कार्तिक मास‚ दीपावली और लक्ष्मी साधनाएँ
कार्तिक मास आरम्भ होने वाला है। यह १० अक्टूबर २०२२ से शुरू हो रहा है। सर्वप्रथम आप सभी को कार्तिक मास अर्थात् लक्ष्मी मास की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ! साथ ही साथ दीपावली पर्व की भी अग्रिम शुभकामनाएँ!
मासानां कार्तिको श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः।
तीर्थे नारायाणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ॥
न कार्तिक समो मासो न कृतेन समं युगम्।
न वेद सदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्॥
— स्कन्दपुराण
कुमार कार्तिकेय ने भगवान शिव से पूछा
कि कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता है? इस पर
भगवान शिव ने कहा − उसी प्रकार जैसे न सतयुग के समान युग,
न वेदों के सदृश शास्त्र हैं और न गंगा के समान तीर्थ, कार्तिक मास के समान दूसरा कोई भी महीना नहीं है। धर्मशास्त्रों में
कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष देने वाला बताया गया है।
भारतीय तन्त्र शास्त्र केवल कार्तिक
कृष्णपक्ष अमावस्या को ही दीपावली नहीं कहते, अपितु पूरे कार्तिक मास को “लक्ष्मी मास” या
“दीपावली मास” कहा गया है। कई साधकों ने तो
कार्तिक माह के तीस दिनों में तीस प्रयोग सम्पन्न किये और रंक से राजा बन कर दिखा
दिया, कि यदि कोई साधक पक्का निश्चय कर ले तो वह अद्वितीय
रूप से लक्ष्मीजी को सिद्ध कर सकता है।
मनुष्य की दरिद्रता उसके
जीवन का अभिशाप है। निर्धन व्यक्ति हर क्षण मरता है और हर क्षण जन्म लेता है। जब
कोई व्यक्ति दिये हुए कर्जे को वापिस प्राप्त करने के लिए उसके पास पहुँचता है,
तो वह एक तरह से अपने आपको दुःखी मन से मृत्यु के करीब ही समझता है।
जब वह अपने बच्चे की फीस समय पर जमा नहीं करा पाता, या
बच्चों की आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर पाता, या पति या पत्नी की
इच्छाओं को पूर्णता नहीं दे पाता, तो वह अपने आपको कमज़ोर,
बेबस और मृतवत्-सा समझने लग जाता है, क्योंकि
आज पूरे संसार का ढाँचा आर्थिक धरातल पर स्थित है। जीवन के सारे कार्य अर्थ के
चारों ओर सिमटकर रह गये हैं, जीवन में आर्थिक दृष्टि से
उन्नति प्राप्त करना या समृद्धि प्राप्त करना एक तरह से जीवन को पूर्णता देना है।
कई बार व्यक्ति परिश्रम करता है, भाग-दौड़
करता है, चौबीस घण्टे कार्य या व्यापार में जुटा रहता है,
फिर भी वह आर्थिक दृष्टि से सफलता प्राप्त नहीं कर पाता। व्यापार
में बाधाएँ आती रहती हैं, शत्रु हावी रहते हैं, और प्रमाणिक दृष्टि से जो सम्पन्नता बनी रहनी चाहिए, दुर्भाग्य की वजह से वह सम्पन्नता नहीं आ पाती। ऐसी स्थिति में एक ही उपाय
रह जाता है, कि साधनाओं के माध्यम से आर्थिक पक्ष को पूर्णता
दी जाए।
कार्तिक मास को लक्ष्मी मास भी कहा गया
है, क्योंकि इस महीने में देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और अपने साधकों
को अभय वर देती हैं। लक्ष्मी साधना के लिए कार्तिक मास से उपर्युक्त अन्य कोई मास
नहीं है और इस मास में साधक को अधिक से अधिक साधनाएँ सम्पन्न करनी चाहिए।
कार्तिक मास एवं दीपावली के इस पावन
अवसर पर आप सभी के लिए यहाँ कुछ साधना प्रयोग दिए जा रहे हैं, जो धन की
कामना करने वाले सभी साधकों के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हैं।
(१) कमला लक्ष्मी प्रयोग
यह मन्त्र लक्ष्मी का प्रिय एवं
श्रेष्ठ मन्त्र कहा गया है तथा इस मन्त्र के जप या प्रयोग से विशेष आर्थिक
अनुकूलता,
सम्पन्नता, ऐश्वर्य और व्यापारिक उन्नति सम्भव
है।
इस मन्त्र का जप सम्पन्न करने के लिए
आयु, जाति या वर्ग का कोई बन्धन नहीं है, कोई भी पुरुष या
स्त्री इस मन्त्र को जप सकता है तथा इस साधना को पूर्ण कर सकता है।
