मंगलवार, 24 जनवरी 2017

साबर सरस्वती साधना

            माघ मासीय गुप्त नवरात्रि एवं माँ भगवती सरस्वती जयन्ती अर्थात वसन्त पञ्चमी समीप ही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि एवं वसन्त पञ्चमी की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

            गुप्त नवरात्रि २८ जनवरी २०१७ से आरम्भ हो रही है और वसन्त पंचमी १ फरवरी २०१७ को आ रही है। 

           भगवती शारदा विद्याबुद्धिज्ञान एवं वाणी की अधिष्ठात्री तथा सर्वदा शास्त्र-ज्ञान देने वाली देवी हैं। हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थों में इन्हीं माँ वागीश्वरी की जयन्ती वसन्त पञ्चमी के दिन बतलाई गई है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को मनाया जाने वाला यह सारस्वतोत्सव या सरस्वती-पूजन अनुपम महत्त्व रखता है। सरस्वती माँ का मूलस्थान शशाङ्क-सदन अर्थात् अमृतमय प्रकाश-पुञ्ज है। जहाँ से वे अपने उपासकों के लिये निरन्तर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं। शुद्ध ज्ञानमय व आनन्दमय विग्रह वाली माँ वागीश्वरी का तेज दिव्य व अपरिमेय है और इनकी ही शब्दब्रह्म के रूप में स्तुति की जाती हैं।

          श्रीमद्देवीभागवत  श्रीदुर्गासप्तशती में आद्याशक्ति द्वारा महाकालीमहालक्ष्मी व महासरस्वती के नाम से तीन भागों में विभक्त होने की कथा जगद्विख्यात है। सत्त्वगुण-सम्पन्ना भगवती सरस्वती के अनेक नाम हैंजिनमें वाक्वाणीगीःधृतिभाषाशारदावाचाधीश्वरीवागीश्वरीब्राह्मीगौसोमलतावाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।
          अमित तेजस्विनी व अनन्त गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिये निर्धारित शारदा माँ का आविर्भाव-दिवसमाघ शुक्ल पञ्चमी श्रीपञ्चमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दिन माँ की विशेष अर्चना-पूजा व व्रतोत्सव द्वारा इनके सान्निध्य प्राप्ति की साधना की जाती है। शास्त्रों में सरस्वती देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारम्भ-विद्यारम्भ की तिथियों पर भी सरस्वती-पूजन का विधान बताया गया है। बुध ग्रह की माता होने से हर बुधवार को की गयी माँ शारदा की आराधना बुध ग्रह की अनुकूलता व माँ सरस्वती की प्रसन्नता दोनों प्राप्त कराती है। सच्चे श्रद्धालु आराधक की निष्कपट भक्ति से अति प्रसन्न होने पर देवी सरस्वतीजी ऐसी कृपा बरसाती हैं कि उसकी वाणी सिद्ध हो जाती है जो कुछ कहा जायवही सत्य हो जाता है।

             सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरुपिणि।

            विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥
          माता सरस्वती की कृपा के बिना मनुष्य ही नहीं अपितु हर जीव अधूरा ही है। क्यूँकि यही वह आदिशक्ति हैजो सब को विचार करने की शक्ति प्रदान करती हैस्मरण-शक्ति प्रदान करती है। जिज्ञासा के भाव भी सरस्वती की ही कृपा से जाग्रत होते हैं। अधिक लिखने की आवश्यकता ही नहीं हैक्यूँकि माता सरस्वती का जीवन में क्या महत्व हैयह सभी जानते है।
          माँ सरस्वती की साधना का सबसे उत्तम दिवस वसन्त पंचमी निकट ही है और ऐसे श्रेष्ठ समय का आप सभी लाभ उठाना चाहते होंगे। अतः आप  सभी के लिए आज साबर सरस्वती साधना प्रयोग दिया जा रहा है।
          इस प्रयोग के माध्यम से साधक माँ सरस्वती की कृपा का पात्र बन सकता है। मलीन होती बुद्धि को निर्मल किया जा सकता है। जिन साधकों की स्मरण-शक्ति दुर्बल होती जा रही है। उन्हें इस प्रयोग के माध्यम से बल मिलता है तथा साधक ज्ञानमार्ग में प्रगति प्राप्त करता है। अब अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं हैक्यूँकि माँ की कृपा से सभी परिचित है।

साधना विधान :------------

           यह प्रयोग आप बसन्त पंचमी के दिन प्रातः ४ से ११ बजे के मध्य कर सकते है या सन्ध्या ७ से ९ बजे के मध्य भी किया जा सकता है। आप इस साधना में श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर पूर्व की ओर मुख कर बैठें।

           अपने सामने बाजोट रखकर उसपर श्वेत वस्त्र बिछा दें तथा माँ भगवती सरस्वती का कोई भी चित्र एवं पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र या विग्रह स्थापित करें। फिर साधक सर्वप्रथम सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से साबर सरस्वती साधना सम्पन्न करने की अनुमति ले और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और  वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और ॐ भं भैरवाय नमः मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक को साधना के पहिले संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

          इसके बाद बाजोट पर जो सफेद वस्त्र बिछाया है‚ उस पर अक्षत से वस्त्र पर एक स्वस्तिक बनाएं। उस स्वस्तिक के मध्य एक पानी वाला नारियल रखें। नारियल पर सिन्दूर से बीजमन्त्र ऐं लिखकर ही स्थापित करें। अब स्वस्तिक के चारों कोनों पर एक-एक दीपक रखकर प्रज्ज्वलित कर दें। दीपक मिट्टी के होने चाहिए और तिल का तेल दीपक में डालें।

          अब नारियल का सामान्य पूजन करेंसरस्वती माता का प्रतीक मानकर। भोग में खीर अर्पित करेंजिसे बाद में पूरे परिवार को दिया जा सकता है। स्मरण रखेंआप जो पञ्चोपचार पूजन करेंगेउसमें एक घी का दीपक अलग से प्रज्वलित करना है और पाँचों दीपक साधना पूर्ण होने तक जलना चाहिए।
          इसके बाद आप सरस्वती साबर मन्त्र का बिना माला के जाप करें और थोड़े-थोड़े अक्षत नारियल पर अर्पित करते जाएं।

साबर सरस्वती मन्त्र :-----------

           ॐ नमो सारसूति माई,

            मेधा बड़े करो सवाई,

            अमृत बरसे बुद्धि का,

            बाजे डंका सुद्धि का,

            आदेश आदेश आदेश शिव गोरख जोगी को आदेश ॥

          यह क्रिया आपको कम से कम एक घण्टे तक करनी होगी। इससे अधिक करना या न करना साधक की इच्छा पर निर्भर करता है। जब यह क्रिया पूर्ण हो जाए तो माँ से पुनः आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें।
          मन्त्र जैसा लिखा गया है वैसा ही जाप करेंविधि या मन्त्र में अपनी इच्छा से कोई परिवर्तन न करें।     
          यदि आपने साधना सुबह की हैं तो शाम को सारी सामग्री अक्षतवस्त्रमिटटी के दीपक आदि किसी मन्दिर में रख दें या किसी वृक्ष के नीचे रख आएं। यदि आपने  साधना शाम को की हैं तो यह क्रिया अगले दिन करें।
          इस प्रकार यह लघु परन्तु दिव्य प्रयोग सम्पन्न होता है तथा माँ की कृपा से साधक की मेधा-शक्ति का विकास होता है।
          आप सभी साधना में सफलता प्राप्त करे और आपको माँ सरस्वती की पूर्ण कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त हो।
          इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

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