरात्मिका देवतादुम् बीजम्ह्रीं शक्तिःॐ कीलकाय नमः इति दिग्बन्धः, धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास :----------- 

ॐ महेश्वर ऋषये नमः शिरसि।          (सिर को स्पर्श करें)

अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे।               (मुख को स्पर्श करें)

श्रीदुर्गाष्टाक्षरात्मिका देवतायै नमो हृदि।    (हृदय को स्पर्श करें)

दुम् बीजाय नमो नाभौ।                 (नाभि को स्पर्श करें)

ह्रीं शक्तये नमो गुह्ये।                 (गुह्य-स्थान को स्पर्श करें)

ॐ कीलकाय नमः पादयोः।             (पैरों को स्पर्श करें)

नमो दिग्बन्धः इति सर्वांगे।             (सम्पूर्ण शरीर को स्पर्श करें)

कर-न्यास :-----------

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।              (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।               (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।              (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।            (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।           (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।       (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादि-न्यास :-----------

ॐ ह्रां हृदयाय नमः।        (हृदय को स्पर्श करें)

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।         (सिर को स्पर्श करें)

ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।         (शिखा को स्पर्श करें)

ॐ ह्रैं कवचाय हुम्।          (परस्पर भुजाओं को स्पर्श करें)

ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।       (नेत्रों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।         (सिर से हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)
          फिर साधक हाथ जोड़कर माँ भगवती दुर्गाजी का ध्यान करें ———--

ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां,                                             कन्याभि: करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।              हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनी,                                    विभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥

         इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक पहले एक माला नवार्ण मन्त्र की जाप करे -------

        ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥

OM AING HREENG KLEENG CHAMUNDAAYEI VICHCHE.

         फिर साधक परम तन्मय भाव से निम्न सिद्ध दुर्गा मन्त्र का जाप करे -------

मन्त्र :-------------

          ॥ ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम: ॥

OM HREENG DUM DURGAAYEI NAMAH.

         साधक रक्त चन्दन की १०८ दाने की माला से इस दुर्गा अष्टाक्षर मन्त्र का २७ माला जाप करें। मन्त्र जाप हेतु रक्त चन्दन की माला सर्वश्रेष्ठ होती है। लेकिन इसके अभाव में साधक रुद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकता है।

          २७ माला जाप के उपरान्त साधक पुनः एक माला नवार्ण मन्त्र की जाप करे -------

         ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥

          जप के समय घी का दीपक माँ दुर्गाजी के सम्मुख जलते रहना चाहिए। विकल्प के रूप में मीठे तेल के दीपक से भी काम चलाया जा सकता है। जाप के लिए अर्द्धरात्रि का समय सबसे उत्तम होता है।

          मन्त्र जाप समाप्त होने के बाद पूजा से उठने के पूर्व क्षमा याचना करते हुए दुर्गा जी की स्तुति पढ़नी चाहिए ------

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो

न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।

न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं

परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥१॥

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया

विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।

तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे

कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥२॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:

परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुत:।

मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे

कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥३॥

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता

न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।

तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे

कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥४॥

परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया

मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।

इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता

निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥५॥

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा

निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकै:।

तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं

जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥६॥

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो

जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।

कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं

भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥७॥

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभववाञ्छापि च न मे

न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।

अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै

मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:॥८॥

नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:

किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।

श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे

धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥९॥

आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।

नैतच्छठत्वं मम भावयेथा: क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥१०॥

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।

अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥११॥

मत्सम: पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।

एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु॥१२॥

          स्तुति पढ़ने या याद करने में असुविधा हो तो केवल श्रीदुर्गायै नम:” का सात बार जाप करके देवी की प्रतिमा को क्षमा याचना हेतु प्रणाम करना चाहिए।

           ९ दिनों में २४००० मन्त्र जाप के बाद ९ वें दिन इसी मन्त्र को पढ़ते हुए १०८ बार आहुति देकर हवन करना चाहिए। इस प्रकार यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। इस दुर्गा मन्त्र का प्रभाव अचूक है।

           यदि साधक ने ९ दिनों तक नियमित मन्त्र जाप और हवन की क्रिया पूरी कर ली तो वह कभी भी इस मन्त्र को पढ़करदूब से जल छिड़कते हुए किसी की आपदाओं या बाधाओं का निवारण कर सकता है − चाहे कोई भी आर्थिक संकट होभूतादि ग्रहों की पीड़ा होप्रेत-पिशाच बाधा होदुर्भाग्य होनवग्रह पीड़ा होरोग अथवा बीमारी होशत्रु षडयन्त्र की पीड़ा हो।

           इस प्रकार मन्त्र जाप द्वारा सिद्ध जाने के बाद आप कभी भीकिसी भी प्रकार की प्रतिकूलता अनुभव होने पर उसके शमन की आवश्यकता पड़ने पर इस मन्त्र को पढ़ते हुए उस पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

           माँ भगवती जगदम्बा आप और आपके परिवार का कल्याण करेसाथ ही आपकी साधना सफल हो और आपको माँ भगवती का वरदहस्त प्राप्त होमैं सदगुरुदेवजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

       इसी कामना के साथ

       ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।