इसके लिए यह आवश्यक है, कि पीले
रंग का आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके साधक को स्वयं भी पीला वस्त्र
धारण कर बैठना चाहिए और साधक को अपने सामने अगरबत्ती एवं घी का दीपक भी लगा लेना
चाहिए।
सामने “गजलक्ष्मी” का प्राण-प्रतिष्ठित चित्र स्थापित
करें। इस चित्र में लक्ष्मी बैठी हुई होती हैं तथा उनके दोनों तरफ हाथी उन पर
जल-वर्षा या घट-वर्षा करते हैं। इस चित्र को काँच के फ्रेम में मढ़वा कर सामने रख
देना चाहिए।
इसके बाद नीचे लिखे मन्त्र की “कमलगट्टे की माला” से एक माला या ग्यारह मालाएँ फेरनी चाहिए।
कुल मिलाकर इस अनुष्ठान में सवा लाख मन्त्र जाप होता है। इसलिए साधक को चाहिए, कि वह कुल
मिलाकर १२५० मालाएँ फेरे। ऐसा करने पर सवा लाख मन्त्र जाप पूरा हो जाता है।
इस मन्त्र का जप या तो प्रातःकाल
सूर्योदय से पहले करना चाहिए अथवा रात्रि को किया जा सकता है, पर इस बात
का ध्यान रखें, कि यह सवा लाख मन्त्र जप ४० दिन में पूरा हो
जाना चाहिए। इस प्रकार का ४० दिन का अनुष्ठान करने के लिए नित्य जितनी भी सम्भव हो,
मालाएँ फेरी जा सकती है।
४० दिन बाद माला को नदी
में प्रवाहित कर दें और चित्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दें, परन्तु यदि अनुष्ठान के रूप में इस मन्त्र को नहीं जपना है, तो साधक को नित्य अपनी पूजा में एक माला या ग्यारह मालाएँ फेरनी चाहिए।
अनुष्ठान के रूप में इस प्रयोग को
सम्पन्न कर जब साधक मन्त्र जप सवा लाख पूरा कर ले, तब इसी मन्त्र
से दूध के बने पेड़ों की १०८ आहुतियाँ देनी चाहिए और प्रत्येक आहुति देते समय किसी
मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।
मन्त्र :------------
॥ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं
महालक्ष्म्यै नमः ॥
यह मन्त्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है, साधकों ने इससे विशेष लाभ उठाया है। मन्त्र जप में भूलकर भी रुद्राक्ष माला का प्रयोग नहीं करना चाहिए। लक्ष्मी से सम्बन्धित मन्त्र जप में “कमलगट्टे की माला” सबसे अधिक उपयुक्त एवं लाभकारी मानी गई है, परन्तु यह माला भी मन्त्र-सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठायुक्त होनी चाहिए।
(२) कुबेर प्रयोग
संसार में जितने भी मन्त्र हैं या
लक्ष्मी से सम्बन्धित जितनी भी साधनाएँ हैं, उनमें कुबेर अनुष्ठान का
विशेष महत्व है। कहते हैं, कि लंका के राजा रावण ने भी इस
अनुष्ठान को किया था और इसी के फलस्वरूप वह अपने जीवन में आर्थिक सम्पन्नता और
श्रेष्ठता पा सका था।
इसके लिए “कुबेर यन्त्र” की आवश्यकता होती है। यह यन्त्र
धातु निर्मित मन्त्र-सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठायुक्त होना चाहिए और अपने आप में पूर्ण
प्रभावयुक्त होना चाहिए। इस प्रकार का कुबेर यन्त्र किसी भी योग्य पण्डित से पहले
ही तैयार करवाया जा सकता है।
किसी भी सोमवार या बुधवार को प्रातःकाल
सूर्योदय से १० बजे के भीतर-भीतर स्नानकर शुद्ध वस्त्र धारणकर इस यन्त्र को अपने
घर के पूजा स्थान में स्थापित कर देना चाहिए।
यह यन्त्र मन्त्र-सिद्ध होता है, अतः इसको
नित्य जल से स्नान कराने की आवश्यकता नहीं है, केवल मात्र इस
पर कुंकुंम, केसर, अक्षत आदि चढ़ाकर
नैवेद्य लगाकर अगरबत्ती व दीपक जलाकर साधक को किसी भी माला से मन्त्र जप प्रारम्भ
कर देना चाहिए।
यह मन्त्र जाप इक्कीस हज़ार मन्त्रों
का होता है,
मेरे कहने का तात्पर्य यह है, कि जब साधक दो
सौ दस मालाएँ पूरी कर लेता है, तो यह साधना सम्पन्न हो जाती
है। इसके लिए दिनों की संख्या निर्धारित नहीं है, परन्तु
मन्त्र जाप संख्या निर्धारित है।
जब साधना समाप्त हो जाए, तब उस “कुबेर यन्त्र” को
अपने घर के पूजा स्थान में स्थापित कर दें या अपनी दुकान में रख दें। यदि साधक
चाहे तो “कुबेर यन्त्र”
को उस स्थान पर भी रख सकता है, जहाँ
रुपये-पैसे, गहने आदि रखे हों।
साधक स्वयं देखकर यह अनुभव करेगा, कि वास्तव
में ही साधना में शक्ति होती है और यदि सही ढंग से साधना सम्पन्न की जाए तो निश्चय
ही अनुकूलता प्राप्त होती है।
मन्त्र :------------
॥ ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः ॥
यह मन्त्र अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है और जो साधक अपने जीवन में वास्तव में प्रगति करना चाहते हैं और यह अनुभव करना चाहते हैं, कि जल्दी से जल्दी जीवन में आर्थिक उन्नति हो, तो उनके लिए श्रेष्ठ मन्त्र प्रयोग है और इसका प्रयोग अपने जीवन में एक बार अवश्य ही करना चाहिए।
(३) द्वादशाक्षर मन्त्र प्रयोग
जिसके जीवन में व्यापारिक बाधाएँ आ रही
हों या प्रयत्न करने पर भी व्यापार में उन्नति नहीं हो रही हो या उसकी बिक्री नहीं
बढ़ रही हो अथवा व्यापार में किसी प्रकार की अड़चन आ रही हो, उसे इस
मन्त्र का प्रयोग या अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए।
यह मन्त्र अद्भुत और आश्चर्यजनक
प्रभावों से युक्त है और कई व्यापारियों ने इसका लाभ उठाया है।
इसमें दो वस्तुओं का विशेष ध्यान रखा
जाना चाहिए। एक तो यह है, कि यह प्रयोग ३२ दिन या ६० दिन में पूरा होना
चाहिए तथा इसमें सवा लाख मन्त्र का जाप करना चाहिए, जितने
दिन का प्रयोग हो, उतने दिन में यह मन्त्र जाप सम्पन्न होना
चाहिए।
दूसरा, मन्त्र जप
पूरा होने पर साधक को दस हज़ार घी की आहुतियाँ इसी मन्त्र से लेनी चाहिए और यदि
सम्भव न हो, तो मात्र पच्चीस हज़ार मन्त्र जाप और कर लेना
चाहिए।
यह प्रयोग मन्त्र-सिद्ध
प्राण-प्रतिष्ठायुक्त “स्वर्णाकर्षण गुटिका” पर ही
सम्पन्न होता है, अतः साधना करने से पूर्व ही इस गुटिका को
प्राप्त कर लेना चाहिए। यह गुटिका काले रंग की होती है और सूर्य के सामने रखकर यदि
इसे देखा जाए तो इसमें से काले रंग के अलावा अन्य रंग की झाँई दिखाई देती है।
यह “स्वर्णाकर्षण गुटिका” मन्त्र-सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठायुक्त
होनी चाहिए और मन्त्र प्रयोग करने से पूर्व इसे स्थापित कर देना चाहिए। स्थापित कर
देने के लिए किसी विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं है, केवल
चाँदी की थाली या चाँदी की कटोरी में अथवा किसी अन्य धातु की थाली में चावल की
ढेरी बनाकर, उस पर इस गुटिका को रख देना चाहिए।
उसके बाद नीचे दिए गए मन्त्र का जाप
प्रारम्भ करना चाहिए। जाप करते समय गुटिका के सामने शुद्ध घी का दीपक और अगरबत्ती
जला लेनी चाहिए। यह मन्त्र जाप नित्य इस गुटिका के सामने ही करना चाहिए।
जब मन्त्र जाप पूरा हो जाए, तो इस
गुटिका को अपनी दुकान में स्थापित कर लेना चाहिए या जहाँ रुपए-पैसे रखते हों,
वहाँ पर इस गुटिका को रख देना चाहिए। इससे उनके जीवन में व्यापार
वृद्धि तथा आर्थिक उन्नति स्वतः ही होने लगती है।
यह प्रयोग पुरुष या स्त्री कोई भी कर
सकता है,
इसमें विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं है।
मन्त्र :------------
॥ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं जगत्प्रसूत्यै नमः ॥
यह मन्त्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है और इस
मन्त्र का प्रयोग उन व्यापारियों को अवश्य ही करना चाहिए, जो कि
अपने जीवन में प्रयत्न करने पर भी सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।
मेरी राय में जो लम्बा अनुष्ठान नहीं कर सकता हो, उसे चाहिए कि वह इस मन्त्र का छोटा अनुष्ठान ही अवश्य सम्पन्न कर ले और एक दिन में ही २४००० मन्त्र जाप सम्पन्न कर “स्वर्णाकर्षण गुटिका” को सिद्ध कर ले। ऐसा करने के बाद उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता है।
(४) श्रेष्ठ लक्ष्मी मन्त्र प्रयोग
यह मन्त्र आर्थिक उन्नति के लिए अनुकूल
है, शास्त्रीय ग्रन्थों में इस मन्त्र की विशेष प्रशंसा की गई है और कहा गया
है, कि लक्ष्मी के जितने भी मन्त्र हैं, उन सब में यह मन्त्र श्रेष्ठ और अद्भुत सफलतादायक बताया गया है।
जिसके जीवन में आर्थिक अभाव है या
प्रयत्न करने पर भी आर्थिक उन्नति नहीं हो रही हो अथवा व्यापार प्रारम्भ करना
चाहते हों और व्यापार में सफलता नहीं मिल रही हो अथवा व्यापार में बाधाएँ आ रही
हों या प्रयत्न करने पर भी बिक्री नहीं बढ़ रही हो अथवा अन्य किसी प्रकार की
आर्थिक उन्नति में अड़चनें आ रही हों, तो यह मन्त्र रामबाण की तरह असर
करता है और जीवन में निश्चित रूप से आर्थिक उन्नति होने लगती है।
मैंने स्वयं इस मन्त्र का प्रयोग किया
है और अनुभव किया है, कि आर्थिक उन्नति में यह मन्त्र विशेष रूप से
सफलतादायक है, जीवन में आर्थिक दृष्टि से किसी भी प्रकार की
कोई न्यूनता हो या सफलता न मिल रही हो, तो इस मन्त्र से
निश्चित रूप से सफलता मिलने लग जाती है। मेरी दृष्टि में यह प्रयोग कम समय का है
और जल्दी असर करने वाला है। अतः इस मन्त्र का प्रयोग साधक को अवश्य करना चाहिए।
साधक को प्रातःकाल स्नानकर शुद्ध
वस्त्र धारणकर पूर्व की ओर मुँह कर सफेद आसन पर बैठ जाना चाहिए। यह आसन सूती या
ऊनी किसी भी प्रकार का हो सकता है। सामने अगरबत्ती व दीपक लगा लेना चाहिए, इस प्रयोग
में “स्फटिक माला”
या “कमलगट्टे की
माला” का ही प्रयोग किया जाता है।
मन्त्र का जप करने से पूर्व सामने थाली
में चावल की ढेरी बनाकर उस पर “कनकधारा यन्त्र” स्थापित
करें। यह यन्त्र अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है और इस यन्त्र से यह मन्त्र ज्यादा
सम्बन्ध रखता है, अत: इस यन्त्र के सामने ही मन्त्र का
प्रयोग करने पर सफलता मिलती है।
यह मन्त्र जप नित्य १०८ बार होना चाहिए
अर्थात साधक को नित्य एक माला फेरनी चाहिए और ३१ दिन में ही यह मन्त्र सिद्ध हो
जाता है।
यह “कनकधारा यन्त्र” धातु
निर्मित मन्त्र-सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठायुक्त होना चाहिए और अनुष्ठान करने से पूर्व
ही इसे प्राप्त कर घर में स्थापित कर लेना चाहिए। स्थापित करने के लिए किसी विशेष
विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती। प्रयोग समाप्त होने पर माला को नदी में
प्रवाहित कर दें।
मन्त्र :------------
॥ ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं लक्ष्मीरागच्छागच्छ मम मन्दिरे
तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा ॥
यह २२ अक्षरों का मन्त्र लक्ष्मी का
अत्यनात प्रिय मन्त्र है एवं लक्ष्मी ने स्वयं ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को यह बताया था
और कहा था,
कि यह मन्त्र मुझे सभी दृष्टियों से प्रिय है तथा जो इस मन्त्र का
एक बार भी उच्चारण कर लेता है, मैं उसके घर में स्थापित हो
जाती हूँ।
घर से दरिद्रता मिटाने और आर्थिक उन्नति के लिए इस मन्त्र के मुकाबले में अन्य कोई मन्त्र नहीं है। वस्तुतः मेरे अनुभव में यह मन्त्र लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विशेष अनुकूल है।
और अन्त में
॥ ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात ॥
सर्वशक्तिमान माँ भगवती लक्ष्मी अपनी कृपा से हमें सत्प्रेरणा देकर सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त करें! यही हमारी प्रार्थना होनी चाहिए भगवती लक्ष्मी से।
आपकी साधना सफल हों! आप सभी स्वस्थ और धनवान बनें! माँ भगवती लक्ष्मी की कृपा से सभी प्रकार की खुशियाँ आपके जीवन को नवीन रंग-बिरंगे प्रकाश से परिपूर्ण कर आलोकित कर दें!
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ॥